बक्सर का युद्ध क्यों हुआ? Battle of Buxar in Hindi
November 1, 2024
Quick Summary
बक्सर का युद्ध 22 और 23 अक्टूबर, 1764 को लड़ा गया था। इस युद्ध में एक तरफ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी थी और दूसरी तरफ बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय थे।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती थी और बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहती थी।
बंगाल के नवाब मीर कासिम अंग्रेजों के बढ़ते हुए हस्तक्षेप से नाखुश थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय भी अंग्रेजों के खिलाफ इस युद्ध में शामिल हुए थे।
Table of Contents
बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर, 1764 को लड़ा गया था। यह लड़ाई हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम, और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के बीच हुई थी। इस लड़ाई में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की निर्णायक जीत हुई, जिससे उन्हें बंगाल पर तरह से अधिकार मिल गया और बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना हुई।
यह लड़ाई इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बाद ब्रिटिश शासन की शुरुआत हुई। इस लड़ाई के बाद, कंपनी बंगाल और बिहार में प्रमुख शक्ति बन गई। इसने भारत के बड़े हिस्से को अपने नियंत्रण में ले लिया।
आइए जानते हैं कि बक्सर का युद्ध कब हुआ? बक्सर का युद्ध कहां हुआ था ?और बक्सर का युद्ध के कारण ? तो चलिए इस युद्ध के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बक्सर का युद्ध संक्षिप्त में
बक्सर का युद्ध
तिथि
22/23 अक्टूबर 1764
स्थान
बक्सर के पास
परिणाम
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की जीत
बक्सर का युद्ध संक्षिप्त में
बक्सर की लड़ाई 22 अक्टूबर, 1764 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, जिसका नेतृत्व हेक्टर मुनरो कर रहे थे, और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच हुई थी। यह लड़ाई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक निर्णायक जीत थी, जिसके कारण अंततः बंगाल पर उनका आधिपत्य स्थापित हुआ और बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना हुई।
बक्सर की लड़ाई उस समय लड़ी गई थी जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपने क्षेत्रों का विस्तार कर रही थी। 1757 में, उन्होंने प्लासी की लड़ाई जीत ली थी, जिसके परिणामस्वरूप बंगाल में उनका शासन स्थापित हो गया था। हालाँकि, यह जीत अपनी चुनौतियों के बिना नहीं थी। कंपनी की सेना लगातार फ्रांसीसी और उनके सहयोगियों के साथ-साथ स्वदेशी सेनाओं के हमले का सामना कर रही थी। 1764 में बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब वजीर शुजा-उद-दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों को बंगाल से बाहर खदेड़ने के लिए गठबंधन किया।
बक्सर के युद्ध का इतिहास | Historical Background Of Battle Of Buxar
1757 में प्लासी की लड़ाई में जीत हासिल करने के बाद, ब्रिटिश सेना ने बंगाल की धरती पर अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, सिराज-उद-दौला को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीर जाफर के कमांडर के साथ बदल दिया, जिससे वह एक कठपुतली सम्राट बन गए। मीर जाफर ने जब गद्दी संभाली, तो वह अंग्रेजों की लगातार बढ़ती मांगों का सामना नहीं कर सके। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने डच ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ गठबंधन कर लिया और विद्रोह कर दिया।
मीर जाफर गद्दी पर बैठने के बाद अंग्रेजों की लगातार बढ़ती मांगों का सामना नहीं कर सका। फलस्वरूप उसने डच ईस्ट इंडिया कंपनी से हाथ मिला लिया और विद्रोह कर दिया।
इसने अंग्रेजों को मीर जाफर को रुपये की पेंशन के साथ इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। 1760 में वार्षिक पेंशन के रूप में 15000।
अब, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया ने मीर जाफर के दामाद मीर कासिम को बंगाल का नया नवाब बनाया।
बक्सर का युद्ध कब हुआ ?
बक्सर की लड़ाई: 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर की लड़ाई लड़ी गई।
बक्सर का युद्ध किसके बीच हुआ: इस लड़ाई में मीर कासिम, शुजाउद्दौला, और शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना का सामना ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से हुआ। इस युद्ध में कंपनी की सेना ने निर्णायक विजय प्राप्त की। हार के परिणामस्वरूप, मीर कासिम को स्थायी रूप से सत्ता से बेदखल कर दिया गया, शुजाउद्दौला को अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी और शाह आलम द्वितीय को भी ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण में रहना पड़ा।
बक्सर का युद्ध कहां हुआ था?
आइए अब जानते हैं कि बक्सर कहाँ हुआ था? बक्सर का युद्ध भारत के बक्सर नामक स्थान पर हुआ था, जो कि गंगा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है, और वर्तमान में बिहार राज्य में स्थित है।
बक्सर युद्ध का घटनाक्रम
मीर कासिम: मीर कासिम बंगाल के नवाब थे, जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1760 में नवाब बनाया था। लेकिन जब उन्होंने कंपनी के व्यापारिक विशेषाधिकारों का विरोध किया, तो उनका और कंपनी के बीच संघर्ष बढ़ गया। अंततः, मीर कासिम को 1763 में अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी और उन्होंने शरण लेने के लिए अवध का रुख किया।
अवध के नवाब शुजाउद्दौला: मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से मदद मांगी। शुजाउद्दौला ने मीर कासिम का समर्थन किया और इस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ एक गठबंधन बना।
मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय: इस गठबंधन में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय भी शामिल हो गए, जो उस समय कंपनी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे।
इसी प्रकार इस समय तक आते-आते अंग्रेजों ने अपने यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों पर विजय प्राप्त कर चुके थे, और इसके अलावा बंगाल में भी उन्होंने भारतीय सेना को भी कुचल दिया था। बक्सर युद्ध के बाद अब अंग्रेज बंगाल के निर्विरोध शासक बनने की राह पर आगे बढ़ चुके थे।
बक्सर का युद्ध के कारण: बक्सर का युद्ध क्यों हुआ | Causes of Battle of Buxar
बक्सर का युद्ध (Battle of Buxar) 22 अक्टूबर 1764 को लड़ा गया था। इस युद्ध के मुख्य कारणों को भौगोलिक और राजनीतिक कारणों में विभाजित किया जा सकता है।
भौगोलिक कारण
बक्सर की रणनीतिक स्थिति: बक्सर, गंगा नदी के किनारे स्थित था, जो एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग था। इस स्थान का नियंत्रण व्यापार और सैन्य अभियानों के लिए महत्वपूर्ण था।
बंगाल, बिहार और अवध का मिलन बिंदु: बक्सर उन क्षेत्रों के संगम पर स्थित था जहां से बंगाल, बिहार और अवध मिलते थे। इस कारण यह क्षेत्र व्यापारिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था।
जल और स्थल मार्गों का नियंत्रण: गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण, बक्सर का जल मार्गों पर नियंत्रण था जो कि सैनिक और व्यापारिक गतिविधियों के लिए आवश्यक था।
राजनीतिक कारण
अंग्रेजों का बढ़ता प्रभाव: प्लासी के युद्ध (1757) के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इससे मीर कासिम, शुजाउद्दौला, और शाह आलम द्वितीय को कंपनी की बढ़ती शक्ति से खतरा महसूस होने लगा।
मीर कासिम की नाराजगी: मीर कासिम, बंगाल के नवाब, ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष जताया जब उन्होंने पाया कि कंपनी उनके राज्य के संसाधनों का दोहन कर रही है। उन्होंने अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया और अंततः उन्हें भागकर अवध में शरण लेनी पड़ी।
शुजाउद्दौला का समर्थन: मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से मदद मांगी, जो अंग्रेजों के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे। शुजाउद्दौला ने मीर कासिम का समर्थन किया और इस प्रकार एक गठबंधन बना।
मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय का समर्थन: शाह आलम द्वितीय भी अंग्रेजों के प्रभाव से चिंतित थे और उन्होंने इस गठबंधन में शामिल होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का समर्थन किया।
ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक नीतियाँ: कंपनी की आर्थिक नीतियों ने भारतीय व्यापारियों और किसानों पर भारी कर लगाया, जिससे असंतोष बढ़ा। मीर कासिम ने इन नीतियों का विरोध किया और इसे लेकर संघर्ष बढ़ा।
बक्सर के युद्ध का महत्व
बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764) भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसका महत्व कई दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:
ब्रिटिश प्रभुत्व की स्थापना: इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय ने भारत में उनके राजनीतिक और सैन्य प्रभुत्व को मजबूत किया। इसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा के विशाल क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता की।
भारतीय रियासतों की कमजोर स्थिति: इस युद्ध ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीय रियासतें और मुगल साम्राज्य ब्रिटिश सैन्य शक्ति का मुकाबला करने में असमर्थ थे। इससे भारतीय रियासतों की स्थिति कमजोर हो गई और अंग्रेजों के प्रति निर्भरता बढ़ गई।
कंपनी की राजनीतिक शक्ति: युद्ध के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सिर्फ एक व्यापारिक संस्था से बढ़कर एक राजनीतिक शक्ति बन गई। इसे बंगाल के दीवानी अधिकार (राजस्व संग्रह का अधिकार) प्राप्त हुए, जिससे कंपनी की वित्तीय स्थिति भी मजबूत हुई।
प्रशासनिक सुधार: अंग्रेजों ने प्रशासनिक सुधार लागू किए, जिससे उनका नियंत्रण और प्रभाव और अधिक मजबूत हुआ। इससे भारत में ब्रिटिश शासन का आधार तैयार हुआ।
बक्सर का युद्ध के बाद हुए परिवर्तन | Changes after the Battle of Buxar
बक्सर की लड़ाई ने भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।
इसने भारत में मुगल साम्राज्य के शासन को समाप्त कर दिया।
इसने मराठा साम्राज्य के उदय को जन्म दिया।
इसने भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत को चिह्नित किया।
बक्सर की लड़ाई भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी और इसके दूरगामी परिणाम थे।
बक्सर के युद्ध के बाद की स्थिति
बक्सर के युद्ध के बाद भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए:
बंगाल में ब्रिटिश प्रभुत्व: बंगाल में मीर कासिम की हार और अंग्रेजों की जीत के बाद, बंगाल में कंपनी का प्रभाव बढ़ गया। मीर जाफर को पुनः बंगाल का नवाब बनाया गया, जो कंपनी का एक कठपुतली नवाब था।
मुगल सम्राट की स्थिति: शाह आलम द्वितीय को अंग्रेजों की शरण में आना पड़ा और उन्हें ब्रिटिश संरक्षण में रहना पड़ा। इससे मुगल साम्राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा में कमी आई।
अवध की स्थिति: शुजाउद्दौला को अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा और उसे भारी जुर्माना भरना पड़ा। अंग्रेजों ने अवध को एक बफर स्टेट के रूप में इस्तेमाल किया।
बक्सर के युद्ध के बाद की संधि: इलाहाबाद संधि (Treaty of Allahabad)
बक्सर के युद्ध के बाद 1765 में इलाहाबाद में दो महत्वपूर्ण संधियाँ संपन्न हुईं:
शाह आलम द्वितीय के साथ संधि: शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों से दीवानी अधिकार (बंगाल, बिहार और उड़ीसा का राजस्व संग्रह करने का अधिकार) स्वीकार किया। इसके बदले में, अंग्रेजों ने उन्हें इलाहाबाद और कड़ा का क्षेत्र दिया और वार्षिक पेंशन भी सुनिश्चित की।
शुजाउद्दौला के साथ संधि:शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों को भारी हर्जाना देने और अपनी सेना को अंग्रेजों की सेवा में रखने पर सहमति दी। उन्होंने अंग्रेजों को इलाहाबाद और कड़ा का क्षेत्र भी सौंपा।
बक्सर का युद्ध का प्रभाव और परिणाम
बक्सर का युद्ध (22 अक्टूबर 1764) भारत में ब्रिटिश सत्ता के विस्तार और स्थायित्व के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मीर कासिम, शुजाउद्दौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को पराजित किया। इस विजय ने ब्रिटिश सत्ता को कई महत्वपूर्ण परिणाम दिए:
ब्रिटिश सत्ता पर बक्सर के युद्ध के परिणाम
दीवानी अधिकार: इलाहाबाद संधि (1765) के तहत, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार, और उड़ीसा का दीवानी अधिकार (राजस्व संग्रह का अधिकार) सौंप दिया। इससे कंपनी को राजस्व का बड़ा स्रोत मिला, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत हुई और प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित हुआ।
प्रशासनिक नियंत्रण: कंपनी ने बंगाल में प्रशासनिक और न्यायिक सुधार लागू किए, जिससे उनका क्षेत्रीय नियंत्रण और सुदृढ़ हुआ। उन्होंने मीर जाफर को फिर से बंगाल का नवाब बनाया, जो एक कठपुतली नवाब था और कंपनी के निर्देशों पर काम करता था।
सैन्य शक्ति: बक्सर की विजय ने कंपनी की सैन्य शक्ति को प्रमाणित किया। इसने अन्य भारतीय रियासतों को भी संदेश दिया कि अंग्रेजों से टकराना कठिन है, जिससे ब्रिटिश सैन्य प्रभाव और प्रभुत्व बढ़ा।
राजनीतिक प्रभुत्व: बक्सर की लड़ाई ने कंपनी को एक व्यापारिक संगठन से एक राजनीतिक शक्ति में बदल दिया। इससे उन्होंने भारतीय राजनीति में सीधे हस्तक्षेप करना शुरू किया और अपने हितों के अनुसार शासन को नियंत्रित करना शुरू किया।
भारतीय राजाओं पर बक्सर के युद्ध के परिणाम
बक्सर का युद्ध भारतीय राजाओं और रियासतों पर पर गहरा प्रभाव दाल कर गया। इस युद्ध ने भारतीय राजाओं की शक्ति को कमजोर किया और उनकी राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया:
मुगल साम्राज्य की गिरावट: शाह आलम द्वितीय को अंग्रेजों की शरण में आना पड़ा और उन्होंने इलाहाबाद संधि के तहत दीवानी अधिकार कंपनी को सौंप दिए। इससे मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा और शक्ति में भारी कमी आई और वे मात्र नाममात्र के सम्राट रह गए।
अवध की स्थिति: नवाब शुजाउद्दौला को अंग्रेजों के साथ संधि करने पर मजबूर होना पड़ा। उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ा और अपनी सेना को अंग्रेजों की सेवा में रखना पड़ा। इससे अवध की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा और वे ब्रिटिश संरक्षण में आ गए।
स्थानीय शासकों की निर्भरता: मीर कासिम, जो बंगाल के नवाब थे, को अपनी सत्ता से हाथ धोना पड़ा और उन्हें भागकर अन्यत्र शरण लेनी पड़ी। इससे स्थानीय शासकों को यह संकेत मिला कि अंग्रेजों से संघर्ष में उनकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है।
राजनीतिक अस्थिरता: भारतीय रियासतों में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई। स्थानीय शासक अंग्रेजों की सत्ता और शक्ति से भयभीत हो गए और उनमें से कई ने अंग्रेजों के साथ संधियाँ करके अपने राज्यों को बचाने की कोशिश की।
इलाहाबाद की संधि(1765) क्या है?
रॉबर्ट क्लाइव, शुजा-उद-दौला और शाह आम-द्वितीय के बीच इलाहाबाद में दो महत्वपूर्ण संधियाँ संपन्न हुईं। इलाहाबाद की संधि के मुख्य बिंदु नीचे दिए गए हैं:
रॉबर्ट क्लाइव और शुजा-उद-दौला के बीच इलाहाबाद की संधि:
शुजा को इलाहाबाद और कड़ा शाह आलम द्वितीय को सौंपना पड़ा
उसे युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में कंपनी को 50 लाख रुपये देने पड़े; और
उसे बलवंत सिंह (बनारस के ज़मींदार) को अपनी संपत्ति का पूरा कब्ज़ा देने के लिए बाध्य किया गया।
रॉबर्ट क्लाइव और शाह आलम-द्वितीय के बीच इलाहाबाद की संधि:
शाह आलम को इलाहाबाद में रहने का आदेश दिया गया था जिसे शुजा-उद-दौला ने कंपनी के संरक्षण में उसे सौंप दिया था सम्राट को 26 लाख रुपये के वार्षिक भुगतान के बदले ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी देने का फ़रमान जारी करना पड़ा; शाह आलम को उक्त प्रांतों के निज़ामत कार्यों (सैन्य रक्षा, पुलिस और न्याय प्रशासन) के बदले में कंपनी को 53 लाख रुपये देने के प्रावधान का पालन करना पड़ा।
निष्कर्ष:
बक्सर के युद्ध के दौरान बंगाल का नवाब मीर जाफर था, लेकिन फरवरी 1765 में उसकी मृत्यु हो गई, फिर इलाहाबाद की संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद यह निश्चित हो गया कि अंग्रेजों को इससे अधिकतम लाभ मिलने वाला था। बक्सर का युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत और शाह आलम (द्वितीय) के कब्जे के साथ समाप्त हुआ, और जाने से पहले ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था।
इस ब्लॉग में अपने जाना की बक्सर का युद्ध क्यों हुआ, बक्सर युद्ध कब हुआ, बक्सर का युद्ध कहां हुआ था, और किसके साथ हुआ था, इलाहाबाद की संधि क्या थी और उसके क्या – क्या परिणाम रहे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
बक्सर के युद्ध में ब्रिटिश कमांडर कौन था?
बक्सर के युद्ध में ब्रिटिश कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल हैस्टिंग्स था।
बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल का शासक कौन बन गया?
युद्ध के बाद बंगाल का शासक मीर कासिम को हटाकर नवाब नजमुद्दीन को स्थापित किया गया।
बक्सर के युद्ध के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कौन से नए कानून लागू किए?
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इलाहाबाद संधि के तहत कई प्रशासनिक और आर्थिक सुधार लागू किए, जिसमें कर प्रणाली और व्यापार नियम शामिल थे।
बक्सर के युद्ध के प्रमुख अंग्रेज़ नेता कौन थे जिन्होंने भारतीय शासकों के खिलाफ अभियान चलाया?
प्रमुख अंग्रेज़ नेता जनरल रॉबर्ट क्लाइव और लेफ्टिनेंट कर्नल ब्राउन थे जिन्होंने भारतीय शासकों के खिलाफ अभियान चलाया।
बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की सेना की संख्या कितनी थी?
बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की सेना की संख्या लगभग 7,000 सैनिक थी।