प्रेमचंद का जीवन परिचय: Premchand ka Jivan Parichay

October 28, 2024
प्रेमचंद का जीवन परिचय
Quick Summary

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प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद का पूरा नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, वो आगे जाकर हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक के रूप में जाने गए।

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प्रेमचंद, जिन्हें हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक माना जाता है, उन्हें इस क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में से एक माना जाता हैं। प्रेमचंद का जीवन परिचय एक प्रेरणादायक साहित्यिक यात्रा है। अपनी कहानियों में भारतीय समाज के चित्रण के लिए उन्हें “उपन्यास सम्राट” और “हिंदी साहित्य का मुर्शिद” भी कहा जाता है। उनका साहित्य न केवल मनोरंजन करता है बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं, खासकर ग्रामीण जीवन, गरीबी, शोषण और सामाजिक मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है।

प्रेमचंद साहित्यिक रचनाओं और उनके द्वारा समाज को दिए गए योगदान को दो महत्वपूर्ण पहलुओं, साहित्यिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल साहित्यिक उत्कृष्टता प्राप्त की, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आगे हम Munshi Premchand ka jiwan parichay और उनके बाल्यकाल एवं प्रारंभिक जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे।

प्रेमचंद का जीवन परिचय | Premchand ka Jivan Parichay

प्रेमचंद का जीवन परिचय(Premchand ka Jivan Parichay)
नामधनपत राय श्रीवास्तव (प्रेमचंद)
जन्मदिन और स्थान31 जुलाई 1880
लमही, बनारस रियासत, ब्रिटिश राज
वर्तमान – लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
पिता का नामअजायब राय
माता का नामआनंदी देवी
पत्नी का नामशिवरानी देवी
संतानश्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव
भाषाउर्दू, हिंदी
मौत8 अक्टूबर 1936 (उम्र 56)
पेशाअध्यापक, लेखक, पत्रकार
राष्ट्रीयताभारतीय
विधाकहानी और उपन्यास
विषयसामाजिक और कृषक-जीवन
आंदोलनआदर्शोन्मुख यथार्थवाद (आदर्शवाद व यथार्थवाद)
अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ
रचनायें• गोदान
• कर्मभूमि
• रंगभूमि
• सेवासदन
• निर्मला
• मानसरोवर आदि।
प्रेमचंद का जीवन परिचय

बाल्यकाल और प्रारंभिक जीवन

प्रेमचंद का जीवन परिचय
प्रेमचंद का जीवन परिचय-Premchand ka Jivan Parichay

प्रेमचंद, जिनका जन्म नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी से भरा हुआ था। उनके पिता, एक पोस्ट मास्टर के रूप में सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन कुछ समय बाद उनका निधन हो गया। पिता का निधन हो जाने के बाद प्रेमचंद को कम उम्र में ही स्कूल छोड़ना पड़ा और परिवार को चलाने के लिए काम करना शुरू कर दिया।

इस परेशानी के समय ने प्रेमचंद के लाइफ पर इसका गहरा असर छोड़ा। उन्होंने गरीबी और लोगो के बर्ताव को करीबी से देखा, जिसने उनके अंदर के लेखक को आकार देने में मेन रोल प्ले किया था। प्रेमचंद ने स्कूल छूट जाने के बाद भी शिक्षा प्राप्त करने का ट्राई किया और खुद भी पढ़ने लगा। उन्होंने उर्दू में लिखना शुरू किया और 1907 में प्रेमचंद का पहला उपन्यास “मैना” पब्लिश हुआ था।

हालाँकि, प्रेमचंद को जल्द ही ऐसा महसूस हुआ कि हिंदी लोगों तक उनकी बात पहुंचाने के लिए उन्हें हिंदी में लिखना जरूरी है। इसलिए 1910 से उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया और तब से वह अपने कलम नाम ‘प्रेमचंद’ को अपने हिंदी साहित्य पर लिखने लगे थे।

शिक्षा और प्रवास

प्रेमचंद की बचपन मे ही पढ़ाई छूट गयी थी, क्योंकि उनके पिता का निधन हो गया था। स्कूल छोड़कर वह काम करने लगे। पर फिर भी उन्हें जब भी समय मिलता खुद से पढ़ते, ताकि उनकी पढ़ाई कैसे भी न रुके।

शुरुआत उर्दू से करने के बाद हिंदी में भी उन्होंने लिखना शुरू किया। उनकी पूरी लाइफ सिर्फ कानपुर,बनारस और अलाहाबाद तक ही सीमित थी। उन्होंने कई सालों तक शिक्षा विभाग में नौकरी की। जिस दौरान प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय को बढ़ा दिया।

साहित्यिक सफर की शुरुआत

धनपत राय का साहित्यिक नाम प्रेमचंद था। सरकारी नौकरी के दौरान कहानी लिखना शुरू किया। उस समय वह नवाब नायक नाम से लिखते थे। उनके जानने वाले उन्हें अंत तक नवाब नायक नाम से ही बुलाते थे। इनका पहला कहानी संग्रह “सोजे वतन’ भारत सरकार द्वारा बैन कर दी गई थी। इसी कारण उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा।

प्रेमचंद का जीवन परिचय से यह पता चलता है कि वो एक ऐसे लेखक थे जो हमेशा लिखते रहते थे। उन्होंने उपन्यास, कहानियां, निबंध और नाटक सहित कई तरह की रचनाएं लिखीं। उनकी रचनाओं में सच्चाई की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

प्रेमचंद की कृतियां भगवान शंकर से प्रभावित जान पड़ती है। प्रेमचंद जी भूतकाल और भविष्य काल पर ध्यान नहीं दिए। वे वर्तमान काल पर ही अपनी कृतियों लिखते रहें।

प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं

प्रेमचंद की रचनायें प्रेमचंद का जीवन परिचय देते हुए उसके एक बड़े हिस्से को दर्शाती है। इससे हमे यह भी पता चलता है के वे किन चीज़ों में विश्वास करते थे।

प्रमुख रचनाएं

प्रेमचंद की लिखाई बहुत बड़ी है, जैसे कि प्रेमचंद की किताबें, कहानीयो का संग्रह, निबंध और नाटक। उनकी लिखाई में उन्होंने समाज को बदलने की बात की है और सच्चाई को दिखाया है। कुछ बार उन्होंने अपनी लिखाई में हास्य भी किया है। प्रेमचंद का जीवन परिचय तो जान लिया अब उनकी कुछ पॉपुलर क्रिएशन पर नजर डालते हैं।

मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास:

  • सेवासदन (1918)
  • गोदान (1936)
  • कर्मभूमि (1932)
  • निर्मला (1925)
  • कफ़न (1936)
  • किशना (1907)
  • रूठी रानी (1907)
  • प्रेमाश्रम (1922)
  • रंगभूमि (1925)
  • कायाकल्प (1926)
  • जलवए ईसार (1912)
  • प्रतिज्ञा (1927)
  • गबन (1928)

मुंशी प्रेमचंद के नाटक:

  • संग्राम (1923)
  • कर्बला (1924)
  • प्रेम की वेदी (1933)

मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ:

प्रेमचंद की कुछ कहानियों के नाम इस प्रकार है:

क्रममुंशी प्रेमचंद की कहानियाँक्रममुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ
1अन्धेर21क्रिकेट मैच
2अनाथ लड़की22कवच
3अपनी करनी23कातिल
4अमृत24कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
5अलग्योझा25कौशल़
6आखिरी तोहफ़ा26खुदी
7आखिरी मंजिल27गैरत की कटार
8आत्म-संगीत28गुल्‍ली डण्डा
9आत्माराम29घमण्ड का पुतला
10दो बैलों की कथा30ज्‍योति
11आल्हा31जेल
12इज्जत का खून32जुलूस
13इस्तीफा33झाँकी
14ईदगाह34ठाकुर का कुआँ
15ईश्वरीय न्याय35तेंतर
16उद्धार36त्रिया-चरित्र
17एक आँच की कसर37तांगेवाले की बड़
18एक्ट्रेस38तिरसूल
19कप्तान साहब39दण्ड
20कर्मों का फल40दुर्गा का मन्दिर
मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ

मुंशी प्रेमचंद के निबंध:

प्रेमचंद के कुछ निबन्धों की सूची निम्नलिखित है-

  1. पुराना जमाना नया जमाना,
  2. स्‍वराज के फायदे,
  3. कहानी कला (1,2,3),
  4. कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार,
  5. हिन्दी-उर्दू की एकता,
  6. महाजनी सभ्‍यता,
  7. उपन्‍यास,
  8. जीवन में साहित्‍य का स्‍थान।

प्रेमचंद अपनी कहानियों में इंसान के स्वभाव को बहुत अच्छे से उजागर किया है। इसका उदाहरण है नमक का दरोगा यह एक ईमानदार और कर्तव्य परायण व्यक्ति की कहानी है। इसके अलावा पंच परमेश्वर के द्वारा गांव के सकारात्मक परिवेश को उजागर किया है।

प्रेमचंद का उपन्यासों के माध्यम से समाज का चित्रण

प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान विशेष रूप से उनकी कहानियों और उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध है, जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं:

  1. गोदान
    • कहानी का सार: ‘गोदान’ प्रेमचंद का अंतिम और सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें उन्होंने भारतीय किसान के जीवन और संघर्षों का सजीव चित्रण किया है। होरी और धनिया की कहानी के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण भारत की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं को उकेरा है।
    • सामाजिक चित्रण: उपन्यास में कर्ज, जमींदारी प्रथा, धार्मिक अंधविश्वास और सामाजिक असमानताओं का यथार्थवादी चित्रण है। यह उपन्यास दिखाता है कि कैसे एक किसान अपनी पूरी जिंदगी मेहनत करता है, फिर भी उसे न सुख मिलता है न शांति।
  1.  गबन
    • कहानी का सार: ‘गबन’ एक मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है, जिसमें सामाजिक दबाव और लालच के कारण चरित्र पतन का चित्रण है। रामनाथ और जलपा की कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने समाज में व्याप्त भौतिकता और नैतिक मूल्यों के संघर्ष को दर्शाया है।
    • सामाजिक चित्रण: उपन्यास में समाज की मध्यवर्गीय मानसिकता, दहेज प्रथा, और आर्थिक समस्याओं को उकेरा गया है। यह उपन्यास दिखाता है कि कैसे लालच और सामाजिक प्रतिष्ठा की चाहत व्यक्ति को भ्रष्ट बना देती है।
  2. निर्मला
    • कहानी का सार: ‘निर्मला’ एक युवा लड़की की कहानी है, जिसे दहेज न मिलने के कारण एक वृद्ध व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है। निर्मला की दुर्दशा के माध्यम से प्रेमचंद ने भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति और दहेज प्रथा की भयावहता को दर्शाया है।
    • सामाजिक चित्रण: उपन्यास में बाल विवाह, दहेज प्रथा, और स्त्री की सामाजिक स्थिति का यथार्थवादी चित्रण है। यह उपन्यास समाज में महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय और अत्याचार को सामने लाता है।
  3. सेवासदन
    • कहानी का सार: ‘सेवासदन’ एक वेश्या की कहानी है, जो सामाजिक सुधार और नैतिकता के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। सुमन की कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने समाज की नैतिकता और सामाजिक सुधार की दिशा में विचार किया है।

सामाजिक चित्रण: उपन्यास में वेश्यावृत्ति, सामाजिक सुधार, और नैतिकता के मुद्दों को उकेरा गया है। यह उपन्यास समाज में व्याप्त नैतिक दुविधाओं और सुधारों की आवश्यकता को दर्शाता है।

प्रेमचंद की साहित्यिक यात्रा 

प्रेमचंद की कहानी और प्रेमचंद की किताबें सिर्फ हिंदी में ही नही हैं, बल्कि उनका अनुवाद कई अलग अलग भाषाओं में भी किया गया है। दुनिया भर के लोग उनकी लिखाई को पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं। आज भी प्रेमचंद की लिखाई बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने जो भी लिखा है वो आज भी समाज में हो रहा है। उन्होंने गरीबों, गरीबों और अन्याय का शिकार होने वाले लोगों की बात लिखी है और उनकी कहानियाँ आज भी हमें सोचने पर मजबूर करती हैं।

उसके बाद इन्होंने अपना साहित्य प्रेमचंद के नाम से लिखा। इसके बाद प्रेमचंद बड़े पैमाने पर कहानियां और उपन्यास पढ़ने लगे। शुरुआती दौर में वे एक तंबाकू विक्रेता की दुकान पर जाकर ‘तिलस्म होशरुबा’ का पाठ सुने। इसको फैजी ने अकबर के मनोरंजन के लिए लिखा था। इन्हीं कहानियों से प्रेमचंद को कहानी लिखने की प्रेरणा मिली।

उत्तर प्रदेश के एक पुस्तक विक्रेता से उनकी दोस्ती हुई प्रेमचंद इसकी इनकी दुकान में अपनी पुस्तक बेचा करते थे। भुगतान में यहां से कुछ कहानियां और उपन्यास अपने पढ़ने के लिए ले जाते थे। ऐसे ही शुरुआती दिनों में वे सैकड़ों कहानियां और उपन्यास पढ़े। इसके बाद गोरखपुर में उन्होंने अपने साहित्य कृतियों को रूप दिया।

प्रेमचंद की साहित्यिक यात्रा 1900 के दशक की शुरुआत में उर्दू भाषा में लिखने के साथ हुई। प्रेमचंद का पहला उपन्यास, “मैना” था, जो 1907 में पब्लिश हुआ था। इस दौरान, उन्होंने कई स्टोरीज और नोवेल्स लिखे, जिनमें सामाजिक अन्याय, गरीबी और कोलोनियल रूल उनके मेन सब्जेक्ट्स थे।

1910 के दशक में, उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया और “प्रेमचंद” के नाम से अपनी पहचान बनाई। उनकी पहली हिंदी नॉवेल, “सेवासदन” थी जो 1918 में बनी थी। जिसने उन्हें साहित्यिक जगत में पॉपुलैरिटी दिलाई। यह कृति उस समय के भारतीय समाज में मौजूद सामाजिक बुराइयों, जैसे वेश्यावृत्ति और महिला उत्पीड़न, पर तीखी टिप्पणी करती है।

सामाजिक सुधार का दृष्टिकोण

प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। वे समाज में हो रही कुरीतियों, अंधविश्वास और असमानताओं के खिलाफ थे। उनके लेखन में सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के प्रति जागरूकता का संदेश मिलता है।

किसानों और मजदूरों की आवाज

प्रेमचंद ने अपने लेखन में किसानों और मजदूरों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया। उनकी रचनाओं में मजदूर वर्ग के संघर्ष और शोषण का वास्तविक चित्रण है। उन्होंने समाज के निम्नवर्ग की आवाज को प्रमुखता दी और उनके अधिकारों की बात की।

नारी सशक्तिकरण

प्रेमचंद के साहित्य में नारी सशक्तिकरण का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने स्त्रियों की समस्याओं, उनके संघर्षों और समाज में उनके योगदान को उजागर किया। उनकी रचनाओं में नारी पात्र सशक्त और आत्मनिर्भर दिखाई देते हैं।

प्रेमचंद का समाज के प्रति योगदान

प्रेमचंद का जीवन परिचय से यह समझ आता है कि उनका विचार दृष्टिकोण मानवतावाद, समाजवाद और राष्ट्रीयता से गहराई से जुड़ा हुआ था। 

अपनी लेखनी के जरिए सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाई। विवाह से संबंधित रूढ़ियों जैसे बहु विवाह, बेमेल विवाह, अभिभावक द्वारा आयोजित विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, वृद्ध विवाह, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, पतिव्रता धर्म के विषय में और सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने अपनी कहानी ‘तीतर’ में विरोध किया। आर्थिक समस्या के बावजूद अतिथि सत्कार का उन्होंने पुरजोर विरोध किया।

आधुनिक समाज के लिए साहित्य का महत्व

साहित्य आज भी बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे कि ये पहले था। सिर्फ कहानियां पढ़ने से हमारी जानकारी बढ़ती है, हम खुद के बारे में सोचते हैं और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित होते हैं।

समस्याओं की गहरी समझ: साहित्य हमें यह समझने में मदद करता है कि दुनिया में क्या गलत हो रहा है। कहानियों में हम उन लोगों के बारे में पढ़ते हैं जो गरीब हैं, जिनके साथ भेदभाव किया जाता है और जिनके साथ गलत काम किया जाता है। इन कहानियों से हमें ये पता चलता है कि ये समस्याएं कैसे शुरू होती हैं और उनका क्या असर होता है। हम खुद को भी सोचने पर मजबूर कर सकते हैं और ये पता लगा सकते हैं कि हम इन समस्याओं को कैसे सुधार सकते हैं।

आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा: सहित्य हमें ये सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम क्या पढ़ रहे हैं। हम कहानियों में उन लोगों के बारे में सोच सकते हैं जो उनमें हैं, उनके साथ क्या हो रहा है और ये सब क्यो हो रहा है। इससे हमें खुद के लिए सोचने और ये परत लगाने में मदद मिलती है कि क्या सही है और क्या गलत।

साहित्य आधुनिक समाज में ज्ञान, मनोरंजन और आत्म-विकास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हमें समाज को समझने, संवेदनशील बनने और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है।

प्रेमचंद की पहली शादी लगभग 15 साल की उम्र में, उनके परिवार द्वारा तय की गई थी। यह शादी सफल नहीं रही और कुछ समय बाद उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गईं। बाद में, 1906 में, प्रेमचंद ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था, जो एक बाल विधवा थीं। शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी साहित्यिक यात्रा में भी सहयोग दिया। उन्होंने “प्रेमचंद घर में” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें प्रेमचंद के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रेमचंद का जीवन परिचय: वैवाहिक जीवन और मृत्यु

प्रेमचंद और पत्नी शिवरानी देवी
प्रेमचंद और पत्नी शिवरानी देवी-Premchand ka Jivan Parichay

वैवाहिक जीवन

प्रेमचंद का जीवन परिचय देखें तो पता चलता है कि प्रेमचंद की पहली शादी बहुत कम उम्र में, लगभग 15 साल की उम्र में, उनके परिवार द्वारा तय की गई थी। यह शादी सफल नहीं रही और कुछ समय बाद उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गईं। बाद में, 1906 में, प्रेमचंद ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था, जो एक बाल विधवा थीं। शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी साहित्यिक यात्रा में भी सहयोग दिया। उन्होंने “प्रेमचंद घर में” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें प्रेमचंद के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।

अंतिम यात्रा 

प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में हुआ। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और आर्थिक कठिनाइयों का भी सामना कर रहे थे। और इस तरह उनकी मृत्यु के साथ प्रेमचंद का जीवन परिचय समात होता है लेकिन उनके प्रभाव की सिर्फ शुरुआत हुई थी। उनके निधन के बाद, उनकी साहित्यिक कृतियों का महत्व और भी अधिक बढ़ गया और वे हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक माने जाते हैं।

प्रेमचंद का जीवन संघर्षपूर्ण था, लेकिन उनके साहित्य ने भारतीय समाज में सुधार और जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रचनाएं आज भी पाठकों और विद्वानों के बीच लोकप्रिय हैं और समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती हैं।

समाज में संवेदनशीलता उत्पन्न करना

दुर्दशा का जीवन चित्रण: प्रेमचंद अपने उपन्यासों और कहानियों में गरीबी, भेदभाव और शोषण का मार्मिक चित्रण करते हैं। पात्रों की पीड़ा और संघर्षों को पढ़कर पथक भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं और उनकी दशा को समझने का प्रयास करते हैं। यही भावनात्मक जुड़वा उन्हें दूसरों के दुख के प्रति संवेदनशील बनाता हैं।

कमजोर वर्गों की कहानियां: प्रेमचंद की कहानी में वंचित तबके के पात्रों, जैसे किसान, मजदूर और महिलों को प्रमुखता दी गई हैं। उनकी कहानियों के माध्यम से पथक उन परिस्थितियों को समझ पाते हैं जिनका सामना समाज के कमजोर वर्गों को करना पड़ता हैं। इससे पाठकों में उनके प्रति सहानुभूति जागृत होती हैं और सामाजिक असमानता के प्रति उनकी दृष्टि संवेदनशील बनाती हैं।

मानवीय मूल्यों का पाठ: प्रेमचंद की रचनाओं में करुणा, ईमान, त्याग और न्यायसंगति (संस्कृत में न्यायसंगती का पर्याय) जैसे मानवीय मूल्यों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। पथक इन मूल्यों को पात्रों के कार्यों और निर्णयों के माध्यम से सीखते हैं। यह सीख उन्हें अपने दैनिक जीवन में भी इन मूल्यों का पालन करने और दूसरों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने लिए प्रेरित करती हैं।

सामाजिक सरोजरों को जगाना: प्रेमचंद की रचनाएं सामाजिक सरोजरों पर पाठकों को विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। दहेज प्रथा, बाल विवाह और छुआछूत जैसी कुरीतियों को उजागर करके वे पाठकों को जगाते हैं और इन मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करते हैं।

प्रेमचंद का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं पाठकों को न सिर्फ मनोरंजन करती हैं, बल्कि उन्हें अपने आसपास की दुनिया के प्रति जागरूक बनाती है। उनकी कहानियां पाठकों में करुणा और सहानुभूति की भावना जगाती हैं, जो एक समावेशी और न्यायसंगत समाज के निर्माण के लिए आवश्यक हैं।

निष्कर्ष

प्रेमचंद का जीवन परिचय में हमने जाना कि वह हिंदी साहित्य जगत के एक शिखर पुरुष हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से न सिर्फ मनोरंजन किया बल्कि समाज को दिशा भी दी। उपन्यास सम्राट के रूप में विख्यात, उन्होंने यथार्थवादी शैली में रचनाएँ कर साहित्य में एक नया आयाम स्थापित किया।

प्रेमचंद की कहानी की विशेषता है सामाजिक सरोज़ारों को केंद्रीय स्थान देना। उन्होंने गरीबी, असमानता, शोषण और न्याय जैसी समस्याओं को बेबाकी से उजागर किया। उनकी कहानियां ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों, जमींदारी प्रथा के कुचक्र और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के चित्रों को रीडर्स के सामने लाती है।

प्रेमचंद का साहित्य परिचय समाज सुधार का एक साक्षात उपकार है। उन्होंने अपनी रचनाओ में दहेज प्रथा, बाल विवाह और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया। वंचित वर्गों को वाणी देकर उन्होंने रीडर्स में करुणा और सहानुभुति जगाई। उनका मानना था कि साहित्य का दायित्व सिर्फ मनोरंजन करना ही नही, बल्कि समाज को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करना भी है।

प्रेमचंद का साहित्य परिचय, हिंदी साहित्य को दिया गया योगदान अमूल्य है। उनकी रचनाएँ ना सिर्फ साहित्यिक कृतियाँ हैं,बल्कि समाज का आईना भी हैं, जिसके माध्यम से हम अपने अतीत को समझ सकते हैं और भविष्य के लिए दिशा निर्धारण कर सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रेमचंद के माता-पिता कौन थे? 

उनके पिता अजायब राय एक डाकमुंशी थे, और माता आनन्दी देवी धार्मिक स्वभाव की थीं।

प्रेमचंद का साहित्यिक करियर कब शुरू हुआ?

उन्होंने 1901 में “सरस्वती” पत्रिका में “सरस्वती” नामक कहानी के साथ अपना साहित्यिक करियर शुरू किया।

प्रेमचंद की पहली कहानी का नाम क्या था? 

उनकी पहली प्रकाशित कहानी का नाम “दुनिया का सबसे अनमोल रतन” था।

प्रेमचंद को ‘उपन्यास सम्राट’ क्यों कहा जाता है?

उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारतीय सामाजिक जीवन के यथार्थवादी चित्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रेमचंद के लेखन पर किसका प्रभाव था? 

प्रेमचंद के लेखन पर रूसी लेखक टॉल्सटॉय और गोरकी का गहरा प्रभाव था।

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