धर्मनिरपेक्षता: Secularism in Hindi

December 6, 2024
धर्मनिरपेक्षता

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धर्मनिरपेक्षता किसी भी लोकतंत्र की नींव होती है। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिक, चाहे उनका धर्म कोई भी हो, समान अधिकार और न्याय प्राप्त करें। धर्मनिरपेक्षता के बिना, समाज में भेदभाव और असमानता बढ़ सकती है, जिससे लोकतंत्र कमजोर हो जाता है। यह केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक आवश्यकता है जो समाज में शांति और समरसता बनाए रखती है। इसलिए, धर्मनिरपेक्षता को समझना और अपनाना हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है, ताकि हम एक मजबूत और न्यायपूर्ण लोकतंत्र का निर्माण कर सकें।

धर्मनिरपेक्षता क्या है?

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है, ऐसी नीति या सिद्धांत जिसमें राज्य या समाज सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और किसी विशेष धर्म को प्राथमिकता नहीं देता। इसका उद्देश्य यह है कि धार्मिक विश्वासों या मान्यताओं का राजनीति, कानून, और सार्वजनिक जीवन पर प्रभाव न पड़े। इसका मतलब है कि एक धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति को किसी दूसरे धर्म के अनुयायी से कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत संविधान के द्वारा अपनाया गया है, जहां राज्य को सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहकर समानता सुनिश्चित करनी होती है।

धर्मनिरपेक्षता का इतिहास

  • भारत में धर्मनिरपेक्षता का इतिहास काफी लंबा है। दरअसल प्राचीन भारत में भी धार्मिक सहिष्णुता को काफी महत्व दिया गया था। प्राचीन समय में सम्राट अशोक ने भी धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा का प्रचार किया था।
  • वहीं मध्यकालीन भारत में सम्राट अकबर ने भी सभी के साथ शांति की नीति अपनाई, जो विभिन्न धर्मों के बीच इसको बढ़ावा देता था।
  • हालांकि, अंग्रेजों के शासन के दौरान धार्मिक विभाजन बढ़ा, लेकिन महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता का समर्थन किया। इसी के फलस्वरूप संविधान सभा ने एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की स्थापना की।
  • भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता को दर्शाते हुए पंथनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया है।

धार्मिक सहिष्णुता : Secularism

भारत या फिर किसी अन्य देश में भी धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक सहिष्णुता को बनाये रखने में बेहद कारगर है। दरअसल किसी भी समाज को धार्मिक रूप से सहिष्णु बनाने के लिए यह जरूरी है कि उसके सभी नागरिकों के मन में एक दूसरे धर्म के प्रति समान की भावना हो और वो दूसरे धर्म को अपने धर्म से कम ना आकें।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएं

धार्मिक स्वतंत्रता : 

  • इसकी विशेषताएं कई सारी हैं और धार्मिक स्वंतंत्रता उनमें से एक है। दरअसल धर्म हमेशा से लोगों के लिए काफी जुड़ाव और भावुक करने  वाला विषय रहा है। ऐसे में अगर समाज धर्मनिरपेक्ष ना हो, तो अल्पसंख्यको को दबाया जाना स्वाभाविक है।
  • लेकिन, धर्मनिरपेक्षता राज्य में किसी भी धर्म को मानने वाली की संख्या चाहे एक हजार हो या एक करोड़, उनके बीच भेदभाव नहीं होने देता है और सभी लोगों को उनके व्यक्तिगत आस्था के मुताबिक धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।

राजनीतिक तटस्थता : 

  • किसी भी सफल धर्मनिरपेक्ष राज्य में सरकार का सभी धर्मों के प्रति राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना आवश्यक है। यह राजनीतिक तटस्थता सभी धर्मों को फलने फूलने का मौका देती है और साथ ही नागरिकों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव भी रोकती है। राजनीतिक तटस्थता भी इसकी विशेषताएं बताती है।
  • समानता और न्याय : धर्मनिरपेक्षता किसी भी राष्ट्र में समानता और न्याय की बुनियाद को मजबूत करती है। किसी भी धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी व्यक्ति समान अधिकार और अवसरों के हकदार हैं, फिर चाहे उनका धर्म, आस्था या उपासना पद्धति कुछ भी हो। धर्मनिपेक्षता सभी धर्म के लोगों को समान रूप से आगे बढ़ने और सर उठाकर चलने की आजादी देती है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का इतिहास

  • प्राचीन काल:
    • सिंधु घाटी सभ्यता में धार्मिक और सामाजिक जीवन का कोई स्पष्ट विभाजन नहीं था।
    • सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता और सम्मान की बात की।
  • मध्यकाल:
    • इस्लाम के आगमन के बाद भी विभिन्न धर्मों का सह-अस्तित्व बना रहा।
    • मुगल शासक अकबर ने ‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना की और धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई।
    • सूफी और भक्ति आंदोलनों ने धार्मिक सहिष्णुता और एकता को बढ़ावा दिया।
  • आधुनिक काल:
    • ब्रिटिश शासन के दौरान, स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया।
    • महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने धार्मिक सहिष्णुता और समानता की वकालत की।
  • संविधान:
    • स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को मौलिक सिद्धांत के रूप में अपनाया।
    • संविधान की प्रस्तावना में भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया।
    • अनुच्छेद 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार प्रदान करते हैं।
  • वर्तमान परिप्रेक्ष्य:
    • आज भी धर्मनिरपेक्षता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
    • राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में इसकी भूमिका पर लगातार चर्चा होती रहती है।
    • यह सिद्धांत सभी नागरिकों को समान अधिकार और न्याय सुनिश्चित करता है।

धर्मनिरपेक्षता के कारण

धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी विचारधारा है जिसमें राज्य और धर्म के बीच भेद किया जाता है। इसका उद्देश्य राज्य द्वारा सभी नागरिकों को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करना है, बिना किसी विशेष धर्म या विश्वास को प्राथमिकता दिए। इसके परिणामस्वरूप समाज में कई सकारात्मक बदलाव होते हैं:

  1. समानता और न्याय: यह समाज में सभी धर्मों और आस्थाओं के प्रति समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देती है। राज्य नागरिकों को उनके धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर भेदभाव से मुक्त करता है।
  2. धार्मिक स्वतंत्रता: हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्थाओं का पालन करने का अधिकार होता है। इसे मानने से किसी व्यक्ति को अपने धर्म को चुनने या न चुनने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता।
  3. राज्य और धर्म का पृथक्करण: यह सुनिश्चित करता है कि राज्य के निर्णय धर्म के आधार पर न हों, और धार्मिक संस्थाओं का सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं होता। इससे राजनीति और प्रशासन में धर्म का प्रभाव कम होता है।
  4. सामाजिक समरसता: यह विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और आस्थाओं के लोगों को एकजुट करने में मदद करता है। इसके माध्यम से समाज में भाईचारे और सहयोग की भावना बनी रहती है।
  5. विकास की दिशा में मदद: राज्य अपने नागरिकों के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, न कि धार्मिक विश्वासों पर। इससे शिक्षा, विज्ञान, और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास की दिशा में तेजी आती है।

समानता और समरसता

धर्मनिरपेक्षता के अगर दो सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों की बात की जाए तो वे समानता और समरसता ही होंगे। दरअसल भारत के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने की वजह से ही यहाँ पर सभी धर्म के लोगों को आगे बढ़ने का समान मौका मिलता है और कानून भी सबके लिए बराबर हैं। इससे समाज में समरसता भी बढ़ती है।

सामाजिक समरसता के ऊपर देश के कई महापुरुष जैसे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने विस्तृत रूप से लिखा और बोला है। इसको जमीन पर उतारने हेतु उन्होंने कई प्रयास किएं और इसका प्रतिबिंब हमें भारतीय संविधान में साफ-साफ दिखाई पड़ता है।

भारतीय संविधान में ऐसे कई प्रावधान हैं, जो भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाते हैं तथा धार्मिक विवादों को रोकते हैं और समाज में समरसता तथा समानता लाते हैं :-

अनुच्छेदविवरण
अनुच्छेद 14इसके तहत देश के सभी नागरिक कानून की नज़र में एक समान हैं।
अनुच्छेद 15इसके तहत धर्म, जाति, नस्ल, लिंग और जन्म स्थल के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 25इसके तहत सबको अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 26ये धार्मिक संस्थाओं की स्थापना का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 27इसके तहत नागरिकों को किसी खास धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या उसे चलाने के बदले में टैक्स देने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 28इसके तहत राज्य की आर्थिक सहायता द्वारा चलाए जा रहे शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नही दी जा सकती है।
अनुच्छेद 29इसके तहत अल्पसंख्यक समुदायों को स्वयं के शैक्षणिक संस्थान खोलने एवं उन्हें चलाने का अधिकार दिया गया है।
धर्मनिरपेक्षता के संविधान में प्रावधान

धर्मनिरपेक्षता का महत्व

धर्मनिरपेक्षता किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अति महत्वपूर्ण है। भारत में इसका महत्व हमें इन बातों से पता चलता है।

धर्मनिरपेक्षता का महत्व
धर्मनिरपेक्षता का महत्व
  • धर्मनिरपेक्षता से समाज के सभी वर्गों में आत्मविश्वास आता है और देश के प्रशासन और लोकतंत्र के प्रति एक विश्वास पैदा होता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि समाज के किसी भी वर्ग के साथ किसी प्रकार का कोई भेदभाव ना हो और सभी को समानता का अधिकार मिले तथा देश आधुनिकता और प्रगति के राह पर चले।
  • धर्मनिरपेक्षता का महत्व देश के सभी बड़े नेता जैसे महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने अपने-अपने समय में देश के समक्ष रखी है। 
  • भारत जैसे देश जहां 125 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या है, वहाँ सभी को समान मौका और समान अधिकार देने के लिए धर्मनिपेक्षता का महत्व और भी बढ़ जाता है।

सामाजिक शांति

भारत जैसे देश जहां दो बड़ी आबादी वाले धर्म हिन्दू तथा इस्लाम समेत अन्य कई धर्मों को मानने वाले लोग बहुत ही बड़ी संख्या में एक दूसरे के साथ रहते हैं, वहाँ सामाजिक शांति कायम रखने में धर्मनिरपेक्षता का काफी महत्व है। दरअसल समाज में जब विभिन्न धर्म के लोग एक साथ रह रहे हों, वैसी स्थिति में किसी के साथ भी भेदभाव या दुर्व्यवहार समाज के अंदर कटुता और अशांति फैला सकता है।

ऐसी स्थिति में धर्मनिरपेक्षता इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी भी धर्म को मानने वाले व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार या भेदभाव ना हो, जिससे समाज में शांति बनी रहती है तथा समाज आधुनिकता और प्रगति के राह पर चलते रहता है।

राजनीतिक स्थिरता

राजनीतिक स्थिरता किसी भी देश के विकास और प्रगति के लिए अत्यंत जरूरी है और धर्मनिरपेक्षता का महत्व इसमें भी बहुत है।

  • समाज के अंदर धर्मनिरपेक्षता इस बात को सुनिश्चित करता है की दो वर्गों में विभाजन कम से कम हो और उस आधार पर राजनीति भी कम हो। जिससे देश में राजनैतिक स्थिरता आये और देश आधुनिकता तथा प्रगति के राह पर बढ़े।
  • इससे अलग अलग विचारधाराओं के राजनीतिक दलों के बीच समन्वय बनाने में भी सहायता मिलती है, जिससे देश में राजनीतिक स्थिरता बेहतर होती है। 

समान अवसर

धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत समानता पर ही आधारित है, इसलिए इसका समाज के अंदर सभी वर्गों के लिए समान अवसर को भी सुनिश्चित करता है। 

नौकरी, व्यवसाय या अन्य किसी भी क्षेत्र में धर्मनिरपेक्षता का मतलब है राज्य का किसी भी धर्म से जुड़ा न होना। इसका उद्देश्य सभी धर्मों के प्रति समानता, तटस्थता और धार्मिक स्वतंत्रता बनाए रखना है।और धर्म के आधार पर समानता, सभी धर्म के लोगों के लिए समान अवसर पैदा करता है, इससे समाज में समरसता की भावना भी बनी रहती है और समाज आधुनिकता तथा प्रगति के राह पर आगे बढ़ता है। इस बात से भी हमें धर्मनिरपेक्षता का महत्व पता चलता है।

संवैधानिक महत्व

  • भारतीय संविधान के मूल प्रति में धर्मनिरपेक्षता शब्द नहीं था और 42वें संविधान संशोधन में भारतीय संसद ने इस शब्द को संविधान में जोड़ा गया।
  • हालांकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फसलों में इस बात पर जोर दिया है कि भले ही धर्मनिरपेक्षता शब्द संविधान में ना हो, लेकिन संविधान की मूल आत्मा में यह हमेशा से थी और धर्मनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।
  • धर्मनिरपेक्षता किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की आत्मा के समान होती है, इसलिए भारतीय संविधान में भी इसको संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है, अर्थात संसद के पास अनुच्छेद 368 के तहत धर्मनिरपेक्षता को संशोधित करने का अधिकार नहीं है। 
  • इन बातों से हमें धर्मनिरपेक्षता के महत्व का अंदाजा लगता है और यह समझ आता है कि संविधान निर्माताओं के लिए यह सिद्धांत हमेशा से अति महत्वपूर्ण रहा होगा।

भारतीय तथा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के बीच अंतर

विशेषताभारतीय धर्मनिरपेक्षतापश्चिमी धर्मनिरपेक्षता
परिभाषासभी धर्मों का समान आदर और सम्मानराज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव
धार्मिक स्वतंत्रतासभी धर्मों को समान अधिकार और संरक्षणधर्म को निजी मामला माना जाता है
राज्य का दृष्टिकोणराज्य सभी धर्मों के प्रति निष्पक्ष रहता हैराज्य किसी भी धर्म को प्रोत्साहित नहीं करता
धार्मिक शिक्षासरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जातीधार्मिक शिक्षा पूरी तरह से अलग
धार्मिक हस्तक्षेपराज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है यदि यह सार्वजनिक हित में होराज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता
उदाहरणभारतफ्रांस, अमेरिका
भारतीय तथा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के बीच अंतर

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निष्कर्ष

हम कह सकते हैं कि बिना धर्मनिरपेक्षता (Secularism) के किसी भी राष्ट्र का ज्यादा समय तक प्रगति के राह पर चलना मुश्किल है, क्यूँकि बिना धर्मनिरपेक्षता के वो राष्ट्र आपस में ही लड़ता रह जायेगा। साथ ही मानवीय आधार पर भी लोगों के बीच बराबर न्याय तथा सबको समान अधिकार देने के लिए राष्ट्र का धर्मनिरपेक्ष होना और वहाँ के नागरिकों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ना बेहद आवश्यक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रष्न(FAQs)

धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य क्या है?

यह एक ऐसी विचारधारा है जिसमें धर्म और धार्मिक विचारों को जानबूझकर सांसारिक मामलों से अलग रखा जाता है, यानी तटस्थ रखा जाता है। धर्मनिरपेक्षता राज्य को किसी विशेष धर्म को संरक्षण देने से रोकती है।

भारत धर्मनिरपेक्षता क्यों है?

भारत एक बहुलवादी देश है जहाँ विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों और भाषाओं के लोग रहते हैं। इसलिए, धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि राज्य किसी एक धर्म का पक्ष नहीं लेगा, बल्कि सभी धार्मिक विचारों के प्रति सहिष्णुता अपनाएगा। इस कारण भारत में इसकी आवश्यकता है।

धर्मनिरपेक्षता के जनक कौन है?

धर्मनिरपेक्षता (सेक्यूलरिज़्म) शब्द का पहली बार उपयोग बर्मिंघम के जॉर्ज जेकब हॉलीयाक ने 1846 में किया था, ताकि अनुभवों के माध्यम से मानव जीवन को बेहतर बनाने के तरीकों को दर्शाया जा सके।

क्या भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है?

भारत की संविधान सभा ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया। इसका मतलब है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है और हर नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता है। राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों में भेदभाव नहीं कर सकता।

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