प्रायद्वीपीय पठार: The Indian Peninsular Plateau

August 29, 2024
प्रायद्वीपीय पठार

Table of Contents

भारत का प्रायद्वीपीय पठार एक विशाल और विविधतापूर्ण भूभाग है जो भारत के दक्षिणी और मध्य भाग में फैला हुआ है। यह भूभाग न केवल अपनी भौगोलिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसमें पाई जाने वाली जैव विविधता और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण लगभग 2.5 बिलियन वर्ष पहले हुआ था और यह भूभाग भूगर्भीय गतिविधियों का परिणाम है। 

इस आर्टिकल में हम, प्रायद्वीपीय पठार किसे कहते हैं, प्रायद्वीपीय पठार का मानचित्र, प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं, प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी और प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन करेंगे| 

प्रायद्वीपीय पठार किसे कहते हैं?

सबसे पहले हम समझते हैं कि प्रायद्वीपीय पठार किसे कहते हैं| दरअसल प्रायद्वीपीय पठार एक ऐसा क्षेत्र है जो एक उन्नत और ऊँचा भूभाग होता है, जिसके चारों ओर निम्न भूमि होती है। यह पठार मुख्य रूप से पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय और कायांतरित चट्टानों से बना होता है। भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण भूगर्भीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप हुआ है और यह भूभाग भारत के भूगोल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

उदाहरण के लिए: भारत में दक्कन का पठार सबसे पुराने पठारों में से एक माना जाता है। जब नदी का पानी पठार की सतह से कटता है तो वे एक घाटी का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए, कोलंबिया पठार, जो उत्तर-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में कैस्केड और रॉकी पहाड़ों के बीच बना है, कोलंबिया नदी द्वारा काटा जाता है।

पठार का नामस्थानमुख्य विशेषताएँ
दक्कन का पठारदक्षिण भारतसबसे बड़ा पठार, पश्चिमी और पूर्वी घाट से घिरा
छोटा नागपुर पठारझारखंड, पश्चिम बंगालखनिज संसाधनों से भरपूर, कोयला खदानें
मालवा पठारमध्य प्रदेश, राजस्थानलावा प्रवाह से बना, काली मिट्टी
बघेलखंडमध्य प्रदेशचूना पत्थर और बलुआ पत्थर, नदी घाटी
मेघालय पठारमेघालयखासी, गारो, और जैंतिया पहाड़ियाँ

प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएँ और विभाजन

प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) को पृथ्वी की सबसे पुरानी भू-आकृतियों में से एक माना जाता है। ये अत्यधिक स्थिर ब्लॉकों से बने त्रिभुजाकार के होते हैं। इनका आधार उत्तर भारत के विशाल मैदान के दक्षिणी किनारे से मेल खाता है। कन्याकुमारी को त्रिभुजाकार पठार के शीर्ष के रूप में जाना जाता है। इस पठार के अंतर्गत आने वाला कुल क्षेत्रफल 16 लाख वर्ग किमी है।

प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं

भूगर्भीय संरचनाप्रायद्वीपीय पठार मुख्य रूप से पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय और कायांतरित चट्टानों से बना है। यह भूभाग लगभग 2.5 बिलियन वर्ष पुराना है।
ऊँचाईप्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊँचाई 600-900 मीटर है, जिसमें कई पहाड़ियाँ और चोटियाँ स्थित हैं।
विशाल क्षेत्रयह पठार लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 43% है।
नदी तंत्रइस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, और ताप्ती हैं। ये नदियाँ कृषि और जल संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भू-आकृतिक विभाजनप्रायद्वीपीय पठार को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: दक्कन का पठार, सेंट्रल हाइलैंड्स, और पूर्वोत्तर पठार।
ज्वालामुखीय चट्टानेंदक्कन के पठार में बेसाल्ट की ज्वालामुखीय चट्टानें पाई जाती हैं, जो ज्वालामुखीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनी हैं।
खनिज संसाधनप्रायद्वीपीय पठार खनिज संसाधनों से भरपूर है, जिसमें कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, चूना पत्थर, और यूरेनियम प्रमुख हैं।
कृषि भूमिप्रायद्वीपीय पठार की काली मिट्टी और लाल मिट्टी कृषि के लिए उपयुक्त है। यहाँ मुख्य फसलें गन्ना, कपास, चावल, और गेहूं हैं।
पर्यावरणीय चुनौतियाँप्रायद्वीपीय पठार के सामने वनों की कटाई, जल संसाधनों की कमी, और भूमि अपरदन जैसी पर्यावरणीय चुनौतियाँ हैं।
जैव विविधतायह क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध है, जिसमें विभिन्न प्रकार के वनस्पति और जीव-जंतु पाए जाते हैं।

प्रायद्वीपीय पठार का विभाजन

प्रायद्वीपीय पठार को उनकी विशेषताओं के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है-

दक्कन का पठार

दक्कन का पठार भारत का सबसे बड़ा और सबसे प्रमुख पठार है। यह पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के बीच स्थित है और इसकी औसत ऊँचाई 600-900 मीटर है। यह क्षेत्र कृषि और खनिज संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण है। इस पठार में बेसाल्ट की चट्टानें पाई जाती हैं, जो ज्वालामुखीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनी हैं। दक्कन का पठार तीन प्रमुख नदियों – गोदावरी, कृष्णा, और कावेरी – का जलग्रहण क्षेत्र भी है।

दक्कन के पठार की विशेषता –
  • इसका आकार त्रिकोणीय है और यह उत्तर-पश्चिम में  सतपुड़ा  और  विंध्य , उत्तर में  महादेव और मैकल, पश्चिम में पश्चिमी घाट और पूर्व में पूर्वी घाट से घिरा है।
  • दक्कन के पठार की औसत ऊंचाई 600 मीटर है।
  • इसका सामान्य ढलान पश्चिम से पूर्व की ओर है जो इसकी प्रमुख नदियों के प्रवाह से पता चलता है।
  • नदियों ने इस पठार को कई छोटे पठारों में विभाजित कर दिया है।

सेंट्रल हाइलैंड्स

सेंट्रल हाइलैंड्स में विन्ध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ शामिल हैं। यह क्षेत्र नर्मदा और ताप्ती नदियों द्वारा विभाजित है और इसमें समृद्ध जैव विविधता पाई जाती है। सेंट्रल हाइलैंड्स का क्षेत्र मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में फैला हुआ है और इसमें कई महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थित हैं।

सेंट्रल हाइलैंड्स की विशेषता –
  • प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateaus in Hindi)  के सबसे उत्तरी भाग को केंद्रीय उच्चभूमि कहा जाता है। इस तरह के Plateau मुख्य रूप से नर्मदा नदी के उत्तर में पाए जाते हैं, जो पश्चिम में अरावली से घिरे हुए हैं, सतपुड़ा श्रेणी के दक्षिण में स्थित हैं।
  • ये समुद्र तल से 700-1,000 मीटर ऊपर पाए जाते हैं और इसके ढलान की दिशा उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर होती है।
  • इन हाइलैंड्स में आगे शामिल हैं-
  1. मारवाड़ अपलैंड: यह राजस्थान में अरावली के पूर्व की ओर है।
  2. मध्य भारत पत्थर: यह मारवाड़ के ऊपरी भाग के पूर्व की ओर है।
  3. मालवा का पठार: यह अरावली और विंध्य के बीच मध्य प्रदेश की ओर है।
  4. बुंदेलखंड का पठार: यह यूपी और एमपी दोनों की सीमा की ओर है।

पूर्वोत्तर पठार

पूर्वोत्तर पठार मेघालय, असम और नागालैंड के कुछ हिस्सों को कवर करता है। यह क्षेत्र खासी, गारो और जैंतिया पहाड़ियों से घिरा हुआ है और इसकी भूगर्भीय संरचना अन्य क्षेत्रों से अलग है। इस पठार में कोयला, चूना पत्थर और यूरेनियम जैसे महत्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं।

पूर्वोत्तर पठार की विशेषता –
  • गारो-राजमहल गैप ने मेघालय (या शिलांग) के Plateau को प्रायद्वीपीय चट्टान के आधार से अलग कर दिया
  • शिलांग को पठार का सबसे ऊँचा स्थान माना जाता है जिसकी ऊँचाई 1,961 मीटर है।
  • इस क्षेत्र में गारो, खासी, जयंतिया और मिकिर (रेंगमा) पहाड़ियाँ जैसी पहाड़ियाँ हैं।
  • यह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम मानसून से अधिकतम वर्षा प्राप्त करने के लिए जाना जाता है, इस कारण केवल मेघालय के पठार की सतह का अत्यधिक क्षरण हुआ है। चेरापूंजी जैसे क्षेत्रों में नंगे चट्टान की सतह है जो किसी भी स्थायी वनस्पति आवरण से रहित है।

भारत के कुछ अन्य पठारों का वर्णन इस प्रकार है-

मेवाड़ का पठार
  • मेवाड़ के पठार का विस्तार राजस्थान व मध्य प्रदेश में है। मेवाड़ माधव पठार का विस्तार राजस्थान व मध्य पठार, अरावली पर्वत को मालवा के पठार से अलग करने वाली संरचना है।
  •  यह अरावली पर्वत से निकलने वाली बनास नदी के अपवाह क्षेत्र में आता है। बनास नदी चंबल नदी की एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है।
मालवा का पठार
  • मध्य प्रदेश में बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचना को’मालवा का पठार’ कहते हैं। मालवा पठार को राजस्थान में’हाड़ौती का पठार’कहते हैं। इसका विस्तार दक्षिण में विंध्यन संरचना, उत्तर में ग्वालियर पहाड़ी क्षेत्र, पूर्व में बुंदेलखंड व बघेलखंड तथा पश्चिम में मेवाड़ पठारी क्षेत्र तक है।
  • यहाँ बेसाल्ट चट्टान में अपक्षरण के कारण काली मृदा का विकास हुआ है, इसलिये मालवा पठारी क्षेत्र कपास की कृषि के लिये उपयोगी है।
  • चंबल, नर्मदा व तापी यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। चंबल नदी घाटी भारत में अवनालिका अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है, जिसे’बीहड़ या उत्खात भूमि’कहते हैं।
बुंदेलखंड का पठार
  • इसका विस्तार ग्वालियर के पठार और विंध्याचल श्रेणी के बीच मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में है।
  • इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के सात जिले (जालौन, झाँसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बाँदा, महोबा ) तथा मध्य प्रदेश के सात जिले ( दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, विदिशा ) आते हैं।
  • यहाँ की ग्रेनाइट व नीस चट्टानी संरचना में अपक्षय व अपरदन की क्रिया होने के कारण लाल मृदा का विकास हुआ है।
  • बुंदेलखंड के पठार में यमुना की सहायक चंबल नदी के द्वारा बने महाखड्डों को ‘उत्खात भूमि का प्रदेश’कहते हैं।
  • बुंदेलखंड क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र होने के कारण केंद्रीय उच्च भूमि का आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा क्षेत्र है।
  • मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित बघेलखंड का पठार केंद्रीय उच्च भूमि को पूर्वी पठार से अलग करता है।

प्रायद्वीपीय पठार का भूगोल

प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार कहाँ होता है?

प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार मुख्य रूप से दक्षिण भारत, मध्य भारत और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में होता है। यह पठार पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ है। इसके उत्तर में सतपुड़ा और विन्ध्य की पहाड़ियाँ और दक्षिण में नीलगिरी की पहाड़ियाँ स्थित हैं।

प्रायद्वीपीय पठार की प्रमुख नदियाँ

प्रायद्वीपीय पठार की प्रमुख नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, और ताप्ती शामिल हैं। ये नदियाँ इस क्षेत्र की कृषि और जल संसाधनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गोदावरी और कृष्णा नदियाँ पूर्वी घाट की ओर बहती हैं, जबकि नर्मदा और ताप्ती पश्चिमी घाट की ओर बहती हैं।

प्रायद्वीपीय पठार की जलवायु

प्रायद्वीपीय पठार की जलवायु विविधतापूर्ण है। यहाँ की जलवायु गर्मी के मौसम में गर्म और शुष्क होती है, जबकि मानसून के मौसम में भारी बारिश होती है। सर्दियों के मौसम में तापमान थोड़ा कम होता है। इस क्षेत्र की औसत वर्षा 500 से 1500 मिमी के बीच होती है।

प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी

प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी अन्नामलाई पहाड़ियों में स्थित अन्नामुडी है, जिसकी ऊँचाई लगभग 2,695 मीटर है। यह चोटी पश्चिमी घाट में स्थित है और इसे दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी माना जाता है। अन्नामुडी की पहाड़ियाँ ट्रेकिंग और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध हैं।

भारत में प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण किस कारण से होता है?

प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण मुख्य रूप से भूगर्भीय गतिविधियों और टेक्टोनिक प्लेट्स के आंदोलनों के कारण हुआ है। यह पठार पुराने गोंडवाना भूमि के विभाजन और ध्रुवों की गति के परिणामस्वरूप बना है। इस क्षेत्र की चट्टानें मुख्य रूप से आग्नेय, कायांतरित और अवसादी प्रकार की हैं।

प्रायद्वीपीय पठार की जैव विविधता

प्रायद्वीपीय पठार की वनस्पति

प्रायद्वीपीय पठार की वनस्पति में उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, और घास के मैदान शामिल हैं। इस क्षेत्र में टीक, सागौन, और अन्य महत्वपूर्ण वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ की वनस्पति जलवायु और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है।

प्रायद्वीपीय पठार के जीव-जंतु

प्रायद्वीपीय पठार में विविध जीव-जंतु पाए जाते हैं जिनमें बाघ, तेंदुआ, हाथी, और विभिन्न प्रकार के पक्षी शामिल हैं। यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है और यहाँ कई वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थित हैं। इन क्षेत्रों में संरक्षित वन्यजीवों की अनेक प्रजातियाँ निवास करती हैं।

प्रायद्वीपीय पठार की नदियों का योगदान

कृषि क्षेत्र में योगदान

प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ कृषि के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं। ये नदियाँ सिंचाई, जलप्रबंधन, और कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियाँ इस क्षेत्र की कृषि के लिए जीवनदायिनी हैं।

अर्थव्यवस्था में योगदान

प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ बिजली उत्पादन, जल परिवहन, और मछली पालन में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। ये नदियाँ उद्योगों को जल आपूर्ति भी करती हैं। जलविद्युत परियोजनाओं के माध्यम से इस क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति की जाती है।

प्रायद्वीपीय पठारों के सामने पर्यावरणीय चुनौतियाँ

वनों की कटाई

प्रायद्वीपीय पठार के वनों की कटाई एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती है। वनों की कटाई से जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है। इसके परिणामस्वरूप भूमि अपरदन, जलवायु परिवर्तन और वन्यजीवों के आवास का नुकसान होता है।

जल संसाधनों की कमी

जल संसाधनों की कमी और सूखा इस क्षेत्र की प्रमुख समस्याएँ हैं। जलवायु परिवर्तन और असंतुलित जल उपयोग से यह समस्या और गंभीर हो रही है। जल संरक्षण और पुनर्चक्रण के प्रयास इस समस्या को हल करने में सहायक हो सकते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय प्रायद्वीपीय पठार एक महत्वपूर्ण भूभाग है जो अपनी भौगोलिक, जैविक और आर्थिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र न केवल भारत के प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है, बल्कि इसकी जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहर भी इसे विशेष बनाती है। प्रायद्वीपीय पठार की सुरक्षा और इसके संसाधनों का सतत उपयोग हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके संरक्षण के प्रयासों से हम इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को बनाए रख सकते हैं। इस आर्टिकल में हमने, प्रायद्वीपीय पठार किसे कहते हैं, प्रायद्वीपीय पठार का मानचित्र, प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं, प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी और प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन किया है| 

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