भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: विचारक, शिक्षाविद, और राष्ट्रनेता

Published on February 13, 2025
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Quick Summary

  1. डॉ. भीमराव अंबेडकर (1891-1956) एक प्रमुख भारतीय नेता, समाज सुधारक और संविधान निर्माता थे।
  2. उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और बौद्ध धर्म अपनाया।
  3. वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने और उन्हें 1990 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल 1891 – 6 दिसंबर 1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, लेखक और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से होने वाले सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था।

विचारक, शिक्षाविद और राष्ट्रनेता, भारत का एक ऐसा नाम जिसने भाग्य के भरोसे रहने के बजाय अपना भाग्य खुद अपनी ही कलम से लिखा।स्कूल में अंबेडकर को जितनी ऊपर से पानी पिलाया जाता था, उतनी ही ऊपर की उनकी सोच थी। छुआछूत और गरीबी से लड़कर भी अंबेडकर लगातार पढ़ते गए और आगे बढ़ते गए। पहले स्कूल फिर मैट्रिक, कॉलेज और उसके बाद वे लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से “डॉक्टर ऑफ साइंस” की अनोखी डिग्री लेने वाले दुनिया के अकेले इंसान बने और आजतक उनके इस रिकॉर्ड को कोई नहीं तोड़ पाया है। 

जन्म तिथि14 अप्रैल 1891
जन्म स्थानमहू (अब अंबेडकर नगर), मध्य प्रदेश
शिक्षामुंबई विश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय (न्यूयॉर्क), ग्रेज़ इन (लंदन), लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स
संगठनइंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, अनुसूचित जनजाति फेडरेशन, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया
मृत्यु6 दिसंबर 1956
उपनामबाबासाहेब
सम्मानभारतीय संविधान के निर्माता, दलितों के मसीहा, आधुनिक मनु
प्रमुख उपलब्धियाँ– संविधान प्रारुप समिति के अध्यक्ष
– स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री
– वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री
भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय

प्रारंभिक जीवन

डॉ॰ भीमराव अंबेडकर एक बहुज्ञ, विद्वान, समाजसेवी, और समाजसुधारक थे: 

  • वे एक समाज सेवा में लगे हुए व्यक्ति थे और उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को समग्र भारत की भलाई के लिए समर्पित कर दिया था।
  • वे एक गहन अध्ययन करने वाले और मेहनती व्यक्ति थे।
  • वे एक विधि विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और लेखक के रूप में जाने जाते थे।
  • वे नागरिक अधिकारों के प्रबंधक के रूप में कार्यरत थे।
  • वे बौद्ध धर्म के एक प्रमुख अनुयायी थे।
  • उन्हें भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में सम्मानित किया जाता है।
  • उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • उन्होंने अछूतों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त अभियान चलाया था।
  • उन्होंने श्रमिकों, किसानों, और महिलाओं के अधिकारों के लिए समर्थन प्रदान किया था।
  • इस प्रकार, उनका जीवन और कार्य समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए समर्पित था।

उनका शुरुआती जीवन बिलकुल भी सामान्य नहीं था। हालाँकि उनके पिता अंग्रेजी सेना में थे लेकिन फिर भी परिवार गरीबी और दलित होने की वजह से छुआछूत जैसी परेशानियों से जूझ रहा था। लेकिन अंबेडकर पढ़ाई- लिखाई में अच्छे थे और सभी परेशानियों को पार करते हुए आगे बढ़ते गए।

भीमराव अंबेडकर का पूरा नाम, जन्म और परिवार

आज़ाद भारत के संविधान निर्माता, भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के इंदौर के पास महू में रामजी सकपाल और भीमाबाई के घर हुआ था। अभी कुछ दिनों पहले ही महू का नाम अंबेडकर नगर रखा गया है क्योंकि भीमराव अंबेडकर का जन्म यही पर हुआ था। बचपन में भीमराव अंबेडकर का पूरा नाम नहीं लिया जाता था लोग उन्हें प्यार से भीवा और भीम भी कहा जाता था।

भीमराव अंबेडकर का पूरा नाम, भीमराव रामजी अंबेडकर था और अगर हम बात करें कि भीमराव अंबेडकर के कितने भाई थे, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी के दो भाई थे बाला राव अंबेडकर और आनंद राव अंबेडकर भीमराव अंबेडकर के कितने भाई थे इस सवाल का जवाब तो है पर उनके कुल भाई-बहन 14 थे। 

डॉक्टर आंबेडकर ने यह बात 1950 में ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ नामक एक लेख में कही थी. वे कई बरस पहले से ही मन बना चुके थे कि वे उस धर्म में अपना प्राण नहीं त्यागेंगे जिस धर्म में उन्होंने अपनी पहली सांस ली है. 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया.

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: शिक्षा 

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सन् 1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद ‘एली फिंस्टम कॉलेज‘ में सन् 1912 में ग्रेजुएट हुए। सन 1913 में उन्होंने 15 प्राचीन भारतीय व्यापार पर एक शोध प्रबंध लिखा था। डॉ.भीमराव अंबेडकर ने वर्ष 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए की डिग्री प्राप्त की। सन् 1917 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली। बता दें कि उन्होंने ‘नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी’ विषय पर शोध किया। वर्ष 1917 में ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन साधन के अभाव के कारण वह अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाए।

कुछ समय बाद लंदन जाकर ‘लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स‘ से अधूरी पढ़ाई उन्होंने पूरी की। इसके साथ-साथ एमएससी और बार एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। वह अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता और एवं विचारक थे। बता दें कि वह (भीम राव अंबेडकर जीवनी) कुल 64 विषयों में मास्टर थे, 9 भाषाओं के जानकार थे, इसके साथ ही उन्होंने विश्व के सभी धर्मों के बारे में पढ़ाई की थी।

भारत की आजादी में अम्बेडकर का योगदान

भारत की आज़ादी में डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, असमानता और शोषण के खिलाफ संघर्ष किया। अंबेडकर ने भारतीय संविधान की रचना में केंद्रीय भूमिका निभाई, जो सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों की गारंटी देता है। उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज उठाई और दलितों के अधिकारों के लिए कई कानून बनाए। उनका उद्देश्य समाज में समानता लाना था, और उन्होंने भारतीय समाज को एकजुट करने के लिए कई उपायों का समर्थन किया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अहम हिस्सा बने।

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय
डॉ भीमराव अंबेडकर

बाबासाहब पढ़ाई में बहुत होशियार थे और जब वे 4th क्लास में पास हुए तो उनकी इस उपलब्धि पर उनके परिवार और समाज के लोगों ने उत्सव मनाया क्योंकि उनके सभी भाई-बहन और समाज के बच्चे फ़ैल हो गए थे। जब वे 5th क्लास में थे तभी उनकी शादी 15 साल की उम्र में रमाबाई से कर दी गयी थी क्योंकि उस समय बाल-विवाह का चलन था। 

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: डॉ भीमराव अंबेडकर का हमारे समाज में क्या योगदान है?

बाबासाहब अपने बचपन से ही समाज में फैली कुरूतियों से परेशान होते रहे थे। काबिल होने के बाद भी उच्च समाज के लोग उनसे छुआछूत करते थे। बड़ा होने पर उनको समझ आ चुका था कि इस परेशानी को मिलाने का एक ही तरीका है और वो है शिक्षा। इसलिए उन्होंने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया और बाद में वे कई सामाजिक कामो में हिस्सा लेने लगे। उन्होंने दलितों के साथ होने वाले अन्याय के ख़िलाफ़ खुलकर आवाज उठाई, कई राजनैतिक और सामाजिक संगठन बनाये जो दलितों की शिक्षा, जनजागरण, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक बराबरी के हक़ की बात करते थे।

शिक्षा और विचार

  • बाबासाहब की शिक्षा के बारे में हम सब जानते हैं कि वे अपने समय के सभी राजनैतिक साथियों में सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे थे।
  • उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनोमिक्स से डॉक्टर ऑफ़ साइंस की एक दुर्लभ डिग्री प्राप्त की।
  • उनके नाम के साथ बीए, एमए, एमएससी, पीएचडी, बैरिस्टर, डीएससी, डी लीट् सहित कुल 26 उपाधियां जुड़ी हैं।
  • बाबासाहब के राजनैतिक साथी उनकी काबिलियत को जानते थे और इसीलिए उन्हें संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया था।
  • बाबासाहब का मानना था कि शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिससे आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक परेशानियों को हल किया जा सकता है।
  • वे हमेशा शिक्षा पर जोर देते थे और इसे समाज में बदलाव लाने का महत्वपूर्ण साधन मानते थे।
  • उनका मानना था कि सभी इंसान जन्म से एक समान होते हैं, और धार्मिक और सामाजिक आधार पर इंसानों के साथ छुआछूत और गुलामी से भी ज़्यादा भयानक है।

राजनीतिक कार्य और समाजसेवा

  • डॉ भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत, जाति प्रथा और ऊंच-नीच की पीड़ा का सामना जन्म से ही किया।
  • क़ाबिल बनने के बाद से उन्होंने भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की।
  • दलितों को शोषण से बचाने के लिए उन्होंने ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन का गठन किया और सामाजिक उत्थान की दिशा में कार्य किया।
  • उनका मुख्य मकसद था कि दलित समाज को भी बराबरी का दर्जा मिले।
  • 1920 के दशक में मुंबई में एक भाषण में उन्होंने कहा कि, “जहां मेरे व्यक्तिगत हित और देश हित में टकराव होगा, वहां मैं देश के हित को प्राथमिकता दूंगा; लेकिन जहां दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा, वहां मैं दलित जातियों को प्राथमिकता दूंगा।”
  • कांग्रेस में रहते हुए भी, उन्होंने दलितों के हक़ के लिए महात्मा गांधी को कटघरे में खड़ा करने से डरते नहीं थे।
  • उनका मानना था कि गांधी हरिजनों के उत्थान की बात तो करते हैं, लेकिन ठोस कदम नहीं उठाते।
  • बाबासाहब राजनीतिक रूप से अपनी आखिरी साँस तक सक्रिय रहे।
  • भारत की आज़ादी के समय उन्होंने संविधान बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

छुआछूत विरोधी संघर्ष

विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात्, डॉ. बी.आर. अंबेडकर वर्ष 1920 के दशक की शुरुआत में भारत लौट आए। उस समय भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक अन्याय भीमराव रामजी को जाति भेदभाव के उन्मूलन और हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष की राह पर ले गया।

बाबासाहेब का मानना था कि केवल पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व ही अछूतों की सामाजिक स्थिति में सुधार ला सकता है। इसलिए, उन्होंने अपने समाचार पत्रों, सामाजिक- सांस्कृतिक मंचों और सम्मेलनों के माध्यम से अछूतों को संगठित करना शुरू किया।

1924 में, डॉ. भीमराव रामजी ने दलितों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से बहिष्कृत हितकारी सभा (बहिष्कृतों के कल्याण के लिए समाज) की स्थापना की। उन्होंने दलितों की चिंताओं को आवाज देने के लिए “मूकनायक” (मूक के नेता), “बहिष्कृत भारत” (बहिष्कृत भारत) और “समता जनता” जैसे कई पत्रिकाएँ भी शुरू कीं।

बाबासाहेब अंबेडकर के नेतृत्व में किए गए पहले प्रमुख सार्वजनिक कार्यों में से एक 1927 का महाड़ सत्याग्रह था, जिसका उद्देश्य महाराष्ट्र के महाड़ में सार्वजनिक कुएं से जल का उपयोग करने के दलितों के अधिकारों को स्थापित करना था। इसी तरह, 1930 के कलाराम मंदिर आंदोलन का उद्देश्य दलितों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार सुरक्षित करना था।

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: बाबासाहेब अंबेडकर के कुछ महान विचार

  1. जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच बताया वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड़यंत्र है। 
  2. जो कौम अपना इतिहास तक नहीं जानती है, वे कौम कभी अपना इतिहास भी नहीं बना सकती है।
  3. जीवन लंबा होने के बजाए महान होना चाहिए। 
  4. संविधान यह एक मात्र वकीलों का दस्तावेज नहीं। यह जीवन का एक माध्यम है।
  5. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिए बेईमानी है।
  6. यदि मुझे लगा संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो इसे जलाने वाला सबसे पहले मैं रहूँगा।
  7. हिम्मत इतनी बड़ी रखो के किस्मत छोटी लगने लगे।

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: उनके दृढ़ संघर्ष

कानूनी संघर्ष और विधिमंडल

  • बाबासाहब हमेशा दलितों के अधिकारों और उत्थान के लिए प्यासे रहे।
  • 1942 में उन्होंने ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन की स्थापना की, जो एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था।
  • उस समय उच्च जाति और निम्न जातियों के जलाशय अलग-अलग हुआ करते थे।
  • 1927 में महाड़ में अछूतों को चाबदार तालाब से पानी लेने की कोशिश करने पर बहुत मारा गया, घर जलाए गए, और परिवार वालों को जूतों से पीटा गया।
  • 19 और 20 मार्च को डॉ. आंबेडकर ने कोलाबा में अछूतों की बैठक बुलाई और अपने सम्बोधन में कहा कि बच्चों को बेहतर जीवन देने की कोशिश करनी चाहिए।
  • उसी रात बैठक में तय हुआ कि अगली सुबह से सत्याग्रह शुरू होगा।
  • सुबह आंबेडकर और उनके अनुयायी तालाब पहुंचे, अंजुली से पानी लिया और सबने बारी-बारी से पानी पिया।
  • महाड़ सत्याग्रह भारत में जातिवाद के खिलाफ पहला सत्याग्रह था और इसने अगड़ी जातियों को नाराज़ किया।
  • एक अफवाह फैली कि अछूत वीरेश्वर मंदिर में जाने वाले हैं, जिसके बाद आंबेडकर और उनके अनुयायियों पर हमला हुआ।
  • कुछ दिनों बाद सवर्णों ने तालाब की शुद्धि करवाई, पानी को पंचगव्य से भरे घड़ों से डाला गया।
  • डॉ. आंबेडकर का सत्याग्रह यहीं समाप्त नहीं हुआ।
  • 24 दिसंबर 1927 को महाड़ में एक और सत्याग्रह की तैयारी की गई।
  • इससे पहले कुछ सवर्णों ने अदालत जाकर तालाब पर अपना दावा ठोक दिया।
  • आंबेडकर ने अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए सत्याग्रह को टाल दिया।
  • अदालत का मुकदमा 10 साल चला, और 1937 में बम्बई हाईकोर्ट ने अछूतों को चाबदार तालाब से पानी लेने का हक़ सौंपा।

सामाजिक एवं आर्थिक समर्थन

बाबासाहब दलितों को हमेशा कहा करते थे कि अगर अपने स्तर से ऊपर उठना है तो आपको आर्थिक रूप से सक्षम होना पड़ेगा। उन्होंने इस दिशा में काम करने के लिए कई सामाजिक संगठन बनाए और लोगों को उनके अधिकारों को जानने, छुआछूत का विरोध करने और आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में काम करते थे। 

पूना समझौते में अंबेडकर ने गाँधी का आमरण अनशन तोड़ने के लिए अपनी शर्तो को वापस तो ले लिया था लेकिन इसके बदले में उन्होंने गाँधी को इस बात पर राजी कर लिया था कि दलितों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण के साथ ही उनको आर्थिक सहायता दी जाएगी। 

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: संविधान निर्माण में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का योगदान

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को उसका लिखित संविधान देने में बाबासाहब का विशेष योगदान था। उनकी शिक्षा, इंटरनेशनल रिलेशन और प्रतिभा की वजह से उनको संविधान तैयार करने वाली मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इस समिति ने 1946 से लेकर 1950 तक अपना काम बखूबी किया और 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू कर दिया गया। 

संविधान निर्माण का योगदान

  • 1946 में जब भारत को आज़ादी मिलने की संभावना तय हो गई, तो संविधान की ज़रूरत महसूस की गई।
  • इस काम के लिए एक समिति बनाई गई, जिसमें बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर को अध्यक्ष बनाया गया।
  • आंबेडकर ने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था, इसलिए उनके नेतृत्व को स्वीकार किया गया।
  • आंबेडकर ने संविधान बनाने के लिए सात सदस्यों की प्रारूप समिति बनाई।
  • प्रारूप समिति ने 395 प्रावधानों वाला संविधान का मसौदा तैयार किया।
  • आंबेडकर का क़द स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में सहायक था।
  • प्रारूप समिति के 7 में से 5 सदस्य उच्च जाति के थे, लेकिन सभी ने आंबेडकर को नेतृत्व देने की सिफारिश की।
  • वाइसरॉय माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन ने आंबेडकर को पत्र लिखकर उनकी सराहना की।
  • संविधान का मसौदा मई 1947 में संविधान सभा में पेश किया गया और इसे संबंधित मंत्रियों और कांग्रेस पार्टी को भेजा गया।
  • कुछ खंडों को सात बार तैयार किया गया, और आंबेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद को संशोधित मसौदा पेश किया।
  • संशोधित मसौदे में लगभग 20 बड़े बदलाव किए गए, जिनमें संविधान की प्रस्तावना में किया गया बदलाव भी शामिल है।
  • टीटी कृष्णामाचारी ने नवंबर 1948 में कहा कि कई सदस्य “पर्याप्त योगदान” नहीं कर सके, जिससे संविधान तैयार करने का मुख्य बोझ आंबेडकर पर आया।
भारत का संविधान भीमराव अम्बेडकर
भारत का संविधान भीमराव अम्बेडकर

संविधान में समाजिक न्याय और समानता के प्रावधान

बाबासाहेब चाहते थे की जिन सामाजिक भेदभाव का सामना उनको करना पड़ा हैं, उन परेशानियों को समाज से खत्म कर दी जाये। देश का हर नागरिक बराबर हो चाहे वो किसी भी लिंग, धर्म, संप्रदाय, भाषा और प्रदेश का हो और इसके लिए उन्होंने देश के संविधान में सामाजिक न्याय और समानता का प्रावधान किया जिसको आज हम मौलिक अधिकार के रूप में जानते हैं। 

संविधान में दर्ज इन मौलिक अधिकारों का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो हर एक इंसान को न्याय और एक समान अवसर दे सके। बाबासाहेब के इस अथक प्रयासों के किए आज उनको भारत के संविधान निर्माता के रूप में याद किया जाता है। 

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: उनका प्रभाव

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय बताता है कि कैसे उन्होंने स्वतंत्रत भारत पर अपना प्रभाव छोड़ा है। अपने असंख्य योगदानों से, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने देश के सामाजिक- सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में एक स्थायी छाप छोड़ी है। वर्तमान भारत में, उनकी विरासत को विभिन्न स्मारकों, संस्थानों और कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया जाता है।

एक शिक्षाविद और एक राष्ट्रनेता के तौर पर उनके विचार और भारत के संविधान के निर्माण में किये गए उनके अथक प्रयास ही उनकी सबसे बड़ी विरासत है। आरक्षण नीतियाँ, जमीनी स्तर आंदोलन, शिक्षा और जागरूकता पर का योगदान अतुलनीय है। देश के हर नागरिक को उसका अधिकार मिले, समाज के बीच से ऊंच-नीच और भेदभाव खत्म हो और इसमें जब हम 100 प्रतिशत सफ़लता प्राप्त कर लेंगे तब कह सकेंगे कि हम अंबेडकर के देखे हुए सपनों को साकार कर रहे हैं। 

भारतीय समाज में परिणाम

  1. भीमराव अंबेडकर के सुधारों ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया।
  2. उनका मुख्य उद्देश्य जातिवाद और सामाजिक असमानता को खत्म कर एक बराबरी वाला समाज बनाना था।
  3. छुआछूत का खात्मा:
    • अंबेडकर ने अछूतों के अधिकारों की वकालत की।
    • महाड़ सत्याग्रह और कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन जैसे आंदोलनों के माध्यम से अछूतों को सार्वजनिक स्थानों और मंदिरों में प्रवेश दिलाने की कोशिश की।
    • इन आंदोलनों से समाज में जागरूकता बढ़ी और अछूतों के अधिकारों के प्रति सोच बदली।
  4. भारतीय संविधान का निर्माण:
    • अंबेडकर ने संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में काम किया।
    • संविधान में सामाजिक न्याय और बराबरी के सिद्धांत शामिल किए।
    • अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई, जिससे इन्हें शिक्षा और नौकरी में अवसर मिले।
  5. शिक्षा के क्षेत्र में योगदान:
    • अंबेडकर ने अछूतों और अन्य वंचित वर्गों के लिए शिक्षा के दरवाजे खोले।
    • उनके प्रयासों से कई छात्रवृत्तियों और शैक्षिक संस्थानों की स्थापना हुई।
  6. महिलाओं के अधिकार:
    • अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल का प्रस्ताव रखा।
    • इस बिल के माध्यम से महिलाओं के संपत्ति अधिकार, विवाह और तलाक में सुधार किए गए।
    • अंबेडकर के सुधारों का असर सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक क्षेत्रों में साफ देखा जा सकता है।
    • उनके प्रयासों से जातिगत भेदभाव कम हुआ और वंचित वर्गों को सामाजिक न्याय मिला।

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय: भीमराव अंबेडकर की मृत्यु कब हुई?

संविधान के रचयिता भीमराव अंबेडकर की मृत्यु कब हुई? डॉ भीमराव अंबेडकर जी की मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को हुई थी, इसका कारण मधुमेह रोग बताया जाता है, भीमराव अंबेडकर की मृत्यु कब हुई इस बात की सही जानकारी तो है पर इनकी मृत्यु वास्तविक रूप में कैसे हुई इसकी जानकारी सही से नहीं हो पायी है।

यह भी पढ़ें:

भारतीय संविधान की प्रस्तावना: प्रस्तावना का इतिहास और विशेषताएं

निष्कर्ष

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय भारतीय समाज में समाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक समानता के लिए अद्वितीय योगदान दिया। उनके विचार और विचारधारा आज भी हमें मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। उनकी विरासत न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अमर है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

बाबा साहब का इतिहास क्या है?

आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) के महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14वीं और अंतिम संतान थे। उनका परिवार मराठी मूल का था और कबीर पंथ को मानता था। वे वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के आंबडवे गाँव के निवासी थे।

संविधान के माता पिता कौन है?

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) के महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14वीं और अंतिम संतान थे। उनका परिवार मराठी मूल का था और कबीर पंथ को मानता था। वे वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के आंबडवे गाँव के निवासी थे।

क्या अंबेडकर के पास 32 डिग्री थी?

डॉ. बी.आर. आंबेडकर 64 विषयों में विशेषज्ञ थे और 9 भाषाओं का ज्ञान रखते थे। उनके पास कुल 32 डिग्रियाँ थीं।

क्या अंबेडकर दलित थे?

डॉ. भीमराव अंबेडकर 64 विषयों में विशेषज्ञ थे और 9 भाषाओं का ज्ञान रखते थे। उनके पास कुल 32 डिग्रियाँ थीं।

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