हरित क्रांति क्या है?: एक प्रभावशाली बदलाव

November 28, 2024
हरित क्रांति क्या है
Quick Summary

Quick Summary

  • हरित क्रांति (Green Revolution) भारत में 1960s के अंत में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए शुरू की गई एक पहल थी।
  • इसका मुख्य उद्देश्य खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना और उत्पादन में सुधार करना था।
  • नई कृषि तकनीकों, उन्नत किस्मों, उर्वरकों और सिंचाई का उपयोग किया गया।
  • इसके परिणामस्वरूप गेहूं और चावल की पैदावार में भारी वृद्धि हुई, लेकिन यह पर्यावरणीय समस्याएं भी लेकर आई।

Table of Contents

हरित क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा की गई थी, जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण उन्हें “हरित क्रांति के जनक” के रूप में जाना जाता है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, क्योंकि उन्होंने गेहूं की उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) को विकसित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया था। भारतीय हरित क्रांति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन हैं। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप, विशेष रूप से गेहूं और चावल की फसलों में, खाद्यान्न उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है।

हरित क्रांति एक खेती-बाड़ी का नया तरीका था। इसमें नए किस्म के बीज, रासायनिक खाद और नए तरह की सिंचाई की गई। इससे फसलों की पैदावार बहुत बढ़ गई और भारत जैसे देशों में भुखमरी कम हुई। नए बीजों से फसल ज्यादा होने लगी, खाद से मिट्टी की ताकत बढ़ी और नहरों-नलकुओं से ज्यादा जमीन पानी पाने लगी। ट्रैक्टर-कटाई की मशीनों ने भी काम आसान किया। इस तरह हमने समझा कि हरित क्रांति क्या है।

हरित क्रांति किसे कहते हैं? (Harit kranti kya hai?)

हरित क्रांति क्या है? हरित क्रांति एक ऐसा शब्द है जिसने खेती-बाड़ी के पुराने तरीकों को बदल दिया। इससे पहले लोगों को काफी कम खाना मिलता था और भुखमरी की समस्या थी। लेकिन हरित क्रांति के दौरान नए किस्म के बीज लाए गए जिनसे फसलों की पैदावार बहुत बढ़ गई। इन्हें द्विसंकर बीज भी कहा जाता था क्योंकि ये उपज को दोगुना कर देते थे। साथ ही रासायनिक खादों से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ी। नहरें और नलकूप बनाकर ज्यादा खेतों को पानी पहुंचाया गया। ट्रैक्टर और हार्वेस्टर जैसी मशीनों ने भी काम को आसान बना दिया।

हरित क्रांति कब हुई थी?

हरित क्रांति का आरंभ लगभग 1960 के दशक में हुआ था।

  • जब आजादी के कुछ साल बाद भी लोगों को खाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा था, तब कुछ बदलाव करने की जरूरत महसूस की गई।
  • इसी दौरान 1960 के दशक में कृषि क्षेत्र में कुछ नए तरीके अपनाए गए, जिन्हें हरित क्रांति का नाम दिया गया। 
  • इसमें सबसे पहला बदलाव नए किस्म के बीजों का इस्तेमाल करना था। ये बीज इतने खास थे कि इनसे फसलों की पैदावार दोगुना या उससे भी ज्यादा हो जाती थी।
  • साथ ही खेती के लिए रासायनिक खादों और नए तरीके से सिंचाई करने की शुरुआत हुई। नहरें और नलकूप बनाकर ज्यादा जमीन पर पानी पहुंचाया गया।
  • इसके अलावा ट्रैक्टर और हार्वेस्टर जैसी मशीनों का भी इस्तेमाल बढ़ा, जिससे खेती का काम आसान हुआ।  
  • इन तमाम बदलावों से अनाज की पैदावार बहुत बढ़ गई और भारत जैसे देशों में भुखमरी की समस्या काफी हद तक दूर हो गई।

इस प्रकार हरित क्रांति हुई थी, इसकी शुरुआत 1960 के दशक में हुई और इसके प्रभाव 1970 के दशक में भी देखा गया।

1960-70 के दशक में हरित क्रांति का प्रभाव

प्रभाव1960 का दशक1970 का दशक
नए बीजनए बीज आएऔर अधिक इस्तेमाल
खादखादों का उपयोग शुरूऔर ज्यादा खादें
पानीनहरें-नलकूप बनेऔर ज्यादा जमीन पर पानी
मशीनेंट्रैक्टर-हार्वेस्टर आएऔर भी मशीनें आईं
अनाजअनाज की पैदावार बढ़ीऔर भी ज्यादा अनाज हुआ
भुखमरीभुखमरी कम होनी शुरूभुखमरी और कम हुई
हरित क्रांति का प्रभाव

हरित क्रांति क्या है?: हरित क्रांति के जनक

हरित क्रांति, जिसका नाम 1968 में विलियम गॉडन ने दिया था, 1960 के दशक में भारत में शुरू हुई एक महत्वपूर्ण कृषि क्रांति थी। इसकी आवश्यकता स्वतंत्रता के बाद की गंभीर परिस्थितियों से उपजी थी – बढ़ती जनसंख्या, बार-बार पड़ने वाले अकाल, और खाद्य आयात पर बढ़ती निर्भरता। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए, अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग ने मैक्सिको में उच्च उपज वाली गेहूं की किस्में विकसित कीं। भारतीय कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने इन किस्मों को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाया। 

सरकार के समर्थन से, इन बीजों का व्यापक प्रयोग किया गया, साथ ही रासायनिक उर्वरकों का उपयोग, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा दिया गया। परिणामस्वरूप, भारत का खाद्यान्न उत्पादन कई गुना बढ़ गया – उदाहरण के लिए, गेहूं का उत्पादन 1967-68 में 1.2 करोड़ टन से बढ़कर 1971-72 में 2.4 करोड़ टन हो गया। इस क्रांति ने भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता प्रदान की और कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण किया। हरित क्रांति ने भारत के कृषि इतिहास में एक नया अध्याय लिखा और देश को खाद्य सुरक्षा प्रदान की।

हरित क्रांति क्या है?: विश्व में हरित क्रांति के जनक 

विश्व में हरित क्रांति के जनक के रूप में अमेरिकी विशेषज्ञ नॉर्मन बोरलॉग को जाना जाता है।

  • नॉर्मन बोरलॉग एक अमेरिकी वैज्ञानिक थे। उन्होंने ही पहले ऐसे खास बीजों को विकसित किया जिनसे फसलों की पैदावार बहुत बढ़ गई। इन बीजों को उच्च उपज वाले बीज कहा गया। 
  • बोरलॉग साहब ने गेहूं और धान की कई नई किस्में बनाईं। ये किस्में छोटी-छोटी लेकिन बहुत ज्यादा अनाज देने वाली थीं। साथ ही ये बीमारियों से भी बची रहती थीं।
  • इन नए बीजों के इस्तेमाल से मैक्सिको और पाकिस्तान जैसे देशों में खाद्यान्न की भारी कमी दूर हुई। बाद में ये बीज भारत समेत दुनिया के कई देशों में आए।
  • इस तरह बोरलॉग ने अपने बीजों से दुनिया भर में भुखमरी मिटाने में अहम योगदान दिया। इसलिए उन्हें हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। इन्होंने कि हमें हरित क्रांति क्या है? ये समझाया।

भारत में हरित क्रांति के जनक 

हरित क्रांति के जनक के रूप में भारत के वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामिनाथन को जाना जाता है।

हरित क्रांति के जनक, डॉ॰ एमएस स्वामीनाथन
हरित क्रांति के जनक, डॉ॰ एमएस स्वामीनाथन
  • डॉ. स्वामिनाथन वो शख्स थे जिन्होंने हरित क्रांति की नींव रखी। उन्होंने ही नए किस्म के बीज बनाए जिनसे फसल की पैदावार बहुत बढ़ गई। इन बीजों को द्विसंकर बीज कहा गया क्योंकि इनसे फसल दोगुनी होने लगी।  
  • डॉक्टर साहब ने गेहूं और धान की ऐसी नई किस्में विकसित कीं जिनमें बहुत गुण थे – ये छोटे थे लेकिन बहुत ज्यादा उपज देते थे। साथ ही ये कीड़े-बीमारियों से भी बचे रहते थे। 
  • इन नए बीजों और बाकी तरीकों से भारत जैसे देशों में खाद्यान्न की कमी दूर हुई। इसलिए डॉ. स्वामिनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। 

अगर हम आज की बात करें तो कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हरित क्रांति की अच्छे से जानकारी नहीं है, आइए जानते हैं आखिर हरित क्रांति किसे कहते हैं? आसान भाषा में समझें तो हरित क्रांति एक ऐसे तरीके को कहा जाता है जिससे खेती में पैदावार बहुत बढ़ गई।

हरित क्रांति क्या है?: हरित क्रांति की विशेषताएं

हरित क्रांति एक ऐसा नया तरीका था जिससे खेती की पुरानी परंपराओं में बदलाव आया और फसलों की उपज बहुत बढ़ गई। अगर हम हरित क्रांति की विशेषताएं की बात करे तो इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं थीं।

उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग

हरित क्रांति में एक बहुत बड़ा बदलाव नए किस्म के बीज लाए जाना था। 

  • इन नए बीजों को द्विसंकर या उच्च उपज वाले बीज कहा गया। इनका मतलब है कि इन बीजों से अनाज दोगुना या उससे भी ज्यादा पैदा होता था। जैसे अगर पहले एक खेत से 10 बोरी गेहूं निकलता था, तो अब उसी खेत से इन बीजों की वजह से 20 या इससे ज्यादा बोरियां निकलने लगीं।  
  • इन बीजों की एक और खासियत थी कि ये छोटे-छोटे आकार के थे। लेकिन छोटे होने के बावजूद इनसे बहुत अधिक फसल होती थी। इनमें विटामिन और प्रोटीन की मात्रा भी ज्यादा होती थी। हरित क्रांति की विशेषताएं में से यह सबसे खास विशेषता है।
  • साथ ही ये बीज बीमारियों से भी बचे रहते थे। इससे किसानों को इनकी देखभाल करने में आसानी होती थी। आखिरी बात, ये बीज जल्दी पक जाते थे। इसलिए फसल भी जल्दी तैयार हो जाती थी।
  • इस तरह नए बीजों की खासियतों की वजह से उनका इस्तेमाल करके अनाज की पैदावार बढ़ाई जा सकी। ये हरित क्रांति की विशेषताएं में से एक है और इन नए बीजों का हरित क्रांति में बहुत महत्व था।

हरित क्रांति क्या है?: हरित क्रांति के उद्देश्य

हरित क्रांति के उद्देश्य
हरित क्रांति के उद्देश्य

अगर हम हरित क्रांति के उद्देश्य की बात करे तो, हरित क्रांति का उद्देश्य था लोगों को भरपेट खाना मुहैया कराना। उस समय देश में भुखमरी की समस्या बहुत गंभीर थी। लोगों को पर्याप्त अनाज नहीं मिल पा रहा था। इसलिए हरित क्रांति के जरिए खेती में नए तरीके अपनाए गए ताकि अनाज की पैदावार बढ़े। नए बीज लाए गए जिनसे फसल अधिक होती थी। खादों का इस्तेमाल किया गया ताकि मिट्टी अच्छी बने और फसल अच्छी हो। सिंचाई के नए तरीके अपनाए गए ताकि ज्यादा जमीन पर पानी पहुंच सके। मशीनें भी आईं जिनसे खेती का काम आसान हो गया। साथी हरित क्रांति का उद्देश्य पूरा हुआ

कृषि के उत्पादन में वृद्धि करना

हरित क्रांति में खेती से होने वाले उत्पादन में वृद्धि करना हरित क्रांति के उद्देश्य का एक प्रमुख कारण था।

  • उस समय देश में भुखमरी की समस्या बहुत बड़ी थी। लोगों को खाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था। अनाज की कमी होने की वजह से लोग भूखे रहते थे। 
  • ऐसे में ये जरूरी हो गया कि खेती से ज्यादा अनाज पैदा किया जाए। क्योंकि अगर अनाज की पैदावार नहीं बढ़ी तो लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पाएगा।
  • इसलिए हरित क्रांति के दौरान खेती को ज्यादा उपजाऊ बनाने पर जोर दिया गया। नए तरीके अपनाए गए ताकि खेतों से कहीं ज्यादा अनाज निकले। 
  • ज्यादा पैदावार से ही लोगों को भूख से राहत मिल सकती थी। भरपेट खाना तो बहुत जरूरी है। इसलिए हरित क्रांति का एक बड़ा मकसद अनाज की पैदावार बढ़ाना बन गया।
  • अगर खेती से ज्यादा उत्पादन नहीं होगा तो भुखमरी कैसे दूर होगी? इसीलिए हरित क्रांति में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया।

कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना

हरित क्रांति के उद्देश्य में से एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना भी था। 

  • उस समय भारत को बाहर से बहुत सारा अनाज मंगवाना पड़ता था। क्योंकि अपने यहां पर्याप्त अनाज पैदा नहीं हो पाता था। हर साल बहुत सारा अनाज विदेशों से लाना पड़ता था।
  • इस तरह बाहर पर निर्भर रहना देश के लिए ठीक नहीं था। अगर किसी वजह से बाहर से अनाज न आया तो देश में भारी भुखमरी फैल सकती थी।
  • इसलिए हरित क्रांति के दौरान यह लक्ष्य रखा गया कि भारत को अपने यहां पैदा होने वाले अनाज पर ही निर्भर रहना चाहिए। बाहर से मंगाने की जरूरत ही न पड़े।  
  • अगर देश खुद ही पर्याप्त अनाज पैदा कर लेगा तो बाहर पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इसलिए हरित क्रांति में खेती को इतना उपजाऊ बनाने पर जोर दिया गया कि देश की जरूरत का अनाज यहीं से पैदा हो जाए।
  • इस तरह आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए हरित क्रांति में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया।

हरित क्रांति क्या है?: हरित क्रांति के लाभ और हानि 

लाभहानि
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धिपर्यावरण प्रदूषण
किसानों की आय में वृद्धिमिट्टी की उर्वरता में कमी
रोजगार के अवसर बढ़ेजल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
कृषि में तकनीकी विकासछोटे किसानों को नुकसान
भुखमरी में कमीजैव विविधता में कमी

निष्कर्ष 

हरित क्रांति ने भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया, जिससे खाद्यान्न उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई। हालांकि, इसके साथ ही पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियाँ भी सामने आईं, जैसे मिट्टी की उर्वरता में कमी और छोटे किसानों को नुकसान। इसलिए, हरित क्रांति के लाभों को बनाए रखते हुए, इन चुनौतियों का समाधान ढूंढना आवश्यक है ताकि कृषि क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि बनी रहे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

हरित क्रांति क्या है परिभाषित?

हरित क्रांति 1960 के दशक में कृषि उत्पादकता बढ़ाने की प्रक्रिया थी, जिसमें उच्च उपज वाली फसलें, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, और बेहतर सिंचाई तकनीकें शामिल थीं। इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और भारत को खाद्य आत्मनिर्भर बनाना था।

भारत में प्रथम हरित क्रांति कब हुई थी?

भारत में प्रथम हरित क्रांति 1960 के दशक में शुरू हुई थी, जब सरकारी पहल पर उन्नत कृषि तकनीकों, उच्च उपज वाली फसलों, रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई प्रणाली के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश की गई।

भारत में हरित क्रांति के जनक कौन थे?

भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामिनाथन को माना जाता है। उन्होंने उन्नत कृषि तकनीकों और उच्च उपज वाली फसलों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत में खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

हरित क्रांति के कितने चरण हैं?

हरित क्रांति के दो प्रमुख चरण हैं: पहला चरण (1960-1980) में उच्च उपज वाली फसलों और उर्वरकों का उपयोग बढ़ा, जबकि दूसरा चरण (1980 के बाद) में अन्य फसलों पर ध्यान दिया गया और जलवायु अनुकूल कृषि विधियों को अपनाया गया।

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