Quick Summary
नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत में एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो 1985 से 2017 तक चला। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था नर्मदा नदी पर बन रहे बांध (सरदार सरोवर बांध) के विरोध में लोगों को जोड़ना और नदी के आसपास के स्थानों पर रहने वाले लोगों के हक की रक्षा करना।
इस आंदोलन के चलते बहुत से लोगों को उनके गाँवों से बाहर निकाला गया। जिनके घर सरदार सरोवर बांध बनने के चलते डूब गए। नर्मदा बचाओ आंदोलन मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, और महाराष्ट्र के क्षेत्रों में नर्मदा नदी के ऊपर बनने वाले नर्मदा सागर डैम के खिलाफ हुआ। आज यहां आप जानेंगे की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ और नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है।
नर्मदा नदी को भारत की माता भी माना जाता है। नर्मदा नदी कहां है? तो नर्मदा नदी भारत में मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों से बहती है।नर्मदा नदी के भूगोल के बारे में :
1. उपतट पृथ्वी की प्राचीन नदी: इसे ‘पुरानी नदी’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसका पुरातन काल में प्रवाह था।
2. लंबाई: नर्मदा नदी की लंबाई करीब 1312 किलोमीटर है।
3. प्राचीन सांस्कृतिक महत्व: नर्मदा नदी के किनारे कई प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं, जैसे महेश्वर और ओंम्कारेश्वर। जो हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित है।
4. कृषि और अर्थव्यवस्था का संजीवनी भूमि: नर्मदा के किनारे की जमीन अन्न उत्पादन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
5. वानिकी और वन्य जीवन: नर्मदा नदी के आस-पास बहुत से जलजीवन है, जिसमें समुद्री जीवन शामिल हैं। यहां पर प्रमुख प्रजातियों में मगरमच्छ और गैंडा शामिल हैं।
इस प्रकार, नर्मदा नदी का भूगोल विभिन्न पहलुओं में बहुत महत्वपूर्ण है।
नर्मदा नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व विभिन्न आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। नर्मदा नदी भारत में प्राचीनतम और महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। इसके पास कई धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल हैं जो नदी का महत्व बढ़ाते हैं।
नर्मदा नदी, भारतीय प्राचीनतम नदियों में से एक है और नर्मदा नदी का इतिहास बहुत पुराना है। यह नदी हजारों सालों से मानव जाती का एक हिस्सा रही है। यहां नर्मदा नदी का इतिहास कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं में बताया गया है:
1. प्राचीनता: नर्मदा नदी के बारे में वेदों, पुराणों और अन्य पुरातन भारतीय ग्रंथों में भी लिखा गया है। नर्मदा नदी को मां नर्मदा के रूप में पूजा जाता है। नर्मदा नदी से बहुत से पुरातत्त्वीय अवशेष निकले हैं।
2. युद्ध-संबंधी इतिहास: नर्मदा नदी के ऐसे बहुत से स्थल है जहां ऐतिहासिक लड़ाइयां, शासकीय और सामरिक घटनाएं हुई हैं। कई ऐतिहासिक घटनाओं में नदी का उल्लेख मिलता है जो इसका महत्व बढ़ाते हैं।
3. सांस्कृतिक महत्व: नदी के तट पर बहुत से पुराने सांस्कृतिक स्थल भी हैं, जैसे की केदारिकूण्ड, भेडाघाट, महेश्वर, ऑंचलेश्वर, अमरावती, चौबीसी, आदि। आपको इन स्थलों पर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी देखने को मिलेंगे।
4. ऐतिहासिक नगरी: नर्मदा नदी के किनारे पर कई प्राचीन नगरी भी हैं, जैसे की महेश्वर और होशंगाबाद, जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।
5. वाणिज्यिक महत्व: इस नदी के तट पर कई गांव और शहर हैं। जो कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके तटीय क्षेत्रों में कृषि और व्यापार भी किया जाता है।
नर्मदा नदी भारत की महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। जिसका ऐतिहासिक महत्व बहुत ही शानदार रहा है। नर्मदा नदी का इतिहास भारतीय सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण रहा है।
नर्मदा नदी का ऐतिहासिक महत्व विभिन्न पहलुओं में दिखाई देता है।
नर्मदा नदी अनेक धार्मिक और पर्यटनीय गतिविधियों का केंद्र है। जो कई महत्वपूर्ण स्थलों से गुजरती है। जैसा की सब लोग जानते हैं की नर्मदा नदी कहां है लेकिन इसके कुछ प्रमुख स्थल और घटनाएं भी हैं जो नर्मदा नदी से जुड़ी हुई हैं:
नर्मदा बचाओ आंदोलन पर्यावरणीय आंदोलन था। इस आंदोलन का मुख्य लक्ष्य था की नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का जो विरोध किया जा रहा है उसके लिए संगठित होकर प्रदर्शन करना और नदी के प्राकृतिक संतुलन को बचाने के लिए लड़ाई लड़ना।
इस आंदोलन का मुख्य आधार था कि नर्मदा नदी पर बांधों के बनने से स्थानीय आदिवासी समुदायों, किसानों और वनवासियों के परंपरागत जीवन और संसाधनों पर असर पड़ेगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन का एक महत्वपूर्ण तत्व था “नर्मदा बचाओ अभियान” जिसने लोकतांत्रिक विधियों में सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक प्रस्तावों पर रोक लगाई थी। इस आंदोलन ने अनेक प्रमुख निर्माताओं, सरकारी विद्वेष और सुप्रीम कोर्ट तक में विवाद खड़ा कर दिया था।
नर्मदा बचाओ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नर्मदा नदी पर बनने वाले सर्वोच्च नर्मदा सागर डैम के विरोध में समर्थन जुटाना था।
परियोजना का विरोध | नर्मदा बचाओ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नर्मदा नदी पर बनने वाले नर्मदा सागर परियोजना के खिलाफ विरोध करना था। |
ग्रामीणों को नुकसान | कई गाँवों को अपनी धरोहर, जीवनधारा, और आवास खोना पड़ता। |
प्रकृति को हानि | लोगों ने इस आंदोलन के माध्यम से नदी के संरक्षण, अवासीय जनजातियों और जलवायु संवर्धन के अधिकारों की रक्षा करने के लिए आवाज उठाई थी। |
नर्मदा नदी पर निर्मित हो रहे सर्वोच्च डैम (सरदार सरोवर डैम) के विरोध में यह आंदोलन किया जा रहा था। इस आंदोलन का महत्व विभिन्न पहलुओं में समझे :
पर्यावरणीय पहलू: नर्मदा नदी के प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखना इस आंदोलन का पहलू था। सरदार सरोवर डैम के निर्माण से प्राकृतिक संसाधनों, वन्य जीवन और प्राकृतिक वातावरण पर असर जरूर पड़ता।
न्यायिक पहलू: विभिन्न उच्चतम न्यायालयों में इस डैम को बनाने के खिलाफ याचिकाएं दायर की गईं। यह आंदोलन भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में भी प्रभावी रहा।
सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू: यह आंदोलन वहां रहने वाले आदिवासी समुदायों के हित में भी था क्योंकि उनकी जीवनधारा और संस्कृति नर्मदा नदी के आधार पर निर्भर करती थी।
राजनीतिक पहलू: इस आंदोलन ने राजनीतिक दलों और सरकारी प्रशासन पर भी दबाव डाला। इसका उन पर प्रभाव पड़ता जिसके कारण उन्होंने इसके विरोध में अपनी आवाज उठाई।
जो लोग नहीं जानते की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ तो उनकी जानकारी के लिए यह आंदोलन 1985 में शुरू हुआ और इसके अंतर्गत बड़े और छोटे बांधों के विरोध में लोगों ने आंदोलन किया। इसके दौरान लोगों ने अपने हक की रक्षा करने के लिए न्यायालयों के भी चक्कर लगाए।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की शुरुआत भारत में जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के लिए हुई थी। यह आंदोलन मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के बीच बसी नर्मदा नदी के लिए था। नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ एवं इसकी मुख्य घटनाएँ और समयरेखा निम्न हैं:
नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ (1985-1989): आंदोलन नर्मदा सरदार सरोवर बांध के विरोध में शुरू हुआ। इस बांध के निर्माण के परिणामस्वरूप स्थानीय लोगों के अधिकारों पर प्रभाव पड़ा।
1990s: इस समय आंदोलन को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में एक बड़े रूप में लिया गया। जिसमें स्थानीय लोग, आदिवासियों , नागरिक समाज संगठनों और पर्यावरण संरक्षण गैर सरकारी संगठन शामिल थे।
2000s: भारतीय सरकार ने आंदोलन की शिकायतों पर नजर डाली, लेकिन बांध के निर्माण को आगे बढ़ाया गया। इसके बाद आंदोलन ने संगठन, न्यायिक लड़ाई और सामाजिक चेतना में सफलता प्राप्त की।
वर्तमान समय: आज भी यह आंदोलन अनेक संगठनों और समर्थक विभिन्न राज्यों में सक्रिय हैं, जो नर्मदा नदी के निहित समस्याओं के विरुद्ध संघर्ष जारी रख रहे हैं।
इस आंदोलन के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां और घटनाएं हैं:
तिथियां | घटनाएं |
1985 | जल-जंगल-जमीन सभा की स्थापना |
1989 | बाबा अम्बेडकर नगर |
1991-1993 | नर्मदा बचाओ आंदोलन |
1993 | आंदोलन का राष्ट्रीय स्तर पर उदघाटन |
2000 | नर्मदा बचाओ आंदोलन का सर्वेक्षण |
2000 | आंदोलन का समापन |
यह शुरूआती घटनाएं दर्शाती हैं कि नर्मदा बचाओ आंदोलन एक महत्वपूर्ण आंदोलन रहा है। यहां कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हैं:
आंदोलन के मुख्य नेताओं में मेधा पाटकर, बाबा अम्बेडकर, अच्युत पटवर्धन, नरेंद्र पटेल और अनिल गुप्ता शामिल थे। इन नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और सामाजिक, राजनीतिक, और कानूनी प्रयासों के माध्यम से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया।
नर्मदा बचाओ आंदोलन “भारत की जीवनदायिनी नदी नर्मदा” की संरक्षा और सुरक्षा के लिए एक आंदोलन था। इस आंदोलन के द्वारा संघर्ष किया गया कि बांधों से होने वाले प्रभावित लोगों के जीवन पर किस प्रकार का असर पड़ेगा।
यह तो आप जान ही गए की नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है लेकिन इसके पर्यावरण पर क्या प्रभाव हुए तो नर्मदा बचाओ आंदोलन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय आंदोलन था। जिसका मुख्य उद्देश्य नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण के खिलाफ विरोध करना था।
विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दे इस आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे। नर्मदा बचाओ आंदोलन का एक मुख्य मुद्दा विस्थापन था, जिसमें लाखों लोगों को उनके निवास स्थानों से हटाकर अन्य स्थानों पर पुनर्वास किया जाना पड़ा। इन विस्थापित लोगों के जीवन पर बांधों का सीधा प्रभाव पड़ता है
इस आंदोलन का मुख्य ध्येय नदी के निर्माण से प्रभावित होने वाले गांवों और लोगों के पुनर्वास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना था। जिनमें कई गांव और समुदायों को उनकी धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना से दूर किया गया, नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सामाजिक न्याय की मांग की।
अब आपको जानकारी मिल गई होगी की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ और नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है। जैसा की नर्मदा बचाओ आंदोलन एक लंबे समय तक चलने वाला और सशक्त आंदोलन रहा है। यह आंदोलन जल और पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण था। आज के इस ब्लॉग में आपने नर्मदा बचाओ आंदोलन की पूरी जानकारी प्राप्त की जैसे: नर्मदा नदी कहां है, नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ आदि।
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आंदोलन के दौरान और बाद में कई रिपोर्टें प्रकाशित की गईं, जैसे कि “नर्मदा बागायती रिपोर्ट” और “सर्वे रिपोर्ट्स,” जिन्होंने बांधों के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया।
भूख हड़ताल ने आंदोलन को प्रमुखता प्रदान की और नियोक्ता और सरकार पर दबाव बनाया। यह आंदोलन के प्रमुख रणनीतिक औजारों में से एक था, जिससे आंदोलक अपनी मांगों को सार्वजनिक रूप से पेश कर सके।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों में 1994 में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई सीमित करने और 2000 में पुनर्वास योजनाओं को लागू करने के निर्देश शामिल हैं। इन निर्णयों ने आंदोलन की प्रमुख मांगों को मान्यता दी।
महिलाओं के योगदान पर आधारित डॉक्यूमेंट्रीज़ में “रिवर एंड द वॉर: द स्टोरी ऑफ़ द नर्मदा” और “नर्मदा: द साउंड ऑफ़ साइलेंस” जैसी फिल्में शामिल हैं, जो आंदोलन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।
प्रमुख पुस्तकें और लेखों में “सिस्टम ऑफ़ असेंबली: द रिवर ऑफ़ वॉर” और “मेडा पाटकर: द एंडल्स ऑफ़ नर्मदा” शामिल हैं, जो महिलाओं की भूमिका और उनके योगदान का विश्लेषण करते हैं।
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