पॉक्सो एक्ट क्या है? POCSO Act in Hindi

August 14, 2024
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Quick Summary

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पॉक्सो एक्ट यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट, 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ था। इस कानून को बनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना और ऐसे अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना है। यह कानून बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करता है और पीड़ित बच्चों को न्याय दिलाने के लिए विशेष प्रावधान भी रखता है। 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप यह अधिनियम बनाया गया था।

Table of Contents

पॉक्सो एक्ट जिसका उद्देश्य 18 वर्ष से कम के बच्चों को शारीरिक शोषण के खिलाफ लड़ने और न्याय दिलाना है। इस ब्लॉग में आपको पॉक्सो एक्ट क्या है, पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ, इसका महत्व, पॉक्सो एक्ट की धाराएं और इसकी जांच प्रक्रिया से जुड़ी सभी जानकारियां मिलेगी।

पॉक्सो एक्ट

पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) का पूरा नाम “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिज़ एक्ट” है। यह कानून 2012 में लागू किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य से सुरक्षा प्रदान करना है।

उद्देश्य

  • बच्चों की सुरक्षा: यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • कानूनी सहारा: पीड़ित बच्चों को न्याय दिलाने के लिए कानूनी प्रक्रिया को आसान और तेज बनाना।
  • सख्त सजा: यौन अपराधियों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान।

विशेषताएं

  • विस्तृत परिभाषाएँ: यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्‍लील साहित्य को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
  • गोपनीयता: पीड़ित की पहचान और उनकी जानकारी गोपनीय रखी जाती है।
  • जल्द सुनवाई: अदालतों को पॉक्सो एक्ट से जुड़े मामलों का निपटारा जल्द से जल्द करने का निर्देश दिया गया है।
  • विशेष न्यायालय: बच्चों के मामलों के लिए विशेष न्यायालयों का प्रावधान।
  • बच्चों की सुरक्षा: मामलों की सुनवाई के दौरान बच्चों की सुरक्षा और उनकी मानसिक स्थिति का ध्यान रखा जाता है।

अन्य बातें:

  • यह कानून केवल भारत में रहने वाले बच्चों पर लागू होता है, विदेशी बच्चों पर नहीं।
  • अगर कोई व्यक्ति 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन संबंध बनाता है, तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है।
  • पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध ज्यादातर गैर-जमानती होते हैं।
  • अगर आपको लगता है कि किसी बच्चे के साथ यौन शोषण हो रहा है, तो आप 1098 पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को कॉल कर सकते हैं।

पॉक्सो एक्ट का महत्व

बच्चों की सुरक्षा

बच्चों को यौन शोषण से बचाता है: यह कानून विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों को परिभाषित करता है, जिनमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न, बाल अश्लीलता, और अश्‍लील साहित्य शामिल हैं। यह अपराधियों के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है, जिससे बच्चों को यौन शोषण से बचाने में मदद मिलती है।

बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है: पॉक्सो एक्ट बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें उनके सम्मान, गोपनीयता, और स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया जाए और उन्हें किसी भी प्रकार के शोषण या उत्पीड़न का सामना न करना पड़े।

न्याय प्रणाली में सुधार

पीड़ितों को न्याय दिलाता है: पॉक्सो एक्ट का कानून यौन अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने में मदद करता है। यह पीड़ितों को मुआवजा और पुनर्वास के लिए प्रावधान करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें उचित कानूनी सहायता और समर्थन मिले।

समाज में जागरूकता

जागरूकता बढ़ाता है: पॉक्सो एक्ट ने बाल यौन शोषण और उत्पीड़न के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस कानून ने लोगों को इस मुद्दे पर ध्यान देने और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया है।

समाज में बदलाव लाता है: पॉक्सो एक्ट ने समाज में बदलाव लाने में भी मदद की है। इस कानून ने लोगों को बच्चों के साथ उनके व्यवहार के बारे में अधिक जागरूक बनाया है और बच्चों के प्रति सम्मान और गरिमा को बढ़ावा दिया है।

पॉक्सो एक्ट की धाराएं

धारा 3

पॉक्सो एक्ट की धाराएं में से एक धारा 3 के तहत, बच्चे के साथ यौन शोषण को अपराध माना गया है, जिसमें बच्चे के साथ किसी भी प्रकार का यौन संपर्क शामिल है।

यह धारा:

  • सख्त सजा का प्रावधान करती है, जिसमें जीवन कारावास भी शामिल है।
  • पीड़ित को मुआवजा दिलाने का प्रावधान करती है।
  • गवाहों की सुरक्षा का प्रावधान करती है।

धारा 4

पॉक्सो एक्ट की धारा 4, 18 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न करने के लिए सजा का प्रावधान करती है। जिसमें बिना अनुमति के छूना, छेड़छाड़, अन्य यौन उत्पीड़न गतिविधि शामिल है।

यह धारा:

  • कम से कम 10 साल की कैद का प्रावधान करती है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
  • जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • पीड़ित को मुआवजा दिलाने का प्रावधान करती है।

धारा 5

पॉक्सो एक्ट की धारा 5 के तहत, गंभीर यौन शोषण के मामलों जैसे सामूहिक बलात्कार, बार-बार शोषण, या किसी भरोसेमंद व्यक्ति द्वारा शोषण पर कठोर सजा का प्रावधान है। इस धारा में दोषी को न्यूनतम 20 साल की सजा, उम्रकैद या फांसी हो सकती है।

धारा 6

पॉक्सो एक्ट की धाराएं में से एक धारा 6 के तहत, बच्चों के साथ गंभीर यौन शोषण करने पर न्यूनतम 20 साल की सजा, जो उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है, और जुर्माने का प्रावधान है।

धारा 19

धारा 19 के तहत कोई भी व्यक्ति, जो यह जानता है कि बच्चे के साथ यौन अपराध हुआ है, उसे पुलिस या बाल कल्याण अधिकारी को सूचित करना होगा। ये सूचना मौखिक या लिखित रूप में दी जा सकती है। जो व्यक्ति सूचना देने में विफल होता है, वो दंडनीय अपराधी है।

धारा 21

पॉक्सो एक्ट की धारा 21 उन लोगों को दंडित करती है जो:

  • बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट करने में विफल रहते हैं।
  • बच्चों के यौन शोषण के मामलों को दर्ज नहीं करते हैं।
  • बच्चों के यौन शोषण के मामलों में लापरवाही बरतते हैं।

इस धारा के तहत:

  • 6 महीने तक की कैद या जुर्माना हो सकता है।
  • गंभीर मामलों में एक साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।

पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ

लागू होने की तिथि

पॉक्सो एक्ट को बच्चों पर यौन अपराधों को रोकने के लिए भारत में 14 नवंबर 2012, बाल दिवस के दिन लागू किया गया था। 

एक्ट पारित होने की तिथि

पॉक्सो एक्ट, जिसे संरक्षण से जुड़े बाल अपराधों का अधिनियम, 2012 भी कहा जाता है, भारत में 19 जून 2012 को पारित किया गया था। यह अधिनियम बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने और उनसे जुड़े अपराधियों को सजा देने के लिए बनाया गया था।

पॉक्सो एक्ट में समझौता

समझौता के प्रावधान

  1. पीड़ित की सहमति: पॉक्सो एक्ट में समझौता तभी मान्य होगा जब पीड़ित, अपनी स्वतंत्र इच्छा और सहमति से करे, बिना दबाव या डर के।
  2. अदालत की मंजूरी: समझौता अदालत में पेश कर उसे पीड़ित के हित में और बिना दबाव के ही मान्य माना जाएगा।
  3. अपराध की गंभीरता: पॉक्सो एक्ट में समझौता यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ जैसे मामूली अपराधों में ही मान्य है, गंभीर अपराधों में नहीं।
  4. मुआवजा: समझौते में पीड़ित को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा शामिल हो सकता है।

अदालत की भूमिका

  • जांच: अदालत पुलिस द्वारा की गई जांच की निगरानी करती है।
  • मुकदमा: आरोप साबित होने पर अदालत अपराधी को सजा सुनाती है।
  • पीड़ित का संरक्षण: अदालत पीड़ित को चिकित्सा सहायता, परामर्श, और पुनर्वास प्रदान करती है।
  • गवाहों की सुरक्षा: गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।
  • समझौते की मंजूरी: अदालत पीड़ित के हित में समझौते को मंजूरी देती है।

पीड़ित के अधिकार

  1. तुरंत और निःशुल्क मुकदमा: यौन अपराध की रिपोर्ट दर्ज करने के बाद तुरंत और निःशुल्क मुकदमा।
  2. गोपनीयता: पीड़ित की पहचान और व्यक्तिगत जानकारी गोपनीय रखी जाएगी।
  3. चिकित्सा सहायता: मुफ्त चिकित्सा सहायता का अधिकार।
  4. मुआवजा: शारीरिक और मानसिक नुकसान के लिए मुआवजा।
  5. सुरक्षा: अपराधी से सुरक्षा का अधिकार।
  6. गरिमा और सम्मान: गरिमा और सम्मान के साथ पेश आने का अधिकार।

पॉक्सो एक्ट में जमानत

गंभीर अपराध

पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर अपराधों, जैसे बलात्कार या हत्या, में आमतौर पर जमानत नहीं मिलती है। केवल कुछ अपवादों में, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में जमानत पर विचार कर सकते हैं।

अदालत की विवेकाधिकार

पॉक्सो एक्ट में जमानत अपराधी का एक अधिकार नहीं है बल्कि, अदालत का विवेकाधिकार है। अदालत सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करती है और उसके बाद ही जमानत मिलती है:

  • जैसे कि अपराध की गंभीरता
  • आरोपी का आपराधिक इतिहास
  • सबूतों की मजबूती
  • गवाहों को प्रभावित करने की संभावना
  • पीड़ित को नुकसान पहुंचाने का खतरा

बचाव पक्ष के अधिकार

पॉक्सो एक्ट में जमानत के लिए बचाव पक्ष के पास कई अधिकार हैं जैसे:

  • निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार 
  • सबूत पेश करने का अधिकार
  • अनुचित दबाव से मुक्ति का अधिकार
  • अपील का अधिकार

पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष न्यायालय

स्थापना

पॉक्सो एक्ट के तहत बच्चों के यौन शोषण मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई है। यह न्यायालय तुरंत और गोपनीय सुनवाई सुनिश्चित करते हैं, जिससे पीड़ित बच्चों को जल्दी न्याय मिल सके।

प्रक्रिया

न्यायालय आरोपी को आरोपों से अवगत कराता है और उसके बयान दर्ज करता है। यदि आरोपी आरोपों से इनकार करता है, तो मुकदमा शुरू होता है। अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष अपने-अपने सबूत पेश करते हैं। न्यायालय साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के बाद फैसला सुनाता है। यदि आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे सजा सुनाई जाती है।

पीड़ित की सुरक्षा

पीड़ित की पहचान, पता और अन्य व्यक्तिगत जानकारी को गोपनीय रखा जाता है। मुकदमे की सुनवाई संवेदनशील और गोपनीय तरीके से की जाती है, जिसमें मीडिया और जनता की भागीदारी प्रतिबंधित होती है। पीड़ित को गवाहों और आरोपी से सुरक्षा प्रदान की जाती है।

पॉक्सो एक्ट के तहत जांच प्रक्रिया

पुलिस की भूमिका

  • शिकायत दर्ज करना: शिकायत दर्ज करने पर तुरंत FIR दर्ज करना।
  • जांच: घटनास्थल का निरीक्षण करना, साक्ष्य इकट्ठा करना, गवाहों के बयान लेना और मेडिकल जांच करवाना।
  • गिरफ्तारी: आवश्यक हो तो आरोपी को गिरफ्तार करना।
  • सुरक्षा: पीड़ित और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • अभियोजन: जांच पूरी होने के बाद, चार्जशीट तैयार कर अदालत में पेश करना।

बयान दर्ज करना

शिकायत दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर, पीड़ित का बयान महिला पुलिस अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी द्वारा लिया जाएगा। यह बयान वीडियो रिकॉर्ड किया जाएगा और पीड़ित को उसकी कॉपी दी जाएगी।

चिकित्सा परीक्षण

डॉक्टर पीड़ित के ब्लड, नाखून, आदि का सैंपल लेकर पीड़ित की शारीरिक जांच करेंगे और यौन उत्पीड़न के सबूत इकट्ठा करेंगे। डॉक्टर द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रिपोर्ट को पुलिस या अदालत में जमा किया जाएगा।

पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत सजा के प्रावधान

न्यूनतम सजा

पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत न्यूनतम सजा का प्रावधान है ताकि यौन अपराधों पर सख्त कार्रवाई हो सके। सामान्य यौन शोषण के मामलों में न्यूनतम सजा 6 महीने से लेकर 10 साल की सजा होती है।

अधिकतम सजा

पॉक्सो एक्ट के तहत, यदि कोई व्यक्ति बच्चे के साथ गंभीर यौन शोषण करता है, तो उसे 20 साल की कारावास सजा हो सकती है, जो उम्रकैद भी बढ़ाई जा सकती है।

दंडनीय अपराध

अगर अपराधी ने बच्चे की मृत्यु कर दी है या उसे गंभीर चोट पहुंचाई है तो उसे उम्रकैद या फांसी दी जा सकती है।

पॉक्सो एक्ट के लैंडमार्क केस

भारत के अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश और अन्य (2021)

अटॉर्नी जनरल बनाम सतीश और अन्य (2021) केस पॉक्सो एक्ट से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला था। अपराधी ने 12 साल एक बच्ची को अमरूद देने के बहाने घर में बुलाया और उसके कपड़े के ऊपर उसे शरीर में हाथ फेरने लगा और जबरदस्ती कपड़े हटाने की कोशिश की। केके वेणुगोपाल (भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल) द्वारा दायर एक अपील से भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई कर बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज किया। 

फैसले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा था की “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिज़ एक्ट, 2002 के धारा 7 के तहत सजा देने के लिए 18 साल से कम बच्चों के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के अपराध में ‘त्वचा से त्वचा’ का संपर्क होना जरूरी है।” भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को खारिज करते हुए आरोपी को IPC 1860 की धारा 354 के तहत 1 साल तक जेल की सजा सुनाई।

जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013)

इस मामले में, अपराधी पर पीड़ित को उसके माता-पिता से दूर ले जाने और उसके साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया गया था। जांच के दौरान, पीड़ित, अपराधी के घर में पाई गई, जिसके कारण उसे न्यायालय द्वारा जुर्माने के साथ ही 10 साल की सजा सुनाई गई। अपराधी ने इस फैसले की अपील की और आरोप लगाया कि पीड़ित ने उसे ऐसा करने के लिए बहकाया और उसकी सहमति से उसके ये सब किया। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि किशोर न्याय नियम 2007, के तहत किशोर की आयु निर्धारित करने के नियम, पॉक्सो एक्ट 2012, से संबंधित मामलों में भी लागू किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष

18 साल से कम के बच्चों के साथ यौन संबंध बनाने के उद्देश से लिए जाने वाले छेड़छाड़ को पॉक्सो एक्ट 2012 के तहत गंभीर अपराध मानते हुए कड़ी सजा दी जाती है। जिससे नाबालिक बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों में कमी आई है। नबालिको के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को कई बार छुपाया भी जाता है, बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है अगर हर एक व्यक्ति “पॉक्सो एक्ट क्या है” के बारे में जाने, इसे गंभीर अपराध की तरह देखे और इसके रिपोर्ट दर्ज कराएं। 

इस ब्लॉग में आपको पॉक्सो एक्ट क्या है, इसका महत्व, पॉक्सो एक्ट कब लागू हुआ, पॉक्सो एक्ट की धाराएं, इसकी जांच प्रक्रिया और इससे जुड़े और पहलुओं के बारे में जानने को मिला।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

क्या पॉक्सो एक्ट में ‘यौन उत्पीड़न’ के लिए कोई विशेष परिभाषा दी गई है?

हाँ, पॉक्सो एक्ट में ‘यौन उत्पीड़न’ के तहत कोई भी यौन संपर्क, चाहे वह शारीरिक हो या न हो, को अपराध माना गया है।

क्या पॉक्सो एक्ट में बच्चों के लिए पोस्ट-ट्रॉमा काउंसलिंग का प्रावधान है?

हाँ, इस एक्ट में बच्चों के लिए पोस्ट-ट्रॉमा काउंसलिंग का प्रावधान है, ताकि वे मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ हो सकें।

पॉक्सो एक्ट में अपील करने की समय सीमा क्या है?

इस एक्ट के तहत अपील करने की समय सीमा 30 से 60 दिन के भीतर होती है, मामले की जटिलता के आधार पर।

पॉक्सो एक्ट में फास्ट ट्रैक कोर्ट का क्या महत्व है?

फास्ट ट्रैक कोर्ट का महत्व है कि यह बच्चों के मामलों को तेजी से निपटाने में मदद करता है, जिससे उन्हें जल्द न्याय मिल सके।

क्या पॉक्सो एक्ट के तहत बच्चे की सहमति की उम्र पर ध्यान दिया जाता है?

इस एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सहमति को मान्य नहीं माना जाता, चाहे उन्होंने सहमति दी हो या नहीं।

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