रबी की फसल: कटाई बुवाई पूरी जानकारी

September 20, 2024
रबी की फसल

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भारत एक प्रमुख कृषि देश है और यहाँ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कृषि क्षेत्र है। भारतीय कृषि का फसल चक्र दो मुख्य सीज़नों में विभाजित है: खरीफ़ और रबी। इन दोनों सीज़नों का चुनाव फसलों के विकास के लिए अनुकूल मौसम की स्थिति पर आधारित होता है, क्योंकि एक फसल का चक्र आमतौर पर 3-4 महीने का होता है, जिससे एक वर्ष में 2-3 फसलें ली जा सकती हैं।

खरीफ़ फसलें जून से अक्टूबर के बीच बोई जाती हैं और रबी फसलें अक्टूबर से मार्च के बीच उगाई जाती हैं। इस लेख में रबी फसल की खेती के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाएगी, जिसमें रबी फसलों की किस्में, उनके लाभ, सरकारी योजनाएँ, चुनौतियाँ और उनके संभावित समाधान शामिल हैं।

रबी फसल क्या है?

अक्सर हमारे मन में सवाल आता है कि रबी की फसल किसे कहते हैं, तो रबी फसलें उन फसलों को कहते हैं जिन्हें सर्दियों के मौसम (अक्टूबर से नवंबर) में बोया जाता है और वसंत ऋतु (मार्च से अप्रैल) में काटा जाता है। अगर हम बात करे कि रबी की फसल क्या होती है, तो गेंहू, जौ, चना और सरसों प्रमुख रबी की फसल होती हैं। 

खरीफ और रबी की फसल में अंतर ये होता है कि खरीफ की फसलें मानसून के मौसम में बोई जाती हैं क्योंकि इन फसलों को पानी की ज़्यादा जरूरत होती है, वही रबी की फसलों को कम पानी की ज़रूरत होती है, इसलिए इनको मानसून  की फसलें लेने के बाद, रबी की फसलों का समय (अक्टूबर से अप्रैल) के समय में बोया जाता है।

रबी की फसल के नाम: Rabi ki Fasal Kaun si hai?

इस आर्टिकल में हम कुछ ऐसी प्रमुख रबी की फसल के नाम  जानेंगे जो पूरे देश में बहुतायत में बोई जाती है और इन फसलों को रबी की फसलों के तौर पर याद रखा जाता है।

रबी फसलों के नाम: Rabi ki Fasal Kaun si hai?

रबी की फसलों के नामरबी की फसलों का समय    उत्पादक राज्य
            गेहूँबुआई – अक्टूबर  से लेकर नवंबर तक (अलग-अलग राज्यों के अनुसार)
कटाई- मार्च से अप्रैल तक 
मध्य प्रदेश
पंजाब
उत्तर प्रदेश
हरयाणा
महाराष्ट्र
बिहार
राजस्थान 
उत्तराखंड 
            चनाबुआई – अक्टूबर से लेकर नवंबर  तक
कटाई- 120 से 140 दिन बाद।
मध्य प्रदेश
राजस्थान 
उत्तर प्रदेश
हरयाणा
महाराष्ट्र
पंजाब
हिमाचल प्रदेश
बिहार
          मटरबुआई – अक्टूबर से नवंबर तक
कटाई – बुवाई के 60 से 70 दिन बाद
उत्तर प्रदेश
मध्य प्रदेश
बिहार
पंजाब
          
           जौ 
 बुआई – अक्टूबर  से नवंबर तक।            
कटाई – मार्च से अप्रैल तक 
बिहार
यूपी
पंजाब
हरयाणा
राजस्थान 
गुजरात
कर्नाटक
तमिलनाडु
एमपी
                   सरसोंबुवाई – अक्टूबर के बाद    
कटाई – 90 से 105 दिन  

उत्तर प्रदेश
पंजाब
राजस्थान 
मध्य प्रदेश
बिहार
ओडिशा
पश्चिम बंगाल

भारत में उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार

भारत में मौसम की विभिन्नताओं के कारण फसलों को उनके बुवाई के समय के आधार पर तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है:

खरीफ फसलें

  •  खरीफ फसलें मुख्य रूप से मानसून के मौसम (जून-सितंबर) में बोई जाती हैं।
  •  इन फसलों को उगने के लिए उच्च तापमान और अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  •  प्रमुख खरीफ फसलों में धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास, जूट, सोयाबीन और मूंगफली शामिल हैं।

रबी फसलें

  •  रबी फसलें सर्दियों के मौसम (अक्टूबर-मार्च) में बोई जाती हैं।
  •  इन फसलों को उगने के लिए कम तापमान और पर्याप्त धूप की आवश्यकता होती है।
  •  प्रमुख रबी फसलों में गेहूं, चना, सरसों, मटर, और जौ शामिल हैं।

जायद फसलें

  •  जायद फसलें खरीफ और रबी फसलों के बीच की अवधि (मार्च-जून) में बोई जाती हैं।
  •  इन फसलों को उगने के लिए उच्च तापमान और सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  •  प्रमुख जायद फसलों में खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, लौकी, करेला और कुछ दलहन शामिल हैं।

रबी की फसलों की खेती के तरीके

रबी की फसल के लिए सही समय पर बुवाई और कटाई करना बहुत जरुरी है बुवाई के समय मिट्टी की नमी और बीज की मात्रा का ध्यान रखना बहुत जरुरी होता है।

  • मिट्टी की तैयारी: रबी फसलों की अच्छी उपज के लिए मिट्टी की गहरी जुताई जरूरी है। इससे मिट्टी की पलटी हो जाती है, अंदर की उपजाऊ मिटटी ऊपर आ जाती है और मिटटी में जगह बनने से हवा का संचार अच्छा होता है और पानी भी पौधे की जड़ो तक पहुँचता है।
  • बुवाई का समय: रबी फसलों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है। सही समय पर बुवाई से फसल की पैदावार बढ़ती है, इसलिए इस फसल को सही समय पर बोना बहुत ज़रूरी है।
  • बीज का चयन और बुवाई:  अच्छी गुणवत्ता वाले सही किस्म के बीजों का चुनाव करने के बाद उनको सही दूरी और मात्रा पर बोना चाहिए।
  • सिंचाई: रबी फसलों को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। खासकर बोवाई के तुरंत बाद और फिर फसल की बढ़त के समय।
  • खाद, कीटनाशक और उर्वरक : अच्छी फसल के लिए बहुत जरूरी है कि हमारी फसल को समय-समय पर खाद, कीटनाशक और उर्वरक मिलता रहे। उर्वरक डालने से पहले किसानों को अपने खेत के मिट्टी की जांच जरूर कर लेनी चाहिए।

रबी फसलों के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी बहुत हद तक कृषि पर निर्भर है। हमारी जनसँख्या की लगभग 60% लोग खेती पर निर्भर होते हैं, इसलिए कृषि क्षेत्र का, विशेषकर रबी फसलों का हमारे समाज पर आर्थिक और सामाजिक दोनों ही प्रभाव होता है, ये फसल ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साथ पूरे देश को भोजन उपलब्ध कराने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 रबी की फसल का आर्थिक प्रभाव: 

  • किसानों के लिए आय का महत्वपूर्ण स्रोत: गेहूं, मक्का, और सरसों जैसी फसलें बाजार में अच्छी कीमत पर बिकती हैं, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  • रोजगार सृजन: किसानों के साथ ही खेतों में काम करने वाले मजदूरों, कीटनाशक और उर्वरक बनाने वाली कंपनियों और दुकानदारों को भी रोजगार मिलता है।
  • अनाज व्यापार को बढ़ावा: अनाज़ का व्यापार करने वाले व्यापारी और छोटे दुकानदारों को रोजगार के अवसर मिलते हैं।
  • खाद्य सुरक्षा मजबूत करता है: रबी फसलों का उत्पादन देश की भोजन सुरक्षा को मजबूत करता है, क्योंकि ये फसलें पूरे साल भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करती हैं।
  • आयात पर निर्भरता कम करता है: रबी फसलों के उत्पादन से देश को खाद्यान्न आयात पर कम निर्भर रहना पड़ता है, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होती है।

रबी फसलों का सामाजिक प्रभाव:

  • समुदायिक भावना मजबूत होती है: फसल कटाई के समय ग्रामीण समुदाय मिलकर काम करते हैं, जिससे सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं और सहयोग की भावना बढ़ती है।
  • महिलाओं और बच्चों को रोजगार: रबी फसलों की खेती से महिलाओं और बच्चों को भी रोजगार के अवसर मिलते हैं। वे खेतों में काम करके परिवार की आय में योगदान करते हैं।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होती है: रबी फसलों की अच्छी पैदावार से किसानों की आय बढ़ती है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।
  • ग्रामीण-शहरी प्रवास कम होता है: जब ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर होते हैं, तो लोग शहरों की ओर पलायन कम करते हैं।
  • सामाजिक बुराइयों में कमी: रोजगार के अवसरों से लोग व्यस्त रहते हैं, जिससे सामाजिक बुराइयों में कमी आती है।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान बढ़ता है: जब ग्रामीणों की आय बढ़ती है, तो वे शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों का विकास: रबी फसलों की खेती से ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होता है, और बुनियादी ढांचे में सुधार होता है।

रबी की फसल के लिए सरकारी योजनाएं और सब्सिडी

भारत सरकार रबी की फसल को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं और सब्सिडी प्रदान करती है। ये योजनाएं किसानों को आर्थिक सहायता, फसल बीमा और मशीनों के लिए लोन उपलब्ध कराती हैं।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN)

इस योजना के तहत छोटे और सीमांत किसानों को प्रतिवर्ष 6000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। यह राशि तीन किस्तों में सीधे किसानों के बैंक खातों में जमा की जाती है। यह योजना किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है और उन्हें समय पर बुवाई और खेती के अन्य कार्यों को पूरा करने में मदद करती है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)

इस योजना के तहत किसानों को फसल बीमा प्रदान किया जाता है। अगर किसी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल को नुकसान होता है तो किसान को मुआवजा मिलता है। इसके तहत, किसानों को बीमा की प्रीमियम राशि का एक छोटा हिस्सा ही देना पड़ता है और शेष राशि सरकार द्वारा दी  जाती है। यह योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचाती है और उनकी फसल की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।

कृषि उपकरणों और मशीनों पर सब्सिडी

कृषि उपकरणों और मशीनों की खरीद पर सरकार सब्सिडी प्रदान करती है। आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग किसानों को खेती के कार्यों को अधिक प्रभावी और कुशलता से करने में मदद करता है। सब्सिडी के माध्यम से किसानों को ट्रैक्टर, थ्रेशर, पंप सेट, स्प्रिंकलर सिस्टम और अन्य उपकरण खरीदने में सहायता मिलती है। इससे किसानों की उत्पादन लागत में कमी आती है और उनकी आय में वृद्धि होती है।

फसल ऋण सहायता योजनाएं

सरकार विभिन्न बैंकों के माध्यम से किसानों को कम ब्याज़ दरों पर फसल ऋण प्रदान करती है। इन ऋणों से किसान अपनी फसलों की लागत को आसानी से पूरा कर सकते हैं। फसल ऋण योजनाएं किसानों को बीज, खाद, उर्वरक, सिंचाई और अन्य कृषि उपकरणों की खरीद में मदद करती हैं। रियायती दरों पर ऋण प्राप्त करने से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और वे समय पर अपनी फसलों की बुवाई और कटाई कर सकते हैं।

जल संरक्षण और सिंचाई के लिए सरकारी सहायता

सरकार जल संरक्षण और सिंचाई के लिए विभिन्न योजनाएं चलाती है। इसके तहत तालाबों, कुओं और नहरों की मरम्मत और निर्माण के लिए सब्सिडी और लोन सहायता प्रदान की जाती है। इससे रबी फसलों के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। सरकार ने जल शक्ति अभियान जैसी योजनाएं शुरू की हैं और इन योजनाओं के तहत किसानों को ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिस्टम और अन्य जल प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करने के लिए सब्सिडी प्रदान की जाती है।

रबी फसलों की चुनौतियाँ और समाधान

कृषि क्षेत्र में चुनोतियाँ कम नहीं है, कभी बाढ़ तो कभी सूखा, नकली खाद, कीट की परेशानी और फसलों के सही न मिलना, ये कुछ ऐसी परेशानियाँ है, जिनसे देश का किसान झुझता रहता है।

रबी फसलों की प्रमुख चुनौतियाँ:

  • पानी की कमी: रबी फसलों की सबसे बड़ी चुनौती सिंचाई के लिए पानी की कमी है। कम वर्षा और भूजल स्तर में कमी के कारण, किसानों को अपनी फसलों को पर्याप्त रूप से सिंचित करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
  • प्राकृतिक आपदाएं: रबी फसलें ओला, पाला, सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से भी प्रभावित होती हैं। इन आपदाओं से फसल को भारी नुकसान हो सकता है, जिससे किसानों की आय कम हो जाती है।
  • कीट और रोग: रबी फसलों पर कई प्रकार के कीट और रोगों का हमला होता है, जो फसल की पैदावार और गुणवत्ता को कम कर सकते हैं।
  • कम उपज वाली किस्में: कुछ क्षेत्रों में, किसान अभी भी कम उपज वाली किस्मों की खेती करते हैं, जिससे उत्पादकता कम होती है।
  • अनुसंधान और विकास में कमी: रबी फसलों के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश अपर्याप्त है, जिसके कारण नई किस्मों और बेहतर खेती तकनीकों का विकास धीमा हो जाता है।
  • मिट्टी की उर्वरता में कमी: रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है, जिससे फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • बाजार में उतार-चढ़ाव: कृषि उपजों की कीमतों में अस्थिरता किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इससे उनकी आय अनिश्चित हो जाती है।
  • भंडारण और परिवहन की कमी: फसल कटाई के बाद, भंडारण और परिवहन की कमी के कारण अक्सर बड़ी मात्रा में फसलें बर्बाद हो जाती हैं।

समाधान

प्रौद्योगिकी और मशीनों का उपयोग:

  • सिंचाई: ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकलर इरिगेशन जैसी जल-कुशल सिंचाई तकनीकों का उपयोग करके पानी बचाया जा सकता है।
  • मशीनरी: बुवाई, कटाई, थ्रेसिंग जैसी कृषि कार्यों के लिए मशीनों का उपयोग श्रम लागत और समय कम कर सकता है।
  • कृषि-तकनीकी: मौसम का पूर्वानुमान, मृदा स्वास्थ्य परीक्षण, कीट नियंत्रण आदि के लिए कृषि-तकनीकी का उपयोग किसानों को बेहतर निर्णय लेने में मदद कर सकता है।

सरकार और किसानों का मिलकर प्रयास:

  • फसल बीमा: असमय की घटनाओं जैसे ओला, पाला, सूखा से होने वाले नुकसान से बचाव के लिए फसल बीमा योजनाओं का लाभ उठाना।
  • जल संरक्षण: सरकार और समाज मिलकर जल संरक्षण अभियान चलाकर, वर्षा जल संचयन, भूजल स्तर को बनाए रखने जैसे प्रयास कर सकते हैं।
  • अनुसंधान और विकास: रोग प्रतिरोधी किस्मों, जल-तनाव सहिष्णु किस्मों, कम अवधि वाली किस्मों के विकास के लिए अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना।
  • कृषि ऋण: किसानों को समय पर और सस्ते ऋण उपलब्ध कराना ताकि वे नई तकनीकों और मशीनों को अपना सकें।
  • बुनियादी ढांचा: भंडारण, परिवहन, विपणन जैसी बुनियादी ढांचे की सुविधाओं में सुधार करना।

किसानों द्वारा किए जा सकने वाले अन्य उपाय:

  • जैविक खेती: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से बचकर मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण को बचाना।
  • मिश्रित खेती: विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ उगाकर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना और आय में विविधता लाना।
  • पराली प्रबंधन: पराली जलाने से बचकर उसे खाद में बदलकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाना।

Key Points

1. रबी की फसलें सर्दियों में बोई जाती हैं और वसंत ऋतु में काटी जाती हैं।

2. रबी की फसल के तहत गेंहू, जौ, मक्का, चना और सरसों जैसी प्रमुख फसलें आती हैं।

3. रबी फसलों की खेती के लिए मिट्टी की गहरी जुताई, सही समय पर बुवाई, उच्च गुणवत्ता वाले  बीजों का चयन और नियमित सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण हैं।

4. रबी फसलों का भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है और ये ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करती हैं।

5. भारत सरकार रबी की फसल को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं और सब्सिडी देती   है, जैसे कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN), प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), और कृषि उपकरणों और यंत्रों पर सब्सिडी।

6. रबी फसलों की खेती में जलवायु परिवर्तन, कीट और रोग, सिंचाई की कमी, उपजाऊ मिट्टी की कमी और प्राकृतिक आपदाओं जैसी चुनौतियाँ आती हैं, जिनका समाधान सही तकनीक  और उपायों से किया जा सकता है।

निष्कर्ष

रबी की फसल भारतीय कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। सही समय पर बुवाई, सिंचाई, और फसल संरक्षण से इन फसलों की पैदावार में वृद्धि हो सकती है। सरकार की विभिन्न योजनाएं और सब्सिडी किसानों की मदद करती हैं और उनकी आय को स्थिर रखती हैं। रबी की फसलें न केवल देश की खाद्यान्न सुरक्षा को सुनिश्चित करती हैं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक स्थिरता भी लाती हैं। रबी फसलों की खेती में आने वाली चुनौतियों का सही समाधान ढूंढ़कर भारतीय कृषि को और भी मजबूत बनाया जा सकता है। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

खरीफ की फसलें कौन कौन सी हैं

खरीफ की प्रमुख फसलें हैं: कपास, मूंगफली, धान, बाजरा, मक्का, शकरकंद, उर्द, मूंग, मोठ, लोबिया (चंवला), ज्वार, अरहर, ढैंचा, गन्ना, सोयाबीन, भिंडी, तिल, ग्वार, जूट, सनई आदि।

खरीफ और रबी की फसल कब बोई जाती है?

रबी की फसलें अक्टूबर से दिसंबर के बीच बोई जाती हैं और अप्रैल से मई के बीच काटी जाती हैं। खरीफ की फसलें मानसून के दौरान जून और जुलाई में बोई जाती हैं और सितंबर से अक्टूबर के बीच काटी जाती हैं।

जायद की फसलें कौन कौन सी हैं?

कद्दू, ककड़ी, तरबूज, करेला आदि सभी जायद फसलों के उदाहरण हैं।

अलसी कौन सी फसल है रबी या खरीफ?

अलसी की खेती वर्षा आधारित क्षेत्रों में खरीफ के बाद रबी में शुद्ध फसल के रूप में की जाती है।

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