अविश्वास प्रस्ताव: अर्थ, नियम और प्रक्रिया

December 16, 2024
अविश्वास प्रस्ताव
Quick Summary

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  • अविश्वास मत का मतलब है कि विधायिका में यह तय किया जाता है कि कोई मंत्री या प्रधानमंत्री अपने पद पर बना रह सकता है या नहीं।
  • जब विधायिका यह तय करती है कि सरकार सही काम कर रही है या नहीं, तो उसे अविश्वास मत कहा जाता है।
  • लोकसभा में अगर किसी भी प्रतिपक्ष की पार्टी को ऐसा लगता है कि सत्‍तारूढ़ दल या सरकार सदन में अपना विश्‍वास खो चुकी है और देश में सरकार की नीतियां ठीक नहीं हैं तो ऐसे में यह अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाया जाता है।

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भारतीय राजनीति को पूरी तरह से समझने के लिए “अविश्वास प्रस्ताव क्या है” जानना बेहद जरूरी हो जाता है। Avishwas Prastav देश में सरकारों की जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यह प्रक्रिया सरकारों को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाती है और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करती है। ऐसे में, आपको “अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है” के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।

इस ब्लॉग में आपको अविश्वास प्रस्ताव क्या है, अविश्वास प्रस्ताव के नियम, इसकी प्रक्रिया, अविश्वास प्रस्ताव भारत में तथा अन्य देशों में कितनी बार पारित हुआ है और इससे जुड़े अन्य पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिलेगी।

अविश्वास प्रस्ताव क्या है? No Confidence Motion Explained

“अविश्वास प्रस्ताव क्या है” और “अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है” ये अक्सर पूछे जाने वाले सवाल हैं। Avishwas Prastav लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो सरकार की शक्ति और उत्तरदायित्व को संतुलित रखने में मदद करती है। यह एक प्रकार का संसदीय प्रस्ताव होता है जिसे विपक्षी दल या संसद सदस्य सरकार के खिलाफ पेश करते हैं।

लोकसभा में अगर किसी भी प्रतिपक्ष की पार्टी को ऐसा लगता है कि सत्‍तारूढ़ दल या सरकार सदन में अपना विश्‍वास खो चुकी है और देश में सरकार की नीतियां ठीक नहीं हैं तो ऐसे में यह अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाया जाता है। इसे नो कांफिडेंस मोशन कहा जाता है। विपक्ष यह दावा करता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है, ऐसे में सरकार को इसे साबित भी करना होता है। इस प्रस्‍ताव का प्रावधान संविधान के आर्टिकल 75 में किया गया है। अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि:

  • प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
  • मंत्री राष्ट्रपति की इच्छा पर पद धारण करेंगे।
  • मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
  • किसी मंत्री के पदभार ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति उसे तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रपत्रों के अनुसार पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
  • कोई मंत्री जो लगातार छह महीने की अवधि तक संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
  • मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे, जैसे संसद, समय-समय पर विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक संसद ऐसा अवधारित नहीं करती, तब तक वे द्वितीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट होंगे।

यह प्रक्रिया लोकतंत्र की नींव को मजबूत बनाती है, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि सरकार जनता और उनके प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी रहे। यदि सरकार जनता के हित में काम नहीं कर रही हो, तो उसे हटाया जा सके।

प्रस्ताव का उद्देश्य | Avishwas Prastav ka Kya Mahatva Hai?

Avishwas Prastav का मुख्य उद्देश्य सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना होता है। यह संसदीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हथियार है जो विपक्ष को सत्तारूढ़ सरकार पर नियंत्रण रखने का अवसर देता है।

जब विपक्षी दल या सांसद महसूस करते हैं कि वर्तमान सरकार जनता के हितों की रक्षा नहीं कर रही है या उसकी नीतियां देश के लिए हानिकारक हैं, तो वे अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं। इसका उद्देश्य होता है:

  • सरकार की नीतियों और कार्यों पर सवाल उठाना
  • सरकार को अपने कामकाज का जवाब देने के लिए मजबूर करना
  • सदन में सरकार के खिलाफ मतदान कराना

अगर अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है। इस तरह यह प्रस्ताव लोकतंत्र में चेक एंड बैलेंस का काम करता है और सरकार को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाए रखने में मदद करता है।

अविश्वास प्रस्ताव कैसे लाया जाता है?

अविश्वास प्रस्ताव लाना एक गंभीर मामला होता है। इस प्रस्ताव को लाने और पास होने की एक पूरी प्रक्रिया होती है। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं:

  1. प्रस्ताव लाना:
  • किसी भी सदस्य द्वारा: लोकसभा का कोई भी सदस्य Avishwas Prastav ला सकता है।
  • लिखित नोटिस: सदस्य को पहले लोकसभा सचिवालय को लिखित नोटिस देना होता है।
  • 50 सदस्यों का समर्थन: प्रस्ताव पर कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना जरूरी होता है।
  1. चर्चा:
  • सदन में चर्चा: जब प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है, तो सदन में इस पर चर्चा होती है।
  • सरकार का जवाब: सरकार को इस प्रस्ताव पर अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है।
  • विपक्ष का जवाब: विपक्ष भी सरकार के जवाब पर अपनी बात रखता है।
  1. वोटिंग:
  • बैलट पेपर से वोट: सभी सदस्य गुप्त रूप से मतदान करते हैं।
  • बहुमत: अगर आधे से ज्यादा सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में वोट करते हैं, तो प्रस्ताव पास हो जाता है।
  1. परिणाम: 
  • प्रस्ताव पास होने पर: अगर प्रस्ताव पास हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
  • प्रस्ताव फेल होने पर: अगर प्रस्ताव फेल हो जाता है, तो सरकार सत्ता में बनी रहती है।

अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास क्या है?

No Confidence Motion in Hindi जानने के साथ ही इसका इतिहास जानना जरूरी है। अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास इस प्रकार हैः

  • संविधान यानी कांस्टिट्यूशन में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र आर्टिकल 75 में है।
  • इस प्रस्ताव के तहत अगर सत्तापक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हार जाता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है।
  • सबसे पहले 1963 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ No Confidence Motion in Hindi लाया गया था।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 (3) में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
  • लोकसभा की प्रक्रिया और संचालन नियमों के नियम 198 के तहत, एक सदस्य को सुबह 10 बजे से पहले एक लिखित नोटिस देना होता है, जिसे लिखित प्रस्ताव जमा होने के 10 दिनों के भीतर स्पीकर द्वारा पढ़ा जाएगा।
  • जी.सी. के अनुसार मल्होत्रा की पुस्तक कैबिनेट रिस्पॉन्सिबिलिटी टू लेजिस्लेचर: मोशन ऑफ कॉन्फिडेंस एंड नो-कॉन्फिडेंस इन लोकसभा एंड स्टेट लेजिस्लेचर्स, संसद डिजिटल लाइब्रेरी में उपलब्ध है। बहस 4 दिनों (19-22 अगस्त, 1963) में 21 घंटे और 33 मिनट तक चली।
  • 1964 से 1975 के बीच 15 बार No Confidence Motion in Hindi लाए गए।

अविश्वास प्रस्ताव के कानूनी प्रावधान

लोकसभा के प्रक्रि‍या तथा कार्य संचालन नियमवाली के नियम 198(1) से 198(5) तक अविश्‍वास प्रस्‍ताव का उल्लेख है। यह प्रस्ताव महज एक लाइन का है। इसमें कहा गया है कि ‘यह सदन मंत्रि‍परि‍षद में अवि‍श्‍वास व्यक्त करता है’

  • नियम 198(1)(A): इस नियम के अंतर्गत जो भी कोई सदस्य अविश्वास लाना चाहता है वह सभापति के बुलाने पर सदन से अनुमति मांगता है।
  • नियम 198(1)(B): सदस्य को अविश्‍वास प्रस्ताव की लिखित सूचना सुबह 10 बजे तक लोकसभा सचिव को देना होती है।
  • नियम 198(2): जब भी अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए तब इसके पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना चाहिए अन्‍यथा स्पीकर इसकी अनुमति नहीं दे सकते।
  • नियम 198(3): जब स्‍पीकर से अनुमति मिल जाए तब प्रस्‍ताव पर चर्चा के लिये एक या अधिक दिन तय कर लिया जाता है।
  • नियम 198(4): जब अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का अंतिम दिन होता है तब स्पीकर सदन में वोटिंग कराते हैं और बहुमत संबंधी परिणाम की घोषणा करते हैं।

अविश्वास प्रस्ताव के नियम

अविश्वास प्रस्ताव के नियमों में प्रस्ताव पेश करना, चर्चा, मतदान और परिणाम शामिल होते हैं।

1. प्रस्ताव पेश करने के नियम

अविश्वास प्रस्ताव के नियमों में सबसे पहला है प्रस्ताव पेश करना इसमें निम्न नियमों का पालन करना होता है:

  • Avishwas Prastav किसी लोकसभा के सदस्य द्वारा ही लाया जा सकता है।
  • प्रस्ताव पेश करने से पहले सदस्य को लोकसभा सचिवालय को लिखित नोटिस देना होता है। यह नोटिस आमतौर पर 14 दिन पहले दिया जाता है।
  • प्रस्ताव की आगे की प्रक्रिया के लिए अविश्वास प्रस्ताव में कम से कम 50 लोकसभा सदस्यों का समर्थन होना अनिवार्य है। 

अगर कोई प्रस्ताव इन नियमों के अधीन है तो संसद में आगे चर्चा और मतदान की प्रक्रिया होती है।

2. चर्चा और मतदान

अविश्वास प्रस्ताव के नियमों में चर्चा और मतदान की प्रक्रिया सामिल हैं। मतदान की प्रक्रिया को पूरा करने पर ही Avishwas Prastav पारित हो सकता है। चर्चा और मतदान की प्रक्रियाएं इस प्रकार हैं:

चर्चा

  • विपक्ष की दलीलें: विपक्ष अपने प्रस्ताव के पक्ष में दलीलें रखता है। वे सरकार की नाकामियों को गिनाते हैं और बताते हैं कि क्यों सरकार को हटाया जाना चाहिए।
  • सरकार का जवाब: सरकार अपने पक्ष में दलीलें रखती है। वे विपक्ष के आरोपों का खंडन करते हैं और बताते हैं कि उन्होंने क्या अच्छा काम किया है।
  • संसद में बहस: दोनों पक्षों के बीच इस विषय पर गहन चर्चा होती है।

मतदान

  • सभी सदस्यों को वोट देने का मौका: संसद के सभी सदस्यों को इस प्रस्ताव पर वोट देने का मौका मिलता है।
  • बहुमत: अगर आधे से ज्यादा (50%+) सदस्य अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट करते हैं, तो प्रस्ताव पास हो जाता है।

3. परिणाम

अगर प्रस्ताव पास होता है तो, Avishwas Prastav पास होने एक बाद प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ता है, और नई सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है या नए चुनाव हो सकते हैं। राष्ट्रपति एक नए व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं जिसके पास लोकसभा में बहुमत हो। अगर प्रस्ताव पास नही होता तो, सरकार बनी रहती है। इससे लोकतंत्र में जनता की आवाज को महत्व मिलता है।

अविश्वास प्रस्ताव के कारण

Avishwas Prastav लाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। ये कारण अक्सर सरकार के कामकाज, नीतियों और फैसलों से जुड़े होते हैं। आइए कुछ प्रमुख कारणों को समझते हैं:

  1. सरकार की नाकामी: अगर सरकार अपने वादे पूरे करने में विफल रहती है या जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती, तो विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है।
  2. भ्रष्टाचार के आरोप: अगर सरकार या उसके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते हैं, तो यह अविश्वास प्रस्ताव का कारण बन सकता है।
  3. आर्थिक संकट: देश की अर्थव्यवस्था खराब होने पर या महंगाई बढ़ने पर भी Avishwas Prastav लाया जा सकता है।
  4. सुरक्षा संबंधी मुद्दे: अगर देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हों, जैसे युद्ध या आतंकी हमले, तो विपक्ष सरकार पर सवाल उठा सकता है।
  5. नीतिगत मतभेद: कभी-कभी सरकार की कोई नीति या फैसला इतना विवादास्पद होता है कि विपक्ष उसे देश हित के खिलाफ मानकर अविश्वास प्रस्ताव लाता है।
  6. गठबंधन टूटना: अगर सरकार गठबंधन की है और कोई प्रमुख सहयोगी दल समर्थन वापस ले लेता है, तो भी अविश्वास प्रस्ताव आ सकता है।
  7. बड़े घोटाले या स्कैंडल: कोई बड़ा घोटाला या स्कैंडल सामने आने पर भी विपक्ष सरकार के खिलाफ Avishwas Prastav ला सकता है।
  8. अंतर्राष्ट्रीय संबंध: अगर सरकार के अंतर्राष्ट्रीय संबंध खराब हो रहे हैं या फिर किसी विदेशी देश के साथ विवाद की स्थिति है तो भी विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है।

अविश्वास प्रस्ताव की संवैधानिक स्थिति क्या है?

भारतीय संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र स्पष्ट रूप से नहीं है, लेकिन यह संसदीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे संविधान की भावना और संसदीय परंपराओं के तहत स्वीकार किया गया है। इसकी संवैधानिक स्थिति इस प्रकार हैं:

  1. संविधान का अनुच्छेद 75: यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। इसका मतलब है कि सरकार को लोकसभा का विश्वास प्राप्त होना चाहिए।
  2. लिखित प्रावधान नहीं: मज़ेदार बात यह है कि संविधान में “अविश्वास प्रस्ताव” शब्द का सीधा उल्लेख नहीं है। लेकिन यह संसदीय प्रणाली का एक स्वीकृत हिस्सा है।
  3. लोकसभा के नियम: Avishwas Prastav की प्रक्रिया लोकसभा के नियम 198 में वर्णित है। यह बताता है कि कैसे प्रस्ताव लाया जा सकता है और उस पर चर्चा होगी।
  4. समय सीमा: अध्यक्ष को प्रस्ताव मिलने के 10 दिनों के भीतर इस पर चर्चा करवानी होती है।
  5. राज्यसभा में नहीं: अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ लोकसभा में लाया जा सकता है, राज्यसभा में नहीं।

भारत में कितनी बार अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ?

“अविश्वास प्रस्ताव क्या है” और “अविश्वास प्रस्ताव के कानून” जानने के बाद ये जानना जरूरी हो जाता है की Avishwas Prastav भारत में तथा अन्य देशों में कितनी बार पारित हुए हैं।

भारत में

भारत में लगभग 28 बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ दो बार ही पारित हुए हैं। वो दोनों महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:

  1. 1979 में मोरारजी देसाई सरकार: यह पहली बार था जब अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ था। यह प्रस्ताव यशवंतराव चव्हाण द्वारा मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ लाया गया था। इस प्रस्ताव पर चर्चा से कोई निष्कर्ष नहीं निकला, फिर भी मोरारजी देसाई ने राजनीति से संन्यास लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया। यह भारतीय राजनीति में पहली बार था की किसी मतदान के बिना ही सरकार गिर गई। जबकि प्रस्ताव पर कोई मतदान नहीं हुआ था। 
  1. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार: वाजपेयी सरकार के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, NDA जो की वाजपेयी की गटबंधन सरकार थी को 269 और विपक्ष को 270 वोट मिलें। यह सिर्फ एक वोट से पारित हो गया था। इसके कारण राजनीतिक विश्वासों में दृढ़ नेता कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा और उनकी सरकार 13 महीने में गिर गई। इसके बाद 1999 में फिर से चुनाव हुए।

अन्य देशों में

अविश्वास प्रस्ताव केवल भारत में ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में भी लोकतंत्र का हिस्सा है। यह जानना दिलचस्प है कि विभिन्न देशों में इस प्रक्रिया का उपयोग कितनी बार किया गया है।

कुछ प्रमुख अविश्वास प्रस्ताव घटनाएं इस प्रकार हैं:

  1. ब्रिटेन: ब्रिटेन में अविश्वास प्रस्ताव का एक लंबा इतिहास है। सबसे प्रसिद्ध मामलों में से एक 1979 का है, जब जेम्स कैलाघन की सरकार के खिलाफ Avishwas Prastav पारित हुआ था, जिससे उनकी सरकार गिर गई थी।
  2. कनाडा: कनाडा में भी अविश्वास प्रस्ताव का उपयोग कई बार हुआ है। उदाहरण के लिए, 2005 में पॉल मार्टिन की अल्पसंख्यक सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ था।
  3. ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में, 1941 में आर्थर फडेन की सरकार के खिलाफ Avishwas Prastav पारित हुआ था, जिससे उनकी सरकार गिर गई थी।
  4. जर्मनी: जर्मनी में, Avishwas Prastav को ‘कंस्ट्रक्टिव वोट ऑफ नो कॉन्फिडेंस’ कहा जाता है, जिसमें एक नई सरकार को प्रस्तावित करना अनिवार्य है। 1982 में हेल्मुट श्मिट की सरकार के खिलाफ इस तरह का प्रस्ताव पारित हुआ था।
  5. इटली: इटली में, कई बार अविश्वास प्रस्ताव पारित हुए हैं, जिससे सरकारें गिरती रही हैं। यह देश अपनी राजनीतिक अस्थिरता के लिए जाना जाता है।
  6. स्पेन: स्पेन में, 2018 में मारीआनो राजोय की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ था, जिससे उनकी सरकार गिर गई थी।

निष्कर्ष

अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है—इसका स्पष्ट उत्तर यही है कि यह लोकतंत्र की वह महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। Avishwas Prastav से सरकार को यह संदेश मिलता है कि वह जनता के प्रति उत्तरदायी रहे और उनके हितों के अनुसार कार्य करें। विभिन्न देशों के उदाहरण यह साबित करते हैं कि यह प्रक्रिया न केवल सरकारों को बदलने का एक साधन है, बल्कि यह लोकतंत्र की पारदर्शिता और मजबूती का प्रतीक भी है।

इस ब्लॉग में आपने अविश्वास प्रस्ताव क्या है, इसकी प्रक्रिया, अविश्वास प्रस्ताव के नियम और Avishwas Prastav भारत में तथा अन्य देशों में कितनी बार पारित हुआ के बारे में विस्तार से जाना।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

अविश्वास प्रस्ताव का क्या अर्थ है?

अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विपक्षी दल या विपक्षी सदस्य सरकार के खिलाफ अविश्वास व्यक्त करते हैं। यह एक तरह का मतदान होता है जिसमें यह तय किया जाता है कि सदन में मौजूद सदस्यों का बहुमत सरकार के पक्ष में है या विपक्ष के पक्ष में। अगर बहुमत विपक्ष के पक्ष में होता है तो सरकार गिर जाती है और नए सिरे से चुनाव करवाए जाते हैं।

अविश्वास प्रस्ताव कैसे पारित होता है?

प्रस्ताव पेश करना: विपक्ष का कोई भी सदस्य अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है।
चर्चा: प्रस्ताव पर सदन में चर्चा होती है।
मतदान: चर्चा के बाद मतदान होता है।
परिणाम: अगर बहुमत विपक्ष के पक्ष में होता है तो प्रस्ताव पारित हो जाता है और सरकार गिर जाती है।

अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाए जाने वाले प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे?

मोरारजी देसाई: 1979 में जनता पार्टी के मोरारजी देसाई भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्हें अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सत्ता से हटाया गया था।

अविश्वास प्रस्ताव के लिए कितनी बहुमत चाहिए?

अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के लिए सदन में मौजूद सदस्यों का आधा से अधिक बहुमत आवश्यक होता है।

लोकसभा नियम 377 क्या है?

लोकसभा नियम 377 के तहत, कोई भी सांसद किसी भी महत्वपूर्ण लोक महत्व के मुद्दे को सदन के पटल पर रख सकता है। हालांकि, इस नियम के तहत लाए गए प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं होती है और सरकार को इस पर कोई कार्रवाई करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यह नियम सांसदों को सरकार का ध्यान महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर आकर्षित करने का एक माध्यम प्रदान करता है।

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