कबीर दास का जीवन परिचय: संत और समाज सुधारक

September 11, 2024
कबीर दास
Quick Summary

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  • कबीर दास 15वीं सदी के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। कबीर अंधविश्वास, व्यक्ति पूजा , पाखंड और ढोंग के विरोधी थे। उन्होने भारतीय समाज में जाति और धर्मों के बंधनों को गिराने का काम किया।
  • कबीर दास ने जाति-पाति, धर्म और ऊंच-नीच के भेदभाव का खंडन किया। उनके अनुसार, सभी मनुष्य एक हैं और ईश्वर सबमें समान रूप से विद्यमान है।
  • कबीर दास ने अपनी रचनाओं में सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया। उनकी दोहे और पद बहुत ही लोकप्रिय हुए और आम लोगों ने उन्हें आसानी से समझा।

Table of Contents

कबीर दास जी भक्तिकाल के अकेले ऐसे संत थे जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर समाज को सुधारने की कोशिश की। वो जब तक जिन्दा रहे ज़िंदा उन्होंने समाज के द्वारा बनाई गई कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ  पढ़कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे अपने समय से कितने आगे का सोचते होंगे।  

लोगों को जागरूक करने के लिए कितने बहुमूल्य कदम उठाए इसका अंदाजा यही से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी इस कवि को नहीं भूले हैं। इस कवि ने Kabir Das Ke Dohe आम जनमानस के सामने उनकी समस्याओं को उजागर कर उनका भला करने की कोशिश की। इस कवि ने एक समाज सुधारक के तौर पर आम जनमानस के सामने उनकी समस्याओं को उजागर कर उनका भला करने की कोशिश की। और यही चीज उनकी कविताओं में भी देखने को मिलती है। 

कबीर दास का जीवन परिचय और प्रारंभिक जीवन

जन्म और परिवार

ऐसा माना जाता है कि महान कवि और समाज सुधारक कबीर दास जी का जन्म 1398 ई० के करीब ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा सोमवार के दिन हुआ था। ऐसा अंदाजा लगाया जाता है कि कबीर दास जी का जन्म काशी में हुआ था। ग्रगॉरीअन कैलेंडर के अनुसार, कबीर दास जयंती मई या जून के महीने में मनाया जाता है। 

कबीर दास जी की कम उम्र में शादी करा दी गई थी। उनकी पत्नी का नाम लोई था, जो कि कबीर दास की तरह एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। शादी होने के कुछ सालों के अन्दर ही इस जाने माने कवि को दो संतानों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

कबीर दास का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा एक हिन्दू गुरु से  प्राप्त किया  था। फिर भी, उन्होंने खुद को इन दोनों धर्मों के बीच के भेदभाव से बचाए रखा। वो खुद को दोनों, “अल्लाह का बेटा” और “राम का बेटा” कहते थे। कबीर दास की मृत्यु होने पर दोनों ही, हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लोगों ने उनके अंतिम संस्कार के लिए उनके पार्थिव शरीर को लेकर विवाद खड़ा हो गया।

शिक्षा और प्रारंभिक अध्ययन

कबीर जी के पिता पेशे से जुलाहा थे। उनकी आमदनी भी कुछ खास नहीं थी। कहा जाता है कि कबीर दास जी के पिता इतने गरीब थे कि परिवार के लिए दो वक्त रोटी जुटाने के लिए भी उनको सोचना पड़ता था। इस गरीबी के चलते कबीर दास जी अपने बचपन में कभी भी किसी स्कूल या मदरसे में जाकर शिक्षा नहीं पा सके। कबीर दास बचपन से लेकर किशोरावस्था में पहुंचने तक अनपढ़ रहे और उन्होंने कभी भी स्कूली शिक्षा नहीं हासिल की। कबीर दास जी अपने पूरे जीवन काल में अनपढ़ ही रहे।

कबीर दास के दोहे में इतनी गहराई है कि दुनिया भर के साहित्यकार आज भी कबीर जी की रचनाओं के बारे में और ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं। कबीर दास के द्वारा लिखी गई कबीर दास के मशहूर दोहे पर आज भी रिसर्च चल रही है।

सूत्रों की माने तो कबीर दास जी ने अपना एक भी ग्रंथ अपने हाथों से नहीं लिया। उन्होंने जितने भी ग्रंथों को रचा उन सारे ग्रंथों को कबीर दास जी ने अपने शिष्यों को मुंह जबानी बोला और सारे ग्रंथ उनके शिष्यों ने लिखे।

कबीर दास का जीवन परिचय: कबीर दास जी के दोहे

अपने पूरे जीवनकाल में कबीर दास जी ने 72 से भी ज्यादा रचनाएँ की, जो आज भी दुनिया के अलग-अलग कोनों में पढ़ी जाती हैं। कबीर दास के 10 दोहे जिन्हें आज भी दोहराए जाते हैं  –

कबीर के दोहे अर्थ सहित 

  • बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

अर्थ- कबीर कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने गया, तो मुझे कुछ भी बुरा नहीं मिला और जब मैंने खुद के अंदर झांका तो मुझसे खुद से ज्यादा बुरा कोई इंसान नहीं मिला।

  •  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥ 

अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि धैर्य रखें धीरे-धीरे सब काम पूरे हो जाते हैं, क्योंकि अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।

  • चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए। वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।

अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि चिंता एक ऐसी डायन है जो आदमी  के  कलेजे को काट कर खा जाती है। इसका इलाज वैद्य नहीं कर सकता। वो कितनी दवा लगाएगा। यानी चिंता जैसी खतरनाक बीमारी का कोई इलाज नहीं है।

  • गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय।।

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि गुरु  और भगवान अगर साथ में खड़े हैं तो सबसे पहले गुरु के चरण छूने चाहिए, क्योंकि प्रभु  तक पहुंचने का रास्ता भी गुरु ही दिखाते हैं।

  • साईं इतना दीजिए, जो मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।।

अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि प्रभु तुम मुझे इतना दो कि जिसमें मेरा गुजरा चल जाए, मैं खुद अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं।

  • बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

अर्थ-  जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद आते-जाते राही को छाया नहीं दे सकता है और उसके फल तो इतने ऊपर लगते हैं कि आसानी से तोड़े भी नहीं जा सकते हैं। उसी तरह आप कितने भी बड़े आदमी क्यों न बन जाए लेकिन आपके अंदर विनम्रता नहीं है और किसी की मदद नहीं करते हैं तो आपका बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं है।

  • ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए

अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं आदमी को बोली हमेशा ऐसी होनी चाहिए जो कि सामने वाले को अच्छा लगे और खुद को भी आनंद की अहसास हो।

  • जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय |मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय ||

अर्थ : जीते जी ही जो कोई मृत्यु को जान लेता है । मरने से पहले ही वो अमर हो जाता है। शरीर रहते-रहते जिसके सारे घमंड खत्म  हो गए, वे वासना – विजयी ही जीवन मुक्त होते हैं।

  • मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत | मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत ||

अर्थ : भूलवश मैंने जाना था कि मेरा मन भर गया, परन्तु वह तो मरकर प्रेत हुआ। मरने के बाद भी उठकर मेरे पीछे लग पड़ा, ऐसा यह मेरा मन बालक की तरह है। 

  • शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल ||

अर्थ : गुरु शब्दों को मान कर जो चलता है, उसे मुक्ति मिल जाती है। उसे  काम क्रोध नहीं सताते और उसे मन कल्पनाओं छुटकारा मिल जाता है।

कबीर दास का जीवन परिचय से पता चलता है कि एक संत और कवि होने के साथ साथ समाज सुधारक भी थे। Kabir Das Ke Mashhur Dohe  की  हर एक पंक्ति में अंधविश्वास और जात पात जैसे मुद्दों को चोट करने की कोशिश की।

कबीर दास का जीवन परिचय: भक्ति के संदेश और उनके रचनाएँ

भक्ति काल के कवि कबीर दास जी के दोहे आज भी बच्चों को पढ़ाई जाते हैं  ‘गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय…’ । 4 जून 2023 को संत कबीर दास की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। 

कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं-

  • रमैनी
  • सबद
  • साखी

कबीर रचनावली – कबीरदास की वाणियों के अनेक संग्रह प्रकाशित हुए है, पर उनमें सबसे अच्छा सुसंपादित संस्करण अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की ‘कबीर’ रचनावली है। 

भारतीय साहित्य में यह ‘अवधू’ शब्द कई संप्रदायों के सिद्ध आचार्यों के अर्थ में इस्तेमाल हुआ है। जब उन्होंने ‘अवधू’ या ‘अवधूत’ को पुकारा है तो यथासंभव अवधूत की ही भाषा में उसी के कार्यों की आलोचना की है। आर्यदेव, भूसुक, कान्ह, सरह, लुई आदि आचार्यों के पद हैं, जिन्हें तिब्बती साहित्य में सिद्धाचार्य कहा गया है। ये आचार्य गण सहज अवस्था की बात करते हैं। सहजावस्था को प्राप्त करने पर ही साधक अवधूत होता है।

कबीर दास जी की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि वो जिस भी भाषा में किसी किताब को लिखते थे। उसमें उस भाषा के स्थानीय शब्दों का इस्तेमाल करना नहीं भूलते थे। यही कारण है कि कबीर दास जी के दोहे  आज भी देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग पुस्तकों की वजह से पहचाने जाते हैं। 

कबीर दास जी का मानना था कि ईश्वर संसार के कण कण में समाया हुआ है। हर मन में परमेश्वर का निवास है। इसलिए ईश्वर को ढूंढने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर को एकाग्र मन से याद करने की आवश्यकता है।

कबीर जी का कहना था कि गुरु से बड़ा कुछ भी नहीं होता। इसीलिए अपने गुरु की तन मन धन से सेवा करना और गुरु के वचनों पर विश्वास करना एक भक्त का कर्तव्य होता है।

इसके अलावा किसी भी तरह की मुसीबत आने पर आपको सिर्फ और सिर्फ अपने गुरु को याद करना चाहिए। इस दौरान आपको किसी और के बारे में ज़रा भी नहीं सोचना चाहिए। 

कबीर ने कहा है कि आपको साधु गुरु की सेवा सद्भाव और प्रेम से करनी चाहिए। साथ ही गुरु गुण से संपन्न साधु को आपको अपने गुरु के समान समझना चाहिए। 

कबीर ने इसी तरह के कई और बहुमूल्य भक्ति से जुड़े संदेश दिए हैं।

वहीं बात करें कबीर की रचनाओं की तो कबीर दास जी ने अपने पूरे जीवनकाल में कई ऐसी रचनाएं लिखीं जिसको पढ़कर लोग आज भी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

समाज के दुर्गम समस्याओं पर उनका प्रहार – कबीर दास जी भक्ति काल के अकेले ऐसे कवि थे जिन्होंने समाज को सुधारने और लंबे समय से चली आ रही कुरीतियों पर चोट करने की कोशिश की।  

लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए कबीर दास जी ने कालजयी साहित्य को लिखा। इसीलिए उन्हें निर्गुण धारा के सबसे प्रमुख कवियों में से एक माना जाता है। कबीर दास के दोहे और कविताएं आज के समय में भी इतनी ज्यादा मार्मिक लगती है कि जिसने भी कबीर दास के दोहे अर्थ सहित पढ़ा उसने बार-बार उनकी किताबें का य किया।

अपनी रचनाओं के माध्यम से कबीर दास ने अंधविश्वास के साथ-साथ जात-पात और छुआछूत जैसे मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने की कोशिश की। 

उनके द्वारा लिखे गए दोहे सीधे और कटाक्ष भरे होते हैं। कबीर दास के मशहूर दोहे आम जनमानस को धर्म और जाति से परे एक साथ जोड़ने की कोशिश की है।

इन्हीं खूबियों के चलते कबीर दास को एक शानदार कवि के साथ-साथ अच्छा समाज सुधारक भी माना जाता है।

कबीर दास का सामाजिक और धार्मिक संदेश

कबीरदास के जन्म के समय भारत की हालत बहुत खराब थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की कट्टरता से लोग परेशान थे, और दूसरी तरफ हिंदू धर्म के पाखंड और कर्मकांड से धर्म कमजोर हो रहा था। लोगों में भक्ति की भावना नहीं थी और पंडितों के पाखंडपूर्ण बातें समाज में फैल रहे थे। ऐसे कठिन समय में कबीरदास का जन्म हुआ।

कबीर जिस समय आए, उससे कुछ पहले भारत में एक बड़ी घटना हुई थी—इस्लाम धर्म का आगमन। इसने भारतीय समाज और धर्म को हिला कर रख दिया था। जाति व्यवस्था को पहली बार कड़ी चुनौती मिली थी। पूरे देश में हलचल और अशांति थी।  कबीर दास जी की इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर उनके बारे में कहा जाता है कि वह जितने अच्छे कवि थे उससे कहीं अच्छे समाज सुधारक थे।

सभ्यता और जातिवाद के खिलाफ

आम जीवन के साथ-साथ कबीर दास जी के दोहे ने भी जातिवाद का डटकर विरोध किया है। इतना ही नहीं उन्होंने हिंसा के साथ-साथ क्रूरता और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई है। उन्होंने सच्चाई की लाठी का सहारा लेकर समाज का कल्याण करने की कोशिश की है, जिससे लोगों के मन से छल कपट और अहंकार जैसी भावना हमेशा हमेशा के लिए गायब हो जाए। इसी वजह से कबीर दास जी के बारे में कहा जाता है कि वो अपने समय से आगे के लेखक थे।

एकता और समरसता का संदेश

कबीर दास का जीवन परिचय – कबीर दास हमेशा से चाहते थे कि देश और समाज का हर नागरिक अपने आप को किसी धर्म या जात-पात के झूठे खांचे में ढालने से बचे।

ऐसा करके लोगों के मन में अपने आप एकता की भावना पनपने लगेगी। कुछ ऐसा ही छुआछूत के मामले में भी है जिसके चलते किसी एक जाति या धर्म का इंसान खुद को दूसरी जाति या धर्म के इंसान से ऊंचा मानकर उसे छूने तक से कतराता है।

कबीर दास जी का कहना था कि इस तरह की चीज समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती हैं। और हमें इस तरह की चीजों से बचना चाहिए।

कबीर दास का जीवन परिचय: कबीर दास की विरासत और प्रभाव

कबीर दास की लेखनी का भक्ति आंदोलन पर एक खास असर देखने को मिला, जिसके चलते बीजक के साथ-साथ कबीर ग्रंथावली और सखी ग्रंथ को धरोहर के रूप में शामिल किया गया है।

कबीर दास जी की लेखनी का इस्तेमाल गुरु ग्रंथ में भी किया गया है। कबीर के द्वारा लिखे गए कुछ छंद को गुरु ग्रंथ साहिब में एक खास जगह दी गई है।

आपको बता दे कि कबीर दास के प्रमुख कार्यों का संकलन पांचवें सिख गुरु, अर्जुन देव जी द्वारा किया गया था। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कबीर का विरासत पर कितना गहरा असर है।

आधुनिक समाज पर प्रभाव

कबीर दास जी ने अपनी वाणी के बल पर, अपनी लेखनी और अपने विचारों के बल पर समाज में फैल रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने में एक अहम किरदार अदा किया है। कबीर दास जी ने धार्मिक पाखंड और कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की कोशिश की है। उनका कहना है कि भगवान को पाने के लिए आपको कहीं बाहर जाने या उसे बाहरी दुनिया में ढूंढने की जरूरत नहीं। भगवान आपके अंदर ही है। 

कबीर दास के रचनात्मक और सामाजिक योगदान का महत्व

कबीर दास जी सामाजिक समूह के साथ-साथ जाति और धर्म से जुड़े गंभीर मुद्दों पर अपनी रचनाओं की मदद से चोट करते हुए नजर आते हैं। इसके अलावा उनकी रचनाओं का आज के व्यवसाय और शिक्षा प्रणाली पर भी गहरा असर देखने को मिलता है। इन्हीं वजहों के चलते कबीर दास जी को संसार सुधारक  के तौर पर जाना जाता है। कबीर दास जी के विचार इतने ज्यादा प्रखर थे कि उनको पढ़कर आज भी लोगों की जिंदगियां सुधर रही हैं। 

कबीर दास जी की लेखन शैली जितनी ज्यादा सरल और सादगी से भरपूर थी। उन्होंने आम जनमानस की जिंदगी को भी ऐसे ही सरल और सादगी भरपूर बनाने की कोशिश की है। कबीर दास की मृत्यु 15 जनवरी 1518 में हुई |

निष्कर्ष

इस लेख के माध्यम से हमने कबीर दास का जीवन परिचय और उनके काव्य की अनूठी रचनाओं को देखा। कबीर दास जी के अमर काव्यों में उनकी भक्ति, समाज सुधारक दृष्टि और सहिष्णुता के संदेश हमें आज भी प्रेरित कर रहे हैं। यही वजह है कि कबीर दास जी को आज भी न केवल देश बल्कि दुनिया भर के सबसे महान कवियों की श्रेणी में रखा जाता है। 

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

कबीर दास के जीवन में महत्वपूर्ण अनुयायी कौन-कौन थे?

कबीर दास के जीवन में उनके अनुयायी प्रमुख रूप से कबीर पंथी थे, जिन्होंने उनकी शिक्षाओं को फैलाने और उनके भजनों का प्रचार करने का कार्य किया।

कबीर दास के जीवन के प्रमुख स्थल कौन से हैं? 

कबीर दास के जीवन के प्रमुख स्थल में काशी (वाराणसी), जहां उनका जन्म हुआ, और मगहर, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली, शामिल हैं।

कबीर दास के जीवन में क्या प्रमुख संघर्ष थे? 

कबीर दास के जीवन में प्रमुख संघर्ष धार्मिक आडंबर, जातिवाद, और समाज के पिछड़े वर्गों के प्रति भेदभाव के खिलाफ थे।

कबीर दास के विचारों को कौन-कौन से प्रमुख दार्शनिकों ने प्रभावित किया?

कबीर दास के विचारों को प्रमुख रूप से संत शंकराचार्य, रामानंद, और अन्य भक्ति संतों द्वारा प्रभावित किया गया था।

कबीर दास की शिक्षाओं में प्रमुख विषय क्या थे?

कबीर दास की शिक्षाओं में प्रमुख विषय ईश्वर की निराकारता, धार्मिक एकता, और सामाजिक समानता शामिल थे।

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