जब एक अनियंत्रित भीड़ किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए या कभी-कभी केवल अफवाहों के आधार पर, बिना किसी वास्तविक अपराध के, तुरंत सजा देती है या उसकी पीट-पीटकर हत्या कर देती है, तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) कहा जाता है।
यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जो न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है और समाज में भय और असुरक्षा का माहौल पैदा करती है।
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भारत में मॉब लिंचिंग की घटनाओं के बारे में बीते वर्षों में, कई बार सुनने में आया है। मॉब लिंचिंग की घटनाएँ देश में धार्मिक और सामाजिक समुदायों के बीच में तनाव पैदा करती है तथा ड़र का माहौल बनाती है। भारतीय न्याय व्यवस्था और सरकार के लिए शांति भंग करने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाएँ चुनौती बन गई है। भीड़ हत्या की घटनाएँ बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच दूरी का कारण बनी हुई है। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य तथा केंद्र सरकार को मॉब लिंचिंग पर कड़े क़ानून बनाने के निर्देश दिए थे और मॉब लिंचिंग की घटनाओं को “भीड़तंत्र का भयावह कृत्य” कहा था।
इस ब्लॉग में आप जानेंगे मॉब लिंचिंग क्या है, इसका अर्थ, परिभाषा और इससे सम्बंधित घटनाओं के बारे में आपको विस्तृत जानकारी मिलेगी।
मॉब लिंचिंग किसे कहते हैं?
जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी मात्र अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) कहते हैं।
इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।
वर्ष 2017 का पहलू खान हत्याकांड मॉब लिंचिंग का एक बहुचर्चित उदाहरण है, जिसमें कुछ तथाकथित गौ रक्षकों की भीड़ ने गौ तस्करी के झूठे आरोप में पहलू खान की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।
यह तो सिर्फ राजस्थान का ही उदाहरण है, इसके अतिरिक्त देश के कई अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही घटनाएँ सामने आई हैं।
मॉब लिंचिंग का अर्थ
मॉब लिंचिंग का अर्थ उस एक सामाजिक अपराध से समझा जा सकता है जिसमें भीड़ ग़ैर कानूनी तरीक़े से किसी व्यक्ति या समूह से मारपीट करती है या उनकी हत्या कर देती है।आमतौर पर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया या न्यायिक सुनवाई के इस तरह की सामूहिक हिंसा किसी आरोप, अफवाह या धार्मिक, जातीय, या सांप्रदायिक तनाव के आधार पर होती हैं। अफ़वाह का फैलना कई बार भीड़ हत्या का कारण बनता है।
मॉब लिंचिंग का इतिहास
भारत में मॉब लिंचिंग की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इनकी संख्या में वृद्धि हुई है और इन्हें अधिक ध्यान मिला है।भारत में भीड़ हत्या का इतिहास इस प्रकार है:
प्राचीन और औपनिवेशिक काल:
पारंपरिक न्याय प्रणाली: भारत के प्राचीन समाज में, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, पारंपरिक न्याय प्रणाली के तहत पंचायतें फैसले करती थीं। कभी-कभी इन फैसलों में सामूहिक दंड भी शामिल होता था, जो भीड़ हत्या जैसा हो सकता था।
ब्रिटिश शासन: ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं होती थीं, लेकिन इन पर नियंत्रण रखने के लिए सख्त कानून लागू किए गए थे।
स्वतंत्रता के बाद:
सांप्रदायिक हिंसा: भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के समय (1947) सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाएं हुईं, जिनमें मॉब लिंचिंग भी शामिल थी। हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव और हिंसा इस दौर में चरम पर थी।
जातिगत हिंसा: दलितों और पिछड़े वर्गों के खिलाफ ऊंची जातियों द्वारा किए गए अत्याचारों में भी भीड़ हत्या की घटनाएं देखी गईं।
हाल के वर्षों में:
गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग: 2015 के बाद, गोरक्षा के नाम पर भीड़ हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं। इनमें मुख्यतः मुस्लिम समुदाय के लोग निशाना बने हैं। उदाहरण के लिए, 2015 में दादरी (उत्तर प्रदेश) में मोहम्मद अखलाक की हत्या कर दी गई थी, उन पर गोमांस रखने का आरोप लगाया गया था।
बच्चा चोरी की अफवाहें: सोशल मीडिया पर फैलने वाली बच्चा चोरी की अफवाहों के कारण भी कई मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं। 2018 में झारखंड में बच्चा चोरी के शक में सात लोगों की हत्या कर दी गई थी।
धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव: धार्मिक और सांप्रदायिक तनाव के कारण भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं होती रही हैं। 2019 में झारखंड में तबरेज़ अंसारी की हत्या कर दी गई थी, उन पर चोरी का आरोप लगाया गया था और उनसे धार्मिक नारे लगवाए गए थे। इसी प्रकार कोविड़ के दौरान पालघर में दो साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई।
मॉब लिंचिंग के कारण
मॉब लिंचिंग के कई कारण हो सकते है, मॉब लिंचिंग के कारण निम्न तत्वों के आधार पर समझे जा सकते हैं:
1.सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव
भारत में धार्मिक और जातीय विभाजन गहरा है। विभिन्न समुदायों के बीच मौजूद अविश्वास और तनाव हिंसा का कारण बन सकता है।
भारत में धर्म और जाति के नाम पर होने वाली हिंसा की जड़ें काफी मज़बूत हैं। वर्तमान में लगातार बढ़ रहीं लिंचिंग की घटनाएँ अधिकांशतः असहिष्णुता और अन्य धर्म तथा जाति के प्रति घृणा का परिणाम है।
वर्ष 2002 में हरियाणा के पाँच दलितों की गौ हत्या के आरोप में लिंचिंग कर दी गई थी। वहीं सितंबर 2015 में एक अज्ञात समूह ने मोहम्मद अखलाक और उनके बेटे दानिश पर गाय की हत्या करने और मांस का भंडारण करने का आरोप लगाते हुए पीट-पीट कर उनकी हत्या कर दी थी।
2. अफवाहें और गलतफहमियाँ
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अफवाहें और झूठी खबरें तेजी से फैलती हैं, जिससे भीड़ हिंसा के लिए उकसाई जाती है। जैसे, बच्चा चोरी की अफवाहें कई मॉब लिंचिंग की घटनाओं का कारण बनी हैं।
गाँवों और छोटे कस्बों में फैलने वाली स्थानीय अफवाहें भी मॉब लिंचिंग को प्रेरित कर सकती हैं।
3.कानूनी और न्यायिक व्यवस्था में अविश्वास
न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी और भ्रष्टाचार के कारण लोग न्याय प्रणाली पर भरोसा नहीं करते और खुद न्याय करने की कोशिश करते हैं।
कभी-कभी पुलिस की निष्क्रियता या भ्रष्टाचार के कारण लोग कानून अपने हाथ में ले लेते हैं।
4.राजनीतिक और सांस्कृतिक कारण
कुछ राजनीतिक समूह और नेता सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए भीड़ को उकसाते हैं और इसका फायदा उठाते हैं।
कुछ जगहों पर पुरानी सांस्कृतिक परंपराओं और प्रथाओं के कारण भी भीड़ हत्या होती है।
5. आर्थिक असमानता और बेरोजगारी
आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, और गरीबी के कारण लोगों में असंतोष बढ़ता है, जिससे वे आसानी से उग्र हो सकते हैं।
संसाधनों की कमी और सामाजिक असमानता भी तनाव और हिंसा का कारण बन सकती है।
6. सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की अज्ञानता
लोगों में शिक्षा और सामाजिक न्याय के प्रति जागरूकता की कमी होती है, जिससे वे आसानी से हिंसा में शामिल हो जाते हैं।
मानवाधिकारों के प्रति अज्ञानता भी भीड़ हत्या की घटनाओं का एक बड़ा कारण है।
7. मीडिया का प्रभाव
मीडिया में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की कवरेज भी लोगों को उकसा सकती है, जिससे वे हिंसा को न्यायसंगत मानने लगते हैं।
8. समूह मानसिकता
अक्सर यह कहा जाता है कि ‘भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता’ और शायद इसी कारण से भीड़ में मौजूद लोग सही और गलत के बीच फर्क नहीं करते हैं।
भीड़ में शामिल लोग व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं कर सकते, लेकिन समूह में वे अधिक उग्र और हिंसक हो जाते हैं।
भीड़ में हर व्यक्ति यह सोचता है कि वह व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं है, जिससे उनकी हिंसक प्रवृत्तियाँ बढ़ती हैं।
मॉब लिंचिंग के विरुद्ध संवैधानिक प्रावधान
मॉब लिंचिंग कानून, मॉब लिंचिंग के खिलाफ भारत में कुछ संवैधानिक प्रावधान, केंद्रीय कानून और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए विशेष कानून हैं। यह प्रावधान और कानून भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा को रोकने और प्रभावित व्यक्तियों को न्याय दिलाने का प्रयास करते हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC) में लिंचिंग जैसी घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर किसी तरह का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इन्हें धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जान बूझकर घायल करना), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठे होना) तथा धारा- 34 (सामान्य आशय) के तहत ही निपटाया जाता है।
भीड़ द्वारा किसी की हत्या किये जाने पर IPC की धारा 302 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है और इसी तरह भीड़ द्वारा किसी की हत्या का प्रयास करने पर धारा 307 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है तथा इसी के तहत कार्यवाही की जाती है।
भारत का संविधान विभिन्न मौलिक अधिकार प्रदान करता है जो भीड़ हत्या के खिलाफ रक्षा करते हैं:
अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता: यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: यह अनुच्छेद भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता अनुचित हिंसा और अफवाहों को फैलाने के लिए नहीं होनी चाहिए।
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण: यह अनुच्छेद प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जो मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं में उल्लंघित होता है।
मॉब लिंचिंग कानून
मॉब लिंचिंग के खिलाफ कोई विशेष केंद्रीय भीड़ हत्या कानून है, लेकिन भारतीय दंड संहिता (IPC) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत विभिन्न प्रावधान भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति देते हैं:
धारा
विवरण
सजा
धारा 103(2)
पाँच या अधिक व्यक्तियों का समूह नस्ल, जाति, समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार पर हत्या करता है।
मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास और अर्थदण्ड
धारा 117(4)
पाँच या अधिक व्यक्तियों का समूह किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाता है।
सात वर्ष तक की कारावास और अर्थदण्ड
धारा 302 (IPC)
हत्या
मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास
धारा 307 (IPC)
हत्या का प्रयास
दस वर्ष तक की कारावास या आजीवन कारावास
धारा 147 (IPC)
दंगा
दो वर्ष तक की कारावास या जुर्माना
धारा 148 (IPC)
घातक हथियार रखकर दंगा करना
तीन वर्ष तक की कारावास या जुर्माना
मॉब लिंचिंग कानून
राज्य सरकार के कानून
कई राज्यों ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ विशेष मॉब लिंचिंग कानून बनाए हैं:
मणिपुर: मणिपुर सरकार ने 2018 में “मणिपुर प्रोटेक्शन फ्रॉम मॉब वायलेंस ऑर्डिनेंस” पारित किया।
राजस्थान: राजस्थान ने “राजस्थान प्रोटेक्शन फ्रॉम लिंचिंग बिल, 2019” पारित किया, जिसमें दोषियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।
मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश ने भी मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाया है, जिसमें दोषियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है।
मॉब लिंचिंग की घटनाएं
मॉब लिंचिंग की घटनाएं न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में एक गंभीर सामाजिक समस्या रही हैं। अलग-अलग देशों में इसके कारण और प्रकृति भिन्न हो सकते हैं, लेकिन मूलभूत समस्या अक्सर समान होती है: भीड़ द्वारा कानून को अपने हाथ में लेकर न्याय करने की कोशिश। मॉब लिंचिंग का इतिहास इस प्रकार हैं:
संयुक्त राज्य अमेरिका
जिम क्रो युग: इस युग में, नस्लीय भेदभाव और हिंसा के कारण अफ्रीकी अमेरिकियों के खिलाफ लिंचिंग की घटनाएं बढ़ गईं। 1882 से 1968 के बीच, लगभग 4,743 लोग लिंचिंग का शिकार बने, जिनमें से अधिकतर अफ्रीकी अमेरिकी थे।
दक्षिण अफ्रीका
सांप्रदायिक और नस्लीय हिंसा: 20वीं सदी के उत्तरार्ध में, अपार्थाइड के दौरान और उसके बाद, दक्षिण अफ्रीका में भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाएं बढ़ गईं। इसमें विभिन्न नस्लीय और सांप्रदायिक समूहों के बीच टकराव शामिल थे।
ब्राज़ील
गैंग हिंसा: गैंग और मादक पदार्थों के व्यापार से जुड़े अपराधों में भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं।
भारत में घटनाएं
भारत में मॉब लिंचिंग की घटनाएं कई कारणों से होती हैं और विभिन्न समयों पर देश के विभिन्न हिस्सों में देखने को मिली हैं। यहाँ कुछ प्रमुख घटनाओं का विवरण दिया गया है जो एक तारह से मॉब लिंचिंग का इतिहास है :
1. दादरी घटना (2015)
स्थान: दादरी, उत्तर प्रदेश
विवरण: 28 सितंबर 2015 को, 50 वर्षीय मोहम्मद अखलाक को एक भीड़ ने गोमांस रखने के शक में पीट-पीटकर मार डाला। यह घटना देशभर में चर्चा का विषय बनी और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया।
2. झारखंड घटना (2017)
स्थान: झारखंड
विवरण: मई 2017 में झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में, बच्चा चोरी के शक में सात लोगों को मॉब लिंचिंग का शिकार बनाया गया। सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों के कारण ये घटनाएं हुईं।
3. अलवर घटना (2017)
स्थान: अलवर, राजस्थान
विवरण: अप्रैल 2017 में, पहलू खान नामक व्यक्ति को गोतस्करी के शक में भीड़ ने मार डाला। पहलू खान और उसके बेटे मवेशी खरीदने के बाद लौट रहे थे, जब भीड़ ने उन पर हमला किया।
4. झारखंड घटना (2019)
स्थान: सरायकेला-खरसावां, झारखंड
विवरण: जून 2019 में, तबरेज़ अंसारी को चोरी के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। भीड़ ने उससे धार्मिक नारे भी लगवाए थे। यह घटना मीडिया और समाज में व्यापक चर्चा का विषय बनी।
5. राजस्थान घटना (2019)
स्थान: राजस्थान
विवरण: जुलाई 2019 में, लालू राम नामक व्यक्ति को गोतस्करी के शक में भीड़ ने मार डाला। लालू राम अपने परिवार के साथ गायों को लेकर जा रहा था, जब उस पर हमला हुआ।
मॉब लिंचिंग के प्रभाव
मॉब लिंचिंग के प्रभाव हमेशा से ही नकारात्मक होते है, जो समाज की एकजुटता और विविधता में एकता के विचार को प्रभावित करता है मॉब लिंचिंग भारत जैसे बहुधार्मिक देश में आम लोगों के मध्य असंतोष तथा अशांति की भावना को जन्म देता है। इससे समाज में बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का माहौल पैदा होता है और जाति, वर्ग तथा सांप्रदायिक घृणा को बढ़ावा मिलता है।
समाज पर प्रभाव:
सामाजिक अस्थिरता: मॉब लिंचिंग से समाज में भय और अस्थिरता फैलती है। लोग अपने सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं और समाज में अविश्वास का माहौल बनता है।
सामाजिक विभाजन: ऐसी घटनाएं अक्सर समुदायों के बीच दरार पैदा करती हैं और धार्मिक, जातीय, या सांस्कृतिक विभाजन को गहरा करती हैं।
कानून व्यवस्था पर प्रभाव: मॉब लिंचिंग के कारण कानून व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पुलिस और न्यायिक प्रणाली पर विश्वास घटता है।
आर्थिक प्रभाव: ऐसे घटनाओं से व्यापार और पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है।
सांस्कृतिक और नैतिक गिरावट: मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं समाज की नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट को दर्शाती हैं।
व्यक्तिगत प्रभाव:
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: पीड़ितों को गंभीर शारीरिक चोटें हो सकती हैं और इन घटनाओं का गहरा मानसिक आघात पड़ता है।
मानसिक तनाव और भय: मॉब लिंचिंग के शिकार व्यक्तियों और उनके परिवारों को गहरा मानसिक तनाव और भय होता है।
सामाजिक बहिष्कार: पीड़ित और उनके परिवार को समाज में बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनका सामाजिक जीवन प्रभावित होता है।
आर्थिक नुकसान: मॉब लिंचिंग के कारण व्यक्ति और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर यदि पीड़ित परिवार के एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति हो।
न्याय की कमी: पीड़ित और उनके परिवार को न्याय मिलने में कठिनाई हो सकती है, जिससे उनका न्याय प्रणाली पर विश्वास कमजोर हो सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश
राज्य सरकारें प्रत्येक ज़िले में मॉब लिंचिंग और हिंसा को रोकने के उपायों के लिये एक सीनियर पुलिस अधिकारी को प्राधिकृत करेंगी।
राज्य सरकारें शीघ्रता से उन ज़िलों, उप-ज़िलों, गाँवों की पहचान करेंगी जहाँ हाल ही में मॉब लिंचिंग की घटनाएँ हुई हैं।
नोडल अधिकारी मॉब लिंचिंग से संबंधित अंतर ज़िला स्तरीय मुद्दों को राज्य के DGP के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
केंद्र तथा राज्य सरकारों को रेडियो, टेलीविज़न और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह प्रसारित कराना होगा कि किसी भी प्रकार की मॉब लिंचिंग एवं हिंसा की घटना में शामिल होने पर विधि के अनुसार कठोर दंड दिया जा सकता है।
विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित ऐसे गैर-ज़िम्मेदार और भड़काऊ संदेशों तथा अन्य सामग्री पर प्रतिबंध लगाना चाहिये जिनसे समाज में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएँ घटित होती हैं। ऐसे संदेश फैलाने वालों पर उचित प्रावधान के अंतर्गत FIR दर्ज करनी चाहिये।
राज्य सरकारें मॉब लिंचिंग से प्रभावित व्यक्तियों के लिये क्षतिपूर्ति योजना प्रारंभ करेगी।
राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि पीड़ित के परिवार के किसी भी व्यक्ति का पुनः उत्पीड़न न हो।
निष्कर्ष
इस ब्लॉग में आपने जाना कि मॉब लिंचिंग एक ऐसी घटना है जिसमें एक अनियंत्रित भीड़ किसी व्यक्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया के स्वयं न्याय करते हुए हिंसा का शिकार बना देती है। यह घटना आमतौर पर किसी आरोप या अफवाह के आधार पर होती है, और भीड़ बिना किसी साक्ष्य या न्यायिक प्रक्रिया के ही व्यक्ति को मारने या उसे गंभीर रूप से चोट पहुँचाने की कोशिश करती है। मॉब लिंचिंग पूरी तरह से ग़ैर कानूनी है तथा देश में अलगाव, सामाजिक तथा धार्मिक अस्थिरता पैदा कर देती है।इस ब्लॉग में आपको मॉब लिंचिंग का अर्थ, परिभाषा और इससे सम्बंधित घटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी मिली।
मॉब लिंचिंग एक हिंसक कृत्य है जिसमें एक भीड़ किसी व्यक्ति या समूह पर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के हमला करती है और अक्सर उनकी हत्या कर देती है। यह एक अपराध है जिसमें अक्सर अफवाहें, धार्मिक या सामाजिक तनाव, या व्यक्तिगत दुश्मनी की भूमिका होती है।
मॉब लिंचिंग का कानून क्या है?
भारत में मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए कई कानून हैं, जिनमें शामिल हैं:
1. भारतीय दंड संहिता (IPC): इस संहिता में हत्या, जानलेवा हमला, अपहरण, और दंगा जैसे अपराधों के लिए कानून हैं। मॉब लिंचिंग के मामलों में इन धाराओं के तहत मुकदमे चलाए जाते हैं।
2. कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य सरकारों के कानून: कई राज्यों ने मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए अपने स्वयं के कानून बनाए हैं।
3. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं, जिनमें पुलिस को त्वरित कार्रवाई करने और दोषियों को दंडित करने के लिए कहा गया है।
लिंचिंग का मतलब क्या होता है?
लिंचिंग एक समूह द्वारा की गई न्यायेतर हत्या है। इसका इस्तेमाल अक्सर भीड़ द्वारा किसी कथित अपराधी को दंडित करने, दोषी अपराधी को दंडित करने या लोगों को डराने के लिए अनौपचारिक सार्वजनिक निष्पादन को चिह्नित करने के लिए किया जाता है।
भारत में कानून कौन लागू करता है?
भारत में कानून को लागू करने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से पुलिस और न्यायपालिका की होती है।
मूल कानून क्या है?
मूल कानून या संविधान एक देश का सर्वोच्च कानून होता है। यह देश के शासन, नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों, और कानून बनाने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है।