बिलकिस बानो केस और परिहार

September 12, 2024
बिलकिस बानो केस

Table of Contents

बिलकिस बानो केस भारत के इतिहास में सबसे भयानक मामलों में से एक था। उसकी लड़ाई ने कानूनी व्यवस्था, पुलिस की लापरवाही, सांप्रदायिक दंगों का ऐसा चेहरा दिखाया की पूरा देश कांप गया। ये महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाइयों में से एक है। 2002 के गुजरात दंगों की हिंसा ने कइयों की जान लेली लेकिन बिलकिस बानो की ज़िंदगी नरक से भी बदतर कर दि। इस अपराध ने भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय को जोड़ दिया, जिसमें सामाजिक हिंसा और मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ। बिलकिस बानो केस सिर्फ एक रेप केस नहीं है, ये न्याय और जवाबदेही के संघर्ष का प्रतीक बन गया।

यह ब्लॉग में बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी से जुड़ी जानकारी है जो इसके ऐतिहासिक संदर्भ, अलग अलग घटनाएं और इसके बाद की कानूनी लड़ाई पर रोशनी डालता है।

बिलकिस बानो केस क्या है?

बिलकिस बानो केस क्या है जानने के लिए इस पूरे घटनाक्रम को इस तरह से संक्षेप में समझे की,

28 फरवरी को, बिलकिस बानो और उनका परिवार दंगों के चलते गुजरात के रांधीकपुर गांव से भाग निकला। 3 मार्च 2002 को, बिलकिस बानो, जो उस समय पाँच महीने की गर्भवती थीं, उनका सामूहिक बलात्कार हुआ और उनके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी गई। बिलकिस को लिमखेडा पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उसने FIR दर्ज की। लेकिन आरोपियों का जिक्र FIR में नहीं हुआ। केशरपुर के जंगल में उनके परिवार के सात शव मिले।

इस मामले में पुलिस की प्रारंभिक जांच में लापरवाही और पक्षपातपूर्ण रवैया देखा गया। बिलकिस बानो सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामले को गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित किया गया,  CBI जांच के साथ 11 लोगों को दोषी ठहराया गया। उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। लेकिन दंड परिहार के इस्तेमाल से वो रिहा हुए, जिस वजह से गुजरात सरकार पर उँगलियाँ उठाई गई। आइए जानते है ये पूरा मामला।

बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी

विस्तार से जानिए क्या हुआ था 2002 गुजरात में। बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी नीचे दि गई है।

घटना की पृष्ठभूमि

बिलकिस बानो केस क्या है जानने के लिए उसकी कुछ दिन पहले की घटना को समझिए। 

अयोध्या से आने वाले राम भक्त या करसेवक जो साबरमती ट्रेन से आ रहे थे, गोधरा स्टेशन, गुजरात के पास पहुँचते ही उनकी ट्रेन में आग लग गई, जिसमे करीब 90 हिन्दू मारे गए। मान्यता ये है की ये आग मुस्लिम समुदाय ने लगाई थी। नतीजा ये निकला की गुजरात में दंगे शुरू हो गए।

इन्हीं दंगों से बचने के लिए बिलकिस बानो , जो रांधीकपुर गाँव में रहती थी, अपने परिवार के साथ अगले ही दिन वहाँ से भाग निकली। लेकिन 3 मार्च को वे सभी पकड़े गए। कुछ 20-30 लोगों ने उसके और उसके परिवार पर हमले किया। उनमें से 11 ने बिलकिस का सामूहिक बलात्कार किया। उस वक्त वो 5 महीने की गर्भवती थी। इतना ही नहीं उसके परिवार वालों की बेरहमी से हत्या की गई। बानो 3 घंटे तक बेहोश पड़ी थी।

अगले दिन बिलकिस को लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन में लाया गया और उसने FIR दर्ज कराई। लेकिन पुलिस ने उसका मामला संजीदगी से नहीं लिया। बिलिकिस ने पुलिस को पूरी घटना बताइए और साथ ही 12 लोगों की पहचान कि जो उसी के गाँव रांधीकपुर से थे, जिन्होंने उसके साथ यह घिनौनी हरकत की । लेकिन पुलिस ने ना तो रेप की बात FIR में दर्ज की और ना ही उन 12 लोगों का जिक्र किया।

बिलकिस को जब न्याय मिलने की उम्मीद नजर नहीं आई तो उसने नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) और सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। NHRC ने बिकलिस का साथ दिया, उसके लिए वकील के तौर पर पूर्व सॉलिसिटर जनरल को नियुक्त किया। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जगदीश शरण वर्मा बिकलीस से मिलने आए जो मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित रिलीफ कैंप में रुकी थी।

जांच शुरू होने के 1 महीने के अंदर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और गुजरात हाई कोर्ट में पेश किया गया। इस दौरान बिलकीस को कई बार मारने की धमकियां मिल चुकी थी। बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को गुजरात से मुंबई, महाराष्ट्र में स्थानांतरित किया जिससे पूरी जांच निष्पक्ष हो और कोई भी बिलकिस को डरा धमका ना सके।

पहले की जांच में पुलिस ने सही से जांच पड़ताल नहीं की थी। उस वक्त पुलिस ने सबूत के साथ छेड़छाड़ की और कई दिनों के बाद मेडिकल टेस्ट कराया जिसकी वजह से सही एविडेंस मिलना मुश्किल था। यह बात अदालत में साबित हुई और पुलिस अधिकारियों और डॉक्टर पर सबूत के साथ छेड़खानी का आरोप लग गया।

यह केस अब CBI के हाथ में था। उसके इंचार्ज थे डीएसपी के.एन. सिन्हा।  CBI ने मामले की पूरी तरह से जांच की और एक चार्ज शीट दाखिल की जिसमें 19 आरोपियों के नाम सामने आए इनमें पुलिस अधिकारी और डॉक्टर भी शामिल थे। इसी जांच में बिलकिस बानो के परिवार वालों के कुछ शव मिले। उनमें खोपड़ियां नहीं थी।

कुछ 20 – 30 लोग उस अपराध में शामिल थे जिनमें से 11 ने रेप किया और बाकियों ने हमला। 2008 में मुंबई न्यायालय में 11 व्यक्तियों को सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी करार दिया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 376  (2) (बलात्कार) के अंतर्गत दोषी ठहराया गया। धारा 149 के तहत दूसरे सदस्यों को 7 साल की सजा और 50 लाख का जुर्माना भरने की सजा मिली।

कोर्ट ने बिलकिस को मुआवजे के तौर पर 50 लाख रुपए, सरकारी नौकरी और अपनी इच्छा अनुसार जगह पर घर लेने की अनुमति दि। एक पुलिस अधिकारी को भी आजीवन कारावास हुआ। ये सजा 2017 तक चलती रही। उसके बाद दंड परिहार का इस्तेमाल किया गया।

परिहार का गलत इस्तेमाल हुआ, इसके चलते 15 अगस्त, 2022 में उन्हें रिहा किया गया। इसकी वजह से गुजरात सरकार को बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि गुजरात सरकार के पास दंड परिहार के आदेश जारी करने का अधिकार नहीं था। इसलिए 8 जनवरी, 2024 को उन दोषियों को फिर से कैद करने का आदेश जारी किया।

ये है बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी।

दंड परिहार प्रक्रिया की आलोचना

दंड परिहार की प्रक्रिया में बहुत सी खामियां थी। कुछ आरोपियों ने कानूनी पैंतरेबाज़ी का इस्तेमाल करके अपनी सजा से बचने की कोशिश की थी और इस बात को न्यायालय ने स्वीकार किया था। पूरी तरह से छानबीन ना करके उन्होंने दंड परिहार को मान्यता दी और बलात्कार और हत्या जैसे घिनौने गुनाहों के अपराधियों को रिहा करने का आदेश दिया। इससे पूरे समाज में निराश पैदा हुई।

क्योंकि इन अपराधियों को दंड देने के लिए बिल्किस बानो और उसके पति ने बहुत मेहनत की थी। साथ ही दंड परिहार देने की अनुमति वही राज्य दे सकता है, जहां पर दोषियों को सजा सुनाई गई थी। चूंकि सारा मामला महाराष्ट्र में सुलझाया गया और दोषियों को महाराष्ट्र में सजा सुनाई गई इसलिए यह महाराष्ट्र सरकार का निर्णय होना चाहिए था, लेकिन इसका पालन नहीं किया गया। इसी कारण गुजरात न्यायालय की और गुजरात सरकार की बहुत आलोचना हुई।

परिहार क्या है?

दंड परिहार एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे किसी भी व्यक्ति की सजा को या तो खत्म किया जा सकता है या उसकी अवधि कम की जा सकती है। यह फर्लो और पैरोल से अलग है।  दंड परिहार में व्यक्ति अपनी पूरी सजा नहीं भुगत्ता और उसे एक नई तारीख दी जाती है रिहा करने के लिए। फर्लो का मतलब है, की कुछ समय के लिए जेल से बाहर जाने की इजाजत दी जाती है जबकि पैरोल का मतलब है, की जेल से बाहर समय बिताने की अनुमति दी जाती है पर उसकी सजा खत्म नहीं होती।

दंड परिहार में कुछ समय अपनी सजा काटने के बाद अपराधी को रिहा कर दिया जाता है। वह कानून की नजरों में एक स्वतंत्र व्यक्ति हो जाता है। 

शर्तें: दंड परिहार पर छूटे  व्यक्ति को निगरानी में रखा जाता है और यदि वह किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है तो उसकी यह सुविधा रद्द की जाती है और उसे अपनी बची हुई सजा पूरी करने के लिए वापस जेल भेज दिया जाता है।

बिलकिस बानो केस का प्रभाव

बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी ने सामाजिक स्तर पर गहरा प्रभाव डाला। इसका प्रभाव न्याय प्रणाली पर भी हुआ।

सामाजिक प्रभाव

  • बिलकिस बानो केस ने समाज में बहुत जागरूकता फैलाई। उन्हें पूरे देश से समर्थन मिला। उनके संघर्ष को देखकर लोगों को प्रेरणा मिली। उसने समसमाज को यह भी दिखाया कि जहां एक तरफ उन्हें न्याय मिलने की कोई गुंजाइश नहीं थी वही कोशिशों करते रहने पर  उन्हें ना तो सिर्फ सिक्योरिटी  मिली बल्कि उनके गुनहगारों को सजा भी मिली।
  • मीडिया इस मामले को बहुत अच्छे से काम किया और इससे जुड़ी सच्चाई सबके सामने लाई।
  • साथ ही मानवाधिकार संगठन का महत्व सबके सामने आया।

कानूनी सुधार

  • बिलकिस बानो केस में न्याय प्रणाली पर भी बहुत गहरा प्रभाव डाला जिससे कानूनी सुधार मुमकिन हुई। 
  • बलात्कार  और यौन हिंसा से संबंधित कानून में सुधार आई।
  • अदालत ने ऐसे मामलों में जल्द से जल्द सुनवाई करने के दिशा निर्देश दिए और इनसे निपटने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया।
  • पुलिस कर्मियों की लापरवाही देखते हुए उन पर सख्ती बढ़ाई  गई और ऐसे मामलों में पीड़ितों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इस संबंध में उन्हें ट्रेनिंग दी गई।

सीबीआई की जांच

जनता को हमेशा से ही पुलिस पर भरोसा होता है लेकिन इस अपराध के बाद में पुलिस की लापरवाही और सबूत के साथ छेड़खानी देखते हुए लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठने लगा था।  सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो केस सीबीआई को सौंप दिया और सीबीआई में बखूबी जांच पड़ताल की। उन्होंने पूरी पारदर्शिता के साथ इस मामले की निष्पक्ष जांच की। सीबीआई की वजह से ही बिल्किस के परिवार के सदस्यों के शव मिले थे।

बिलकिस बानो केस के महत्वपूर्ण तथ्य

दोषियों की सजा

  • बिलकिस बानो केस में कुल 20 से 30 लोग शामिल थे जिनमें से 11 व्यक्तियों पर सामूहिक बलात्कार और  हत्या के आरोप थे। बाकी के लोग भीड़ की तरह बिलकिस और उसके परिवार पर हमला करने आए थे।
  • धारा 302 के तहत हत्या के आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई।
  • धारा 376 (2) के तहत बलात्कार के आरोपियों को दोषी ठहराया गया और उन्हें भी आजीवन कारावास की सजा दी गई।
  • धारा 149 के तहत बाकियों को 7 साल की सजा और 50 लाख का जुर्माना भरने की सजा दी गई।
  • जो पुलिस अधिकारी दोषी पाया गया था उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई साथ ही डॉक्टर को भी सजा हुई।
  • दंड परिहार का इस्तेमाल कर दोषियों ने अपनी सजा की अवधि कम करने की कोशिश की जिस पर गुजरात न्यायालय ने अपनी स्वीकृति दी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने निराशा जताई और दंड परिहार खारिज किया।

सुप्रीम कोर्ट का मुआवजा

कोर्ट ने मुआवजे के तौर पर बिल्किस को 50 लख रुपए अलग से दिए, उसे सरकारी नौकरी देने का आदेश दिया और साथ ही अपने इच्छा अनुसार किसी भी स्थान पर घर देने के भी निर्देश दिए।

निष्कर्ष

बिलकिस बानो केस क्या है, ये एक बहुत ही संवेदनशील मामला है जिसने पूरे देश को हिला दिया। पीडोतों को न्याय दिलाना कानून का काम है। पुलिस और डॉक्टर की लापरवाही और सबूत की छेड़खानी ने कानूनी प्रणाली पर कई सवाल खड़े किए। बिलकिस बानो केस से हमें यह सीखना चाहिए की अपनी कोशिशें को कभी बंद ना करें।  दृढ़ संकल्प के साथ न्याय का दरवाजा खटखटाते रहे।  सीबीआई, बिलकिस बानो सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार संगठन इन सभी ने कानून की रक्षा की और जरूरी कार्रवाई करके बिलकिस बानो को न्याय दिलाया।

बिलकिस बानो केस भारत के इतिहास का एक काला पन्ना है। इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि भारत जैसे देश में भी जहां स्त्रियों को इतना सम्मान दिया जाता है, वहां धर्म के नाम पर ऐसी घिनौनी हरकत की जाती है। भारत सरकार को अपनी न्याय प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है साथ ही अपने कानून को पक्का करने की जरूरत है। सरकारी अधिकारियों को उनके जिम्मेदारी याद दिलाने चाहिए ताकि लोग उनके पास अपनी परेशानी लेकर आए और उनका सम्मान बना रहे। धर्म के नाम पर इस तरह के दंगे ना धर्म को बचाते हैं और ना ही  देश को।

Also Read- मॉब लिंचिंग: अर्थ, कारण और प्रभाव 

ऐसे और आर्टिकल्स पड़ने के लिए, यहाँ क्लिक करे

adhik sambandhit lekh padhane ke lie

यह भी पढ़े