Quick Summary
कबीर दास जी भक्तिकाल के अकेले ऐसे संत थे जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर समाज को सुधारने की कोशिश की। वो जब तक जिन्दा रहे ज़िंदा उन्होंने समाज के द्वारा बनाई गई कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। Kabir Das ka Jivan Parichay / कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ पढ़कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे अपने समय से कितने आगे का सोचते होंगे।
लोगों को जागरूक करने के लिए कितने बहुमूल्य कदम उठाए इसका अंदाजा यही से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी इस कवि को नहीं भूले हैं। इस कवि ने Kabir Das Ke Dohe आम जनमानस के सामने उनकी समस्याओं को उजागर कर उनका भला करने की कोशिश की। इस कवि ने एक समाज सुधारक के तौर पर आम जनमानस के सामने उनकी समस्याओं को उजागर कर उनका भला करने की कोशिश की। और यही चीज उनकी कविताओं में भी देखने को मिलती है।
कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ | Kabir Das ka Jivan Parichay | |
नाम | संत कबीर दास |
जन्म | 1455 (1398 AD) वाराणसी, (अब उत्तर प्रदेश, भारत) |
पिता का नाम | नीरू |
माता का नाम | नीमा |
पत्नी का नाम | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
मुख्य रचनाएं | साखी, सबद, रमैनी |
काल | भक्तिकाल |
भाषा | अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा |
मौत | 1551 (1494 AD) मगहर, (अब उत्तर प्रदेश, भारत) |
ऐसा माना जाता है कि महान कवि और समाज सुधारक कबीर दास जी का जन्म 1398 ई० के करीब ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा सोमवार के दिन हुआ था। ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि कबीर दास जी का जन्म काशी में हुआ था। ग्रगॉरीअन कैलेंडर के अनुसार, कबीर दास जयंती मई या जून के महीने में मनाया जाता है।
कबीर दास जी की कम उम्र में शादी करा दी गई थी। उनकी पत्नी का नाम लोई था, जो कि कबीर दास की तरह एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। शादी होने के कुछ सालों के अन्दर ही इस जाने माने कवि को दो संतानों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
कबीर दास का जीवन परिचय में उनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा एक हिन्दू गुरु से प्राप्त किया था। फिर भी, उन्होंने खुद को इन दोनों धर्मों के बीच के भेदभाव से बचाए रखा। वो खुद को दोनों, “अल्लाह का बेटा” और “राम का बेटा” कहते थे। कबीर दास की मृत्यु होने पर दोनों ही, हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लोगों ने उनके अंतिम संस्कार के लिए उनके पार्थिव शरीर को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
कबीर जी के पिता पेशे से जुलाहा थे। उनकी आमदनी भी कुछ खास नहीं थी। कहा जाता है कि कबीर दास जी के पिता इतने गरीब थे कि परिवार के लिए दो वक्त रोटी जुटाने के लिए भी उनको सोचना पड़ता था। इस गरीबी के चलते कबीर दास जी अपने बचपन में कभी भी किसी स्कूल या मदरसे में जाकर शिक्षा नहीं पा सके। कबीर दास बचपन से लेकर किशोरावस्था में पहुंचने तक अनपढ़ रहे और उन्होंने कभी भी स्कूली शिक्षा नहीं हासिल की। कबीर दास जी अपने पूरे जीवन काल में अनपढ़ ही रहे।
कबीर दास के दोहे में इतनी गहराई है कि दुनिया भर के साहित्यकार आज भी कबीर जी की रचनाओं के बारे में और ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं। कबीर दास के द्वारा लिखी गई कबीर दास के मशहूर दोहे पर आज भी रिसर्च चल रही है।
सूत्रों की माने तो कबीर दास जी ने अपना एक भी ग्रंथ अपने हाथों से नहीं लिया। उन्होंने जितने भी ग्रंथों को रचा उन सारे ग्रंथों को कबीर दास जी ने अपने शिष्यों को मुंह जबानी बोला और सारे ग्रंथ उनके शिष्यों ने लिखे।
अपने पूरे जीवनकाल में कबीर दास जी ने 72 से भी ज्यादा रचनाएँ की, जो आज भी दुनिया के अलग-अलग कोनों में पढ़ी जाती हैं। कबीर दास के 10 दोहे जिन्हें आज भी दोहराए जाते हैं-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए।
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए॥
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय॥
साईं इतना दीजिए, जो मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए॥
जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय।
मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय॥
मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत।
मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत॥
शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल।
काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल॥
कबीर दास का जीवन परिचय से पता चलता है कि एक संत और कवि होने के साथ साथ समाज सुधारक भी थे। Kabir Das Ke Mashhur Dohe की हर एक पंक्ति में अंधविश्वास और जात पात जैसे मुद्दों को चोट करने की कोशिश की।
भक्ति काल के कवि कबीर दास जी के दोहे आज भी बच्चों को पढ़ाई जाते हैं ‘गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय…’। 4 जून 2023 को संत कबीर दास की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं।
कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं-
रचना | अर्थ | प्रयुक्त छंद | भाषा |
रमैनी | रामायण | चौपाई और दोहा | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
सबद | शब्द | गेय पद | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
साखी | साक्षी | दोहा | राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली |
कबीरदास के जन्म के समय भारत की हालत बहुत खराब थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की कट्टरता से लोग परेशान थे, और दूसरी तरफ हिंदू धर्म के पाखंड और कर्मकांड से धर्म कमजोर हो रहा था। लोगों में भक्ति की भावना नहीं थी और पंडितों के पाखंडपूर्ण बातें समाज में फैल रहे थे। ऐसे कठिन समय में कबीरदास का जन्म हुआ।
कबीर जिस समय आए, उससे कुछ पहले भारत में एक बड़ी घटना हुई थी—इस्लाम धर्म का आगमन। इसने भारतीय समाज और धर्म को हिला कर रख दिया था। जाति व्यवस्था को पहली बार कड़ी चुनौती मिली थी। पूरे देश में हलचल और अशांति थी। कबीर दास जी की इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर उनके बारे में कहा जाता है कि वह जितने अच्छे कवि थे उससे कहीं अच्छे समाज सुधारक थे।
आम जीवन के साथ-साथ कबीर दास जी के दोहे ने भी जातिवाद का डटकर विरोध किया है। इतना ही नहीं उन्होंने हिंसा के साथ-साथ क्रूरता और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई है। उन्होंने सच्चाई की लाठी का सहारा लेकर समाज का कल्याण करने की कोशिश की है, जिससे लोगों के मन से छल कपट और अहंकार जैसी भावना हमेशा हमेशा के लिए गायब हो जाए। इसी वजह से कबीर दास जी के बारे में कहा जाता है कि वो अपने समय से आगे के लेखक थे।
कबीर दास का जीवन परिचय – कबीर दास हमेशा से चाहते थे कि देश और समाज का हर नागरिक अपने आप को किसी धर्म या जात-पात के झूठे खांचे में ढालने से बचे।
ऐसा करके लोगों के मन में अपने आप एकता की भावना पनपने लगेगी। कुछ ऐसा ही छुआछूत के मामले में भी है जिसके चलते किसी एक जाति या धर्म का इंसान खुद को दूसरी जाति या धर्म के इंसान से ऊंचा मानकर उसे छूने तक से कतराता है।
कबीर दास जी का कहना था कि इस तरह की चीज समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती हैं। और हमें इस तरह की चीजों से बचना चाहिए।
कबीर दास की लेखनी का भक्ति आंदोलन पर एक खास असर देखने को मिला, जिसके चलते बीजक के साथ-साथ कबीर ग्रंथावली और सखी ग्रंथ को धरोहर के रूप में शामिल किया गया है।
कबीर दास जी की लेखनी का इस्तेमाल गुरु ग्रंथ में भी किया गया है। कबीर के द्वारा लिखे गए कुछ छंद को गुरु ग्रंथ साहिब में एक खास जगह दी गई है।
आपको बता दे कि कबीर दास के प्रमुख कार्यों का संकलन पांचवें सिख गुरु, अर्जुन देव जी द्वारा किया गया था। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कबीर का विरासत पर कितना गहरा असर है।
कबीर दास जी ने अपनी वाणी के बल पर, अपनी लेखनी और अपने विचारों के बल पर समाज में फैल रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने में एक अहम किरदार अदा किया है। कबीर दास जी ने धार्मिक पाखंड और कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की कोशिश की है। उनका कहना है कि भगवान को पाने के लिए आपको कहीं बाहर जाने या उसे बाहरी दुनिया में ढूंढने की जरूरत नहीं। भगवान आपके अंदर ही है।
कबीर दास जी सामाजिक समूह के साथ-साथ जाति और धर्म से जुड़े गंभीर मुद्दों पर अपनी रचनाओं की मदद से चोट करते हुए नजर आते हैं। इसके अलावा उनकी रचनाओं का आज के व्यवसाय और शिक्षा प्रणाली पर भी गहरा असर देखने को मिलता है। इन्हीं वजहों के चलते कबीर दास जी को संसार सुधारक के तौर पर जाना जाता है। कबीर दास जी के विचार इतने ज्यादा प्रखर थे कि उनको पढ़कर आज भी लोगों की जिंदगियां सुधर रही हैं।
कबीर दास जी की लेखन शैली जितनी ज्यादा सरल और सादगी से भरपूर थी। उन्होंने आम जनमानस की जिंदगी को भी ऐसे ही सरल और सादगी भरपूर बनाने की कोशिश की है। कबीर दास की मृत्यु 15 जनवरी 1518 में हुई।
इस लेख के माध्यम से हमने कबीर दास का जीवन परिचय / Kabir Das ka Jivan Parichay और उनके काव्य की अनूठी रचनाओं को देखा। कबीर दास जी के अमर काव्यों में उनकी भक्ति, समाज सुधारक दृष्टि और सहिष्णुता के संदेश हमें आज भी प्रेरित कर रहे हैं। यही वजह है कि कबीर दास जी को आज भी न केवल देश बल्कि दुनिया भर के सबसे महान कवियों की श्रेणी में रखा जाता है।
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कबीर दास के जीवन में उनके अनुयायी प्रमुख रूप से कबीर पंथी थे, जिन्होंने उनकी शिक्षाओं को फैलाने और उनके भजनों का प्रचार करने का कार्य किया।
कबीर दास के जीवन के प्रमुख स्थल में काशी (वाराणसी), जहां उनका जन्म हुआ, और मगहर, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली, शामिल हैं।
कबीर दास के जीवन में प्रमुख संघर्ष धार्मिक आडंबर, जातिवाद, और समाज के पिछड़े वर्गों के प्रति भेदभाव के खिलाफ थे।
कबीर दास के विचारों को प्रमुख रूप से संत शंकराचार्य, रामानंद, और अन्य भक्ति संतों द्वारा प्रभावित किया गया था।
कबीर दास की शिक्षाओं में प्रमुख विषय ईश्वर की निराकारता, धार्मिक एकता, और सामाजिक समानता शामिल थे।
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