पानीपत की लड़ाई

पानीपत की लड़ाई: इतिहास, कारण और परिणाम

Published on February 25, 2025
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Quick Summary

पानीपत, भारत का एक ऐतिहासिक शहर है, जो तीन प्रमुख पानीपत की लड़ाई का साक्षी रहा है। पानीपत में कुल तीन प्रमुख युद्ध हुए थे:

  • पहला युद्ध (1526): बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच हुआ। इस युद्ध में बाबर विजयी हुआ और मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
  • दूसरा युद्ध (1556): अकबर और हेमू के बीच हुआ। अकबर विजयी हुआ और मुगल साम्राज्य को मजबूत किया।
  • तीसरा युद्ध (1761): अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुआ। अहमद शाह अब्दाली विजयी हुआ और मराठा साम्राज्य को एक बड़ा झटका लगा।

Table of Contents

Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.

भारत के इतिहास में कई महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी गई है, जो कई बारी देश में आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट का कारण बना है। इन सभी लड़ाइयों में पानीपत की लड़ाई काफी अहम स्थान रखता है। ऐसे में मन में पानीपत की लड़ाई के बारे में जानने की इच्छा है, तो हम पानीपत की लड़ाई कब हुई थी, पानीपत की लड़ाई क्यों हुई थी और पानीपत की लड़ाई किसके बीच हुई, इस बारे में आगे विस्तार से बता रहे हैं।

पानीपत की लड़ाई कहां हुई थी?

पानीपत की लड़ाई कहां हुई थी , सोच रहे हैं, तो बता दें यह भारत के हरियाणा राज्य में स्थित पानीपत नामक स्थान में हुआ है।

पानीपत का भूगोल और महत्व

पानीपत की लड़ाई कहां हुई थी, इसका भूगोल और महत्व जानना जरूरी है। पानीपत भारत के उत्तरी भाग में स्थित है, जो दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर उत्तर में है। पानीपत ने भारतीय इतिहास में तीन महत्वपूर्ण लड़ाइयों को देखा है, जिन्हें पानीपत की लड़ाई के रूप में जाना जाता है। इन लड़ाइयों का भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इन ऐतिहासिक लड़ाइयों और मुगल व मराठा साम्राज्यों के साथ अपने जुड़ाव के कारण यह शहर सांस्कृतिक महत्व रखता है।

लड़ाई के स्थल का वर्णन

पानीपत की लड़ाई का स्थल उत्तरी भारत के फैले हुए मैदानों में हुआ था।

  • भूभाग: युद्ध के मैदान समतल और खुला भूभाग है, जो घुड़सवार सेना और पैदल सेना के लड़ाई के लिए बेहतर है।
  • सामरिक महत्व: पानीपत की भौगोलिक स्थिति ने इसे दिल्ली और भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों के बीच व्यापार मार्गों और सैन्य आंदोलनों को नियंत्रित करने के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया।
  • स्मारक: विभिन्न स्मारक पानीपत में लड़ी गई लड़ाइयों की याद दिलाते हैं, जो इतिहास और सैन्य वास्तुकला में रुचि रखने वाले लोगों को आकर्षित करते हैं।

पानीपत में ही क्यों होता था युद्ध?

दिल्ली को तबाही से बचाने और उसे सुरक्षित रखने के लिए ही दिल्ली के राजाओं द्वारा दिल्ली से पानीपत युद्ध किया जाता था। क्योंकि उस समय दिल्ली पर हमला कर उसकी गद्दी पर राज करने के लिए हमलावर पंजाब की तरफ से आते थे, जिन्हें दिल्ली जाने के लिए पानीपत से गुजरना पड़ता था।

जैसे ही दिल्ली के राजा को पता चलता था कि हमलावर दिल्ली पर हमला करने के लिए आ रहे हैं, दिल्ली के राजा द्वारा पहले ही पानीपत में अपना डेरा जमा लिया जाता था। हमलावरों को पानीपत में ही रोक लिया जाता था। जिसकी वजह से दिल्ली सुरक्षित रहती और जो भी राजा इस लड़ाई को जीत जाता था वह दिल्ली की गद्दी पर जाकर काबिज हो जाता। उस समय पानीपत एक ऐसा स्थान था जिसके दोनों तरह नहरे थी एक तरफ यमुना नहर, जबकि दूसरी तरफ दिल्ली पैरलर नहर थी। दोनों तरफ नहर नजदीक होने की वजह से दोनों सेनाओं को पानी आराम से मिल जाता था।

पानीपत की लड़ाई क्यों हुई थी?

पानीपत की लड़ाई क्यों हुई थी, इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार माना जाता है। इसके कुछ मुख्य कारणों के बारे में आगे विस्तार से जानेंगे।

लड़ाई के प्रमुख कारण और विवाद

  1. वंशीय उत्तराधिकार: पानीपत की लड़ाई और उसके बाद की लड़ाइयों के कारणों में से एक वंशवादी उत्तराधिकार और दिल्ली सल्तनत या भारतीय उपमहाद्वीप पर नियंत्रण करना था।
  2. क्षेत्रीय विस्तार: कई शासकों और साम्राज्यों ने अपने क्षेत्रों और प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश की, जिससे पानीपत जैसे राजनीतिक क्षेत्रों पर संघर्ष हुआ।
  3. विवाद: कई युद्ध होने का मुख्य कारण एक शासक का दूसरे शासक के साथ विवाद का होना है। यह विवाद गठबंधनों और व्यापार स्थल के कारण हो सकता है।

राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ

  1. राजनीतिक अस्थिरता: पानीपत की लड़ाई से पहले का समय राजनीतिक विखंडन और क्षेत्रीय और साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच वर्चस्व के संघर्षों को दर्शाता है।
  2. साम्राज्यों का उदय: पानीपत की लड़ाइयों ने भारतीय इतिहास में कई साम्राज्यों के उदय और सुदृढ़ीकरण को दर्शाया, जिसमें मुगल साम्राज्य और मराठों जैसी क्षेत्रीय शक्तियाँ शामिल थीं।
  3. सामाजिक गतिशीलता: इन लड़ाइयों के महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव थे, जिनका प्रभाव समाज के कई समुदायों और वर्गों पर पड़ा, जिसमें सैनिक, किसान, युद्ध और उसके बाद की घटनाओं से प्रभावित शहरी आबादी शामिल थी।

पानीपत का प्रथम युद्ध

पानीपत में कई युद्ध हुए, जो भारत के इतिहास में काफी गहरा छाप छोड़ा है।

  • कब: 21 अप्रैल 1526
  • किसके बीच हुई लड़ाई?: बाबर और इब्राहिम लोधी

पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ?

पानीपत की लड़ाई कब हुई थी, इसके जवाब में कौन से लड़ाई की बात कर रहे हैं। यह बहुत ही महत्व रखता है। पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 में हुआ था।

लड़ाई के प्रमुख कारण

  • यह लड़ाई मुख्य रूप से बाबर (मुगल साम्राज्य के संस्थापक) की भारत में अपना शासन स्थापित करने और तैमूर साम्राज्य के क्षेत्रों का विस्तार करने की महत्वाकांक्षा के कारण लड़ी गई थी।
  • बाबर का उद्देश्य दिल्ली सल्तनत की शक्ति को चुनौती देना था, जिस पर उस समय इब्राहिम लोदी का शासन था, और उत्तरी भारत पर नियंत्रण हासिल करना था।
  • ग्रैंड ट्रंक रोड, एक प्रमुख व्यापार मार्ग और दिल्ली से इसकी निकटता के कारण पानीपत को युद्ध के मैदान के रूप में चुना गया था।

पानीपत का प्रथम युद्ध किसके बीच हुआ?

पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच हुई। इस लड़ाई में बाबर ने मुख्य रूप से मध्य एशियाई तुर्क-मंगोल सैनिकों और अफगान सहयोगियों से बनी सेना का नेतृत्व किया। वहीं इब्राहिम लोदी ने दिल्ली सल्तनत की सेना का नेतृत्व किया, जिसमें मुख्य रूप से अफगान और भारतीय सैनिक शामिल थे।

बाबरइब्राहिम लोदी
मध्य एशियाई तुर्क-मंगोल सैनिकों और अफगान सहयोगदिल्ली सल्तनत की सेना(अफगान और भारतीय सैनिक)
लगभग 15,000 सैनिक और 20 से 24 तोपेंलगभग 30,000 से 40,000 सैनिक और कम-से-कम 1000 हाथी
पानीपत का प्रथम युद्ध किसके बीच हुआ?

युद्ध:

बाबर द्वारा शुरू की गई नई युद्ध रणनीति तुलुगमा और अराबा थी। तुलुगमा में पूरी सेना को लेफ्ट, राईट और केंद्र जैसी तीन इकाइयों में विभाजित किया गया। लेफ्ट और राइट डिवीजनों को आगे फॉरवर्ड और रियर डिवीजनों में विभाजित किया गया था। इसके कारण, एक छोटी सेना चारों ओर से दुश्मन को घेरने में सक्षम हो पाई। केंद्र फॉरवर्ड डिवीजन को carts(अराबा) प्रदान किये गए थे, जो दुश्मन का सामना करने वाली पंक्तियों में रखे गए थे और एक दूसरे से रस्सियों से बांधे गए थे।

इब्राहिम लोधी के पास एक विशाल सेना थी, फिर भी वह बाबर से हार गया। ऐसा कहा जा सकता है कि यह तोपखाने, तोप के कारण संभव हुआ। तोप की आवाज इतनी तेज थी कि उसने इब्राहिम लोधी के हाथियों को डरा दिया और लोधी के ही आदमियों को रौंद डाला। यह भी कहा जाता है कि बंदूकों और सभी के अलावा, यह एक बाबर की रणनीति थी जिसने उसे जीत हासिल कराई।

लड़ाई का परिणाम

पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर और मुगल साम्राज्य को जीत मिली। युद्ध के दौरान इब्राहिम लोदी मारा गया और बाबर की जीत ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। इस युद्ध ने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर मुगल शासन की शुरुआत की और इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन शुरू हुए।

पानीपत का द्वितीय युद्ध

पानीपत की प्रथम विश्व युद्ध जितना घमासान था, उतना ही घमासान पानीपत का द्वितीय युद्ध भी था।

  • कब: 5 नवंबर, 1556
  • किसके बीच हुई लड़ाई?: सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य, (हेमू) और अकबर

पानीपत का द्वितीय युद्ध: समय और कारण

पानीपत की लड़ाई कब हुई थी? अगर पानीपत के द्वितीय युद्ध के बारे में बात करें तो, पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवंबर, 1556 को हुआ था। पानीपत की दूसरी लड़ाई दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक हुमायूं के मृत्यु के बाद हुआ। दरअसल, हुमायूं की मृत्यु के बाद, दिल्ली सल्तनत कमजोर हो गई। इसके चलते हेमू, जिन्हें चंद्रगुप्त के वंशज माना जाता है, ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और खुद को सम्राट घोषित कर दिया। युवा अकबर, अपने संरक्षक बैरम खान के साथ, हेमू से दिल्ली का सिंहासन वापस लेना चाहते थे, जिसके परिणाम स्वरुप दिल्ली के नजदीक पानीपत में लड़ाई को अंजाम दिया गया।

दूसरी लड़ाई के प्रमुख पक्ष और उनकी रणनीतियाँ

पानीपत का द्वितीय युद्ध अकबर के मुगल साम्राज्य और हेमू के नेतृत्व में अफगान और भारतीय शासकों के गठबंधन के बीच हुआ था। अकबर की सेना में फारसी, भारतीय और मध्य एशियाई सैनिकों शामिल थी। उन्होंने तोपखाने और घुड़सवार सेना की रणनीति का इस्तेमाल किया, जिसमें गतिशीलता और समन्वय पर ध्यान दिया गया। हेमू, एक प्रमुख अफगान रईस और दिल्ली के प्रशासन में मंत्री, ने अफगानों, राजपूतों और अन्य भारतीय सहयोगियों से मिलकर एक गठबंधन सेना तैयार की। उनकी रणनीति मुगल सेनाओं को परास्त करने के लिए हाथियों और पारंपरिक भारतीय युद्ध रणनीति का उपयोग करना था।

लड़ाई का परिणाम और प्रभाव

पानीपत की दूसरी लड़ाई के परिणामस्वरूप अकबर के अधीन मुगल साम्राज्य को जीत मिली। इस जीत ने उत्तरी भारत पर मुगल नियंत्रण को मजबूत किया और इस क्षेत्र में अफगान रईसों की शक्ति को एक बड़ा झटका मिला। यह अकबर की शक्ति के वृद्धि और मुगल साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इस लड़ाई ने पारंपरिक भारतीय और अफगान रणनीति के खिलाफ मुगल तोपखाने और सैन्य संगठन की प्रभावशीलता को भी उजागर किया, जिसने क्षेत्र में बाद की सैन्य रणनीतियों को प्रभावित किया।

पानीपत का तृतीय युद्ध

पानीपत की भूमि से दो लड़ाई के रक्त धुले नहीं थे। इतने में इस भूमि को पानीपत का तृतीय युद्ध देखना पड़ गया।

कब: 14 जनवरी, 1761
किसके बीच लड़ाई हुई: मराठा साम्राज्य और अफगानिस्तान के राजा का गठबंधन, दो भारतीय मुस्लिम सहयोगियों के साथ अहमद शाह दुर्रानी अर्थात दोआब के रोहिला अफगान और अवध के नवाज शुजा-उद-दौला के साथ

पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई थी

पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 को हुई थी।

लड़ाई के कारण और घटनाएं

  • कारण- पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा साम्राज्य और दुर्रानी साम्राज्य (अहमद शाह दुर्रानी के नेतृत्व में, जिसे अहमद शाह अब्दाली के नाम से भी जाना जाता है) के बीच लड़ी गई। यह लड़ाई भारत के उत्तरी क्षेत्र पर दुर्रानी के नियंत्रण को कमजोर करने के लिए हुई।
  • घटनाएं- सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में मराठों ने उत्तरी भारत में अपने प्रभाव का विस्तार किया और अपनी शक्ति को मजबूत करने की कोशिश की। अहमदशाह दुर्रानी ने मराठों द्वारा उत्पन्न खतरे को पहचानते हुए, उनकी प्रगति का मुकाबला करने के लिए अपनी सेना को अफगानिस्तान से भेजा। यह लड़ाई अपने आप में एक बहुत बड़ी और क्रूर लड़ाई थी, जिसमें दोनों पक्षों ने हजारों सैनिकों, घुड़सवार सेना और तोपखाने का इस्तेमाल किया था।

लड़ाई के प्रमुख नायक और परिणाम

पानीपत की लड़ाई किसके बीच हुई? यह लड़ाई मराठा सेना कमांडर सदाशिव राव भाऊ और अहमद शाह अब्दाली के बीच में हुआ।

पानीपत का तृतीय युद्ध में अहमद शाह दुर्रानी और दुर्रानी साम्राज्य की जीत हुई। मराठों को भारी क्षति हुई और उन्हें कई इलाकों का नुकसान उठाना पड़ा। इस युद्ध ने उत्तरी भारत में मराठा विस्तार को समाप्त कर दिया और इस क्षेत्र में उनकी शक्ति और प्रभाव को काफी कमजोर कर दिया। इस युद्ध ने उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों पर अहमद शाह दुर्रानी के नियंत्रण को मजबूत किया।

पानीपत की लड़ाई के परिणाम

पानीपत की पहली, दूसरी और तीसरी लड़ाई के तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव हुए है।

लड़ाई का तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव

पानीपत की पहली लड़ाई (1526):

  • तात्कालिक प्रभाव: बाबर की जीत ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। इब्राहिम लोदी मारा गया और दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया।
  • दीर्घकालिक प्रभाव: बाबर ने उत्तरी भारत पर अपने शासन को मजबूत किया और भारतीय क्षेत्रों को तैमूर साम्राज्य में एकीकृत करने की प्रक्रिया शुरू की।

पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556):

  • तात्कालिक प्रभाव: अकबर की जीत ने उत्तरी भारत में मुगल अधिकार को मजबूत किया।
  • दीर्घकालिक प्रभाव: अकबर ने मुगल साम्राज्य का और विस्तार किया और प्रशासनिक सुधारों की नीतियों की शुरुआत करते हुए केंद्रीय अधिकार को मजबूत किया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761):

  • तात्कालिक प्रभाव: अहमद शाह दुर्रानी की जीत ने उत्तरी भारत में मराठा साम्राज्य के प्रभाव को कमजोर कर दिया और मराठों को महत्वपूर्ण क्षेत्रीय नुकसान हुआ। मराठों ने उत्तरी भारत में अपना वर्चस्व खो दिया और आंतरिक अस्थिरता का सामना किया, जिससे उनकी भावी सैनिक और राजनीतिक नीतियों पर असर पड़ा। इस युद्ध ने उत्तर भारत के कुछ हिस्सों पर दुर्रानी साम्राज्य के नियंत्रण की पुष्टि की और बाद के दशकों में गठबंधनों और संघर्षों को प्रभावित किया।
  • दीर्घकालिक प्रभाव: पानीपत की लड़ाई ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कलात्मक विकास को प्रभावित किया, विशेष रूप से मुगल साम्राज्य के तहत, जिसने एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा दिया। इन लड़ाइयों ने भारत के राजनीतिक को नया रूप दिया, जिसने सदियों से विभिन्न राजवंशों और क्षेत्रीय शक्तियों के प्रभुत्व को निर्धारित किया।

भारतीय इतिहास पर लड़ाई का असर

  • पानीपत की लड़ाई ने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण साम्राज्यों की नींव और विस्तार को चिह्नित किया, जिसमें बाबर और अकबर के अधीन मुगल साम्राज्य भी शामिल है।
  • इसने राजवंशीय परिवर्तन और सत्ता की गतिशीलता में बदलाव को जन्म दिया, जिससे विभिन्न क्षेत्रीय और साम्राज्यवादी ताकतों के बीच शक्ति संतुलन प्रभावित हुआ।
  • इन लड़ाइयों ने सांस्कृतिक अंतर्क्रियाओं, प्रशासनिक नीतियों और सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित किया।
  • पानीपत की लड़ाई भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बनी हुई है, जो सैन्य कौशल, रणनीतिक गठबंधनों और स्वदेशी शक्तियों पर बाहरी आक्रमणों के प्रभाव का प्रतीक है।

पानीपत की लड़ाई के नायक

पानीपत की लड़ाई में कई नायक शामिल थे। इन योद्धाओं के बारे में आगे विस्तार से जानेंगे।

प्रमुख योद्धा और उनकी वीरता

  • बाबर (पानीपत की पहली लड़ाई, 1526): बाबर ने असाधारण नेतृत्व और सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया, जिससे उसकी सेना दिल्ली सल्तनत के इब्राहिम लोदी के खिलाफ जीत की ओर अग्रसर हुई।
  • अकबर (पानीपत की दूसरी लड़ाई, 1556): अकबर, एक युवा शासक होने के बावजूद, हेमू के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना के खिलाफ मुगल सेना का नेतृत्व करने में रणनीतिक कौशल और साहस का प्रदर्शन किया।
  • अहमद शाह दुर्रानी (पानीपत की तीसरी लड़ाई, 1761): अहमद शाह दुर्रानी, ​​जिन्हें अहमद शाह अब्दाली के नाम से भी जाना जाता है। उन्होने मराठा सेना को हराने में सैन्य कौशल और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया।

लड़ाई में उनके योगदान और भूमिका

  • बाबर: बाबर ने तोपखाने और घुड़सवार सेना की रणनीति के अभिनव उपयोग के साथ-साथ अपने नेतृत्व के साथ पानीपत की पहली लड़ाई में जीत हासिल की, जिससे भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
  • अकबर: पानीपत की दूसरी लड़ाई के दौरान अकबर के नेतृत्व ने हेमू के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना की हार सुनिश्चित की, मुगल नियंत्रण को मजबूत किया और धार्मिक व प्रशासनिक सुधार की नीतियों की शुरुआत की।
  • अहमद शाह दुर्रानी: पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह दुर्रानी की सैन्य रणनीति और नेतृत्व ने मराठा सेना की हार का नेतृत्व किया, जिससे उत्तरी भारत में उनके साम्राज्य का प्रभाव और प्रभुत्व बरकरार रहा।

निष्कर्ष

पानीपत की लड़ाई संघर्षों की एक स्मारकीय श्रृंखला है जिसने सदियों से भारतीय इतिहास की दिशा को आकार दिया है। बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की स्थापना से लेकर अकबर द्वारा सत्ता को मजबूत करने और अहमद शाह दुर्रानी के निर्णायक प्रभाव तक, प्रत्येक लड़ाई ने राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैन्य गतिशीलता को महत्वपूर्ण मोड़ दिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

बाबर की सेना ने पहली पानीपत की लड़ाई में कौन-कौन सी रणनीतियाँ अपनाईं?

बाबर ने एक विशेष रणनीति अपनाई, जिसे “तुलगुमा” कहा जाता है, जिसमें उसने अपनी सेना को इब्राहीम लोदी की सेना को घेरने के लिए उकसाया। बाबर ने एक किलेबंदी की रणनीति का उपयोग किया और घातक युद्ध विधियों का इस्तेमाल किया।

बाबर ने भारत में प्रवेश करने के लिए कौन से मार्ग का उपयोग किया?

बाबर ने भारत में प्रवेश करने के लिए उत्तरी-पश्चिमी मार्ग का उपयोग किया, जिसे Khyber Pass (खैबर दर्रा) कहा जाता है। यह मार्ग अफगानिस्तान से भारत के उत्तरी हिस्से में प्रवेश का एक महत्वपूर्ण रास्ता था।

तीसरी पानीपत की लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य के पुनर्निर्माण में कौन-कौन से प्रमुख व्यक्ति शामिल थे?

तीसरी पानीपत की लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य के पुनर्निर्माण में प्रमुख व्यक्तियों में माधव राव I और नाना फड़नवीस शामिल थे। माधव राव ने मराठा साम्राज्य को पुनर्जीवित करने के लिए कड़ी मेहनत की, जबकि नाना फड़नवीस ने प्रशासनिक सुधारों और राजनैतिक सुधारों को लागू किया।

बाबर की सेना में इस्तेमाल की गई विशेष युद्ध मशीनों का नाम क्या था और उन्होंने किस प्रकार से प्रभाव डाला?

बाबर की सेना में “कुल्हारी” (तोप) का व्यापक उपयोग किया गया था। ये तोपें दुश्मन की सेना पर दूर से ही आक्रमण करने में सक्षम थीं और उन्होंने लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभाई। इन तोपों के प्रभावी उपयोग ने इब्राहीम लोदी की सेना की रक्षा को भंग कर दिया।

बाबर के बारे में कोई महत्वपूर्ण व्यक्तिगत जानकारी, जैसे उसकी जीवनशैली और सांस्कृतिक आदतें, क्या हैं?

बाबर एक साहित्यिक और कलात्मक व्यक्ति था। उसने “बाबरनामा” लिखा, जो उसकी आत्मकथा है और इसमें उसकी जीवनशैली, युद्ध और व्यक्तिगत अनुभवों का विवरण है। बाबर को बागवानी, कविता और चित्रकला में रुचि थी।

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