Quick Summary
संस्कृत के महान कवि कालिदास का जीवन परिचय (Kalidas ka jivan parichay) में उनकी प्रतिभा और प्रसिद्धि के बारे में हम जितना लिखेंगे और आप जितना पड़ेंगे, उतना ही कम रहेगा क्योंकि उनका नाम और उनकी प्रसिद्धि भी उनकी रचना “अभिज्ञान शाकुंतलम” की तरह ही विश्व-प्रसिद्द है। लेकिन बाद में अपनी विद्वान पत्नी के अपमान की वजह और माँ काली के आशीर्वाद से संस्कृत का ज्ञान लिया और ऐसा साहित्य लिखा कि आज उनका नाम दुनिया के सबसे श्रेष्ट कवियों में शुमार किया जाता है।
इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि किस तरह कालिदास एक मुर्ख इंसान से संस्कृत के सबसे प्रसिद्ध कवि बनते हैं और उनके विश्व-प्रसिद्ध साहित्य लिखते हैं। साथ ही हम उनके प्रसिद्ध साहित्य के साथ ही साथ कालिदास कौन थे इस बात को भी समझने की कोशिश करेंगे।
यहाँ महाकवि कालिदास का जीवन परिचय सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत है:
विषय | विवरण |
---|---|
पूरा नाम | महाकवि कालिदास |
कालिदास का जन्म और स्थान | अनिश्चित; संभवतः 150 ईसा पूर्व से 450 ईसवी के बीच |
माता-पिता | अज्ञात |
पत्नी | राजकुमारी विद्योत्तमा |
पेशा | कवि, नाटककार, संस्कृत विद्वान |
कालिदास की रचनाएं | ऋतूसंहारम्, कुमारसंभवम्, रघुवंशम्, मालविका-अग्निमित्रम्, अभिज्ञान शाकुंतलम्, विक्रमोर्वशीयम् |
सांस्कृतिक प्रभाव | भारतीय जीवन, दर्शन और पौराणिक कथाओं का चित्रण |
भाषा | संस्कृत |
विशेषताएँ | सुंदर और सरल भाषा, अनोखे रूपक, और प्रकृति का वर्णन |
मृत्यु | अनिश्चित |
संस्कृत के इस महान कवि कालिदास का जन्म और मृत्यु कहाँ और कब हुआ था, इस बात को निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनके जन्म स्थान और समय को लेकर इतिहास में एक तय जानकारी नहीं है। कालिदास के जन्म स्थान और समय को लेकर इतिहासकार और साहित्यकार कभी भी एकमत नहीं हुए है क्योंकि कालिदास ने शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर मालविकाग्निमित्रम् नाटक लिखा और अग्निमित्र ने 170 ईसापू्र्व में शासन किया था, इसलिए कुछ लोगों का मानना है कि कालिदास इससे पहले नहीं हुए होंगे।
कुछ जानकारों का मानना है कि कालिदास, अवन्ति (उज्जैन) में पैदा हुए थे, वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि कालिदास का जन्म उत्तराखंड में हुआ था और इसी वजह से उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्का गांव में कालिदास की एक स्टैच्यू लगाई गई है। तो वहीं कुछ लोग कालिदास का जन्म भारत के दक्षिण में बताते है।कालिदास के जन्म और मृत्यु का ठीक-ठीक पता नहीं चल पाया है, कुछ पुस्तकों में कहा गया है कि वह कश्मीर में रहते थे और फिर दक्षिण की ओर चले गए।
प्रचलित कहानियों और लिखित जानकारी के अनुसार उनके बारे में कहा जाता है कि वे देखने में बहुत सुन्दर थे लेकिन इतने ही मुर्ख भी हुआ करते थे। उनके बारे में एक कहानी बहुत मशहूर है कि वे पेड़ की जिस डाली पर बैठे थे, उसी को कुल्हाड़ी से काट रहे थे। इसी तरह 6th ईसवी में संस्कृत के एक और कवि बाणभट्ट ने अपनी रचना हर्षचरितम् में कालिदास का ज़िक्र किया है इसलिए माना जाता है कि उनका जन्म पहली शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी के बीच में हुआ होगा। लेकिन उनके माता-पिता और परिवार के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती हैं।
कालिदास का जीवन परिचय(Kalidas ka jivan parichay) की यह जानकारी हमें चौंका देती है कि उन्होंने अपनी बचपन में किसी तरह की कोई भी शिक्षा नहीं ली थी।
उनके बारे में एक कहानी बहुत प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा नाम की एक राजकुमारी ने अपनी शादी के लिए यह शर्त रखी थी कि जो कोई उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वह उसी के साथ शादी करेगी। जब विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों को हरा दिया तो हार को अपमान समझ कर कुछ विद्वानों ने बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह महामूर्ख व्यक्ति के साथ कराने का तय किया। चलते चलते उन्हें एक ऐसा इंसान दिखाई दिया जो जिस डाल पर बैठा था, उसी को काट रहा था।
उन्होंने सोचा कि इससे बड़ा मूर्ख तो कोई मिलेगा ही नहीं। उन्होंने उस राजकुमारी से शादी का लालच देकर नीचे उतारा और कहा- “राजकुमारी के सामने चुप रहना और जो हम कहेंगे बस वही करना”। उन लोगों ने राजकुमारी के सामने पहुंचकर कहाँ कि हमारे गुरु आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आए है लेकिन उन्होंने अभी मौनव्रत लिया हैं, इसलिए ये हाथों के संकेत से उत्तर देंगे। इनके संकेतों को समझ कर हम आपको उसका उत्तर देंगे। शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ। विद्योत्तमा मौन शब्दावली में गूढ़ प्रश्न पूछती थी, जिसे कालिदास अपनी बुद्धि से मौन संकेतों से ही जवाब दे देते थे।
विद्योत्तमा ने संकेत से एक उंगली दिखाई कि ब्रह्म एक है लेकिन कालिदास ने समझा कि ये राजकुमारी मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है और ग़ुस्से में उन्होंने दो अंगुलियों का संकेत इस भाव से किया कि तू मेरी एक आंख फोड़ेगी तो मैं तेरी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। लेकिन विद्वानों ने उनके संकेत को कुछ इस तरह समझाया कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु कहना चाह रहे हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे (जगत्) की सहायता लेनी होती है। अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता।
राज कुमारी ने दूसरे प्रश्न के रूप में खुला हाथ दिखाया कि तत्व पांच है तो कालिदास को लगा कि यह थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है। उसके जवाब में कालिदास ने घूंसा दिखाया कि तू यदि मुझे गाल पर थप्पड़ मारेगी, मैं घूंसा मार कर तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा। विद्वानों ने समझाया कि गुरु कहना चाह रहे हैं कि भले ही आप कह रही हो कि पांच तत्व अलग-अलग है पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि लेकिन ये सभी तत्व अलग-अलग होकर कोई काम नहीं कर सकते और आपस में मिलकर एक होकर मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है जो कि ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है।
इस प्रकार विद्योत्तमा अपनी हार स्वीकार कर लेती है। फिर शर्त के अनुसार कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह होता है। विवाह के बाद कालिदास विद्योत्तमा को लेकर अपनी कुटिया में आ जाते हैं लेकिन रात को ऊंट की आवाज़ सुनाई देती है। विद्योत्तमा संस्कृत में पूछती है “किमेतत्” लेकिन कालिदास संस्कृत जानते नहीं थे, इसीलिए उनके मुंह से निकल गया “ऊट्र“। उस समय विद्योत्तमा को पता चल जाता है कि कालिदास अनपढ़ हैं। उसने कालिदास को धिक्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे विद्वान् बने बिना घर वापिस नहीं आना।
इसके बाद कालिदास घर से निकल जाते है और सच्चे मन से काली देवी की आराधना करने लगते है। उनके आशीर्वाद से वे ज्ञानी और धनवान बन गए। वो विद्या अर्जित करने के लिए एक लंबी यात्रा पर निकल गए. इस यात्रा के दौरान कालिदास का बिहार के एक देवी मंदिर से गहरा संबंध जुड़ गया. प्रचलित कथा के अनुसार, उच्चैठ के इस मंदिर में छिन्नमस्तिका मां दुर्गा स्वयं प्रकट हुई हैं और यहां जो भी आता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है. प्रचलित है कि कालिदास महामूर्ख से महा ज्ञानी इसी मंदिर के कारण बने।
कालिदास का जीवन परिचय हिंदी में, पता चलता है कि संस्कृत का ज्ञान और माँ काली का आशीर्वाद लेने के बाद कालिदास अब संस्कृत के विद्वान हो चुके थे। इसके बाद उन्होंने संस्कृत में कई ऐसी रचनाएँ की जो पढ़ने वालों को मंत्र-मुग्ध कर देती है और यही कारण है कि कालिदास की रचनाएं इतने समय बाद भी आज विश्व प्रसिद्द है। अभिज्ञान शाकुंतलम, मालविकाग्निमित्रम, मेघदूतम, रघुवंशपुरम जैसी लगभग जैसी 40 ऐसी छोटी-बड़ी रचनाएँ है जिनको कालिदास द्वारा रचित माना जाता है।
मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की पहली रचना है, जिसमें राजा अग्निमित्र की कहानी है। और अभिज्ञान शाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है जो उनकी जगत प्रसिद्धि का कारण बना। इस नाटक का अनुवाद अंग्रेजी और जर्मन के अलावा दुनिया के अनेक भाषाओं में हो चुका है।
विक्रमोर्वशीयम् एक रहस्यों भरा नाटक है। कुमारसंभवम् और रघुवंशम उनके महाकाव्यों के नाम है। रघुवंशम् में सम्पूर्ण रघुवंश के राजाओं की गाथाएँ हैं, तो कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेम कथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।
कालिदास विश्व के उन गिने-चुने कवियों में शुमार है जो सर्व-श्रेष्ट है। ऐसा कहाँ जाता है कि अगर कालिदास ने मेघदूतम और अभिज्ञान शाकुंतलम, सिर्फ ये दो कालिदास की रचनाएं की होती, फिर भी वे संस्कृत के महान कवि कहे जाते। उनकी रचनाओं पर कई देशी-विदेशी विद्वानों ने अनेक टिप्पणियां की है। आज भी अनेक कवियों के लिए वे एक इंस्पीरेशन बने हुए है।
मेघदूतम में उन्होंने एक यक्ष की कहानी को जिस तरह से कहाँ है, उससे ऐसा लगता है मानों वे यक्ष के माध्यम से खुद अपनी ही पीड़ा बता रहे हो। मेघदूतम में उन्होंने अलग-अलग शहरों का जिस तरह से विस्तृत वर्णन किया है, उससे हर किसी को आश्चर्य होता है कि आज से 2500 साल पहले जब इतने तेज़ वाहन नहीं होते थे, उस टाइम पर उन्होंने इतने शहरों का इतना विस्तृत वर्णन कैसे किया होगा।
कालिदास की रचनाएं, मेघदूत में वे एक बारिश के समय में आषाढ़ महीने में एक बादल को दूत बनाकर यक्ष की प्रेमिका के पास एक प्रेम संदेश लेकर भेजते हैं। इस बात से ही उनकी कल्पना शक्ति का पता लगता है कि आज के टाइम के सेटेलाइट सिग्नल की तरह सन्देश भेजने के लिए कालिदास ने भी बादल का सहारा लिया था।
मेघदूत की जिस तरह से उन्होंने यक्ष की परेशानी को बताया है, उससे हर व्यक्ति अपने आप को जोड़ता है, शायद इसीलिए मेघदूत उनकी विश्व-प्रसिद्द और अमर रचना है। उनकी इस रचना के लिए हिंदी एक महाकवि नागार्जुन कहते हैं कि,
वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका,
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का।
देख गगन में श्याम घन-घटा।
विधुर यक्ष का मन जब उचटा।
खड़े-खड़े जब हाथ जोड़कर,
चित्रकूट के सुभग शिखर पर,
उस बेचारे ने भेजा था जिनके द्वारा ही संदेशा।
उन पुष्करावर्त मेघों का, साथी बनकर उड़ने वाले,
कालिदास! सच-सच बतलाना।
पर पीड़ा से पूर-पूर हो।
थक-थक कर और चूर-चूर हो।
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर,
प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?
रोया यक्ष या तुम रोये थे?
कालिदास! सच-सच बतलाना।
अभिज्ञान शाकुंतलम, कालिदास का सबसे प्रसिद्द नाटक है। हालाँकि इस उनके इस नाटक की कहानी मौलिक न होकर महाभारत से लिए गए है लेकिन उन्होंने जिस तरह से अपनी कल्पना शक्ति और प्रतिभा से इस नाटक को लिखा है, वो मंत्र-मुग्ध करता है।
अभिज्ञान शाकुंतलम में भगवान राम के पूर्वज और रघुकुल के प्रतापी राजा, दुष्यंत और ऋषि विश्वामित्र की बेटी है। इन्हीं दुष्यंत और शकुंतला की संतान का नाम भरत था, जो अपने बचपन में ही शेर के दाँत की गिनती लगा लिया करते थे और इन्ही के नाम पर इस देश का नाम भारत रखा गया।
अभिज्ञान शाकुंतलम दरअसल एक राजा और ऋषि पुत्री के प्रेम, मिलन, विरह और पुनर्मिलन की कहानी है। इस नाटक में कालिदास ने श्रृंगार के दोनों रूप, मिलन और विरह को जिस तरह से प्रस्तुत किया है, वो अद्भुत है।
कालिदास ने प्रमुख रचनाओं के साथ-साथ कुछ खंडकाव्य भी लिखे। खंडकाव्य छोटी कविताएँ होती हैं। उन्होंने ऋतुसंहार पर एक खंडकाव्य लिखा जिसमें छह ऋतुओं का वर्णन है। कालिदास कवि की एक और उल्लेखनीय कृति मेघदूत है जो एक खंडकाव्य भी है। प्राचीन काल के सबसे लोकप्रिय नाटक कालिदास द्वारा लिखे गए नाटक हैं।
कालिदास अपनी उत्कृष्ट रचनाओं, ज्ञान, प्रतिभा और अपनी सरल भाषा के लिए विश्व-साहित्य में आज भी अमर है और रहेंगे। उनकी रचनाओं में उन्होंने जिस तरह से इंसान के जीवन के अलग-अलग भावों का वर्णन करते हैं, उसकी वजह से वे अपने पाठक को अपनी रचनाओं से बहुत जल्दी कनेक्ट करते हैं। आज दुनिया की अलग-अलग भाषाओं में उनके नाटक और महाकाव्यों का ट्रांसलेशन हो चुका है और वे दुनिया भर में आज भी प्रासंगिक है।
कालिदास का भारतीय और विश्व साहित्य में योगदान का अंदाज़ा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि संस्कृत अब आम बोलचाल की भाषा नहीं होने के बाद भी कालिदास की रचनाएं आज भी दुनिया भर की यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ाई जाती है। उनकी रचनाओं में श्रृंगार रस की प्रधानता होने के बाद भी भारतीय दर्शन और स्प्रिचुएलिटी की झलक दिखाई देती है। कालिदास की रचनाओं की लोकप्रियता और पॉपुलैरिटी का अंदाज़ा सिर्फ़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2500 साल बाद आज भी दुनिया भर के कवि उनसे इंस्पीरेशन लेकर राइटिंग करते हैं।
कालिदास की रचनाएं में संयोग और विरह, ये दो गुण ज्यादा देखने को मिलते हैं और हर एक इंसान की लाइफ में यही दो बातें ज़्यादातर रिपीट होती है। इसलिए हर एक इंसान कालिदास की राइटिंग से अपने आप को बहुत जल्दी कनेक्ट कर पाता है और इसीलिए उनका साहित्य आज भी रेलेवेंट है। उनकी सरल भाषा, उपमाएँ, मिलन और विरह का अद्भुत वर्णन, प्रकृति वर्णन, भारतीय दर्शन और उनकी प्रतिभा, ये कुछ ऐसे कारण है जो उनके साहित्य को अमर कर देते हैं।
कालिदास भारतीय साहित्य के एक अमूल्य रत्न हैं। कालिदास के जीवन परिचय(Kalidas ka jivan parichay) , कालिदास की रचनाएं से हमें यह सीख मिलती है कि कला और साहित्य की अमरता केवल उसकी समृद्ध और आध्यात्मिक आधार पर ही निर्मित होती है। उनकी काव्य शैली ने बाद के सभी कवियों के साथ-साथ बीसवीं सदी के वर्तमान कवियों को भी प्रभावित किया। कालिदास के कार्यों को मान्यता देते हुए भारत सरकार मध्य प्रदेश में शास्त्रीय नृत्य, कविता, शास्त्रीय संगीत, प्लास्टिक कला और कला में अच्छा प्रदर्शन करने वाले को कालिदास सम्मान देती है।
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साहित्यकारों का मानना है कि कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था। उन्होंने वहीं अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और मेघदूत, कुमारसंभव, और रघुवंश जैसे महाकाव्यों की रचना की।
राजकुमारी विद्योत्तमा को अपनी विद्वत्ता पर बड़ा गर्व था। उसने स्वयंवर की शर्त रखी कि जो उसे शास्त्रार्थ में हराएगा, वही उसका पति बनेगा। इस प्रकार, कालिदास का विवाह विद्योत्तमा से हुआ और वे महाकवि बन गए।
कालिदास न केवल एक महान कवि और नाटककार थे, बल्कि संस्कृत भाषा के विद्वान भी थे। वे भारत के श्रेष्ठ कवियों में से एक थे। उन्होंने सुंदर, सरल और अलंकार युक्त भाषा में रचनाएँ कीं और अपनी रचनाओं के माध्यम से भारत को नई दिशा देने का प्रयास किया। कालिदास अपने साहित्य में अद्वितीय थे।
महाकवि कालिदास ने उज्जैन में मां गढ़कालिका की आराधना की, जिससे उन्हें असीम ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने मेघदूत और शकुंतलम जैसे महाकाव्यों की रचना की।
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