हड़प्पा सभ्यता: खोज, मुहरें, इतिहास और प्रमुख स्थल

September 16, 2024
हड़प्पा_सभ्यता
Quick Summary

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हड़प्पा सभ्यता (लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत की एक महान सभ्यता थी। इसका विस्तार सिंधु नदी के तटवर्ती क्षेत्र में था। इस सभ्यता की खोज 1920 के दशक में दयाराम साहनी और राखाल दास बनर्जी ने की थी। इस सभ्यता के लोग नगर नियोजन, नगरपालिका व्यवस्था, जल संसाधन प्रबंधन और व्यापार में बहुत आगे थे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो इस सभ्यता के प्रमुख नगर थे। हड़प्पा सभ्यता का अंत लगभग 1300 ईसा पूर्व के आसपास हुआ, जिसके कारणों के बारे में अभी तक कोई निश्चित मत नहीं बना है। हालांकि, कुछ विद्वानों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, बाढ़ या विदेशी आक्रमण इसके पतन के कारण हो सकते हैं।

Table of Contents

हड़प्पा सभ्यता, जिस सभ्यता में अबतक के मिले शहर तथा वहां के ढांचे ने विशेषज्ञों को आश्चर्यचकित किया है। पिछले कुछ समय में, कुछ विशेषज्ञों ने ये भी अनुमान लगाया की हड़प्पा सभ्यता, मेसोपोटामिया सभ्यता से भी पुरानी है और विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है। ऐसे में आपको “हड़प्पा सभ्यता इतिहास क्या है” के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।

इस ब्लॉग में आप हड़प्पा सभ्यता इतिहास क्या है, हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने की, हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल, हड़प्पा सभ्यता की मुहरें, इसकी विशेषता, प्रमुख स्थल और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण चीजों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

हड़प्पा सभ्यता की खोज

हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारत की सबसे रहस्यमयी और विकसित सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक पनपी थी और इसका विस्तार वर्तमान भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में था।

खोज में शामिल प्रमुख व्यक्ति

हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921 में हुई थी, जब ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट “दयाराम साहनी” ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हड़प्पा नामक स्थान पर खुदाई शुरू की थी। हड़प्पा से मिली कलाकृतियों और अवशेषों ने आर्कियोलॉजिस्ट को एक अज्ञात सभ्यता के बारे में जानकारी दी, जो अपनी उन्नत शहरी नियोजन, जल निकासी प्रणाली, लेखन प्रणाली और कला के लिए प्रसिद्ध थी।

महत्वपूर्ण खोजें

हड़प्पा सभ्यता की खोज के बाद, सिंधु घाटी में कई अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की खुदाई की गई, जिनमें मोहनजोदड़ो, कलीबंगा, लोथल, रखीगढ़ी, अन्य शामिल हैं। इन खुदाईयों ने हड़प्पा सभ्यता के बारे में हमारी समझ को और गहरा किया है।

हड़प्पा सभ्यता की मुहरें

हड़प्पा सभ्यता की मुहरों का महत्व

  • व्यापार और लेनदेन: मुहरों का उपयोग व्यापार और लेनदेन को प्रमाणित करने के लिए किया जाता था।
  • धार्मिक अनुष्ठान: मुहरों का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता था। इन पर देवी-देवताओं और पवित्र प्रतीकों की छाप दर्शाती है कि हड़प्पावासी धार्मिक लोगों थे।
  • कला और संस्कृति: हड़प्पा सभ्यता की मुहरें, हड़प्पा सभ्यता की कला और संस्कृति का प्रतिबिंब हैं।
  • लिपि: कुछ मुहरों पर अज्ञात लिपि में लिखे चिन्ह भी पाए गए हैं। यह माना जाता है कि यह हड़प्पा सभ्यता की अपनी लिपि हुआ करती थी, जिसे अभी तक हमारे द्वारा पूरी तरह से समझा नहीं गया है।

प्रमुख मुहरें और उनके चित्र

मुहरचित्रविवरण 
पशुपति मुहरइस मुहर में एक योगासन में बैठे सिंग वाले देवता का चित्र है, जिसके चारों ओर जानवर हैं। इसे शिव या पशुपति का प्रारंभिक रूप माना जाता है।
बड़ा यूनिकॉर्न मुहरये हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े मुहरों में से एक है और व्यापारिक लेन-देन में उपयोग होती थी। 
लिपि और यूनिकॉर्न के साथ इंटैग्लियो मुहरये मुहर करीब 2200 ईसा पूर्व की है।
स्टीटाइट बटन सीलइस मुहर में चार संकेंद्रित वृत्त हैं।
फ़ाइनेस बटन सीलइस मुहर में ज्यामितीय आकृति हैं।
यूनिकॉर्न मुहरें ये मुहर हड़प्पा सभ्यता के 3 बी से संबंधित बताई जाती है।
ये अनोखे टाइटिल के साथ ही एक स्टीटाइट मुहर भी है। ये मुहर 2450 – 2200 ईसा पूर्व का बताया जाता है।
मोहनजोदड़ो से मिली मुहर इस मुहर में किसी देवता को दोनों भुजाओं पर चूड़ि पहने, पीपल वृक्ष के नीचे खड़े और घुटनों के बल बैठे एक श्रद्धालु की ओर देख रहे हो ऐसा दिखाया गया है, साथ ही किसी इंसान का सिर एक छोटे से स्टूल जैसी चीज पर रखा हुआ है।
इस मुहर में तीन मुंह वाले एक नग्न पुरुष देवता को दर्शाया गया है जो एक योग मुद्रा में गद्दी पर बैठे हुए हैं।
इस मुहर में तीन महत्वपूर्ण पशुओं का कुलचिन्ह है, जिसमें गेंडा, बैल और मृग सामिल है। अन्य किसी मुहरों की तरह, इसके ऊपर कुछ अंकित नहीं है। 
बैल की मुहरइसमें एक ज़ेबू बैल का चित्र है, जिसके चौड़े, लंबे, घुमावदार सिंग है। विशेषज्ञों का मानना है ज़ेबू बैल हड़प्पा सभ्यता के शक्तिशाली कबीले का प्रतिरूप है।
बाइसन मुहरये चपटी हुई एक दो तरफा मुहर है। इस मुहर के पीछे की ओर एक सलीब के आकार का डिजाइन बना हुआ है, जो घड़ी की दिशा में घूम रहा है।

इन मुहरों का उपयोग

हड़प्पा सभ्यता की मुहरें, नदी के तल में पाए जाने वाले नरम पत्थर सेलखड़ी, टेराकोटा, और स्टीटाइट से बनी होती थीं। विशेषज्ञों द्वारा इनके अनुमानिक उपयोग निम्न हैं:

  • प्रमाण और दस्तावेज़ीकरण: मुहरों का उपयोग सामान की सुरक्षा और प्रमाणिकता सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था। यह उस समय की प्रशासनिक व्यवस्था का एक हिस्सा था।
  • सामाजिक पहचान: मुहरों का उपयोग व्यक्तिगत या पारिवारिक पहचान के रूप में भी होता था, जो उस समय की सामाजिक संरचना को दर्शाता है।

हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने की

हड़प्पा सभ्यता की खोज 1920 के दशक में दयाराम साहनी और राखालदास बनर्जी ने की थी। दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल की खुदाई की, जबकि राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की। इन आर्कियोलॉजिकल खोजों से इस प्राचीन सभ्यता के बारे में जानकारी मिली, जो सिंधु घाटी में फली-फूली थी।

पुरातात्विक उत्खनन की प्रक्रिया

  1. स्थान का चयन: आर्कियोलॉजिस्ट पहले उन क्षेत्रों का चयन करते हैं जहाँ प्राचीन अवशेष मिलने की संभावना होती है।
  2. सर्वेक्षण: चयनित स्थानों पर सर्वेक्षण किया जाता है, जिसमें भूमि की सतह का निरीक्षण और स्थलाकृतिक नक्शे तैयार किए जाते हैं।
  3. खुदाई: इसके बाद, जमीन की खुदाई की जाती है। इसे सावधानीपूर्वक परत दर परत किया जाता है ताकि हर छोटे अवशेष को बिना नुकसान पहुंचाए निकाला जा सके।
  4. अवशेषों का संरक्षण: खुदाई से प्राप्त अवशेषों को सावधानी से साफ और संरक्षित किया जाता है। यह प्रक्रिया अवशेषों की उम्र और महत्व को निर्धारित करने में मदद करती है।
  5. विश्लेषण: अंत में, इन अवशेषों का विश्लेषण किया जाता है। यह चरण सभ्यता की सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक स्थितियों को समझने में मदद करता है।

खोज की प्रमुख तारीखें

तारिकख़ोज 
1921दयाराम साहनी ने हड़प्पा (पाकिस्तान) में खुदाई शुरू की, जो इस सभ्यता की पहली खोज थी।
1922राखलदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो (भारत) में खुदाई शुरू की, जो हड़प्पा के बाद खोजा गया दूसरा प्रमुख शहर था।
1930s-1940sसिंधु घाटी में कई अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की खोज हुई, जैसे धोलावीरा, कालीबंगा, और राखीगढ़ी।
1970sभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने हड़प्पा सभ्यता के व्यापक अध्ययन और उत्खनन का कार्य शुरू किया।
2000sनई तकनीकों, जैसे कि उपग्रह इमेजरी और भूभौतिकीय सर्वेक्षण का उपयोग करके, सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की गई।

हड़प्पा सभ्यता का इतिहास

सभ्यता का उद्भव और पतन

हड़प्पा सभ्यता का विकास धीरे-धीरे हुआ। 3300 ईसा पूर्व के आसपास, सिंधु घाटी में कई छोटी-छोटी बस्तियाँ थीं। इन बस्तियों में कृषि, पशुपालन, और शिल्प का विकास हुआ। धीरे-धीरे, ये बस्तियाँ बड़े शहरों में विकसित होने लगीं, जैसे कि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, और कालीबंगा।

1300 ईसा पूर्व के करीब, हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया। इस पतन के कारणों के बारे में कई सिद्धांत हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन, आक्रमण, और व्यापारिक मार्गों में बदलाव शामिल हैं।

प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएं

1. शहरीकरण की शुरुआत:

  • यह सभ्यता अपनी उन्नत शहरी योजना के लिए प्रसिद्ध थी, जिसमें ग्रिड जैसी सड़कों और पक्के मकानों का निर्माण शामिल था।

2. व्यापारिक संबंध:

  • हड़प्पा सभ्यता ने मेसोपोटामिया और अन्य क्षेत्रों के साथ सक्रिय व्यापारिक संबंध स्थापित किए, जिससे सांस्कृतिक और आर्थिक विकास हुआ।

3. लिपि का विकास:

  • हड़प्पा सभ्यता ने अपनी विशिष्ट लिपि विकसित की, जो अभी तक पूरी तरह समझी नहीं गई है, लेकिन यह उनके संचार प्रणाली की जटिलता को दर्शाती है।

4. सुरक्षित जल प्रबंधन:

  • सभ्यता ने उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली, जैसे कुएं और स्नानघर, विकसित किए, जो उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

हड़प्पा सभ्यता का कालक्रम

1. पूर्व-हड़प्पा काल (3300-2600 ईसा पूर्व):

  • इस अवधि में छोटे-छोटे गाँव और बस्तियाँ विकसित हुईं। कृषि और पशुपालन के शुरुआती संकेत मिलते हैं।

2. प्रमुख हड़प्पा काल (2600-1900 ईसा पूर्व):

  • यह सभ्यता का स्वर्णिम काल था। इस दौरान शहरों का विकास, सुव्यवस्थित नगर योजना, और उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली देखी गई।

3. उत्तर-हड़प्पा काल (1900-1300 ईसा पूर्व):

  • इस काल में सभ्यता का धीरे-धीरे पतन हुआ। कई शहर उजाड़ हो गए, और लोग छोटे गाँवों में बस गए। व्यापार में कमी और जलवायु परिवर्तन संभावित कारण माने जाते हैं।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल

स्थलखोजकर्त्ताअवस्थितिमहत्त्वपूर्ण खोज
मोहनजोदड़ोराखालदास बनर्जीसिंधु नदी के तट पर सक्खर जिले में बसा हुआ।यहाँ ‘Great Bath’ मौजूद है, जो एक विशाल स्नानागार है।मोहनजोदड़ो में ‘Great Stupa’ भी पाया गया था, जो एक बौद्ध स्तूप है।
हड़प्पा (पाकिस्तान)दयाराम साहनीरावी नदी के तट पर, साहिवाल शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर में स्थित।यहाँ विशाल ईंटों से बने भवन, उन्नत जल निकासी प्रणाली, और मुहरों के साथ-साथ मूर्तियों और अन्य कलाकृतियों के अवशेष मिले हैं।महत्वपूर्ण खोजों में ‘Great Granary’ शामिल है, जो एक विशाल भंडारण सुविधा थी।
धोलावीराधोलावीरा निवासी शंभूदान गढ़वी कच्छ के रण में मरुभूमि वन्य शरणस्थान के अंदर खादिरबेट द्वीप पर स्थित।यहाँ ‘Stadium’ मौजूद है, जो एक विशाल खेल का मैदान है।धोलावीरा में ‘Check Dams’ भी पाए जाते हैं, जो जल संरक्षण के लिए बनाए गए थे।
कालीबंगाबीके थापर व बीबी लालराजस्थान के हनुमानगढ़ जिले से 30 किलोमीटर दूर में स्थित।
यहाँ ‘Fire Altars’ मौजूद हैं, जो अग्नि पूजा के लिए बनाए गए थे।कालीबंगा में ‘Copper Hoard’ भी पाया जाता है, जो तांबे के औजारों का एक संग्रह है।
राखीगढ़ीअमरेन्द्र नाथहरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के सूखे क्षेत्र में बसा हुआ।यह हड़प्पा सभ्यता का एक विशाल शहर था।यहाँ ‘Largest Brick Structure’ मौजूद है, जो ईंटों से बनी सबसे बड़ी संरचना है।राखीगढ़ी में ‘Stadium’ भी पाया जाता है, जो एक विशाल खेल का मैदान है।
चन्हूदड़ोदलों अर्नेस्ट जॉन हेनरी मैकेपाकिस्तान के सिंध इलाके के मोहेंजोदड़ो से दक्षिण की ओर लगभग 130 किलोमीटर दूर में स्थित।बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजे के निशान वहां के ईट पर मिले।
लोथलआर एस राव अहमदाबाद और भावनगर रेल लाइन के स्टेशन लोथल भुरखी से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण पूर्व में स्थित।यह बहुत महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर था।

हड़प्पा

हड़प्पा शहर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है, 1921 में भारतीय पुरातात्विक विभाग के निर्देशक, जॉन मार्शल के निर्देश पर ‘दयाराम साहनी द्वारा सबसे पहले इस जगह की खुदाई का काम शुरू किया गया। इसी जगह जहां से सिंधु घाटी सभ्यता का नाम पड़ा। ये शहर करीब 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक फला-फूला था। हड़प्पा सभ्यता के बारे में जानने के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है।

मोहनजोदड़ो

मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख शहर था, जिसकी खोज 1922 में हुई। यह अपने बेहतरी नगर नियोजन, जल निकासी प्रणाली, और विशाल स्नानागार के लिए प्रसिद्ध है। शहर की संरचना में चौड़ी सड़कों, घरों के बीच जल निकासी, और सार्वजनिक इमारतों का समावेश था। यह सभ्यता की सामाजिक और आर्थिक प्रगति का प्रतीक है, जो आज भी आर्कियोलॉजिस्ट को आकर्षित करता है।

चन्हूदड़ो

चन्हूदड़ो हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर था, यह शहर अपनी कारीगरी, विशेष रूप से मनके निर्माण और बटन की फैक्ट्रियों के लिए प्रसिद्ध था। चन्हूदड़ो की नगर योजना अन्य हड़प्पा स्थलों के समान थी, जिसमें व्यवस्थित सड़कों और जल निकासी प्रणाली का विकास देखा गया। यहाँ के अवशेष बताते हैं कि यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।

लोथल

लोथल शहर, गुजरात में स्थित, हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। यह व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र था, जहाँ से समुद्री मार्गों द्वारा व्यापार होता था। यहाँ एक कुशल जलनिकासी प्रणाली, गोदाम, और अनाज भंडारण के अवशेष मिले हैं। लोथल का डॉकयार्ड इसकी उन्नत समुद्री गतिविधियों का प्रमाण है, जो उस समय की वास्तुकला और व्यापारिक क्षमता को दर्शाता है।

अन्य महत्वपूर्ण स्थल

  • कालीबंगन: राजस्थान में स्थित, यहाँ पर कृषि के प्रारंभिक साक्ष्य और जल निकासी प्रणाली मिली है।
  • धोलावीरा: गुजरात में स्थित, यह शहर अपनी अद्वितीय जल संरक्षण प्रणाली और वास्तुकला के लिए जाना जाता है।
  • राखीगढ़ी: हरियाणा में स्थित, यह सभ्यता के सबसे बड़े स्थलों में से एक है, जो नगर योजना का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।

हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं

नगरीय योजना और वास्तुकला

  • ग्रिड प्रणाली: शहरों को एक योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया था, जिसमें सड़कों का एक जाल बिछाया गया था।
  • विभागों में विभाजन: शहरों को विभिन्न विभागों में विभाजित किया गया था, जैसे आवासीय क्षेत्र, व्यावसायिक क्षेत्र, और सार्वजनिक क्षेत्र।
  • दुर्ग: कुछ शहरों में दुर्ग भी थे, जो सुरक्षा के लिए बनाए गए थे।
  • ईंट का उपयोग: हड़प्पा सभ्यता के लोग ईंटों का उपयोग करके भवन बनाते थे।
  • विभिन्न प्रकार के भवन: घरों, दुकानों, स्नानागारों, और सार्वजनिक भवनों सहित विभिन्न प्रकार के भवन बनाए गए थे।
  • Great Bath: मोहनजोदड़ो में ‘Great Bath’ मौजूद है, जो एक विशाल स्नानागार है।

हड़प्पा सभ्यता के भवन मजबूत और टिकाऊ थे। भवनों को उनकी कार्यक्षमता के अनुसार डिजाइन किया गया था, जो उस समय के आधुनिक इंजीनियरिंग को दिखाता है। भवनों में काफी खूबसूरत कलाकृति और सजावट का उपयोग किया जाता था।

जल निकासी प्रणाली

  • भूमिगत नाली: घरों और सड़कों से पानी निकालने के लिए पक्की ईंटों से बनी भूमिगत नालियां बनाई गई थीं।
  • ढलान: नालियों को थोड़े ढलान पर बनाया गया था ताकि पानी आसानी से बह सके।
  • मैनहोल: नालियों की सफाई और मरम्मत के लिए नियमित अंतराल पर मैनहोल बनाए गए थे।
  • पानी का भंडारण: वर्षा जल को इकट्ठा करने और भंडारण करने के लिए टैंक और कुंड बनाए गए थे।

हड़प्पा सभ्यता अपनी अद्भुत जल निकासी प्रणाली के लिए भी जानी जाती है। यह प्रणाली 4500 साल से भी पहले बनाई गई थी और आज भी इसकी पेचीदगी और प्रभाविता हमें हैरान करती है।

कृषि और पशुपालन

कृषि और पशुपालन को लेकर हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं उल्लेखनीय थीं। यहाँ के लोग मुख्यतः गेहूं, जौ, चना, और बाजरा उगाते थे। सिंचाई के लिए नदियों और वर्षा जल का उपयोग किया जाता था। पशुपालन में गाय, भैंस, बकरी, और भेड़ पाली जाती थीं। कृषि और पशुपालन के मिश्रण से स्थायी जीवन शैली विकसित हुई, जिससे सभ्यता का आर्थिक आधार मजबूत हुआ।

व्यापार और वाणिज्य

व्यापार और वाणिज्य को लेकर हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं अत्यंत विकसित थीं। यह सभ्यता स्थानीय और दूरस्थ व्यापार में माहिर थी, जिसमें मोती, धातु, कपड़ा, और मृद्भांड शामिल थे। व्यापारी समुद्री और स्थलीय मार्गों से मेसोपोटामिया और फारस तक व्यापार करते थे। साक्ष्य बताते हैं कि मुहरों का उपयोग व्यापारिक लेन-देन और माल की पहचान के लिए किया जाता था, जो उस समय की उन्नत व्यापार प्रणाली को दर्शाता है।

हड़प्पा सभ्यता के निवासी

हड़प्पा सभ्यता का समाज शायद वर्गों में विभाजित था, जिसमें शासक वर्ग, पुजारी वर्ग, व्यापारी वर्ग, कारीगर वर्ग और किसान वर्ग शामिल थे। प्रमाण बताते हैं कि लिंग भेदभाव भी मौजूद था, महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं थे।

धर्म और धार्मिक अनुष्ठान

हड़प्पा सभ्यता के धर्म के बारे में हमारी जानकारी सीमित है। प्रमुख देवताओं में मातृ देवी, पशु देवता, और शिव जैसा एक पुरुष देवता शामिल थे। प्रमाण बताते हैं कि हड़प्पा सभ्यता के निवासी यज्ञ, नृत्य, और संगीत जैसे धार्मिक अनुष्ठान किया करते थे। उनका ये भी मानना है की ‘Great Bath’ जैसे स्नानागारों का उपयोग शायद धार्मिक शुद्धिकरण के लिए किया जाता था।

जीवनशैली और संस्कृति

हड़प्पा सभ्यता के निवासी कृषि, पशुपालन, और व्यापार पर निर्भर थे। वे कपास और ऊन से कपड़े बुने, मिट्टी के बर्तन बनाए, और धातुओं (तांबा, कांस्य, चांदी, सोना) का काम किया। वे मनोरंजन के लिए नृत्य, संगीत, और खेलों का आनंद लेते थे। मुद्रा, लेखन प्रणाली, और मापन प्रणाली का उपयोग भी किया जाता था।

निष्कर्ष 

हड़प्पा सभ्यता यानी सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) के बारे में हमें अभी काफी कम जानकारियां ही मिल पाई है। वर्तमान खोजों के आधार पर भी देखा जाए, तो उस सदी के लोग हमारी उम्मीद से भी ज्यादा विकसित थें। अभी भी हड़प्पा सभ्यता की काफी जानकारियां बाहर आना बांकी है, जिसमे उस समय की लिपि भी सामिल है। भविष्य में होने वाले सर्वेक्षण से हमें हड़प्पा सभ्यता की नई खोज और अवसेशो के बारे में जानने को मिल सकता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति में धार्मिक या पूजा से संबंधित क्या संकेत मिले हैं?

हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति में धार्मिक प्रतीकों और मूर्तियों के कुछ संकेत मिले हैं, जैसे ‘प्रभु शिव की मूर्ति’ और ‘वृषभ की मूर्तियाँ’, जो धार्मिक विश्वासों और पूजा की आदतों को दर्शाते हैं।

हड़प्पा सभ्यता के लोग किस प्रकार के खाद्य पदार्थ खाते थे?

हड़प्पा सभ्यता के लोग मुख्यतः अनाज जैसे गेहूं, जौ, और दलहन का सेवन करते थे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने फल, सब्जियाँ, और दूध से बने उत्पादों का भी उपयोग किया।

हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रसिद्ध मूर्तियों में से कौन सी है?

हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रसिद्ध मूर्तियों में से एक ‘नृत्य करती हुई महिला की मूर्ति’ है, जो एक छोटी कांस्य मूर्ति है और संभवतः पूजा या सांस्कृतिक अनुष्ठानों से संबंधित थी।

हड़प्पा सभ्यता के नागरिकों ने अपने घरों को किस प्रकार सजाया था?

हड़प्पा सभ्यता के नागरिकों ने अपने घरों को सुंदर और व्यवस्थित सजाया था, जिसमें मिट्टी के बर्तन, सजावटी मूर्तियाँ, और रंगीन वस्त्र शामिल थे। दीवारों पर ज्यामितीय डिजाइन और चित्र भी बनाए गए थे।

हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी खोज कौन सी थी?

हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी खोजों में से एक मोहनजो-दारो के ‘ग्रेट बाथ’ का खुलासा है, जो एक विशाल सार्वजनिक स्नानघर है और नगर नियोजन की उन्नति को दर्शाता है।

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