Quick Summary
प्रेमचंद, जिन्हें हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक माना जाता है, उन्हें इस क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में से एक माना जाता हैं। प्रेमचंद का जीवन परिचय एक प्रेरणादायक साहित्यिक यात्रा है। अपनी कहानियों में भारतीय समाज के चित्रण के लिए उन्हें “उपन्यास सम्राट” और “हिंदी साहित्य का मुर्शिद” भी कहा जाता है। उनका साहित्य न केवल मनोरंजन करता है बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं, खासकर ग्रामीण जीवन, गरीबी, शोषण और सामाजिक मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है।
प्रेमचंद साहित्यिक रचनाओं और उनके द्वारा समाज को दिए गए योगदान को दो महत्वपूर्ण पहलुओं, साहित्यिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करता है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल साहित्यिक उत्कृष्टता प्राप्त की, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आगे हम Munshi Premchand ka jiwan parichay और उनके बाल्यकाल एवं प्रारंभिक जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे।
प्रेमचंद का जीवन परिचय(Premchand ka Jivan Parichay) | |
नाम | धनपत राय श्रीवास्तव (प्रेमचंद) |
जन्मदिन और स्थान | 31 जुलाई 1880 लमही, बनारस रियासत, ब्रिटिश राज वर्तमान – लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत |
पिता का नाम | अजायब राय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
पत्नी का नाम | शिवरानी देवी |
संतान | श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव |
भाषा | उर्दू, हिंदी |
मौत | 8 अक्टूबर 1936 (उम्र 56) |
पेशा | अध्यापक, लेखक, पत्रकार |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विधा | कहानी और उपन्यास |
विषय | सामाजिक और कृषक-जीवन |
आंदोलन | आदर्शोन्मुख यथार्थवाद (आदर्शवाद व यथार्थवाद) अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ |
रचनायें | • गोदान • कर्मभूमि • रंगभूमि • सेवासदन • निर्मला • मानसरोवर आदि। |
प्रेमचंद, जिनका जन्म नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी से भरा हुआ था। उनके पिता, एक पोस्ट मास्टर के रूप में सरकारी नौकरी करते थे, लेकिन कुछ समय बाद उनका निधन हो गया। पिता का निधन हो जाने के बाद प्रेमचंद को कम उम्र में ही स्कूल छोड़ना पड़ा और परिवार को चलाने के लिए काम करना शुरू कर दिया।
इस परेशानी के समय ने प्रेमचंद के लाइफ पर इसका गहरा असर छोड़ा। उन्होंने गरीबी और लोगो के बर्ताव को करीबी से देखा, जिसने उनके अंदर के लेखक को आकार देने में मेन रोल प्ले किया था। प्रेमचंद ने स्कूल छूट जाने के बाद भी शिक्षा प्राप्त करने का ट्राई किया और खुद भी पढ़ने लगा। उन्होंने उर्दू में लिखना शुरू किया और 1907 में प्रेमचंद का पहला उपन्यास “मैना” पब्लिश हुआ था।
हालाँकि, प्रेमचंद को जल्द ही ऐसा महसूस हुआ कि हिंदी लोगों तक उनकी बात पहुंचाने के लिए उन्हें हिंदी में लिखना जरूरी है। इसलिए 1910 से उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया और तब से वह अपने कलम नाम ‘प्रेमचंद’ को अपने हिंदी साहित्य पर लिखने लगे थे।
प्रेमचंद की बचपन मे ही पढ़ाई छूट गयी थी, क्योंकि उनके पिता का निधन हो गया था। स्कूल छोड़कर वह काम करने लगे। पर फिर भी उन्हें जब भी समय मिलता खुद से पढ़ते, ताकि उनकी पढ़ाई कैसे भी न रुके।
शुरुआत उर्दू से करने के बाद हिंदी में भी उन्होंने लिखना शुरू किया। उनकी पूरी लाइफ सिर्फ कानपुर,बनारस और अलाहाबाद तक ही सीमित थी। उन्होंने कई सालों तक शिक्षा विभाग में नौकरी की। जिस दौरान प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय को बढ़ा दिया।
धनपत राय का साहित्यिक नाम प्रेमचंद था। सरकारी नौकरी के दौरान कहानी लिखना शुरू किया। उस समय वह नवाब नायक नाम से लिखते थे। उनके जानने वाले उन्हें अंत तक नवाब नायक नाम से ही बुलाते थे। इनका पहला कहानी संग्रह “सोजे वतन’ भारत सरकार द्वारा बैन कर दी गई थी। इसी कारण उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा।
प्रेमचंद का जीवन परिचय से यह पता चलता है कि वो एक ऐसे लेखक थे जो हमेशा लिखते रहते थे। उन्होंने उपन्यास, कहानियां, निबंध और नाटक सहित कई तरह की रचनाएं लिखीं। उनकी रचनाओं में सच्चाई की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
प्रेमचंद की कृतियां भगवान शंकर से प्रभावित जान पड़ती है। प्रेमचंद जी भूतकाल और भविष्य काल पर ध्यान नहीं दिए। वे वर्तमान काल पर ही अपनी कृतियों लिखते रहें।
प्रेमचंद की रचनायें प्रेमचंद का जीवन परिचय देते हुए उसके एक बड़े हिस्से को दर्शाती है। इससे हमे यह भी पता चलता है के वे किन चीज़ों में विश्वास करते थे।
प्रेमचंद की लिखाई बहुत बड़ी है, जैसे कि प्रेमचंद की किताबें, कहानीयो का संग्रह, निबंध और नाटक। उनकी लिखाई में उन्होंने समाज को बदलने की बात की है और सच्चाई को दिखाया है। कुछ बार उन्होंने अपनी लिखाई में हास्य भी किया है। प्रेमचंद का जीवन परिचय तो जान लिया अब उनकी कुछ पॉपुलर क्रिएशन पर नजर डालते हैं।
मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास:
मुंशी प्रेमचंद के नाटक:
मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ:
प्रेमचंद की कुछ कहानियों के नाम इस प्रकार है:
क्रम | मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ | क्रम | मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ |
1 | अन्धेर | 21 | क्रिकेट मैच |
2 | अनाथ लड़की | 22 | कवच |
3 | अपनी करनी | 23 | कातिल |
4 | अमृत | 24 | कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला |
5 | अलग्योझा | 25 | कौशल़ |
6 | आखिरी तोहफ़ा | 26 | खुदी |
7 | आखिरी मंजिल | 27 | गैरत की कटार |
8 | आत्म-संगीत | 28 | गुल्ली डण्डा |
9 | आत्माराम | 29 | घमण्ड का पुतला |
10 | दो बैलों की कथा | 30 | ज्योति |
11 | आल्हा | 31 | जेल |
12 | इज्जत का खून | 32 | जुलूस |
13 | इस्तीफा | 33 | झाँकी |
14 | ईदगाह | 34 | ठाकुर का कुआँ |
15 | ईश्वरीय न्याय | 35 | तेंतर |
16 | उद्धार | 36 | त्रिया-चरित्र |
17 | एक आँच की कसर | 37 | तांगेवाले की बड़ |
18 | एक्ट्रेस | 38 | तिरसूल |
19 | कप्तान साहब | 39 | दण्ड |
20 | कर्मों का फल | 40 | दुर्गा का मन्दिर |
मुंशी प्रेमचंद के निबंध:
प्रेमचंद के कुछ निबन्धों की सूची निम्नलिखित है-
प्रेमचंद अपनी कहानियों में इंसान के स्वभाव को बहुत अच्छे से उजागर किया है। इसका उदाहरण है नमक का दरोगा यह एक ईमानदार और कर्तव्य परायण व्यक्ति की कहानी है। इसके अलावा पंच परमेश्वर के द्वारा गांव के सकारात्मक परिवेश को उजागर किया है।
प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान विशेष रूप से उनकी कहानियों और उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध है, जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं:
सामाजिक चित्रण: उपन्यास में वेश्यावृत्ति, सामाजिक सुधार, और नैतिकता के मुद्दों को उकेरा गया है। यह उपन्यास समाज में व्याप्त नैतिक दुविधाओं और सुधारों की आवश्यकता को दर्शाता है।
प्रेमचंद की कहानी और प्रेमचंद की किताबें सिर्फ हिंदी में ही नही हैं, बल्कि उनका अनुवाद कई अलग अलग भाषाओं में भी किया गया है। दुनिया भर के लोग उनकी लिखाई को पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं। आज भी प्रेमचंद की लिखाई बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने जो भी लिखा है वो आज भी समाज में हो रहा है। उन्होंने गरीबों, गरीबों और अन्याय का शिकार होने वाले लोगों की बात लिखी है और उनकी कहानियाँ आज भी हमें सोचने पर मजबूर करती हैं।
उसके बाद इन्होंने अपना साहित्य प्रेमचंद के नाम से लिखा। इसके बाद प्रेमचंद बड़े पैमाने पर कहानियां और उपन्यास पढ़ने लगे। शुरुआती दौर में वे एक तंबाकू विक्रेता की दुकान पर जाकर ‘तिलस्म होशरुबा’ का पाठ सुने। इसको फैजी ने अकबर के मनोरंजन के लिए लिखा था। इन्हीं कहानियों से प्रेमचंद को कहानी लिखने की प्रेरणा मिली।
उत्तर प्रदेश के एक पुस्तक विक्रेता से उनकी दोस्ती हुई प्रेमचंद इसकी इनकी दुकान में अपनी पुस्तक बेचा करते थे। भुगतान में यहां से कुछ कहानियां और उपन्यास अपने पढ़ने के लिए ले जाते थे। ऐसे ही शुरुआती दिनों में वे सैकड़ों कहानियां और उपन्यास पढ़े। इसके बाद गोरखपुर में उन्होंने अपने साहित्य कृतियों को रूप दिया।
प्रेमचंद की साहित्यिक यात्रा 1900 के दशक की शुरुआत में उर्दू भाषा में लिखने के साथ हुई। प्रेमचंद का पहला उपन्यास, “मैना” था, जो 1907 में पब्लिश हुआ था। इस दौरान, उन्होंने कई स्टोरीज और नोवेल्स लिखे, जिनमें सामाजिक अन्याय, गरीबी और कोलोनियल रूल उनके मेन सब्जेक्ट्स थे।
1910 के दशक में, उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया और “प्रेमचंद” के नाम से अपनी पहचान बनाई। उनकी पहली हिंदी नॉवेल, “सेवासदन” थी जो 1918 में बनी थी। जिसने उन्हें साहित्यिक जगत में पॉपुलैरिटी दिलाई। यह कृति उस समय के भारतीय समाज में मौजूद सामाजिक बुराइयों, जैसे वेश्यावृत्ति और महिला उत्पीड़न, पर तीखी टिप्पणी करती है।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। वे समाज में हो रही कुरीतियों, अंधविश्वास और असमानताओं के खिलाफ थे। उनके लेखन में सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के प्रति जागरूकता का संदेश मिलता है।
प्रेमचंद ने अपने लेखन में किसानों और मजदूरों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया। उनकी रचनाओं में मजदूर वर्ग के संघर्ष और शोषण का वास्तविक चित्रण है। उन्होंने समाज के निम्नवर्ग की आवाज को प्रमुखता दी और उनके अधिकारों की बात की।
प्रेमचंद के साहित्य में नारी सशक्तिकरण का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने स्त्रियों की समस्याओं, उनके संघर्षों और समाज में उनके योगदान को उजागर किया। उनकी रचनाओं में नारी पात्र सशक्त और आत्मनिर्भर दिखाई देते हैं।
प्रेमचंद का जीवन परिचय से यह समझ आता है कि उनका विचार दृष्टिकोण मानवतावाद, समाजवाद और राष्ट्रीयता से गहराई से जुड़ा हुआ था।
अपनी लेखनी के जरिए सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाई। विवाह से संबंधित रूढ़ियों जैसे बहु विवाह, बेमेल विवाह, अभिभावक द्वारा आयोजित विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, वृद्ध विवाह, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, पतिव्रता धर्म के विषय में और सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने अपनी कहानी ‘तीतर’ में विरोध किया। आर्थिक समस्या के बावजूद अतिथि सत्कार का उन्होंने पुरजोर विरोध किया।
साहित्य आज भी बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे कि ये पहले था। सिर्फ कहानियां पढ़ने से हमारी जानकारी बढ़ती है, हम खुद के बारे में सोचते हैं और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित होते हैं।
समस्याओं की गहरी समझ: साहित्य हमें यह समझने में मदद करता है कि दुनिया में क्या गलत हो रहा है। कहानियों में हम उन लोगों के बारे में पढ़ते हैं जो गरीब हैं, जिनके साथ भेदभाव किया जाता है और जिनके साथ गलत काम किया जाता है। इन कहानियों से हमें ये पता चलता है कि ये समस्याएं कैसे शुरू होती हैं और उनका क्या असर होता है। हम खुद को भी सोचने पर मजबूर कर सकते हैं और ये पता लगा सकते हैं कि हम इन समस्याओं को कैसे सुधार सकते हैं।
आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा: सहित्य हमें ये सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम क्या पढ़ रहे हैं। हम कहानियों में उन लोगों के बारे में सोच सकते हैं जो उनमें हैं, उनके साथ क्या हो रहा है और ये सब क्यो हो रहा है। इससे हमें खुद के लिए सोचने और ये परत लगाने में मदद मिलती है कि क्या सही है और क्या गलत।
साहित्य आधुनिक समाज में ज्ञान, मनोरंजन और आत्म-विकास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हमें समाज को समझने, संवेदनशील बनने और सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है।
प्रेमचंद की पहली शादी लगभग 15 साल की उम्र में, उनके परिवार द्वारा तय की गई थी। यह शादी सफल नहीं रही और कुछ समय बाद उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गईं। बाद में, 1906 में, प्रेमचंद ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था, जो एक बाल विधवा थीं। शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी साहित्यिक यात्रा में भी सहयोग दिया। उन्होंने “प्रेमचंद घर में” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें प्रेमचंद के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रेमचंद का जीवन परिचय देखें तो पता चलता है कि प्रेमचंद की पहली शादी बहुत कम उम्र में, लगभग 15 साल की उम्र में, उनके परिवार द्वारा तय की गई थी। यह शादी सफल नहीं रही और कुछ समय बाद उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गईं। बाद में, 1906 में, प्रेमचंद ने दूसरी शादी की। उनकी दूसरी पत्नी का नाम शिवरानी देवी था, जो एक बाल विधवा थीं। शिवरानी देवी ने प्रेमचंद के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी साहित्यिक यात्रा में भी सहयोग दिया। उन्होंने “प्रेमचंद घर में” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें प्रेमचंद के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में हुआ। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और आर्थिक कठिनाइयों का भी सामना कर रहे थे। और इस तरह उनकी मृत्यु के साथ प्रेमचंद का जीवन परिचय समात होता है लेकिन उनके प्रभाव की सिर्फ शुरुआत हुई थी। उनके निधन के बाद, उनकी साहित्यिक कृतियों का महत्व और भी अधिक बढ़ गया और वे हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक माने जाते हैं।
प्रेमचंद का जीवन संघर्षपूर्ण था, लेकिन उनके साहित्य ने भारतीय समाज में सुधार और जागरूकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रचनाएं आज भी पाठकों और विद्वानों के बीच लोकप्रिय हैं और समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती हैं।
दुर्दशा का जीवन चित्रण: प्रेमचंद अपने उपन्यासों और कहानियों में गरीबी, भेदभाव और शोषण का मार्मिक चित्रण करते हैं। पात्रों की पीड़ा और संघर्षों को पढ़कर पथक भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं और उनकी दशा को समझने का प्रयास करते हैं। यही भावनात्मक जुड़वा उन्हें दूसरों के दुख के प्रति संवेदनशील बनाता हैं।
कमजोर वर्गों की कहानियां: प्रेमचंद की कहानी में वंचित तबके के पात्रों, जैसे किसान, मजदूर और महिलों को प्रमुखता दी गई हैं। उनकी कहानियों के माध्यम से पथक उन परिस्थितियों को समझ पाते हैं जिनका सामना समाज के कमजोर वर्गों को करना पड़ता हैं। इससे पाठकों में उनके प्रति सहानुभूति जागृत होती हैं और सामाजिक असमानता के प्रति उनकी दृष्टि संवेदनशील बनाती हैं।
मानवीय मूल्यों का पाठ: प्रेमचंद की रचनाओं में करुणा, ईमान, त्याग और न्यायसंगति (संस्कृत में न्यायसंगती का पर्याय) जैसे मानवीय मूल्यों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। पथक इन मूल्यों को पात्रों के कार्यों और निर्णयों के माध्यम से सीखते हैं। यह सीख उन्हें अपने दैनिक जीवन में भी इन मूल्यों का पालन करने और दूसरों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने लिए प्रेरित करती हैं।
सामाजिक सरोजरों को जगाना: प्रेमचंद की रचनाएं सामाजिक सरोजरों पर पाठकों को विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। दहेज प्रथा, बाल विवाह और छुआछूत जैसी कुरीतियों को उजागर करके वे पाठकों को जगाते हैं और इन मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करते हैं।
प्रेमचंद का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं पाठकों को न सिर्फ मनोरंजन करती हैं, बल्कि उन्हें अपने आसपास की दुनिया के प्रति जागरूक बनाती है। उनकी कहानियां पाठकों में करुणा और सहानुभूति की भावना जगाती हैं, जो एक समावेशी और न्यायसंगत समाज के निर्माण के लिए आवश्यक हैं।
प्रेमचंद का जीवन परिचय में हमने जाना कि वह हिंदी साहित्य जगत के एक शिखर पुरुष हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से न सिर्फ मनोरंजन किया बल्कि समाज को दिशा भी दी। उपन्यास सम्राट के रूप में विख्यात, उन्होंने यथार्थवादी शैली में रचनाएँ कर साहित्य में एक नया आयाम स्थापित किया।
प्रेमचंद की कहानी की विशेषता है सामाजिक सरोज़ारों को केंद्रीय स्थान देना। उन्होंने गरीबी, असमानता, शोषण और न्याय जैसी समस्याओं को बेबाकी से उजागर किया। उनकी कहानियां ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों, जमींदारी प्रथा के कुचक्र और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के चित्रों को रीडर्स के सामने लाती है।
प्रेमचंद का साहित्य परिचय समाज सुधार का एक साक्षात उपकार है। उन्होंने अपनी रचनाओ में दहेज प्रथा, बाल विवाह और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया। वंचित वर्गों को वाणी देकर उन्होंने रीडर्स में करुणा और सहानुभुति जगाई। उनका मानना था कि साहित्य का दायित्व सिर्फ मनोरंजन करना ही नही, बल्कि समाज को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करना भी है।
प्रेमचंद का साहित्य परिचय, हिंदी साहित्य को दिया गया योगदान अमूल्य है। उनकी रचनाएँ ना सिर्फ साहित्यिक कृतियाँ हैं,बल्कि समाज का आईना भी हैं, जिसके माध्यम से हम अपने अतीत को समझ सकते हैं और भविष्य के लिए दिशा निर्धारण कर सकते हैं।
उनके पिता अजायब राय एक डाकमुंशी थे, और माता आनन्दी देवी धार्मिक स्वभाव की थीं।
उन्होंने 1901 में “सरस्वती” पत्रिका में “सरस्वती” नामक कहानी के साथ अपना साहित्यिक करियर शुरू किया।
उनकी पहली प्रकाशित कहानी का नाम “दुनिया का सबसे अनमोल रतन” था।
उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारतीय सामाजिक जीवन के यथार्थवादी चित्रण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रेमचंद के लेखन पर रूसी लेखक टॉल्सटॉय और गोरकी का गहरा प्रभाव था।
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