चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइन

October 23, 2024
चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइन
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चंद्रशेखर आजाद एक प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 1906 में हुआ, और वे हमेशा स्वतंत्रता के प्रति समर्पित रहे। 27 फरवरी 1931 को उन्होंने पुलिस से बचने के लिए आत्मगति की, जो उनकी वीरता को दर्शाता है।

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चंद्रशेखर आजाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। उनकी वीरता और साहस के कारण वे आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इस ब्लॉग में हम चंद्रशेखर आजाद के विचारों और उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही जानेंगे चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइनें जो बहुत महत्वपूर्ण है।

चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय

विवरणजानकारी
पूरा नामचन्द्रशेखर तिवारी
जन्म23 जुलाई 1906, भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर), अलीराजपुर, मध्य प्रदेश
माता-पितापिता: पंडित सीताराम तिवारी, माता: जगरानी देवी
प्रारंभिक शिक्षाभाबरा गाँव में, उच्च शिक्षा के लिए काशी विद्यापीठ, वाराणसी
प्रमुख आंदोलनभारतीय स्वतंत्रता संग्राम, असहयोग आंदोलन
प्रमुख संगठनहिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA), हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)
प्रसिद्ध घटनाएँकाकोरी काण्ड, सॉण्डर्स की हत्या, असेम्बली बम काण्ड
मृत्यु27 फरवरी 1931, चन्द्रशेखर आजाद पार्क, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
मृत्यु का कारणब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए आत्महत्या
उपनामआज़ाद
प्रभावित व्यक्तिमहात्मा गांधी, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह

चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइन: चंद्रशेखर आजाद का जन्म कहां हुआ?

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था। यह गांव अब चंद्रशेखर आजाद नगर के नाम से जाना जाता है। उनके जन्म स्थान को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल माना जाता है और यहां हर साल उनकी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनका यह जन्म स्थान एक प्रेरणास्त्रोत है और उनके जीवन के बारे में जानने के लिए यहां लोग आते हैं। उनके जन्म स्थान पर कई स्मारक बनाए गए हैं जो उनकी वीरता और साहस की याद दिलाते हैं।

क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने का निर्णय

बनारस में पढ़ाई के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इस आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’ बताया, जिससे उनका नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा। जेल से रिहा होने के बाद वे पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। आजाद ने कसम खाई कि वे कभी अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार नहीं होंगे और हमेशा ‘आजाद’ रहेंगे। उन्होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया और अपने साहसिक निर्णयों से ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया।

असहयोग आंदोलन और गिरफ्तारियाँ

चंद्रशेखर आजाद फोटो और चंद्रशेखर आजाद के विचार
चंद्रशेखर आजाद फोटो और चंद्रशेखर आजाद के विचार

चंद्रशेखर आजाद ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’ बताया और कहा कि वे हमेशा आजाद रहेंगे। उनकी यह दृढ़ता और साहस ने उन्हें क्रांतिकारियों के बीच लोकप्रिय बना दिया। जेल में बिताए समय के दौरान उन्हें कोड़े मारे गए, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी इस दृढ़ता ने उन्हें एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया और कई युवा क्रांतिकारी उनके साथ जुड़ने लगे।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में भूमिका

चंद्रशेखर आजाद ने रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हुए। HRA का उद्देश्य था ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और भारत को स्वतंत्र बनाना। इस संगठन में आजाद ने प्रमुख भूमिका निभाई और कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। उन्होंने संगठन के लिए धन एकत्रित करने के लिए कई योजनाएँ बनाई और सफलतापूर्वक उन्हें अंजाम दिया। उनके नेतृत्व में संगठन ने कई साहसिक और सफल अभियानों को अंजाम दिया।

प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियाँ और घटनाएँ

  • चंद्रशेखर आजाद ने काकोरी कांड में प्रमुख भूमिका निभाई।
  • उन्होंने और उनके साथियों ने सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई और इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
  • सांडर्स की हत्या और असेम्बली बम कांड जैसी घटनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • काकोरी कांड के दौरान, आजाद और उनके साथियों ने ट्रेन को लूटकर ब्रिटिश सरकार को एक बड़ा झटका दिया।
  • सांडर्स की हत्या के बाद, वे भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में जुट गए।

साथियों के साथ आजाद के संबंध

चंद्रशेखर आजाद के साथी उन्हें बहुत सम्मान देते थे। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध थे। आजाद ने हमेशा अपने साथियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया और उनकी सुरक्षा का ख्याल रखा। उनके नेतृत्व में सभी साथी एकजुट होकर संघर्ष करते थे और एक दूसरे के प्रति गहरी निष्ठा रखते थे। उनकी इस नेतृत्व क्षमता ने संगठन को मजबूती प्रदान की और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु कब और कहां हुई? 

चंद्रशेखर आजाद का बलिदान 27 फरवरी 1931 को हुआ। इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जब वे पुलिस से घिर गए, तो उन्होंने अपनी आखिरी गोली खुद पर चलाकर अपनी आजादी को बरकरार रखा। उनका यह बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ गया। इस घटना ने उन्हें अमर बना दिया और उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया। उनकी इस वीरता और साहस की कहानियां आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं।

आजाद की नेतृत्व क्षमता और विचार

चंद्रशेखर आजाद एक कुशल नेता थे। उनके नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने कई महत्वपूर्ण अभियानों को अंजाम दिया। उनके विचारों में स्वतंत्रता, देशभक्ति और साहस प्रमुख थे। वे हमेशा अपने साथियों को स्वतंत्रता की कीमत समझाते और उन्हें संघर्ष के लिए प्रेरित करते रहे। उनके नेतृत्व में संगठन ने कई साहसिक और सफल अभियानों को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया। उनके विचार और उनकी दृष्टि ने संगठन को एकजुट किया और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ मजबूत बनाया।

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु के बाद क्रांतिकारी आंदोलन पर प्रभाव

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु के बाद भी उनके विचार और उनके बलिदान ने क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। उनकी मौत ने स्वतंत्रता संग्राम को और भी मजबूती दी और युवाओं में देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित किया। आज भी उनके बलिदान को याद कर नई पीढ़ी प्रेरणा लेती है। उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी वीरता और साहस के किस्से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद भी क्रांतिकारियों को प्रेरित करते रहे। उनकी इस विरासत ने स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी और उनके विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं।

स्वतंत्रता संग्राम में चंद्रशेखर आजाद की विरासत

चंद्रशेखर आजाद की विरासत आज भी जीवित है। उनकी वीरता और साहस के किस्से हर भारतीय को गर्व महसूस कराते हैं। वे स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी इस विरासत को हर भारतीय गर्व से याद करता है और उनकी कहानियाँ आज भी प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं। उनकी इस वीरता और साहस की कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और बलिदान आवश्यक है। उनकी इस विरासत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और युवाओं को प्रेरित किया।

चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइन: चंद्रशेखर आजाद के विचार 

चंद्रशेखर आजाद के विचारों में स्वतंत्रता, देशभक्ति और साहस प्रमुख थे। वे मानते थे कि बिना संघर्ष के स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। उनका मानना था कि युवाओं को देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। उनके विचार आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। उन्होंने हमेशा अपने साथियों को प्रेरित किया और उन्हें संघर्ष के लिए तैयार रहने की शिक्षा दी। उनके विचार और उनकी दृष्टि ने उन्हें एक महान नेता बनाया और उनके बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया।

स्वतंत्रता, देशभक्ति और साहस पर उनके दृष्टिकोण

चंचंद्रशेखर आजाद के विचार थे कि स्वतंत्रता के लिए हर प्रकार का बलिदान देना चाहिए। वे देशभक्ति को सबसे बड़ा धर्म मानते थे और युवाओं को साहस के साथ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते थे। उनका मानना था कि देश की स्वतंत्रता के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान छोटा नहीं होता। उनके इस दृष्टिकोण ने उन्हें एक महान नेता और प्रेरणास्त्रोत बनाया। उनके विचार और उनकी दृष्टि ने उन्हें अमर बना दिया और उनके बलिदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख योद्धा बना दिया।

चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइन: चंद्रशेखर आजाद की प्रेरणा

चंद्रशेखर आजाद की प्रेरणा उनके बचपन से ही मिली थी। उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने आजाद को हमेशा देशभक्ति की शिक्षा दी। चंद्रशेखर आजाद के विचार और उनके संघर्ष ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण योद्धा बनाया। उनकी प्रेरणा ने उन्हें एक महान नेता और प्रेरणास्त्रोत बनाया। उनके इस प्रेरणास्त्रोत ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख योद्धा बना दिया और उनके बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया।

चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइनें

  1. चन्द्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे
  2. ऐसे महान वीर का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाभरा गांव में हुआ था।
  3. चंद्रशेखर आज़ाद का असली नाम ‘चंद्रशेखर तिवारी’ था, परन्तु उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी पहचान ‘आजाद’ के नाम से बनाई।
  4. वे एक कुशल निशानेबाज और घुड़सवार भी थे।
  5. चंद्रशेखर आजाद ने बनारस में संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन किया।
  6. उन्होंने मात्र 14 वर्ष की आयु में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया।
  7. उन्होंने 1925 में काकोरी ट्रेन डकैती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  8. वहीं उन्होंने 1928 में अंग्रेज पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी।
  9. चंद्रशेखर आजाद का निधन 27 फरवरी 1931 को हुआ।
  10. भारत देश के इस वीर सपूत का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित रहेगा।

चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइनें जो महत्वपूर्ण थी, को जानने के बाद आइए उनके जीवन के बारे में विस्तार से बात करते हैं 

चंद्रशेखर आजाद के बारे में 20 लाइन बताइए 

चंद्रशेखर आजाद के बारे में 20 लाइन में उनकी पूरी जिंदगी को बताना कठिन है क्योंकि उनके जीवन की हर घटना महत्वपूर्ण है, पर जब भी यह प्रश्न पूछा जाये कि चंद्रशेखर आजाद के बारे में 20 लाइन बताइए तो आप यह जवाव दे सकते हैं –

  • चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था।
  • उनके पिता पंडित सीताराम तिवारी, उस समय आए अकाल के कारण, उत्तर प्रदेश के बदरका से मध्य प्रदेश के अलीराजपुर रियासत में आकर बस गए और नौकरी करने लगे।
  • आजाद का बचपन भाबरा गांव में आदिवासी बच्चों के साथ धनुष-बाण चलाने और निशानेबाजी सीखने में बीता।
  • जलियांवाला बाग कांड के समय चंद्रशेखर बनारस में पढ़ाई कर रहे थे।
  • गांधीजी के 1921 में असहयोग आंदोलन शुरू करने पर, चंद्रशेखर ने पढ़ाई छोड़कर उसमें हिस्सा लिया।
  • हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ ने धन की व्यवस्था के लिए डकैतियां करने का निर्णय लिया, जिसमें एक डकैती के दौरान एक महिला ने आजाद की पिस्तौल छीन ली, लेकिन आजाद ने उसे अपने सिद्धांतों के कारण कुछ नहीं कहा।
  • रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया, जिसने ब्रिटिश सरकार को झकझोर कर रख दिया।
  • इस डकैती से क्रांतिकारियों ने धन की कमी को दूर किया और उनके साहस को बढ़ावा मिला।
  • आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स की हत्या कर दी।
  • सांडर्स के अंगरक्षक का पीछा करते हुए, आजाद ने उसे भी मार डाला।
  • इस हत्याकांड के बाद लाहौर में जगह-जगह परचे चिपकाए गए, जिन पर लिखा था कि लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है।
  • भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए आजाद ने दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा, लेकिन वहां से निराशाजनक उत्तर मिला।
  • उन्होंने पंडित नेहरू से भी आग्रह किया कि तीनों की फांसी को उम्रकैद में बदलवा दिया जाए, लेकिन असफल रहे।
  • आजाद ने ताउम्र अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार नहीं होने का अपना वादा पूरा किया।
  • 27 फरवरी 1931 को आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गए।
  • उनके शहीद होने के बाद उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों और संघर्ष की गाथाएं पूरे देश में फैली।
  • आजाद का साहस और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्रोत बने।
  • उनके नाम से अनेक स्कूल, कॉलेज और संस्थान स्थापित किए गए।
  • आज भी भारतीय युवा उनके आदर्शों और देशभक्ति से प्रेरणा लेते हैं।
  • चंद्रशेखर आजाद की वीरता और निडरता की कहानियां भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई हैं।

निष्कर्ष

आज के इस ब्लॉग में हमने चंद्रशेखर आजाद के बारे में 10 लाइन जानीं, जो उनकी जीवन यात्रा और क्रांतिकारी गतिविधियों की संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण जानकारी देती हैं। चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा में हुआ था। उनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी नेता थे, जिन्होंने कई महत्वपूर्ण आन्दोलनों का नेतृत्व किया।

चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन के अंत तक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और अपनी जान की बाज़ी लगाई। उनकी प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियों में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की स्थापना शामिल थी। हमने “चंद्रशेखर आजाद के बारे में 20 लाइन बताइए” भी विस्तार से जानी, जिसमें उनके जीवन की प्रमुख घटनाएँ और उनके बलिदान की पूरी कहानी शामिल है।

इसके अलावा, चंद्रशेखर आजाद के विचार भी प्रेरणादायक हैं। उनका प्रसिद्ध उद्धरण, “मैं आज़ाद था, आज़ाद हूँ और हमेशा आज़ाद रहूँगा,” उनके दृढ़ संकल्प और आत्म-निर्भरता को दर्शाता है। उनके विचार हमें सिखाते हैं कि स्वतंत्रता की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। उनकी वीरता और साहस की कहानियाँ हमें गर्व और प्रेरणा देती हैं, और उनका बलिदान स्वतंत्रता की कीमत को समझाने में मदद करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

चंद्रशेखर आजाद के बारे में क्या लिखें?

चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी थे, जिनका जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ। उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़कर सशस्त्र संघर्ष किया। 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क में पुलिस मुठभेड़ में शहीद हुए, और आज भी उनकी विरासत युवाओं को प्रेरित करती है।

आजाद नाम कैसे पड़ा?

चंद्रशेखर का नाम “आजाद” उन्होंने स्वयं अपनाया। जब वे युवा थे, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हुए यह तय किया कि वे कभी भी ब्रिटिश पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने अपने नाम के साथ “आजाद” जोड़ा, जिसका अर्थ है “स्वतंत्र”। यह नाम उनके साहस और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक बन गया।

चंद्रशेखर आजाद कैसे मारे गए?

चंद्रशेखर आजाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी, 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में शहीद हुए। जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें घेर लिया, तो उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए आत्मगति की। आजाद ने जीवनभर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और अपने नाम को सार्थक बनाए रखा। उनकी वीरता और बलिदान आज भी हमें प्रेरित करते हैं।

चंद्रशेखर कौन थे?

चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ और वे युवा अवस्था से ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़कर सशस्त्र संघर्ष किया।
आजाद का नाम “आजाद” उन्होंने खुद रखा, ताकि यह दर्शा सके कि वे कभी भी British पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। वे 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद में शहीद हुए, जब पुलिस ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने अपने सिद्धांतों और स्वतंत्रता की चाह के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका बलिदान और साहस आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

आजाद का पूरा नाम क्या है?

चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। उन्होंने “आजाद” उपनाम अपनाया, जिसका अर्थ है “स्वतंत्र,” ताकि यह दर्शा सकें कि वे कभी भी ब्रिटिशपुलिस के हाथ नहीं आएंगे।

आजादी की मृत्यु कब हुई थी?

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई। जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें घेर लिया, तो उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए आत्मगति का निर्णय लिया। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमिट है।

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