ग्रीष्म लहर क्या है? How to Fight The Heat Wave?

August 14, 2024
ग्रीष्म_लहर
Quick Summary

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ग्रीष्म लहर या हीटवेव एक ऐसी मौसमी घटना है जिसमें तापमान सामान्य से काफी अधिक हो जाता है और लंबे समय तक बना रहता है। भारत में, खासकर उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में, ग्रीष्म ऋतु में ग्रीष्म लहरें आम हैं।

इसके प्रभाव से शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है। इससे हाइपरथर्मिया हो सकता है। इसके अलावा, इसके कारण खेती पूरी तरह से बर्बाद हो सकती है।

इसके लिए कोई एक परिभाषा नहीं है। अलग-अलग देश इसे हीट वेव के रूप में परिभाषित करते हैं। डेनमार्क इसे 28 °C (82.4 °F) से अधिक की अवधि के रूप में परिभाषित करता है, और स्वीडन इसे 25 °C (77.0 °F) से अधिक तापमान के साथ 5 दिनों से अधिक की अवधि के रूप में परिभाषित करता है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के पास हीटवेव घोषित करने के लिए विशिष्ट मानदंड हैं।

  • मैदानी इलाकों के लिए: यदि अधिकतम तापमान कम से कम 40°C या उससे अधिक हो जाता है।
  • पहाड़ी क्षेत्रों के लिए: यदि अधिकतम तापमान कम से कम 30°C या उससे अधिक हो जाता है।

इसके अतिरिक्त, यदि तापमान लगातार 45°C से ऊपर रहता है, तो इसे स्वचालित रूप से हीटवेव माना जाता है।

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अगर किसी भी जगह का तापमान ज्यादा से ज्यादा 40°C से कुछ कम है या फिर 40°C के बराबर है। ऐसे में सामान्य तापमान में हुई 5 से 6°C हुए इजाफे को ही ग्रीष्म लहर माना जाता है।इतना ही नहीं अगर सामान्य तापमान से लगभग 7°C जितनी या उससे ज्यादा हुए इजाफे को भी ग्रीष्म लहर ही माना जाता है। कम शब्दों में कहा जाए तो अगर किसी जगह का तापमान 40°C या उसके आस पास है तो उसे ग्रीष्म लहर की श्रेणी में रखा जाएगा।मतलब जितनी ज्यादा गर्मी बढ़ती है ग्रीष्म लहर भी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है।

ग्रीष्म ऋतु क्या है?

ग्रीष्म ऋतु भारत में आने वाली छह ऋतुओं में से एक है। ग्रीष्म ऋतु के दौरान मौसम बहुत ही ज्यादा गरम रहता है। ये ऋतु भारत में अप्रैल से लेकर जुलाई महीने में रहती है। इन महीनों के दौरान सूरज की किरणे इतनी ज्यादा तेज रहती हैं कि सुबह के वक्त भी गरम तापमान की वजह से लोगों का बाहर निकलना भी दूभर हो जाता है। 

अप्रैल से लेकर जुलाई महीनों के बीच आम ऋतुओं की तुलना में भारत के ज्यादातर हिस्सों के तापमान गर्म रहने का सबसे बड़ा कारण है कि साल के इन महीनों में सूरज धरती के बहुत ही करीब आ जाता है, जिसके चलते धरती एक आग के गोले में तबदील हो जाती है।इसी दौरान गुजरात के साथ-साथ राजस्थान में गर्म हवाए चलती है जिसे लू भी कहा जाता है।

ऐसे में राजस्थान के मरुस्थल इलाके का तापमान काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जिसकी वजह से राजस्थान के लोगों को भारी गर्मी का सामना करना पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ग्रीष्म ऋतु की वजह से लोगों को भीषण गर्मी के साथ साथ अलग अलग तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।

सच तो ये है कि जितनी ज्यादा गर्मी पड़ती है उतनी ही ज्यादा बारिश की संभावना भी बढ़ जाती है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि ग्रीष्म ऋतु से नुकसान के साथ साथ हमें कई तरह के फायदे भी मिलते हैं।

ग्रीष्म लहर क्या है?

ग्रीष्म लहर असल में हमारे आस पास के तापमान की वो स्थिति है जिसमें तापमान आम दिनों की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जिससे चलते गर्मी काफी ज्यादा बढ़ जाती है।

बता दें कि ग्रीष्म लहर किसी आम वर्ष में मार्च से लेकर जून महीने तक चलती है। पर कई बार ग्रीष्म लहर जुलाई महीने तक भी चली जाती है जिसके चलते लोगों को भारी गर्मी का सामना करना पड़ता है। 

ऐसा होने पर लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जैसे कि कई बार ग्रीष्म लहर के चलते हमारे आस पास के वातावरण में असामान्य बदलाव के चलते वातावरण में नमी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसा होने पर लोगों को कई सारी परेशानियों से गुजरना पड़ता है और कई बार मौसम में आए खराब बदलाव के चलते लोगों की जान भी चली जाती है।

अगर किसी खास जगह या फिर शहर और गांव का तापमान 45°C या उससे ज्यादा हो जाता है तो उस जगह को ग्रीष्म लहर से प्रभावित जगह या क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है। मतलब अगर किसी जगह का तापमान 45 degree से अधिक है तो उसे ग्रीष्म लहर से प्रभावित जगह घोषित कर दिया जाएगा।

45°C के बाद किसी भी जगह का तापमान कितना भी ज्यादा बढ़ जाए लेकिन उसे ग्रीष्म लहर की श्रेणी में ही रखा जाएगा। ये बात हो गई मैदानी इलाकों की। वहीं अगर पहाड़ी इलाकों की बात करें तो अगर किसी पहाड़ी इलाके या क्षेत्र का तापमान 30°C या इससे अधिक है तो उस पहाड़ी इलाके को ग्रीष्म लहर से प्रभावित माना जाएगा। कम शब्दों में पहाड़ी और मैदानी इलाकों में ग्रीष्म लहर घोषित करने के पैमाने और तापमान अलग अलग हैं। 

ग्रीष्म लहर के कारण

कई ऐसे कारण है जिसके चलते पिछले कुछ सालों में ग्रीष्म लहर में इजाफा हुआ है और इसके दुष्परिणाम प्रकृति को भुगतने पड़ रहे हैं.

प्राकृतिक कारण

  • भारतीय मौसम विभाग की माने तो पिछले कुछ सालों में अल- नीनो इफेक्ट के बढ़ने के चलते पिछले कुछ सालों में ग्रीष्म लहर में इजाफा हुआ है।
  • अगर आपको अल- नीनो इफेक्ट के बारे में नहीं पता है तो बता दें कि इस इफेक्ट के दौरान भारत में होने वाली बारिश को दबाया जाता है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक होता है। 
  • इस इफेक्ट के चलते ही पिछले कुछ सालों में भारत में चलने वाली ग्रीष्म लहर में काफी ज्यादा इजाफा हुआ है जिसके चलते हमारे पर्यावरण को काफी ज्यादा नुक्सान पहुंच रहा है।

जलवायु में परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग

बता दें कि जलवायु में हुए परिवर्तन के चलते पिछले कुछ सालों से दुनियां भर में गर्मी के साथ साथ सूखा और कीड़े मकौड़ों का प्रकोप बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है। 

इस वजह से पिछले कुछ सालों में जंगल में भारी मात्रा में आग लगने लगी हैं। मतलब साफ है कि गरम होती जलवायु की वजह से पानी की आपूर्ति में पहले की तुलना में काफी ज्यादा गिरावट आई है। ऐसे में पहले की तुलना में फसलों की उपज में भी भारी मात्रा में कमी देखने को मिल रही है। 

इसी वजह से भारत के अलावा दुनियां के अलग अलग देशों में ग्रीष्म लहर बढ़ती जा रही है जिसके चलते हद से ज्यादा गर्मी के चलते लोगों को अलग अलग बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। 

वहीं ग्लोबल वार्मिंग की वजह से गर्म जलवायु की वजह से जमीनों पर वाष्पीकरण भी तेज़ी से बढ़ रहा है। और ग्रीष्म लहर पहले से ज्यादा गर्म हो रही है जिससे पर्यावरण में मौजूद जीव जंतुओं के साथ साथ हम इंसानों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

शहरीकरण 

शहरीकरण के चलते भी ग्रीष्म लहर का कहर बढ़ता जा रहा है।असल में शहरों में बनी बड़ी बड़ी इमारतें और सड़क को बनाने में कुछ ऐसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है जो गर्मी को खुद में जमा करने के बाद उन्हें धीरे धीरे छोड़ती हैं। इसी वजह से शहरी हीट आइलैंड का असर शाम और रात के समय बहुत ज्यादा होता है। यानी कि शाम और रात के वक्त जब सूरज के ढलने के बाद शहरों की इमारतें और सड़क रात या शाम के अंधेरे में पूरे दिन भर में खुद के अन्दर अवशोषित यानी सोखी गई गर्मी को बाहर निकालती हैं।

ये बताने की जरूरत नहीं है कि पिछले कुछ दशकों में पूरे भारत में किस तरह से पेड़ो की कटाई करके शहरीकरण ने अपने पैर पसारे हैं, जिसके चलते ग्रीष्म लहर के सहना पहले की तुलना में अब काफी ज्यादा कठिन हो जा रहा है।

इस बारे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर इसी रफ्तार से शहरीकरण बढ़ता गया तो वो दिन दूर नहीं जब ग्रीष्म लहर के चलते आज की तुलना में कई सौ गुना लोग हर साल अपनी जान गवाएंगे। 

इसीलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ो को लगाने के साथ साथ शहरीकरण को कम करने पर खास ध्यान देना होगा।

ग्रीष्म लहर के लक्षण

  • बात करें ग्रीष्म लहर के लक्षण के बारे में तो इसकी सबसे बड़ी पहचान है गर्मियों में होने वाली ऐंठन।
  • ग्रीष्म लहर के दौरान किसी भी व्यक्ति को हल्के बुखार के साथ साथ शरीर में सूजन और बेहोशी जैसी चीज़ों का सामना करना पड़ सकता है। 
  • इतना ही नहीं ग्रीष्म लहर के चलते कई लोगों को थकान के साथ साथ कमज़ोरी और चक्कर जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
  • इसके अलावा कुछ मामले ऐसे भी देखे गए हैं जब ग्रीष्म लहर की वजह से लोगों को मितली के साथ साथ उल्टी और मांसपेशियों में खिंचाव की भी समस्या होती है। 
  • साथ ही अगर आपको मार्च से लेकर जुलाई महीने के बीच हद से ज्यादा पसीना आ रहा है तो ये भी ग्रीष्म लहर से प्रभावित होने का एक लक्षण है। 

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ग्रीष्म लहर में गर्म तपमान के चलते लोगों के शरीर में भी गर्मी प्रवेश कर जाती है जिसके चलते लोगों को अलग अलग तरह के लक्षणों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर किसी मरीज का समय से इलाज नहीं कराया गया तो उसको भारी नुकसान के साथ साथ अपनी जान भी गंवानी पड़ सकती है।

ग्रीष्म लहर के प्रभाव

अगर बात करें ग्रीष्म लहर के प्रभाव की तो इस खतरनाक लहर का प्रभाव आम लोगों के साथ साथ पर्यावरण पर भी देखने को मिलता है:

ग्रीष्म लहर का पर्यावरण पर प्रभाव

इसमें कोई संदेह नहीं है कि ग्रीष्म लहर का पर्यावरण पर बहुत ही बुरा और गहरा असर पड़ता है। 

ग्रीष्म लहर से आने से पर्यावरण काफी लम्बे समय तक गर्म रहता है। ऐसे में पर्यावरण लम्बे समय तक तपने की वजह से सूखे में परिवर्तित हो जाता है। और ज़ाहिर है कि गर्म तापमान की वजह से पानी की किल्लत होने लगती है और पानी की कीमत की वजह से फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचता है।

फसलों को नुकसान पहुंचाने की वजह से बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमत आसमान छूने लगते हैं और ऐसा होने पर देश भर में एक तरह से आर्थिक अस्थिरता फैलने लगती है। मतलब साफ है कि शीत लहर के चलते किसी एक या दो राज्य या शहर नहीं बल्कि पूरे देश को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इसीलिए ग्रीष्म लहर को पर्यावरण के लिए बहुत ही ज्यादा हानिकारक माना जाता है।

ग्रीष्म लहर का लोगों पर प्रभाव

ग्रीष्म लहर का लोगों पर भी बहुत ही बुरा असर होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस खतरनाक लहर की वजह से लोगों का स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ने लगता है। ऐसे में लोगों को पानी की कमी के साथ-साथ गर्मी में होने वाली ऐठन जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा ग्रीष्म शहर के चलते लोगों को थकावट के साथ-साथ लू जैसी परेशानियों से भी निपटना पड़ता है। और तो और ग्रीष्म महल के चलते लोगों को में कई कई दिनों तक हल्के बुखार के साथ-साथ सूजन और बेहोशी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

इस दौरान लोगों को पानी की कमी जैसी छोटी बड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। 

इन्हीं कारणों के चलते ग्रीष्म लहर को हर किसी के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक माना जाता है। क्योंकि अगर आपने इस मौसम में जरा भी लापरवाही की तो आपकी जान भी जा सकती है।

ग्रीष्मावकाश

ग्रीष्मावकाश कुछ ज्यादातर लोग समर वेकेशन यानी गर्मियों में होने वाली छुट्टी के रूप में भी जानते हैं। 

मतलब साफ है कि जिस तरह सर्दियों के मौसम में ज्यादा ठंड चलने के चलते कुछ दिनों के लिए स्कूल और कॉलेज को बंद कर दिया जाता है। ठीक उसी तरह गर्मियों के मौसम में स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को लू के साथ-साथ दूसरी समस्याओं का सामना न करना पड़े इसी वजह से हर साल ग्रीष्मावकाश दिया जाता है। 

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दो कक्षाओं के बीच मिलने वाले अवकाश को ही ग्रीष्मावकाश के रूप में जाना जाता है। अगर ये अवकाश न दिया जाए तो हर साल कई सारे बच्चे ग्रीष्म लहर के चलते बीमार पड़ सकते हैं।

ग्रीष्म लहर के दौरान सरकार के सुरक्षा उपाय

ग्रीष्म लहर के दौरान सरकार विभिन्न उपायों को अपनाती है ताकि नागरिकों को गर्मी के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके। ये उपाय स्वास्थ्य सेवाओं, सार्वजनिक जागरूकता, और आवश्यक सेवाओं की तैयारी में शामिल होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख उपाय दिए गए हैं:

1. स्वास्थ्य सेवाएँ और तैयारियाँ

अस्पतालों और क्लीनिकों की तैयारी

  • अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को हीटवेव के मरीजों के इलाज के लिए विशेष तैयारियाँ करने को कहा जाता है।
  • पर्याप्त मात्रा में दवाओं, IV फ्लूड्स, और अन्य आवश्यक चिकित्सा उपकरणों का स्टॉक सुनिश्चित किया जाता है।

एम्बुलेंस सेवाओं का सुदृढ़ीकरण:

  • एमरजेंसी स्थितियों के लिए एम्बुलेंस सेवाओं को तैयार रखा जाता है।
  • अतिरिक्त एम्बुलेंस और स्वास्थ्य कर्मियों को तैनात किया जाता है।

2. सार्वजनिक जागरूकता अभियान

सूचना प्रसार:

  • टीवी, रेडियो, समाचार पत्र और सोशल मीडिया के माध्यम से नागरिकों को हीटवेव से बचाव के उपायों के बारे में जागरूक किया जाता है।
  • स्थानीय भाषा में सरल और स्पष्ट संदेशों का प्रसार किया जाता है।

हीट हेल्पलाइन:

  • हीटवेव के दौरान विशेष हेल्पलाइन नंबर जारी किए जाते हैं, जिससे नागरिक आपात स्थिति में सहायता प्राप्त कर सकते हैं।

3. जल आपूर्ति और हाइड्रेशन

जल वितरण:

  • शहरों और गाँवों में सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल का वितरण सुनिश्चित किया जाता है।
  • रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, पार्क और बाजार जैसे भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में पेयजल की सुविधा मुहैया कराई जाती है।

हाइड्रेशन सेंटर:

  • अस्थायी हाइड्रेशन सेंटर स्थापित किए जाते हैं जहाँ लोग आराम कर सकते हैं और ठंडे पानी का सेवन कर सकते हैं।

4. शिक्षण संस्थानों और कार्यस्थलों के उपाय

स्कूलों का समय बदलना:

  • अत्यधिक गर्मी के दौरान स्कूलों के समय में परिवर्तन किया जाता है। स्कूलों को सुबह जल्दी और दोपहर में बंद किया जाता है।
  • कुछ मामलों में, गर्मी की चरम स्थिति में स्कूलों को बंद भी किया जा सकता है।

कार्यस्थलों पर उपाय:

  • खुले में काम करने वाले मजदूरों के लिए कार्य के घंटे कम किए जाते हैं और उन्हें अधिक पानी और ब्रेक्स की सुविधा दी जाती है।
  • निर्माण कार्यों के समय में बदलाव किया जाता है ताकि मजदूरों को सीधी धूप से बचाया जा सके।

5. प्राकृतिक छाया और ठंडक के उपाय

सार्वजनिक स्थानों पर शेड:

  • बस स्टॉप, पार्क और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अस्थायी शेड और ठंडक के उपाय किए जाते हैं।

ग्रीन कवर बढ़ाना:

  • दीर्घकालिक उपाय के रूप में वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाए जाते हैं ताकि अधिक से अधिक छाया और ठंडक प्रदान की जा सके।

6. वातावरणीय निगरानी और पूर्वानुमान

मौसम विभाग की चेतावनी:

  • मौसम विभाग द्वारा हीटवेव की पूर्वानुमान और चेतावनियाँ जारी की जाती हैं, जिससे सरकार और नागरिक उचित तैयारी कर सकें।

निगरानी और प्रतिक्रिया टीम:

  • विशेष निगरानी टीमों का गठन किया जाता है जो हीटवेव की स्थिति पर नजर रखती हैं और आवश्यकतानुसार त्वरित प्रतिक्रिया देती हैं।

निष्कर्ष

इस दौरान शहर और गांव का तापमान 40 डिग्री से भी ज्यादा हो जाता है। इसलिए अप्रैल से लेकर जुलाई के महीना में लोगों दोपहर के वक्त को ज्यादा से ज्यादा घर में ही रहना चाहिए। इस ब्लॉग में हमने जाना ग्रीष्म लहर क्या है और अगर कोई बाहर निकलता है तो उसे अपने सर को किसी छतरी या टोपी से ढकने के साथ-साथ अपनी त्वचा पर सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए। पेड़ पौधों को ज्यादा से ज्यादा लगाना और शहरीकरण को कम करने पर सरकार का जोर होना चाहिए। ग्रीष्म नहर के दौरान हर किसी को ज्यादा से ज्यादा पानी का सेवन करना चाहिए ताकि किसी को डिहाइड्रेशन जैसी समस्याएं ना हो।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

ग्रीष्म लहर की भविष्यवाणी कैसे की जाती है?

भविष्यवाणी मौसम विभाग द्वारा तापमान के ट्रेंड, वायुमंडलीय स्थितियों, और मौसम पूर्वानुमान के आधार पर की जाती है।

ग्रीष्म लहर की तकनीकी उन्नतियों में कौन-कौन सी चीजें शामिल हैं?

तकनीकी उन्नतियों में स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा प्रबंधन सिस्टम, और जलवायु मॉडेलिंग सॉफ्टवेयर शामिल हैं। 

ग्रीष्म लहर की स्थिति में स्वास्थ्य संकट प्रबंधन के लिए प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठन कौन से हैं?

प्रमुख संगठन में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अंतरराष्ट्रीय लाल क्रॉस, और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य संस्थान शामिल हैं।

ग्रीष्म लहर के दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है?

मानसिक स्वास्थ्य पर ग्रीष्म लहर से तनाव, चिड़चिड़ापन, और मानसिक थकावट का असर पड़ सकता है।

ग्रीष्म लहर के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति की निगरानी कैसे की जाती है?

इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति की निगरानी तापमान रिकॉर्डिंग, सेंसर्स, और नियमित निरीक्षण के माध्यम से की जाती है।

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