मौर्य साम्राज्य

August 30, 2024
मौर्य साम्राज्य
Quick Summary

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मौर्य साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण साम्राज्य था। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पू. में की थी। यह साम्राज्य वक्षु घाटी से कावेरी डेल्टा तक फैला था और अपने शासकों द्वारा सुगठित केंद्रीयकृत शासन के लिए प्रसिद्ध था।

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मौर्य साम्राज्य भारत के इतिहास का एक ऐसा महान साम्राज्य रहा है जो लगभग 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक अपने अस्तित्व में रहा था| मौर्य साम्राज्य का स्थापना, चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने महान गुरु और रणनीतिकार चाणक्य के साथ मिलकर की थी। मौर्य राजवंश ने अपने समय में भारत के एक बड़े हिस्से पर शासन करके अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक पताका को भारत के इतिहास में फहराया था। इस आर्टिकल में हम, मौर्य कौन थे, मौर्य वंश की स्थापना, मौर्य वंश का इतिहास और मौर्य साम्राज्य का पतन का कारण समझेंगे।

मौर्य वंश का इतिहास

मौर्य वंश का इतिहास बहुत ही रोचक और वीरता से भरा हुआ है। यह वंश मगध क्षेत्र में उत्पन्न हुआ था। मौर्य वंश के लोग बहुत ही बहादुर और कुशल योद्धा थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के साथ मिलकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना सन 322 ई.पू. में की और इसे एक महान साम्राज्य में बदल दिया। मौर्य वंश ने पाटिलीपुत्र को मौर्य साम्राज्य की राजधानी बनाकर, भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर शासन किया और इसने एक अद्वितीय प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की। मौर्य वंश का अंतिम शासक, बृहद्रथ था| 

मौर्य कौन थे?

मौर्य एक प्राचीन भारतीय राजवंश था जिसने लगभग 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से पर शासन किया। मौर्य वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी, जिन्होंने नंद वंश को पराजित करके मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। इतिहास में चन्द्रगुप्त के माता-पिता के बारे में हमेशा विवाद रहा है| उनकी माता का नाम महारानी धर्मा और पिता का नाम महाराज चन्द्रवर्धन बताया जाता है| 

चंद्रगुप्त ने चाणक्य (कौटिल्य) की मदद से रणनीतिक चालें चलीं और नंद वंश के अत्याचारों का अंत किया। इसके बाद चंद्रगुप्त ने एक विशाल और सशक्त साम्राज्य की स्थापना की, जो उनके पोते अशोक महान के समय में अपनी चरम सीमा पर पहुंचा। मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो प्रशासन, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में अपनी महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है।

मौर्य साम्राज्य की स्थापना

मौर्य साम्राज्य की स्थापना 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। चंद्रगुप्त ने महान चाणक्य के मार्गदर्शन में नंद वंश के घमंडी राजा, घनानन्द को हराकर मोर्य साम्राज्य की नीव रखी थी ओर पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी शक्ति और कुशलता से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना अधिकार जमाया और मौर्य साम्राज्य को एक महान शक्ति बनाया। चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मौर्य साम्राज्य ने राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत उन्नति की थी।

मौर्य साम्राज्य की राजधानी

मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। यह शहर वर्तमान समय के पटना में स्थित था। पाटलिपुत्र उस समय का सबसे महत्वपूर्ण और समृद्ध शहर था। यहां से मौर्य शासक पूरे साम्राज्य का संचालन करते थे और यह शहर व्यापार, संस्कृति और प्रशासन का केंद्र था। पाटलिपुत्र का योजनाबद्ध तरीके से किया गया निर्माण इसे एक विशेष शहर बनाता था।

पाटलिपुत्र

पाटलिपुत्र,मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी। यह शहर गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित था। पाटलिपुत्र उस समय का सबसे बड़ा और समृद्ध शहर था। यहां के लोग बहुत ही कुशल और व्यापार में निपुण थे। पाटलिपुत्र का अद्वितीय स्थापत्य और योजनाबद्ध निर्माण इसे एक विशेष स्थान बनाता था। 

महत्व

पाटलिपुत्र का मोर्य साम्राज्य में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान था। यहां से मौर्य शासक पूरे साम्राज्य का संचालन करते थे। पाटलिपुत्र व्यापार, संस्कृति और प्रशासन का केंद्र था। यहां पर विभिन्न संस्कृतियों और व्यापारियों का मेलजोल होता था, जिससे यह शहर और भी समृद्ध हो गया था। पाटलिपुत्र ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसका सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व आज भी माना जाता है।

मौर्य काल के प्रमुख शासकों के नाम

नामशासनकाल
चंद्रगुप्त मौर्य322-298 ईसा पूर्व
बिंदुसार298-273 ईसा पूर्व
अशोक273-232 ईसा पूर्व
दशरथ मौर्य232-224 ईसा पूर्व
संप्रति224-215 ईसा पूर्व
शालिशुक215-202 ईसा पूर्व
देववर्मन202-195 ईसा पूर्व
शतधन्वन195-187 ईसा पूर्व
बृहद्रथ मौर्य187-185 ईसा पूर्व

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए इसको चार प्रांतों में बांटा था। पूर्वी भाग की राजधानी तौसाली थी तो दक्षिणी भाग की सुवर्णगिरि। इसी उत्तरी और पश्चिमी भाग की राजधानी क्रमशः तक्षशिला तथा उज्जैन (उज्जयिनी) थी। 

केंद्र सरकार

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था, उनके केंद्र पाटलीपुत्र से चलाई जाती थी| राजा इस साम्राज्य का सर्वोच्च शासक होता था और उसके अधीन कई मंत्री और अधिकारी होते थे। ये मंत्री और अधिकारी राजा की सहायता करते थे और अलग-अलग विभागों का संचालन करते थे।  चंद्र गुप्त का मुख्य सलाहकार उनके गुरु चाणक्य जैसे महान विद्वान थे, जो प्रशासनिक कामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। राजा के दरबार में कई उच्चाधिकारी और विद्वान रहते थे, जो प्रशासन और नीति निर्धारण में मदद करते थे।

प्रांतीय प्रशासन

मौर्य साम्राज्य का प्रांतीय प्रशासन भी बहुत ही सुव्यवस्थित था। साम्राज्य को कई प्रांतों में बांटा गया था और प्रत्येक प्रांत का संचालन एक राज्यपाल के द्वारा किया जाता था। राज्यपाल का काम प्रांत की सुरक्षा, न्याय व्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों का संचालन करना था। प्रत्येक प्रांत में कई छोटे-छोटे जिलों का भी विभाजन था, जिनका संचालन स्थानीय अधिकारियों द्वारा किया जाता था। प्रांतीय प्रशासन की यह व्यवस्था साम्राज्य की स्थिरता और समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।

न्याय व्यवस्था

मौर्य साम्राज्य की न्याय व्यवस्था बहुत ही कड़ी और निष्पक्ष थी। राजा और उसके मंत्री न्याय के मामलों में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेते थे। साम्राज्य में कानून का पालन सख्ती से किया जाता था और अपराधियों को कड़ी सजा दी जाती थी। न्यायालय में मामलों की सुनवाई होती थी और न्यायिक अधिकारी न्यायिक प्रक्रिया का संचालन करते थे। न्याय व्यवस्था की कड़ी व्यवस्था के कारण समाज में शांति और सदाचार बना रहता था।

अर्थव्यवस्था

मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था बहुत ही मजबूत और समृद्ध थी। कृषि, उद्योग और व्यापार साम्राज्य की आर्थिक गतिविधियों के प्रमुख स्रोत थे। कृषि पर विशेष ध्यान दिया जाता था और किसानों को उन्नत तकनीकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। उद्योग और हस्तशिल्प भी साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। व्यापारियों को भी सुरक्षा और सुविधाएं प्रदान की जाती थीं ताकि वे अपने व्यापार को बढ़ा सकें। मौर्य शासक अपने साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाते थे।

मौर्य वंश का अंतिम शासक

मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य था। उसका शासनकाल 187-185 ईसा पूर्व तक चला। बृहद्रथ मौर्य एक कमजोर शासक था और उसके शासनकाल में मौर्य साम्राज्य की स्थिति बहुत ही खराब हो गई थी। अंततः, उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उसकी हत्या कर दी और मौर्य साम्राज्य का अंत हो गया। बृहद्रथ मौर्य का शासनकाल मौर्य साम्राज्य का पतन का कारण बना।

बृहद्रथ

मौर्य वंश का अंतिम शासक, बृहद्रथ का जन्म 210 ईसा पूर्व में हुआ था। बृहद्रथ ने लगभग 187 ईसा पूर्व में 23 वर्ष की आयु में शालिशुक मौर्य की मृत्यु के बाद सत्ता संभाली थी| ब्रहद्रथ के बारे में एक महत्वपूर्ण तथ्य सिलोनी बौद्ध ग्रंथों में दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि बृहद्रथ ने ग्रीको-बैक्ट्रियन राजा डेमीट्रियस की बेटी, बेरेनिके (पालि ग्रंथों में सुवर्णांकसी) से विवाह किया था। उसका शासनकाल 187-185 ईसा पूर्व तक चला इसके बाद उसके ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उसकी हत्या कर दी और उसी के साथ ही मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया था| बृहद्रथ, इतिहास में एक कमज़ोर और अंतिम मौर्य शासक के रूप में प्रसिद्ध है| 

मौर्य वंश और सम्राट अशोक का योगदान 

मौर्य साम्राज्य ने अपने समय में भारत के अधिकतर भू-भाग पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। मौर्य साम्राज्य ने वैभवशाली साम्राज्य, कला और धर्म, कानून व्यवस्था, अर्थशास्त्र, राजनीती आदि में अपना योगदान दिया है। खासकर मौर्य वंश के तीसरे राजा सम्राट अशोक ने। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था। बौद्ध धर्म के प्रचार के दौरान उन्होंने देश के कई हिस्सों में स्तूप और स्तंभ बनवाए। ऐसा ही एक स्तंभ उन्होंने सारनाथ में बनाया था। जिसे अशोक स्तंभ कहा जाता है।

अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र मौर्य साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण योगदान है। इसे महान चाणक्य ने लिखा था। अर्थशास्त्र में प्रशासनिक, आर्थिक, और सामाजिक नीतियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ में राजा, मंत्री, सेना, न्याय व्यवस्था, और आर्थिक गतिविधियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। अर्थशास्त्र आज भी अध्ययन और अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है और इसका प्रभाव भारतीय प्रशासनिक प्रणाली पर देखा जा सकता है।

अशोक स्तंभ

अशोक स्तंभ सम्राट अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित किए गए थे। इन स्तंभों का उपयोग बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को फैलाने के लिए किया गया था। आज, अशोक स्तंभ भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं।

26 जनवरी 1950 को भारत सरकार ने संवैधानिक रूप से अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय चिन्ह के तौर पर अपनाया था। यह लोक कल्याण, शांति और अहिंसा का प्रतीक है।

अशोक स्तंभ को लेकर नियम

अशोक स्तंभ को लेकर नियम- कायदे के बारे में बात करें तो ये राष्ट्रीय चिन्ह है और इसका संवैधानिक इस्तेमाल सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्ति कर सकते हैं। इसमें भारत के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उप राज्यपाल,  न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी शामिल हैं।

लेकिन रिटायर होने के बाद कोई भी पूर्व अधिकारी पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद या विधायक बिना अधिकार के इस राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकते।

  • व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देना: मौर्य साम्राज्य ने व्यापार और वाणिज्य को सुविधाजनक बनाने के लिए सड़कें, नहरें और बंदरगाह बनाए।
  • कला और संस्कृति का संरक्षण: मौर्य साम्राज्य ने साहित्य, संगीत और वास्तुकला सहित कला और संस्कृति के विकास को बढ़ावा दिया।

मौर्य साम्राज्य का सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान

धार्मिक योगदान:

  • बौद्ध धर्म का प्रचार: सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और इसे पूरे भारत और विदेशों में फैलाया।
  • शिलालेख और स्तंभ: अशोक ने नैतिक और धार्मिक संदेशों को शिलालेखों और स्तंभों पर अंकित कराया।
  • बौद्ध स्तूप और विहार: अशोक ने सांची, सारनाथ और अन्य जगहों पर बौद्ध स्तूप और विहारों का निर्माण कराया।

सांस्कृतिक योगदान:

  • अशोक के स्तंभ: अशोक के स्तंभ, जैसे सांची का स्तंभ, मौर्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • मूर्तिकला: मौर्य काल में यक्ष और यक्षिणियों की सुंदर मूर्तियाँ बनाई गईं।
  • अर्थशास्त्र: चाणक्य (कौटिल्य) ने “अर्थशास्त्र” की रचना की, जो राज्यcraft और अर्थशास्त्र पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • शिक्षा केंद्र: तक्षशिला और नालंदा जैसे प्रमुख शिक्षा केंद्रों का विकास हुआ।
  • अहिंसा और दया: अशोक ने अहिंसा, दया और धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया।

मौर्य साम्राज्य के स्रोत और साहित्य

मौर्य साम्राज्य के बारे में हमें कई स्रोतों से जानकारी मिलती है। इनमें प्रमुख रूप से अर्थशास्त्र, अशोक के शिलालेख और विदेशी यात्रियों के विवरण शामिल हैं। इन स्रोतों से हमें मौर्य साम्राज्य की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।

अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र मौर्य साम्राज्य के प्रशासनिक और आर्थिक नीतियों का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसे महान चाणक्य ने लिखा था। इस ग्रंथ में प्रशासनिक, आर्थिक, और सामाजिक नीतियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ आज भी अध्ययन और अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। अर्थशास्त्र में राजा, मंत्री, सेना, न्याय व्यवस्था, और आर्थिक गतिविधियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

अशोक के शिलालेख

अशोक मौर्य ने अपने शासनकाल में कई शिलालेख और स्तंभ बनवाए। इन शिलालेखों पर उनके धम्म नीति के सिद्धांत और बौद्ध धर्म के संदेश खुदे हुए हैं। अशोक के शिलालेख हमें उनके शासनकाल की नीतियों और समाज में उनके योगदान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इन शिलालेखों का अध्ययन हमें मौर्य साम्राज्य की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति के बारे में बताता है।

विदेशी यात्रियों के विवरण

मौर्य साम्राज्य के समय कई विदेशी यात्री भारत आए और उन्होंने यहां की संस्कृति, समाज और राजनीति के बारे में विवरण लिखे। इनमें से सबसे प्रसिद्ध मेगस्थनीज है, जिसने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में मौर्य साम्राज्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उनके विवरण हमें उस समय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में बताते हैं। इसके अलावा, अन्य विदेशी यात्रियों ने भी मौर्य साम्राज्य के बारे में अपने अनुभव और दृष्टिकोण साझा किए।

मौर्य साम्राज्य का पतन

मौर्य साम्राज्य का पतन कई कारणों से हुआ। इसमें आंतरिक कमजोरियाँ, बाहरी आक्रमण और अंततः बृहद्रथ मौर्य की हत्या शामिल हैं। इन सभी कारणों ने मिलकर इस महान साम्राज्य का अंत कर दिया। बृहद्रथ, मौर्य वंश का अंतिम शासक था और इसकी हत्या के बाद ही इस महान साम्राज्य का पतन हो गया| 

आंतरिक कमजोरियाँ

मौर्य साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण आंतरिक कमजोरियाँ थीं। बाद के मौर्य शासक अपनी प्रजा के बीच लोकप्रियता नहीं बना पाए और उनकी प्रशासनिक क्षमता भी कमजोर हो गई। इसके अलावा, साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में विद्रोह होने लगे, जिससे इसकी स्थिति कमजोर हो गई। इन आंतरिक कमजोरियों ने मौर्य साम्राज्य की स्थिरता को कमजोर कर दिया।

बाहरी आक्रमण

मौर्य साम्राज्य के पतन में बाहरी आक्रमण भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। ग्रीक और शक आक्रमणकारियों ने मौर्य साम्राज्य पर हमला किया और इसकी सीमाओं को कमजोर कर दिया। ये बाहरी आक्रमण साम्राज्य की सैन्य शक्ति को भी कमजोर कर गए। बाहरी आक्रमणों ने मौर्य साम्राज्य की सुरक्षा और स्थिरता को प्रभावित किया।

अंतिम पतन 

मौर्य साम्राज्य का अंतिम पतन बृहद्रथ मौर्य की हत्या से हुआ। बृहद्रथ मौर्य को उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मार दिया और इसके साथ ही मौर्य साम्राज्य का अंत हो गया। इसके बाद पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की स्थापना की। बृहद्रथ मौर्य की हत्या और पुष्यमित्र शुंग के विद्रोह ने मौर्य साम्राज्य के पतन की अंतिम कड़ी को पूरा किया। लेकिन मौर्य वंश का इतिहास, इसके पतन के बाद भी अपनी वीरता और वैभवशाली इतिहास के लिए आज भी याद किया जाता है| 

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में हमने ये समझा कि मौर्य कौन थे? और मौर्य साम्राज्य का इतिहास जानने की कोशिश की है| मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण चेप्टर है। मौर्य साम्राज्य को चंद्र गुप्त ने स्थापित किया और पटलीपुत्र को मौर्य साम्राज्य की राजधानी बनाया, जहां से मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था चलाई जाती थी|

इस साम्राज्य को बिन्दुसार और अशोक जैसे सम्राटों ने आगे बढ़ाया। चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य की रणनीतियों से शुरू होकर,अशोक मौर्य की धम्म नीति और बौद्ध धर्म के प्रचार तक, इस साम्राज्य ने भारतीय संस्कृति और धर्म में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालाँकि, आंतरिक कमजोरियों और बाहरी आक्रमणों के कारण बाद में इस साम्राज्य का इसका पतन हो गया, लेकिन इसका प्रभाव आज भी भारतीय इतिहास और संस्कृति में देखा जा सकता है। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक कौन थे और उनके शासन के अंत का कारण क्या था? 

मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक ब्रह्मादित्य थे, और उनके शासन के अंत का कारण उनके कमजोर प्रशासन और बाहरी आक्रमण था। 

बिंदुसार का पुत्र कौन था? 

अशोक महान, बिन्दुसार का पुत्र था। वह अपने पिता के बाद सिंहासन पर बैठा। उनके शासनकाल ने यूनानियों के साथ निरंतर संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा तैयार किया। 

अशोक के बाद भारत पर किसने शासन किया? 

अशोक का उत्तराधिकारी उसका पोता दशरथ मौर्य था। मौर्य साम्राज्य लगभग पचास वर्षों तक अशोक के कमजोर उत्तराधिकारियों के अधीन था। 

क्या गुप्त वंश मौर्य वंश के समान है? 

मौर्य साम्राज्य गुप्त साम्राज्य से बड़ा था। मौर्यों के पास एक केंद्रीकृत प्रशासनिक संगठन था, लेकिन गुप्तों के पास एक खंडित संरचना थी। गुप्त राजाओं ने हिंदू धर्म का पालन किया और उसे बढ़ावा दिया, लेकिन मौर्य शासकों ने गैर-हिंदू धर्मों का समर्थन किया और उन्हें बढ़ावा दिया।

चन्द्रगुप्त मौर्य की दूसरी पत्नी कौन है? 

चंद्रगुप्त की पत्नीकी मृत्यु के बाद , उन्होंने 40 वर्ष की आयु में सेल्यूकस की पुत्री हेलेना से विवाह किया। 

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