Quick Summary
राजा राम मोहन राय समाज सुधारक थे, उन्होंने ने 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान भारतीय समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना में मदद की। राजा राममोहन राय के सामाजिक सुधार जैसे सती प्रथा (विधवाओं को जलाने), पर्दा प्रथा जैसे अमानवीय प्रथाओं को समाप्त करने और बाल विवाह को समाप्त करने के लिए प्रयासरत थे।आइए सबसे पहले ये जानते हैं की राजा राममोहन राय कौन थे?
राजा राम मोहन राय को ‘आधुनिक भारत के जनक’ के रूप में जाना जाता है। वह एक महान विद्वान और खुले विचारों वाले व्यक्ति थे। राजा राम मोहन राय समाज सुधारक थे।
राजाराम मोहन राय की जीवनी | |
जन्म | 22 May 1772 |
मौत | 27 सितम्बर 1833 (उम्र 61 वर्ष) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पेशा | सामाजिक और धार्मिक सुधारक लेखक |
प्रसिद्धि का कारण | बंगाल पुनर्जागरण ब्रह्म सभा(सामाजिक, राजनीतिक सुधार) |
आइए राजा राम मोहन राय उनके जन्म और उनके परिवार के बारे में जानते हैं,
राजा राममोहन रॉय का जन्म भारत देश के बंगाल के हुगली जिले के राधानगर में 22 मई 1772 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रमाकांत था तथा माता का नाम तारिणी देवी था। राजा राम मोहन रॉय के दादाजी कृष्णकांत बंदोपाध्याय एक कुलीन रारही ब्राह्मण थे। राजा राममोहन रॉय दिमाग के इतने तेज थे कि, उन्होंने 15 वर्ष की आयु में ही बंगाली, संस्कृति, अंग्रेजी और फारसी विषयों पर अच्छा खासा ज्ञान हासिल कर लिया था,और साथ के साथ ही अरबी, लैटिन और ग्रीक भाषा के भी बहुत अच्छे जानकार बन चुके थे।
राजा राम मोहन रॉय उपनिषदों और वेदों के बहुत अच्छे ज्ञान था,और वे उपनिषद और वेदों से इतनी अधिक प्रभावित थे, कि चाहते थे कि उपनिषद के सिद्धांतों को शिक्षा में भी शामिल किया जाए और जिससे की जितनी भी धार्मिक कुरीतियां है जिनका प्रभाव हमारे धर्म पर पढ़ रहा है उनको समाप्त किया जा सकें।
साहित्यिक रचना | साल |
तुहफत-उल-मुवाहिदीन | 1804 |
वेदांत ग्रंथ | 1815 |
केनोपनिषद, वेदांत सारा के संक्षिप्तीकरण का अनुवाद, ईशोपनिषद | 1816 |
कठोपनिषद | 1817 |
विधवाओं को जिंदा जलाने की प्रथा के अधिवक्ता और विरोधी के बीच एक सम्मेलन (बंगाली और अंग्रेजी) | 1818 |
मुंडक उपनिषद | 1819 |
जीसस के उपदेश- शांति और खुशी के लिए मार्ग दर्शक, हिंदू आस्तिक की रक्षा | 1820 |
बंगाली व्याकरण | 1826 |
भारतीय दर्शन का इतिहास, सार्वभौमिक धर्म | 1829 |
गौड़ीय व्याकरण | 1833 |
राजा राममोहन राय सती प्रथा के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया था। यह प्रथा उस समय प्रचलित थी जिसमें पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी को पति की चिता पर जलाने की प्रथा थी। राममोहन राय ने इसे अमानवीय और अनैतिक माना। उन्होंने इस प्रथा को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला और अंततः 1829 में गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया।
बाल विवाह के खिलाफ भी राजा राममोहन राय ने जोरदार आवाज उठाई। उन्होंने इस प्रथा को रोकने के लिए समाज में जागरूकता फैलाई और इसे समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि बाल विवाह न केवल बच्चों के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह उनकी शिक्षा और विकास के मार्ग में भी बाधा डालता है।
धार्मिक सुधार के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का योगदान भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो एक सुधारवादी आंदोलन था जिसका उद्देश्य हिन्दू धर्म की कुरीतियों को समाप्त करना था। उन्होंने मूर्ति पूजा, अंधविश्वास, और धार्मिक अनुष्ठानों के खिलाफ आवाज उठाई। ब्रह्म समाज ने एकेश्वरवाद और सामाजिक समानता की वकालत की।
शिक्षा के क्षेत्र में भी राजा राममोहन राय का योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने पश्चिमी शिक्षा प्रणाली और विज्ञान आधारित शिक्षा को भारतीय समाज में प्रचलित करने का प्रयास किया। उन्होंने 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आगे चलकर प्रेसीडेंसी कॉलेज के रूप में विकसित हुआ। उनका मानना था कि शिक्षा समाज को प्रगति की ओर ले जाने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है।
राजा राममोहन राय के ये सुधार भारतीय समाज में गहरे और स्थायी प्रभाव छोड़ गए। उनकी विरासत आज भी भारतीय समाज में उनकी दृष्टि और प्रयासों की गूंज के रूप में जीवित है।
ब्रह्म समाज: राजा राम मोहन राय ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की। इसका उद्देश्य समाज में सुधार लाना और धार्मिक अंधविश्वासों को समाप्त करना था। ब्रह्म समाज ने तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया और मूर्तिपूजा का विरोध किया।
महिला सशक्तिकरण: राजा राम मोहन राय ने महिलाओं के अधिकारों और उनकी शिक्षा के लिए भी काम किया। वे बाल विवाह के विरोधी थे और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करते थे।
अंधविश्वास और कुरीतियों का विरोध: उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों का कड़ा विरोध किया और समाज को तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया।
पत्रकारिता और प्रकाशन: राजा राम मोहन राय ने पत्रकारिता और प्रकाशन के माध्यम से अपने विचारों का प्रसार किया। उन्होंने ‘सम्बाद कौमुदी’ नामक बंगाली पत्रिका और ‘मिरात-उल-अखबार’ नामक फारसी अखबार की स्थापना की।
राजा राममोहन राय के सामाजिक सुधार में राजनीति और आधुनिकीकरण दोनों है।उनकी तात्कालिक समस्या उनके मूल बंगाल की धार्मिक और सामाजिक स्थितियों का था।
मूर्ति पूजा का विरोध: उन्होंने मूर्ति पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों को अंधविश्वास माना और इसके खिलाफ आवाज उठाई। उनका मानना था कि सच्चा धर्म ईश्वर की एकता में विश्वास और नैतिकता में है।
धर्म का सार्वभौमिक दृष्टिकोण: राजा राममोहन राय ने सभी धर्मों के बीच समानता और आपसी समझ को प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि सभी धर्मों का मूल उद्देश्य मानवता की भलाई है।
पश्चिमी शिक्षा का समर्थन: राजा राममोहन राय ने पश्चिमी शिक्षा प्रणाली और विज्ञान आधारित शिक्षा को भारतीय समाज में प्रचलित करने का प्रयास किया। वे अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी ज्ञान को अपनाने के समर्थक थे क्योंकि उनका मानना था कि इससे भारतीय समाज को प्रगति मिलेगी।
स्वतंत्रता और न्याय: राजा राममोहन राय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों का समर्थन किया। वे ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारतीयों के अधिकारों की वकालत करते रहे और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया।
राजा राममोहन राय के ये विचार भारतीय समाज में गहरे और स्थायी प्रभाव छोड़ गए। उनके सुधारवादी नजरिये ने न केवल तत्कालीन समाज को नई दिशा दी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने।
राजा राम मोहन राय, भारत के महान सामाजिक सुधारक और पुनर्जागरण के अग्रदूत थे। उनके नाम पर स्थापित राजा राम मोहन राय राष्ट्रीय पुरस्कार देश के उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने समाज सेवा, शिक्षा, या सांस्कृतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया हो। यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है और इसे देश का एक प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है।
आइए अब जानते हैं की राजा राम मोहन राय की मृत्यु कब, कहां और कैसे हुई, राजा राम मोहन राय की मृत्यु 27 सितंबर 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में हुई थी। वह अपने स्वास्थ्य की जांच और अपने सुधारवादी कार्यों के समर्थन के लिए इंग्लैंड गए थे। ब्रिस्टल में रहते हुए, वह मेनिन्जाइटिस (मस्तिष्क ज्वर) से पीड़ित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई।
उनका अंतिम संस्कार ब्रिस्टल के आर्लटन कब्रिस्तान में किया गया, जहाँ उनकी याद में एक समाधि का निर्माण किया गया है। राजा राम मोहन राय की मृत्यु ने भारत और इंग्लैंड दोनों में उनके समर्थकों और अनुयायियों को गहरा आघात पहुँचाया, लेकिन उनके योगदान और विरासत ने भारतीय समाज में स्थायी प्रभाव छोड़ा। उनकी सोच और सुधारवादी दृष्टिकोण आज भी भारतीय समाज को प्रगति की दिशा में प्रेरित करते है।
राजा राम मोहन राय की मृत्यु से पहले भारतीय समाज कई सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों से ग्रस्त था। सती प्रथा, बाल विवाह, जाति प्रथा और महिलाओं की दयनीय स्थिति जैसी समस्याएं व्यापक थीं। शिक्षा का अभाव, विशेषकर महिलाओं और निम्न जातियों के लिए, सामाजिक विकास में बाधक था। धार्मिक आडंबर और अंधविश्वास समाज में गहराई से जड़ें जमाए हुए थे। ऐसे समय में, राजा राम मोहन राय ने समाज सुधार, शिक्षा प्रसार, और महिलाओं के अधिकारों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिससे भारतीय समाज में जागरूकता और परिवर्तन की लहर आई।
राजा राम मोहन राय की मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा शुरू किए गए सामाजिक सुधार आंदोलन ने अपनी गति बनाए रखी। समाज में सती प्रथा का उन्मूलन और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन जैसे मुद्दों पर जागरूकता बढ़ी। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में शिक्षा का प्रसार हुआ, खासकर महिलाओं के बीच।
ब्रह्म समाज और अन्य सुधारवादी संगठनों ने उनके आदर्शों को आगे बढ़ाया, जिससे सामाजिक और धार्मिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। हालांकि, परंपरावादी और रूढ़िवादी तत्वों का विरोध जारी रहा, लेकिन राजा राम मोहन राय की विरासत ने समाज में एक स्थायी परिवर्तन की नींव रखी।
भारतीय समाज में गहरे और स्थायी प्रभाव छोड़ गई है। उनके सुधारवादी दृष्टिकोण और कार्यों ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी। उनकी प्रमुख विरासत हैं:
सामाजिक सुधार आंदोलन: राजा राममोहन राय सती प्रथा , बाल विवाह, और पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष किया। उनके प्रयासों से सती प्रथा पर 1829 में प्रतिबंध लगा, जो उनके सामाजिक सुधार आंदोलनों की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
धार्मिक सहिष्णुता और तर्कसंगत नजरिया : उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता, तर्कसंगत सोच, और वैज्ञानिक नजरिये को बढ़ावा दिया। उन्होंने उपनिषदों और वेदों के महत्व को सबके सामने लाया और उन्हें तर्कसंगत तरीके से प्रस्तुत किया।
शिक्षा सुधार: राजा राम मोहन राय ने आधुनिक शिक्षा, विशेषकर अंग्रेजी शिक्षा, को बढ़ावा दिया। उन्होंने 1817 में हिन्दू कॉलेज (अब प्रेसीडेंसी कॉलेज) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने भारतीय समाज में शिक्षा के महत्व को बढ़ाया।
पाश्चात्य और भारतीय विचारों का समन्वय: राजा राम मोहन राय ने पाश्चात्य दर्शन और भारतीय विचारों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की।
राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का पिता और भारतीय पुनर्जागरण का जनक माना जाता है। उन्होंने भारत में सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक सुधारों के लिए अथक प्रयास किए। उनके विचारों और कार्यों ने भारत के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल में हुआ था। उन्होंने संस्कृत, फारसी, अरबी और अंग्रेजी भाषाओं का गहन अध्ययन किया। उन्होंने वेदों, उपनिषदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों का भी अध्ययन किया।
राजा राम मोहन राय ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने सती प्रथा को खत्म करने के लिए अंग्रेजी सरकार पर दबाव डाला और अंततः सती प्रथा निषेध अधिनियम 1829 पारित हुआ। राजा राम मोहन राय ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी और महिलाओं को संपत्ति के अधिकार देने की मांग की।
राजा राम मोहन राय एक धार्मिक सुधारक भी थे। उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य एकेश्वरवाद और मानवतावाद को बढ़ावा देना था। उन्होंने सभी धर्मों के बीच एकता और भाईचारे पर जोर दिया।
राजा राम मोहन राय एक राष्ट्रवादी भी थे। उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने भारतीयों को शिक्षित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया।
राजा राम मोहन राय के योगदान:
राजा राम मोहन राय एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी थे। उनके विचारों और कार्यों ने भारत के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। वह आधुनिक भारत के पिता और भारतीय पुनर्जागरण के जनक के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे।
राजा राममोहन राय सती प्रथा को जड़ से समाप्त किया। अपने समय के उन कुछ लोगों में से एक थे, जिन्होंने आधुनिक युग के महत्त्व को महसूस किया। वह जानते थे कि मानव सभ्यता का आदर्श स्वतंत्रता से अलगाव में नहीं है, बल्कि राष्ट्रों के आपसी सहयोग के साथ-साथ व्यक्तियों की अंतर-निर्भरता और भाईचारे में है।
इस ब्लॉग में हमने राजा राम मोहन राय समाज सुधारक के बारे में जाना। हमने ये जाना कि राजा राममोहन राय कौन थे , उनका जन्म कब हुआ, उनके पिता – माता का नाम क्या था ,और उनके जो योगदान थे ,उनकी क्या – क्या भूमिका रही उनमें फिर चाहे वो धर्म सुधार हो या प्रशानिक सुधार हो या ब्रह्म समाज जैसे आंदोलनों के बारे में विस्तृत रूप से जाना।
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उनके निधन के बाद, उनके सुधार कार्यों को ब्रह्म समाज के अन्य प्रमुख नेताओं, जैसे केशव चंद्र सेन और देवेंद्रनाथ ठाकुर ने आगे बढ़ाया।
उनकी मृत्यु के समय वह 61 वर्ष के थे।
उन्हें ‘राजा’ की उपाधि मुग़ल सम्राट अकबर द्वितीय द्वारा दी गई, जब वे सम्राट के ब्रिटिश सरकार के साथ प्रतिनिधि के रूप में काम कर रहे थे।
उनकी पुस्तक “तुफ़त-उल-मुवाहिदीन” (एकेश्वरवाद का उपहार) को उनके धार्मिक विचारों का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है।
उनके समाज सुधार आंदोलन की शुरुआत 1820 के दशक में बंगाल में हुई, जहाँ उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की।
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