Quick Summary
कलिंग युद्ध 261 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य और कलिंग राज्य के बीच लड़ा गया था। यह लड़ाई वर्तमान ओडिशा के पास हुई और भारतीय इतिहास की सबसे घातक लड़ाइयों में से एक मानी जाती है। इस युद्ध के बाद, मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।
261 ईसा पूर्व में लड़ा गया कलिंग युद्ध भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह संघर्ष मौर्य सम्राट अशोक और कलिंग राज्य के बीच हुआ था, जो आज के ओडिशा और आंध्र प्रदेश के उत्तरी हिस्सों में स्थित था। इस युद्ध में लाखों सैनिकों और नागरिकों की जानें गईं, जिससे अशोक को गहरा पछतावा हुआ। इस घटना के बाद, अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया और अहिंसा और शांति के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। कलिंग युद्ध ने न केवल मौर्य साम्राज्य के विस्तार को प्रभावित किया, बल्कि अशोक के जीवन और शासन में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया। यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है।
वर्ष (ई.पू.) | घटना का विवरण |
---|---|
269 ई.पू. | सम्राट अशोक ने मौर्य साम्राज्य के विस्तार के लिए कलिंग पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। |
265 ई.पू. | कलिंग राज्य ने मौर्य साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरू की। |
261 ई.पू. | कलिंग युद्ध का प्रारंभ हुआ, जो आधुनिक उड़ीसा के धौली और गंगा नदी के आसपास लड़ा गया। |
261 ई.पू. | युद्ध के परिणामस्वरूप लगभग 1 लाख लोग मारे गए, और 1.5 लाख लोग घायल हुए। |
261 ई.पू. | युद्ध की समाप्ति के बाद, अशोक ने युद्ध के विनाशकारी परिणामों को देखकर बौद्ध धर्म अपनाया। |
260 ई.पू. | अशोक ने धम्म प्रचार शुरू किया और हिंसा का त्याग करने का निर्णय लिया। |
259-255 ई.पू. | अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्रों की नियुक्ति की और बौद्ध धर्म को साम्राज्य में फैलाया। |
कलिंग युद्ध का परिचय देने से पहले यह जानना महत्वपूर्ण है कि कलिंग युद्ध कब हुआ, इतिहास में इस युद्ध के पुख्ता प्रमाण नही है पर कुछ साक्ष्य कहते हैं कि कलिंग युद्ध 261 ईसा पूर्व हुआ। कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया, और इसके बाद मिली भारतीय इतिहास को एक नयी दिशा, जिसने आने वाले वर्षों में भारत के हृदय में आध्यात्मिक और धम्म विजय का युग शुरू कर दिया।
कलिंग युद्ध का अध्ययन करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह युद्ध न केवल राजनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने भारतीय समाज के धार्मिक और सामाजिक संदर्भों को भी प्रभावित किया।
यानी मौर्य साम्राज्य की सेना कलिंग की सेना से बहुत अधिक थी।
वैसे तो युद्ध के अनेकों कारण हो सकते हैं जैसे आर्थिक कारण या राजनैतिक कारण, पर कलिंग युद्ध क्यों हुआ, इसके कारण की खोज करने पर इसके दो पहलू सामने आते हैं, एक तो मगध के राजा सम्राट अशोक का बदला और दूसरा विस्तार वाद, आइए पहले कलिंग युद्ध क्यों हुआ, इसके कारणों को देखने के बाद, इसके मौर्य साम्राज्य के साथ राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों को समझते हैं –
कलिंग युद्ध क्यों हुआ, आइये इस युद्ध के सभी कारणों पर एक नजर डालते है –
अगर कलिंग का युद्ध के राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों की बात की जाए तो कलिंग राज्य एक शक्तिशाली राज्य था पर मगध के पड़ोस में कलिंग जैसे शक्तिशाली राज्य का होना मौर्य साम्राज्य के लिए राजनीतिक दृष्टि से ठीक नहीं था। सम्राट अशोक विस्तार वादी नीति का अनुसरण करते थे और ऐसे में कलिंग मगध के लिये ख़तरा बन सकता था जैसा कि बाद में खारवेल के आक्रमण से यह बात पूरी तरह सिद्ध हुई। साथ ही एक चक्रवर्ती शासक के लिये यह आवश्यक था कि वह सम्पूर्ण भारतीय उप-महाद्वीप को एक शासन के नीचे लाये। इसी कारण मौर्य साम्राज्य के लिए यह आवश्यक हो गया था कि वह कलिंग को अपने अधीन कर ले।
कलिंग पूर्व-मध्य भारत का एक ऐतिहासिक राज्य था। यह आज के समय के मध्य प्रदेश, अधिकांश ओडिशा, उत्तरी तेलंगाना और पूर्वोत्तर आंध्र प्रदेश तक फैला हुआ था। इस राज्य में काकीनाडा, विशाखापट्टनम, और श्रीकाकुलम (चिकाकोल) के बंदरगाहों के साथ-साथ राजमुंदरी और विजयनगर के महत्वपूर्ण शहर शामिल थे, जिससे कलिंग पूरे हिन्द महासागर में समुद्री व्यापार पर राज करता था।
कलिंग का समुद्री व्यापार पर एक छत्र राज एक मुख्य कारण था कलिंग के युद्ध होने का, और कलिंग के बारे में जानने के पश्चात कलिंग युद्ध कहां हुआ था, इसके बारे में जानते हैं –
कलिंग का युद्ध इसी कलिंग राज्य के पास यानी वर्तमान में ओडिशा के पास स्थित धौली की पहाड़ियों पर लड़ा गया था।
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सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध में विजय प्राप्त की, युद्ध विजय के पश्चात सम्राट अशोक ने अभिलेख का निर्माण करवाया, जो कलिंग युद्ध का परिणाम को विस्तृत रूप से बताते हैं। अशोक के तेरहवें बृहद् अभिलेख से कलिंग युद्ध का परिणाम विस्तृत सूचना के रूप में प्राप्त होता है। इस अभिलेख से यह स्पष्ट होता है कि यह युद्ध बड़ा भयंकर था जिसमें भीषण रक्तपात तथा नरसंहार की घटनायें हुई –
कलिंग युद्ध के तात्कालिक परिणाम के बारे अभिलेख से जो सूचना प्राप्त होती है वह इस प्रकार है –
कलिंग युद्ध के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव बहुत अधिक है, पर इनमें से कुछ निम्न है –
युद्ध समाप्त होने के बाद, सम्राट अशोक का हृदय इतने बड़े नरसंहार को देखकर परिवर्तित हो गया। उन्होंने कलिंग में जले हुए घर और बिखरी हुई लाशें देखीं तो उन्होंने फिर कभी हथियार नहीं उठाने का फैसला किया। कलिंग के युद्ध के बाद सम्राट अशोक एक शांतिपूर्ण सम्राट में बदल गए और उन्होंने अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए बौद्ध धर्म अपना लिया। और बौद्ध धर्म की नीतियों का विभिन्न अभिलेखों के माध्यम से प्रसार किया। उन्होंने सभी लोगों को अहिंसा के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शासन के दौरान मौर्य साम्राज्य और अन्य राज्यों में और लगभग 250 ईसा पूर्व से दुनिया भर में बौद्ध धर्म के विस्तार को बढ़ावा दिया।
कलिंग युद्ध ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, सम्राट अशोक ने हिंसा का मार्ग छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया और अहिंसा और शांति के सिद्धांतों का प्रचार किया। अशोक के इस परिवर्तन ने न केवल उनके शासनकाल को प्रभावित किया, बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव डाला। कलिंग युद्ध की घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि युद्ध और हिंसा के परिणाम कितने विनाशकारी हो सकते हैं और शांति और अहिंसा का मार्ग कितना महत्वपूर्ण है। यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगा।
सम्राट अशोक ने बौद्ध स्तूपों, जैसे सारनाथ, और बौद्ध विहारों का निर्माण कराया, जो बौद्ध धर्म के प्रमुख स्थलों में शामिल हैं।
कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने बौद्ध आचार्यों से संपर्क किया जैसे महाकश्यप और अन्य प्रमुख बौद्ध विद्वान, जो धर्म की शिक्षाओं को फैलाने में मददगार साबित हुए।
अशोक द्वारा जारी किए गए शिलालेख मुख्यतः प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में थे।
कलिंग युद्ध की समयावधि लगभग 8 वर्षों की थी, जिसमें कई सैन्य अभियान शामिल थे।
कलिंग युद्ध के समय अशोक के प्रमुख सलाहकार चाणक्य (कौटिल्य) और अन्य उच्च पदस्थ अधिकारी थे, जिन्होंने रणनीति और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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