बाल श्रम के कारण और रोकथाम: बाल मज़दूरी पर निबंध

December 27, 2024
बाल श्रम
Quick Summary

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  • बाल श्रम का मतलब है 14 साल से कम उम्र के बच्चों को ऐसे कामों पर लगाना जो उनकी उम्र और विकास के लिए हानिकारक हैं।
  • दुनिया भर में लाखों बच्चे बाल श्रम के शिकार हैं, खासकर भारत जैसे विकासशील देशों में।
  • गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता बाल श्रम के प्रमुख कारण हैं।
  • बाल श्रम को रोकने के लिए शिक्षा, जागरूकता, कानून और सरकारी योजनाओं की जरूरत है।

Table of Contents

बाल श्रम एक गंभीर समस्याओं में से एक है दुनिया में हर 10 बच्चों में से एक बच्चा चाहते या न चाहते हुए बाल श्रम कर रहा है। ऐसे में आपको बाल श्रम क्या है, बाल श्रम निषेध दिवस कब है और बाल श्रम रोकने के उपाय एवं प्रयासों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। 

इस ब्लॉग में आपको बाल श्रम क्या है, इसके कारण, इसका दुष्परिणाम, बाल श्रम कानून, बाल श्रम निषेध दिवस और इसपर अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण के बारे में जानकारी मिलेगी साथ ही आप बाल श्रम पर निबंध लिखने के बारे में भी जानेंगे। 

बाल श्रम क्या है?

जब 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चें को अनुचित तरीके से काम करने के लिए मजबूर किया जाता है तो उसे बाल श्रम में गिना जाता है। यह काम खतरनाक, शारीरिक रूप से थका देने वाला, मानसिक रूप से हानिकारक, और शोषणकारी हो सकता है।

भारत में बाल श्रम के तथ्य एवं आँकड़े

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और यूनिसेफ की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक:

  • दुनिया भर में 5 से 17 साल की उम्र के लगभग 16 करोड़ बच्चे बाल श्रम में लगे हुए हैं। यह हर 10 बच्चों में से एक है।
  • इनमें से 6.3 करोड़ लड़कियां और 9.7 करोड़ लड़के हैं।
  • भारत में 1.01 करोड़ बच्चे बाल श्रम करते हैं।
  • उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश भारत में बाल श्रम के सबसे बड़े केंद्र हैं। ये राज्य देश के कुल बाल श्रमिकों का 55% हिस्सा रखते हैं।

बाल श्रम के प्रकार

  1. कारखाना श्रम:
    • कारखाना श्रम बाल श्रम के प्रकार में से एक है। बच्चें फैक्टरियों में काम करते हैं, जहाँ उन्हें मशीनों के पास खतरनाक कार्य करने पड़ते हैं।
  2. कृषि श्रम:
    • जब बच्चे खेतों में काम करते हैं, जैसे फसल की बुवाई, कटाई, पशुओं की देखभाल आदि, यह बाल श्रम के प्रकार में से एक है।
  3. सेवा क्षेत्र का श्रम:
    • बच्चे होटलों, रेस्टोरेंटों, दुकानों में काम करते हैं, जैसे बर्तन धोना, सामान उठाना आदि।
  4. भीख मांगना:
    • कुछ बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है, जो बाल श्रम के प्रकार में से एक है।

भारत में बाल श्रम के कारण

भारत में बाल श्रम के कारणों में गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता प्रमुख हैं। जो भारत में बाल श्रम को बढ़ावा देते हैं।

गरीबी

गरीबी बाल श्रम का एक मुख्य कारण है। जब परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, तो उन्हें अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने में कठिनाई होती है। ऐसे में बच्चों को भी काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है ताकि वे घर का खर्च चला सकें। अचानक से बीमारियां, प्राकृतिक आपदाएं या अन्य आपातकालीन स्थितियों में भी परिवार की आमदनी घट जाती है, इस कारण बच्चें काम करने के लिए मजबूर हो जाते या किए जाते हैं।

अशिक्षा

अशिक्षा बाल श्रम का एक प्रमुख कारण है। कई गांवों और दूरदराज के इलाकों में स्कूलों की कमी होती है साथ ही अशिक्षित माता-पिता बाल-श्रम से जुड़े खतरों और नकारात्मक परिणामों से अनजान रहते हैं। वे यह नहीं समझते हैं कि बाल-श्रम से उनके बच्चों का विकास बाधित हो सकता है। इसके अलावा, वे बाल अधिकारों और बाल श्रम कानून से भी अनजान होते हैं। ऐसे में, जब बच्चों को पढ़ाई का अवसर नहीं मिलता या वे स्कूल नहीं जा पाते, तो वे काम करने पर मजबूर हो जाते हैं। 

सामाजिक असमानता

सामाजिक असमानता भी बाल-श्रम का एक प्रमुख कारण है। जाति, लिंग और धर्म के आधार पर भेदभाव बाल-श्रम को बढ़ावा देता है, बाल-श्रम से संबंधित कानूनों का उचित क्रियान्वयन न होना इस समस्या को बढ़ाता है और साथ ही बाल-श्रम के खतरों के बारे में लोगों में जागरूकता की कमी भी इस समस्या को कायम रखने में योगदान देती है। कई लोग अभी भी यह मानते हैं कि बच्चों को काम करना स्वीकार्य है, खासकर अगर वे गरीब परिवारों से आते हैं।

बाल श्रम के दुष्परिणाम 

बाल-श्रम के कई दुष्परिणाम हो सकते हैं जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर असर सामिल हैं।

1. शारीरिक चोटें और दुर्घटनाएं:

  • बच्चे अक्सर खतरनाक मशीनों और उपकरणों के साथ काम करने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे उन्हें गंभीर चोटें और दुर्घटनाएं हो सकती हैं। वे भारी वस्तुओं को उठाने और ले जाने, खतरनाक रसायनों के संपर्क में आने और असुरक्षित कार्यस्थलों में काम करने के जोखिम में होते हैं।

2. थकान और कमजोरी:

  • बच्चे अक्सर लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे उन्हें थकान और कमजोरी महसूस होती है। वे पर्याप्त आराम और पोषण नहीं कर पाते हैं, जिससे उनकी शारीरिक वृद्धि और विकास बाधित हो जाती है।

3. संक्रामक रोग:

  • अस्वच्छ और अस्वास्थ्यकर कार्यस्थलों में काम करने से बच्चों को संक्रामक रोग होते हैं। अगर वे स्वच्छता और स्वच्छता का ध्यान रखने में असमर्थ होते हैं, तो वे बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

4. कुपोषण:

  • बाल-श्रमिकों को अक्सर पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है, जिससे वे कुपोषण का शिकार होते हैं। इससे उनकी शारीरिक और मानसिक विकास में देरी हो सकती है, और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है।

5. दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं:

  • बाल श्रम के कारण होने वाली शारीरिक चोटें और बीमारियां बच्चों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। वे विकलांगता, पुरानी बीमारियों और यहां तक कि मृत्यु का कारण भी बनती हैं।

1. तनाव और चिंता:

  • बाल-श्रमिक अक्सर खतरनाक और कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे उन्हें तनाव और चिंता का अनुभव होता है। वे अक्सर शारीरिक और यौन शोषण का भी शिकार होते हैं, जिससे उन्हें और भी अधिक आघात होता है।

2. निराशा:

  • बाल-श्रमिक अक्सर अकेलेपन, निराशा और असहायता की भावनाओं का अनुभव करते हैं, जिससे डिप्रेशन हो सकता है। वे स्कूल जाने और अपने दोस्तों के साथ खेलने से वंचित रह जाते हैं, जिससे उनका सामाजिक विकास बाधित होता है।

3. आत्म-सम्मान में कमी:

  • बाल-श्रमिक अक्सर खुद को हीन और अयोग्य समझते हैं। वे सोचने लगते हैं कि वे केवल काम करने के लिए ही अच्छे हैं, और वे शिक्षा या अन्य अवसरों के लायक ही नहीं हैं।

4. आक्रामकता और हिंसा:

  • बाल-श्रमिक क्रोध, आक्रोश और निराशा का अनुभव करते हैं, जिससे उनके अंदर आक्रामक और हिंसक व्यवहार आता है। 

5. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD):

  • जो बच्चे शारीरिक या यौन शोषण का अनुभव करते हैं, उनके अंदर PTSD विकसित हो जाता है। PTSD के लक्षणों में बुरे सपने, फ्लैशबैक, चिंता और एकाग्रता में कठिनाई शामिल होती है।
  • इन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बच्चों के शिक्षा, रिश्तों और भविष्य की संभावनाओं पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

बाल-श्रम का बच्चों पर गहरा सामाजिक प्रभाव भी पड़ता है। बाल-श्रम में लगे बच्चें समाज से अलग हो जाते हैं। उन्हें अपने उम्र बच्चों के साथ मेलजोल का मौका नहीं मिल पाता है, जिससे वे अकेलापन महसूस करते हैं। 

बाल श्रम कानून

बाल-श्रम को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं। ये कानून बच्चों को सुरक्षित रखने और उन्हें शिक्षा का अधिकार देने के उद्देश्य से लागू किए गए हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बाल-श्रम कानूनों के बारे में जानकारी दी गई है:

  1. बाल-श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986: यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों और कामों में काम करने से रोकता है।
  2. राष्ट्रीय बाल-श्रम परियोजना (NCLP): इस योजना के तहत बाल-श्रम से मुक्त किए गए बच्चों को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है ताकि वे एक बेहतर जीवन जी सकें।
  3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009: इस कानून के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है।
  4. किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015: इस कानून का उद्देश्य बच्चों को सुरक्षा और देखरेख प्रदान करना है, ताकि वे किसी भी प्रकार के शोषण से बच सकें।

इन कानूनों के अलावा संविधान का अनुच्छेद 24, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों, खदानों या अन्य खतरनाक जगहों पर काम करने से रोकने के लिए बनाया गया है।

बाल श्रम निषेध दिवस

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस हर साल 12 जून को मनाया जाता है। बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा पहली बार 2002 में की गई थी। यह दिन दुनिया भर में बाल-श्रम के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और इस समस्या का समाधान खोजने के लिए समर्पित है। बाल श्रम निषेध दिवस के दिन जागरूकता अभियान, रैलियां और चर्चा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं।

बाल श्रम पर अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण

बाल-श्रम को लेकर अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण को भी जानना जरूरी है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की पहल और सरकारी योजनाएं सामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की पहल

कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने बाल श्रम रोकने के उपाय एवं प्रयास को अपनाया है। इनमें से कुछ प्रमुख संगठन और उनकी पहलें निम्नलिखित हैं:

  1. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO): ILO बाल-श्रम पर राष्ट्रीय नीतियों को विकसित करने और लागू करने में सरकारों की सहायता करता है। यह जागरूकता बढ़ाने और सामाजिक भागीदारों को शामिल करने के लिए भी काम करता है। इसने दो मुख्य सम्मेलनों को अपनाया है:
    • बाल श्रम महासम्मेलन, 1919 (संख्या 13): 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए सभी प्रकार के काम पर प्रतिबंध लगाता है।
    • सबसे खराब रूपों के बाल-श्रम का उन्मूलन पर महासम्मेलन, 1999 (संख्या 182): बच्चों को खतरनाक कामों से बचाने पर केंद्रित है।
  1. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF): UNICEF शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच प्रदान करके बाल-श्रम को कम करने के लिए काम करता है। यह बाल अधिकारों को बढ़ावा देने और बाल-श्रम के खिलाफ कानूनों को मजबूत करने के लिए भी काम करता है।
    • UNICEF ने “बाल श्रम को समाप्त करने के लिए वैश्विक पहल” शुरू की है, जिसका लक्ष्य 2025 तक सबसे खराब रूपों के बाल-श्रम को समाप्त करना है।
  1. विश्व बैंक: विश्व बैंक गरीबी उन्मूलन और शिक्षा में सुधार के माध्यम से बाल-श्रम को कम करने के लिए ऋण और अनुदान प्रदान करता है। यह बाल-श्रम पर डेटा इकट्ठा करने और अनुसंधान का समर्थन करने के लिए भी काम करता है।
    • विश्व बैंक ने “बाल श्रम को समाप्त करने के लिए एक रणनीति” शुरू की है, जिसका लक्ष्य 2030 तक बाल-श्रम को आधा कर देना है।

सरकारी योजनाएं

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बाल श्रम रोकने के उपाय एवं प्रयास सरकारी योजनाएं और पहल के रूप में अपनाए जा रहे हैं। यहाँ कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी गई है:

  1. सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDGs): संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक बाल-श्रम को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत विभिन्न देशों को अपने राष्ट्रीय कानूनों और नीतियों में सुधार करने और बाल-श्रम के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
  1. अमेरिकी बाल-श्रम उन्मूलन अधिनियम: अमेरिका ने भी बाल-श्रम को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं। इसके तहत उन देशों से आयात पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जहां बाल-श्रम का उपयोग होता है।
  1. यूरोपीय संघ की पहल: यूरोपीय संघ ने भी बाल-श्रम के खिलाफ कई पहल शुरू की हैं। इसके तहत बाल-श्रम के खिलाफ जागरूकता फैलाने और इसके समाप्ति के लिए फंडिंग और सहायता प्रदान की जाती है।

बाल श्रम पर निबंध 200 शब्दों में (बाल श्रम की रोकथाम पर निबंध)

बाल श्रम पर निबंध लिखने के बारे में जानना काफी महत्वपूर्ण है। बाल श्रम की रोकथाम पर निबंध आपके परीक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो सकता है। 200 शब्दों में बाल श्रम पर निबंध कुछ इस प्रकार है:

प्रस्तावना: 2011 में, भारत की राष्ट्रीय जनगणना में 5-14 वर्ष के बाल-श्रमिकों की कुल संख्या 1.01 करोड़ थी। बाल-श्रम एक गंभीर सामाजिक समस्या बना है जो हमारे समाज और बच्चों के भविष्य को गहरे रूप से प्रभावित कर रहा है। जब बच्चे कम उम्र में काम करने लगते हैं, तो उनका शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक विकास रुक जाता है।

कारण: बाल-श्रम के प्रमुख कारणों में गरीबी, शिक्षा की कमी, और सामाजिक जागरूकता की कमी शामिल हैं। गरीब परिवार अपने बच्चों को कमाई का जरिया मानते हैं और उन्हें काम पर भेजते हैं। इसके अलावा, शिक्षा की कमी भी बाल-श्रम को बढ़ावा देती है, क्योंकि स्कूल न जाने वाले बच्चे काम करने लगते हैं।

प्रभाव: बाल-श्रम के बच्चों पर बुरे प्रभाव हो रहे हैं। वे खेल-कूद, शिक्षा, और अपने बचपन का आनंद नहीं ले पाते। कठिन काम और अनुकूल माहौल न मिलने के कारण उनका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। वे समाज से कट जाते हैं और आत्मविश्वास की कमी महसूस करते हैं।

समाधान: इस समस्या को हल करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर बाल श्रम रोकने के उपाय एवं प्रयासों को अपनाना चाहिए। शिक्षा के महत्व को समझाना, गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना, और बाल-श्रम विरोधी कानूनों का सख्ती से पालन करना जरूरी है। बच्चों का बचपन उन्हें लौटाना अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जिससे वे एक उज्ज्वल और सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ सकें।

बाल श्रम की रोकथाम पर निबंध 500 शब्दों में

बाल श्रम एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो बच्चों के भविष्य को बर्बाद कर देती है। दुनिया भर में लाखों बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं। भारत में भी यह समस्या गंभीर रूप से व्याप्त है।

बाल श्रम की जड़ें गरीबी, शिक्षा के अभाव और सामाजिक-आर्थिक असमानता में गहरी हैं। गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर अपनी परिवार की आय में योगदान देने के लिए स्कूल छोड़कर काम करने को मजबूर होते हैं। शिक्षा का अभाव भी बच्चों को बाल श्रम की ओर धकेलता है, क्योंकि उन्हें यह नहीं पता होता कि शिक्षा उनके भविष्य के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। ग्रामीण क्षेत्रों और कम विकसित क्षेत्रों में, जहां संसाधन सीमित होते हैं और रोजगार के अवसर कम होते हैं, बाल श्रम की समस्या अधिक गंभीर होती है।

बाल श्रम बच्चों के जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है। सबसे पहले, यह उन्हें शिक्षा से वंचित करता है। स्कूल न जा पाने के कारण बच्चे न केवल ज्ञान और कौशल अर्जित करने के अवसर से वंचित रह जाते हैं, बल्कि वे समाज में एक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए भी तैयार नहीं हो पाते।

इसके अलावा, बाल श्रम बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाता है। भारी काम, खराब कार्य स्थितियां और पोषण की कमी से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। अंत में, बाल श्रम बच्चों के सामाजिक विकास में भी बाधा डालता है। उन्हें अपने साथियों के साथ खेलने और सीखने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता, जिससे उनके सामाजिक कौशल का विकास नहीं हो पाता।

बाल श्रम की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। शिक्षा का प्रसार सबसे महत्वपूर्ण उपायों में से एक है। सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करके हम उन्हें बाल श्रम से दूर रख सकते हैं। इसके साथ ही, गरीबी उन्मूलन भी एक महत्वपूर्ण कदम है। गरीबी के कारण ही कई परिवार अपने बच्चों को काम पर भेजने को मजबूर होते हैं।

कानून का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना भी आवश्यक है। बाल श्रम के खिलाफ बने कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करके हम इस समस्या पर अंकुश लगा सकते हैं। इसके अलावा, लोगों को बाल श्रम के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करना भी बेहद जरूरी है। जागरूकता अभियानों के माध्यम से हम समाज के सभी वर्गों को बाल श्रम के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। अंत में, समाज के सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है। सरकार, गैर-सरकारी संगठन, स्कूल, परिवार और समुदाय, सभी को मिलकर इस समस्या से लड़ना होगा।

बाल श्रम एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो न केवल बच्चों के बल्कि पूरे समाज के विकास को बाधित करती है। यह एक ऐसी बुराई है जिसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए समाज के सभी वर्गों को मिलकर प्रयास करने होंगे। सरकार, गैर-सरकारी संगठन, शिक्षक, माता-पिता और समुदाय, सभी को मिलकर बाल श्रम के खिलाफ आवाज उठानी होगी। बच्चों को शिक्षित करके और उन्हें बेहतर भविष्य देने के लिए हमें निवेश करना होगा। केवल तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहां हर बच्चे को अपने सपनों को पूरा करने का मौका मिले।

निष्कर्ष

बाल-श्रम हमारे समाज के लिए एक गंभीर चुनौती है, जिसे हल करने के लिए बाल श्रम रोकने के उपाय एवं प्रयासों को अपनाना होगा। इस ब्लॉग में आपने जाना की बाल श्रम क्या है, इसके कारण, दुष्परिणाम, बाल श्रम कानून, बाल श्रम निषेध दिवस और इस पर क्या अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण है? साथ ही आपने बाल श्रम पर निबंध लिखने के बारे में भी जाना।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

बाल श्रम की परिभाषा क्या है?

बाल-श्रम का मतलब है बच्चों को ऐसे कामों पर लगाना जो उनकी उम्र और विकास के लिए हानिकारक हैं। ये काम खतरनाक, थका देने वाले या शिक्षा प्राप्त करने में बाधक हो सकते हैं।

100 शब्दों में बाल श्रम क्या है?

बाल-श्रम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों द्वारा किया जाने वाला वह काम है जो किसी भी तरह से उनका शोषण करता है, उन्हें मानसिक, शारीरिक या सामाजिक नुकसान पहुँचाता है, या उन्हें जानलेवा खतरे में डालता है।

बाल श्रम की आयु कितनी है?

बाल-श्रम की आयु देश और राज्य के कानूनों के अनुसार अलग-अलग हो सकती है। आमतौर पर, 14 साल से कम उम्र के बच्चों को काम पर लगाना बाल-श्रम माना जाता है।

बाल श्रम की धारा क्या है?

भारतीय दण्ड संहिता 1860: इसमें बाल-श्रम से जुड़े अपराधों के लिए धारा 370-374 में जुर्माना और सजा का प्रावधान किया गया है।

बाल श्रम योजना क्या है?

 बाल श्रमिक विद्या योजना (BSVY) में 8-18 वर्ष आयु वर्ग के ऐसे बच्चों को परिभाषित किया गया है, जो कि संगठित या असंगठित क्षेत्र में काम कर अपनी पारिवारिक आय को पूरा कर रहे है।
बाल-श्रमिक विद्या योजना का उद्देश्य 08 – 18 आयु वर्ग के ऐसे कामकाजी बच्चों/किशोर-किशोरियों द्वारा की जा रही है, आय की क्षतिपूर्ति कर उनका विद्यालय में प्रवेश कराकर निस्तारण सुनिश्चित करना|

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