खरीफ की फसल : मौसम को देखते हुए करें खरीफ की बुवाई

September 20, 2024
खरीफ की फसल
Quick Summary

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  • भारत में खरीफ फसलें बोई जाती हैं, जून से सितंबर तक।
  • खरीफ की फसलों में दालें, चावल, मूंगफली, मक्का, सोयाबीन, बाजरा आदि शामिल हैं।
  • खरीफ फसलों की बुवाई और कटाई के समय जून-जुलाई से सितंबर-अक्टूबर होता है।
  • खरीफ फसलों के लिए भूमि की तैयारी, कटाई, भंडारण आवश्यक है।
  • आधुनिक तकनीकों जैसे जीपीएस, एग्रीकल्चरल रोबोट, सॉइल सेंसर, ऑटोमेशन कृषि में उपयोग हो रहा है।

Table of Contents

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। इनमें से एक प्रमुख श्रेणी खरीफ की फसलें हैं। खरीफ फसलों की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है, आमतौर पर जून से सितंबर के बीच, और इन्हें सितंबर या अक्टूबर में काटा जाता है। इस दौरान प्रमुख फसलों में दालें, चावल, मूंगफली, मक्का, सोयाबीन, बाजरा, रागी और गन्ना शामिल हैं।

हर राज्य में खरीफ फसलों की बुवाई और कटाई का समय भिन्न हो सकता है। खरीफ की फसलों को उगाने के लिए उच्च तापमान और आद्रता की आवश्यकता होती है, जबकि पकने के लिए सूखा और शुष्क वातावरण जरूरी है। इस लेख में, हम खरीफ फसलों की परिभाषा, उनके उदाहरण, और इनकी खेती के विशेष पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

खरीफ फसल किसे कहते हैं?

खरीफ फसलें उन फसलों को कहते हैं जो बरसात के मौसम में बोई जाती हैं और मानसून की बारिश पर निर्भर होती हैं। इनकी बुवाई सामान्यतः जून से सितंबर के बीच होती है और ये सितंबर से अक्टूबर में काटी जाती हैं। खरीफ का मतलब अरबी शब्द “खरीफ” से है, जिसका अर्थ शरद ऋतु है।

खरीफ फसलों की उगाई के लिए गर्मी और उच्च आद्रता की आवश्यकता होती है, जबकि पकने के दौरान सूखा और शुष्क मौसम अनिवार्य होता है। मुख्य खरीफ फसलों में चावल, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, और बाजरा शामिल हैं। इन फसलों को मानसून की पहली बारिश में बोया जाता है और फसल की कटाई के लिए मौसम सूखा होना आवश्यक होता है।

प्रमुख खरीफ फसलें : खरीफ की फसल के नाम

फलसब्जियांबीज के पौधे अनाज
केलेटमाटरअरहरबाजरा
अमरूदकरेलासोयाबीनज्वार
नारियलबैंगनमूंगफलीचावल
सेबटिंडासौंफ़मक्का

मूख्य  खरीफ की फसल: बुआई और कटाई का समय

मूख्य  खरीफ की फसलबुआई का समयकटाई का समय
धान (Rice)जून-जुलाईसितंबर-अक्टूबर
मक्का (Maize)जून-जुलाईसितंबर-अक्टूबर
बाजरा (Pearl Millet)जून-जुलाईसितंबर-अक्टूबर
ज्वार (Sorghum)जून-जुलाईसितंबर-अक्टूबर
मूंगफली (Groundnut)जून-जुलाई
सितंबर-अक्टूबर
सोयाबीन (Soybean)जून-जुलाई
सितंबर-अक्टूबर
कपास (Cotton)अप्रैल-मईअक्टूबर-नवंबर
तूरजून-जुलाईजनवरी-फरवरी

खरीफ फसलों की खेती के तरीके

अब जानते है इसकी खेती करने के तरीके क्या है। 

  • सूडकरना – खेत में जो बेकार खरपतवार या झाड़ियां उग जाती है उसे निकालने को सूडकरना कहते हैं। नहीं तो हल चलाने में किसानों को बड़ी दिक्कत आती है। 
  • कानाबन्दी करना – तेज गर्म आँधियों से जैविक कण उड़ जाते हैं। इन्हें उड़ने से बचाना ही कानाबन्दी की प्रक्रिया है। 
  • फसलों को चुनना – मिट्टी और जलवायु को देखकर ही फसलें बोई जाती है। जब बुवाई करने के लिए खरीफ की फसल का समय आ गया हो तो उसके पहले उस जगह की जलवायु और मिट्टी के अनुसार फसलें चुनना चाहिए।
  • बीज को चुनना – जैसा बीज होगा फसल भी वैसी ही मिलेगी। इसलिए अच्छी क्वालिटी का बीज चुने जिससे पैदावार भी अच्छी प्राप्त होगी।
  • फसल चक्र – जमीन की उर्वराशक्ति बरक़रार रखने में और ज्यादा पैदावार के लिए फसल चक्र आवश्यक है। एक ही खेत मे बार-बार एक फसल नहीं करना चाहिए।
  • जमीन की देखभाल – कीटों की समस्या से बचने के लिए जमीन की सुरक्षा करना जरुरी है।
  • बीज को उपचारित करना – फसलों को बचाने के लिए बीज को उपचारित करना चाहिए। जिससे फसलों को रोगों से बचाया जा सकता है। 
  • बुवाई – बुवाई का सही तरीका ही अच्छी फसल देता है। कतार विधि से बुवाई करना फायदेमंद होगा। 

खरीफ फसलों की बुवाई के सही तरीके 

खरीफ की फसल किसे कहते है यह पता होने के साथ ही फसलों की बुवाई उचित तरह से की जाए तो काम ज्यादा आसान हो जाता है। खरीफ की फसल की बुवाई का सबसे सही तरीका है कतार में बुवाई करना। इसके लिए किसान भाई सीडड्रिल का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

खरीफ फसलों के लिए भूमि की तैयारी

भूमि की तैयारी करने से कीटों से राहत मिलती है। भूमि की तैयारी करने में हैरोइंग, जुताई, खेत को समतल करने की प्रोसेस की जाती है। दीमक की समस्या ज्यादा होती है इसलिए खेत में सूखे फसल अवशेष हो तो उन्हें जरूर से हटाएँ। कच्चा खाद भी खेत में ना डालें। 

खरीफ फसलों की कटाई और भंडारण

  • खरीफ फसलों की कटाई: खरीफ की फसलें बरसाती फसलें है। जिनकी बारिश का मौसम शुरू होने से पहले बुवाई होती है। जो सामान्यतः मई महीने की शुरुआत में कर दी जाती है। खरीफ की फसल का समय जो कटाई के लिए सही होता है वो है सितंबर और अक्टूबर का महीना।
  • खरीफ फसलों का भंडारण : एक किसान के रूप में फसलों का भंडारण और रखरखाव आपकी फसल को मैनेज करने के लिए बनाई गई कार्यनीति का एक महत्वपूर्ण अंग होना चाहिए। फसलों का उचित भंडारण ही उनकी जीवन शक्ति को बढ़ाता है। सही भंडारण से आप अपनी फसल की पैदावार को ज्यादा कर सकते हैं।

खरीफ फसलों के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव  

  • आर्थिक प्रभाव : खरीफ की फसल से किसानों को अच्छी इनकम होती है। ज्वार, मक्का, चावल, मूंगफली, सोयाबीन इन सभी अनाज का उपभोग ज्यादा है। जिससे इनकी बिक्री भी ज्यादा होती है। जिससे जो लोग अनाज का व्यापर करते है या खरीफ की फसल के लिए कीटनाशक और उर्वरक का प्रोडक्शन करने वाली कंपनियों को बड़ा लाभ मिलता है।
  • सामाजिक प्रभाव : खरीफ की फसल से समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जो लोग खेतों में काम करते हैं उनके रिश्तों में स्थिरता आती है। कंपनियों के साथ ही उन कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को नौकरी मिलती है। जिसमें पुरुष के साथ ही महिला वर्ग भी शामिल होता है। इससे किसानों की भी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

स्थानीय अर्थव्यवस्था पर खरीफ फसलों का प्रभाव

इससे एक तरफ तो श्रम की लागत बढ़ती है क्योंकि खरीफ फसलों में श्रम की मांग है जो मजदूरी को बढ़ाती है। दूसरी तरफ स्थानीय आय पर सकारात्मक प्रभाव होता है जिससे कंपनियों की मांग पर असर पड़ता है।

रोजगार सृजन और ग्रामीण आजीविका

  • रोजगार सृजन : खरीफ की फसल का उत्पादन और उपभोग ज्यादा होने से यह रोजगार के अवसर पैदा करती हैं। जिससे आय में वृद्धि होती है, लोगों को रोजगार मिलता है जो गरीब परिवार की महिलाएं हैं उन्हें भी काम का अवसर मिलता है। 
  • ग्रामीण आजीविका : खरीफ की फसल ग्रामीण आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खरीफ फसलों की चुनौतियाँ का किसानों को तो सामना करना पड़ता है। लेकिन इससे ग्रामीण आजीविका को भी खतरा होता है। इन चुनौतियों को कम करने के लिए टेक्नोलॉजी अपनाने, स्थायी कृषि पद्धतियों, फाइनेंसियल सर्विसेज और बाजारों तक पहुंच पर जोर बढ़ रहा है। 

खरीफ फसलों की बाजार मूल्य और व्यापार पर प्रभाव

  • खरीफ फसलों की बाजार मूल्य : खरीफ की कुल 14 फसलों के लिए एमएसपी में 5.3 से 10.35% वृद्धि की गई है । इसे 128 रुपये बढ़ाकर 805 रुपये प्रति क्विंटल किया है। 2022-23 की बात करें तो हरे चने (मूंग) में 10.4% की वृद्धि हुई और तिल में 10.3% की बढ़ोतरी की गई है।
  • खरीफ फसलों का व्यापार पर प्रभाव : खरीफ की फसलों से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है, लोगों को व्यापर मिला है, किसानों और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में काम करने वाले लोगों के लिए आजीविका प्रदान करने में इसकी बड़ी भूमिका है।

खरीफ फसलों की चुनौतियाँ और समाधान

भारत में ख़रीफ़ की फसलों का मौसम खेती करने का सबसे चुनौतीपूर्ण मौसम है। इन चुनौतियों से निपटना जरुरी है तभी खरीफ की फसल अच्छे से हो सकती है। 

खरीफ फसलों की चुनौतियाँ : 

बारिश के मौसम में किसानों को खेतों तक सामान ले जाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वर्षा ख़रीफ़ की फसलों के लिए अच्छी है लेकिन यह किसानों के लिए थोड़ी कष्टदायी भी होती है। बाढ़ और तूफान आने से सड़कों पर पानी भर जाता है जिससे फसल का जरुरी सामान जैसे; बीज, उर्वरक या अन्य सामान खेत तक ले जाने में परेशानी आती है।

खरीफ फसलों की चुनौतियों का समाधान

खरीफ फसलों की चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। ताकि फसलों का उत्पादन ना रुके अगर खरीफ की फसल का समय आने के पहले ही इन समस्याओं को सुलझा लिया जाये तो खेती का कार्य आसान हो जाता है।

जिन सड़कों के रास्ते खेतों तक जाते हैं वो बारिश के मौसम में खराब हो जाते हैं। ऐसे में सड़कों को पक्की करना चाहिए किसान अपनी फसल बाजार तक पहुंचा सके इसके लिए परिवहन की अच्छी सुविधा होना और वर्षारोधी भंडारण करना जरुरी है। भारी-भरकम ट्रकों का उपयोग करना चाहिए जिससे खरीफ की फसल की खेती में आसानी होती है जो छोटे किसान है उनके लिए परिवहन सुविधा थोड़ी मुश्किल है लेकिन सामूहिक परिवहन के लिए की गई कोशिश मददगार होगी। 

आधुनिक तकनीकें

दुनिया में आबादी लगातार बढ़ती जा रही है जिसके लिए अब स्मार्ट तरीके से खेती करना जरुरी हो गया है ऐसे में मॉडर्न टेक्नोलॉजी बहुत काम की है इससे उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हुई है। 

कुछ मॉडर्न टेक्नोलॉजी जो कृषि में उपयोग की जा रही हैं:

  1. जीपीएस टेक्नोलॉजी: जीपीएस टेक्नोलॉजी खेत को खराब करने वाले कीटनाशक, उर्वरक से बचाव होता है। 
  2. एग्रीकल्चरल रोबोट: मॉडर्न टेक्नोलॉजी ने किसानों के काम को काफी सरल कर दिया है एग्रीकल्चरल रोबोट फल और सब्जियों को चुनना, घास काटना, गायों का दूध निकालना यह सब काम कर रहे हैं जिन्हें थकान भी नहीं होती है। 
  3. सॉइल सेंसर: सॉइल सेंसर से मिट्टी का तापमान, उसकी नमी के स्तर और फसल के विकास को जो कारक प्रभावित करते हैं उन्हें मापा जाता है। सेंसर डेटा कलेक्ट कर किसान को वायरलेस तरीके से ट्रांसमिट कर देता है।
  4. ऑटोमेशन: खेती एक ऐसा कार्य जिसमें सबसे ज्यादा शारीरिक श्रम होता है लेकिन ऑटोमेशन से इसको कम किया गया है। 
  5. वेदर मॉनिटरिंग: अब किसान वेदर के रियल टाइम का डेटा जान सकते हैं जिससे उन्हें मदद मिलती है की कैसे सिंचाई करनी है, कब बोना है और किस तरह की फसल उगानी है। इसके लिए विभिन्न ऐप्स और वेबसाइट उपलब्ध है ।

सटीक कृषि और ड्रोन का उपयोग

मैपिंग, सर्वे और फसल की निगरानी करने के लिए ड्रोन का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है। ड्रोन डेटा कलेक्ट कर कृषि को एकदम सटीक बनाने में मदद करते हैं। 

खरीफ फसलों के लिए स्मार्ट सिंचाई प्रणालियाँ

स्मार्ट सिंचाई प्रणालियाँ मिट्टी की नमी, पौधों को पानी देने के शेड्यूल को ऑटोमेटिक तरीके से एडजस्ट करना, वाष्पीकरण आदि काम करती हैं। स्मार्ट सिंचाई प्रणाली को सिग्नल ट्रांसमिशन से या वाईफाई से इस्तेमाल कर सकते हैं और इसे मोबाइल या कंप्यूटर के द्वारा दूर से भी कण्ट्रोल कर सकते हैं। 

सरकार की नीतियाँ और योजनाएँ

खरीफ फसलों की परिभाषा और महत्व तो अधिकांश किसानों को ज्ञात है, लेकिन सरकारी योजनाओं की जानकारी कम किसानों तक पहुँचती है। भारत सरकार ने किसानों की आय में वृद्धि, उनके कल्याण और कृषि सुविधाओं की उपलब्धता के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। इन नीतियों और योजनाओं का उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना, कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाना और सिंचाई की दक्षता को सुधारना है।

  • प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना: यह योजना कमजोर किसान परिवारों के लिए 12 सितंबर 2019 को शुरू की गई थी इस योजना में हर महीने18 से 40 वर्ष की आयु वाले आवेदकों को 55 रुपये से 200 रुपये तक योगदान करना होगा। 60 साल के बाद किसानों को 3 हजार रुपये मासिक पेंशन के तौर पर मिलेंगे।
  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि: यह योजना 24 फरवरी 2019 को शुरू की गई थी। इस योजना सरकार में किसानों की मदद के लिए हर साल 6,000 रुपये तक देती है। जिन्हें प्रत्येक 4 महीनों में 3 समान क़िस्त के तौर पर दिया जाता है। 
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना: सरकार की इस योजना की शुरूआत 2007-08 में की गई थी। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का मुख्य लक्ष्य ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के समय राज्यों को कृषि के क्षेत्र और कृषि से संबंधित क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि करना था ताकि कृषि के क्षेत्र में 4 गुना तेजी से विकास हो सके।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना देश में 2015-16 से चल रही है। इस योजना का आशय है “हर खेत को पानी” जिससे की पानी के उपयोग की दक्षता को सुधारा जाये और सिंचाई के कवरेज को बढ़ाया जा सके। 

निष्कर्ष 

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ खरीफ की फसलें मुख्य भूमिका निभाती हैं। खरीफ की फसलें मानसून के दौरान जून से सितंबर के बीच बोई जाती हैं और सितंबर से अक्टूबर में कटती हैं। इनमें प्रमुख फसलों में धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, मूंगफली और सोयाबीन शामिल हैं। इन फसलों की उगाई के लिए उच्च तापमान और आद्रता की आवश्यकता होती है, जबकि पकने के लिए सूखा मौसम चाहिए।

खरीफ फसलों की बुवाई कतार में करनी चाहिए और बीज की गुणवत्ता पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। इनकी कटाई और भंडारण में सही विधियाँ अपनाने से फसल की गुणवत्ता बनी रहती है। खरीफ की फसलों का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये रोजगार और आय के अवसर प्रदान करती हैं, लेकिन इनकी खेती में मौसम की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। नई तकनीकों और सरकारी योजनाओं से किसानों को सहायता मिलती है और कृषि की उत्पादकता बढ़ाई जाती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

खरीफ की फसलें कौन कौन सी हैं?

खरीफ की मुख्य फसलें हैं: कपास, मूंगफली, धान, बाजरा, मक्का, शकरकंद, उर्द, मूंग, मोठ, लोबिया (चंवला), ज्वार, अरहर, ढैंचा, गन्ना, सोयाबीन, भिंडी, तिल, ग्वार, जूट, सनई आदि।

रबी की फसल कौन सी है?

रबी की फसलें आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती हैं। इन फसलों को बोते समय कम तापमान और पकते समय सूखा और गर्म वातावरण चाहिए होता है। उदाहरण के लिए, गेहूँ, जौ, आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर और सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं।

खरीफ रबी और जायद की फसल कब बोई जाती है?

खरीफ की फसलें मानसून के दौरान, जून से जुलाई में बोई जाती हैं और अक्टूबर में काटी जाती हैं। रबी की फसलें सर्दियों में, अक्टूबर से नवंबर में बोई जाती हैं और अप्रैल में काटी जाती हैं। जायद की फसलें गर्मियों में, मार्च से जून के बीच बोई जाती हैं.

रबी और खरीफ की फसल में क्या अंतर है?

खरीफ फसलों का मौसम मानसून की शुरुआत से शुरू होकर इसके अंत तक चलता है। दूसरी ओर, रबी की फसलें सर्दियों में उगाई जाती हैं; किसान इन्हें मानसून के अंत में बोते हैं और गर्मियों की शुरुआत से पहले काटते हैं।

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