आर्टिकल 21: स्वतंत्रता की ओर बढ़ता कदम

November 8, 2024
आर्टिकल 21
Quick Summary

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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” करता है। इसके अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से केवल विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है। यह अनुच्छेद नागरिकों को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है। 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को भी इसमें शामिल किया।

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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21, जिसे “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” कहा जाता है, हर नागरिक के लिए एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है। इसका मतलब है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता को केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सीमित किया जा सकता है। अनुच्छेद 21 न केवल शारीरिक सुरक्षा की गारंटी देता है, बल्कि इसमें निजता का अधिकार भी शामिल है। यह अधिकार नागरिकों को किसी भी प्रकार के क्रूर, अमाननीय उत्पीड़न या अपमानजनक व्यवहार से बचाता है।

आर्टिकल 21 क्या है?

आर्टिकल 21 भारतीय संविधान का एक प्रमुख अनुच्छेद है जो प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।

यह अनुच्छेद संविधान के भाग III में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आता है, और इसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को उसकी गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्रदान करना है। Article 21 in hindi को गहराई से समझने के बाद ही हमें यह पता चलेगा कि ये अधिकार प्रदान कैसे करता है, इसलिए चलिए जानते हैं कि आर्टिकल 21 में क्या है?

आर्टिकल 21 में क्या है?

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है: “किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।”
  • आर्टिकल 21 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या स्वतंत्रता से केवल तब ही वंचित किया जा सकता है जब कानून में इसका प्रावधान हो और वह प्रक्रिया उचित हो। 
  • यह आर्टिकल संविधान द्वारा निश्चित किए गए अन्य मौलिक अधिकारों के साथ तालमेल बिठाता है, जिससे नागरिकों को एक सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्राप्त होता है।

आर्टिकल 21 के प्रावधान

आर्टिकल 21 के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि हर व्यक्ति का जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रहे। आर्टिकल 21 हमें निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है –

  • जीवन का अधिकार: अनुच्छेद 21 भारत के प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है, जो केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है बल्कि एक गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करता है।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता: यह अनुच्छेद किसी भी व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है, जब तक कि कानून द्वारा ऐसा न किया जाए।
  • कानूनी प्रक्रिया द्वारा संरक्षण: अनुच्छेद 21 यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करने की प्रक्रिया सिर्फ कानून के अनुसार ही होनी चाहिए। 
  • मानव गरिमा की रक्षा: यह अनुच्छेद व्यक्ति की गरिमा की सुरक्षा करता है और उसे सम्मानजनक जीवन जीने की अनुमति देता है। 
  • बाल अधिकारों की सुरक्षा: अनुच्छेद 21 के अंतर्गत बाल अधिकारों की रक्षा की जाती है, जिससे बाल श्रम और शोषण को रोकने में मदद मिलती है।
  • महिलाओं की सुरक्षा: महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और अन्य प्रकार के शोषण से सुरक्षा के लिए यह अनुच्छेद महत्वपूर्ण है।
  • समानता और न्याय: यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समानता और न्याय का लाभ मिले, और किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा मिले।

आर्टिकल 21 का इतिहास 

आर्टिकल 21 का इतिहास बहुत पुराना है और इसका संबंध भारत की स्वतंत्रता संग्राम से भी है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अनेक नेताओं ने इस अधिकार के महत्व को समझा और इसे संविधान में शामिल करने की मांग की। संविधान सभा में इस पर व्यापक चर्चा हुई और अंततः इसे संविधान में शामिल किया गया। आर्टिकल 21 का इतिहास दर्शाता है कि यह अधिकार हमें हमारी स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखने में सहायता करता है।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, भारतीय नेताओं ने देखा कि कैसे ब्रिटिश शासन ने भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन किया था, और इसलिए स्वतंत्रता के बाद एक ऐसा संविधान तैयार किया गया जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सके।

न्यायपालिका ने इस अनुच्छेद की व्याख्या समय-समय पर विभिन्न मामलों में की है, जिससे हम इसकी व्यापकता और गहराई को समझ सकते हैं।

आर्टिकल 21 से जुड़े महत्वपूर्ण मामले

मनिका गांधी बनाम भारत सरकार (1978)

मनिका गांधी बनाम भारत सरकार का मामला आर्टिकल 21 से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि आर्टिकल 21 का दायरा बहुत व्यापक है और इसमें जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सभी महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं। 

मामला – यह मामला मेनका गांधी एक महिला पत्रकार के बारे में है जो किसी आधिकारिक काम से दूसरे देश जाने वाली थी। इसलिए, उसने भारतीय पासपोर्ट अधिनियम 1967 के तहत पासपोर्ट के लिए आवेदन किया और उसका पासपोर्ट 1 जून 1976 को जारी किया गया। 4 जुलाई 1977 को , मेनका गांधी को क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी से एक पत्र मिला जिसमें उन्हें सूचित किया गया कि भारत सरकार ने अधिनियम की धारा 10(3)(सी) के तहत “सार्वजनिक हित में” उसका पासपोर्ट जब्त करने का फैसला किया है। न्यायपालिका ने इसे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना गया क्योंकि यह खंड में उल्लिखित “प्रक्रिया” शब्द की पुष्टि नहीं करता है।

यह मामला दर्शाता है कि आर्टिकल 21 की व्याख्या न्यायालय द्वारा किस प्रकार से की जाती है और इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस मामले में, मनिका गांधी का पासपोर्ट सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था, और उन्होंने इसे चुनौती दी। सर्वोच्च न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय दिया और कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसके अधिकारों से वंचित करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।

अन्य महत्वपूर्ण मामले जैसे कि केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) और ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगरपालिका (1985) ने भी आर्टिकल 21 की व्याख्या और उसके दायरे को विस्तारित किया है। इन मामलों में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है।

आर्टिकल 21 का महत्व

आर्टिकल 21 का महत्व अनेक स्तरों पर है। यह न केवल व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करता है, बल्कि उसे एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी देता है। इसके माध्यम से हमें यह सुनिश्चित करने का अधिकार मिलता है कि हमारी स्वतंत्रता और जीवन का हनन न हो। आर्टिकल 21 के तहत मिलने वाले अधिकार –

  • जीवन का अधिकार
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता
  • न्यायिक समीक्षा का अधिकार
  • स्वास्थ्य और शिक्षा का अधिकार
  • महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा
  • मानव गरिमा की रक्षा
  • इच्छामृत्यु और सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार
  • समानता और न्याय

आर्टिकल 21 का प्रभाव

आर्टिकल 21 का प्रभाव हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर पड़ता है। यह न केवल हमें स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार देता है, बल्कि हमें न्यायिक समीक्षा और विस्तारित अधिकारों का भी लाभ देता है। इसके प्रभाव से हमारा समाज अधिक न्यायपूर्ण और समान बनता है।

न्यायिक समीक्षा

आर्टिकल 21 के अंतर्गत न्यायिक समीक्षा का अधिकार हमें यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि कोई भी कानून या सरकारी कार्रवाई हमारी स्वतंत्रता और जीवन का हनन न करे। न्यायालय के माध्यम से हम किसी भी अनुचित कानून या कार्रवाई को चुनौती दे सकते हैं। न्यायिक समीक्षा के माध्यम से नागरिकों को यह सुनिश्चित करने का अवसर मिलता है कि सरकार उनके अधिकारों का उल्लंघन न करे और यदि ऐसा होता है, तो उन्हें न्याय मिल सके।

विस्तारित अधिकार

आर्टिकल 21 के अंतर्गत हमें विस्तारित अधिकार भी मिलते हैं, जैसे कि स्वास्थ्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, और सम्मानपूर्वक मरने का अधिकार। ये सभी अधिकार हमारे जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं और हमें एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं। न्यायपालिका ने समय-समय पर आर्टिकल 21 की व्याख्या करते हुए विभिन्न अधिकारों को इसमें शामिल किया है, जिससे इसका दायरा और अधिक विस्तारित हो गया है।

आर्टिकल 21 के तहत अधिकारों का विस्तार

स्वास्थ्य का अधिकार

स्वास्थ्य का अधिकार आर्टिकल 21 के अंतर्गत आता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवाओं का उचित और सुलभता के साथ प्राप्ति हो। यह अधिकार हमें यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि हम स्वस्थ जीवन जी सकें और हमारी स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर उच्च हो। सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि स्वास्थ्य का अधिकार जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है और सरकार का यह दायित्व है कि वह नागरिकों को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करे।

शिक्षा का अधिकार

शिक्षा का अधिकार भी आर्टिकल 21 के अंतर्गत आता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले। यह अधिकार हमें यह सुनिश्चित करने का अवसर देता है कि हमारा समाज शिक्षित हो और हर व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार हो। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के माध्यम से, 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है। यह आर्टिकल 21 के व्यापक दायरे को और अधिक मजबूती प्रदान करता है।

इच्छामृत्यु(Euthanasia) और अनुच्छेद 21: एक जटिल मुद्दा

इच्छामृत्यु(Euthanasia) या दया मृत्यु की अवधारणा एक जटिल अवधारणा है, जिसके नैतिक, कानूनी और नैतिक निहितार्थ हैं।

जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, सर्वोच्च न्यायालय ने इच्छामृत्यु पर एक सूक्ष्म रुख अपनाया है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणा शानबाग मामले में सख्त दिशा-निर्देशों के तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाया। इसका मतलब है कि परिवार या मेडिकल बोर्ड की सहमति से लगातार वनस्पति अवस्था में रोगियों से जीवन समर्थन वापस लिया जा सकता है। 

हालाँकि, न्यायालय ने सक्रिय इच्छामृत्यु को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया है, जिसमें घातक साधनों के माध्यम से जानबूझकर जीवन को समाप्त करना शामिल है। इसलिए, जबकि सम्मानजनक मृत्यु के अधिकार को अनुच्छेद 21 का एक हिस्सा माना जाता है, भारत वर्तमान में केवल विशिष्ट परिस्थितियों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देता है।

आर्टिकल 21 की चुनौतियाँ

आर्टिकल 21 की चुनौतियाँ भी अनेक हैं। इनमें प्रमुख है कानूनों और प्रक्रियाओं का सही तरीके से पालन न होना, न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी, और अधिकारों का हनन। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आर्टिकल 21 का सही तरीके से पालन हो और हमारे अधिकारों की रक्षा हो। न्यायालयों में मामलों की भारी संख्या, न्यायिक प्रक्रियाओं की जटिलता, और संसाधनों की कमी जैसे मुद्दे आर्टिकल 21 की प्रभावशीलता को चुनौती देते हैं।

आर्टिकल 21 की चुनौतियों में अन्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • कानून का दुरुपयोग: कभी-कभी सरकारी एजेंसियों द्वारा कानून का दुरुपयोग किया जाता है जिससे व्यक्ति के अधिकारों का हनन होता है।
  • समाजिक और आर्थिक असमानता: समाजिक और आर्थिक असमानता के कारण सभी व्यक्तियों को समान अधिकार नहीं मिल पाते।
  • न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी: न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी के कारण कई बार व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिल पाता।
  • सूचना और जागरूकता की कमी: नागरिकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या स्वतंत्रता से केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही वंचित किया जा सकता है। इसके तहत न केवल शारीरिक सुरक्षा की गारंटी दी जाती है, बल्कि निजता का अधिकार भी शामिल है, जो नागरिकों को किसी भी प्रकार के क्रूर या अपमानजनक व्यवहार से बचाता है। इस प्रकार, अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है, जो एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज की नींव है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

संविधान का आर्टिकल 21 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण” करता है। इसके अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से केवल विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है। यह अनुच्छेद नागरिकों को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता है।

आर्टिकल 21A में क्या लिखा है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत, 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था।

आर्टिकल 21 राइट टू प्राइवेसी क्या है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “निजता का अधिकार” मौलिक अधिकार है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति की निजी जानकारी और व्यक्तिगत जीवन का सम्मान किया जाए, और बिना सहमति के उसकी जानकारी साझा न की जाए। यह अधिकार 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त हुआ।

आर्टिकल 20 और 21 में क्या है?

अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण करता है। ये दोनों अनुच्छेद नागरिकों को कानूनी सुरक्षा और गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्रदान करते हैं।

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