रॉलेट एक्ट 1919 क्या था? इतिहास, प्रभाव और महत्वपूर्ण घटनाएँ

November 29, 2024
रॉलेट एक्ट
Quick Summary

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  • रॉलेट एक्ट, 1919 ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में लागू किया गया कानून था।
  • यह कानून नागरिक स्वतंत्रताओं को सख्ती से नियंत्रित करता था।
  • इसके अंतर्गत बिना मुकदमे के गिरफ्तारी की अनुमति थी।
  • इसके तहत बिना ट्रायल के कारावास की भी अनुमति थी।
  • इस कानून ने भारतीय जनता में गहरी नाराज़गी और विरोध उत्पन्न किया।

Table of Contents

“रॉलेट एक्ट” कानून ने भारत की आज़ादी की यात्रा में अहम भूमिका निभाई। यह इतिहास के पन्नों पर एक काले कानून के रूप ने लिखा गया क्योंकि, इसी कानून ने स्वतंत्रता संग्राम में घटित सबसे दुखत घटना जलियांवाला बाग हत्याकांड को जन्म दिया। ऐसे में, आपको रॉलेट एक्ट क्या था, रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ और रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।

इस ब्लॉग में आपको रॉलेट एक्ट क्या था, रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ, रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ, इसका उद्देश, इसके प्रभाव, जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 और जानने योग्य “रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखिए” के बारे में जानकारी मिलेगी।

रॉलेट एक्ट क्या था? 

रॉलेट एक्ट, 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में लागू किया गया एक कानून था। रॉलेट एक्ट का सरकारी नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) था। इसे सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा तैयार किया गया था, इसलिए इसे रॉलेट एक्ट कहा गया। इस कानून के तहत, ब्रिटिश सरकार को किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल में रखने की शक्ति मिल गई थी। यह कानून इतना क्रूर था कि इसे ‘काले कानून’ के नाम से भी जाना जाता है।

विवरणजानकारी
नामकाला कानून, रौलेट एक्ट
लागू होने का समय18 मार्च, 1919
क्यों लाया गया था?भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए
मुख्य उद्देश्यभारतीय राष्ट्रवादियों को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार करना और जेल में रखना
विशेषताएंबिना किसी मुकदमे के गिरफ्तारी
अनिश्चितकाल तक जेल में रखना
न्यायिक समीक्षा का अभाव
गिरफ्तारी के कारणों को गोपनीय रखना
भारत का वायसराय उस समयलॉर्ड चेम्सफोर्ड
भारतीयों की प्रतिक्रियाविरोध प्रदर्शन, हड़ताल, सविनय अवज्ञा आंदोलन
महत्वपूर्ण घटनाएंजलियांवाला बाग हत्याकांड
परिणामभारतीय राष्ट्रवाद में वृद्धि, ब्रिटिश शासन के खिलाफ गुस्सा बढ़ा

रॉलेट एक्ट के प्रावधान:

  • बिना मुकदमे की गिरफ्तारी: इस कानून के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वजह के गिरफ्तार कर सकती थी।
  • जेल में बंद करना: गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को बिना किसी सबूत के दो साल तक जेल में रखा जा सकता था।
  • मुकदमे का अधिकार नहीं: गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को मुकदमे का कोई अधिकार नहीं था।
  • दंड का प्रावधान: अधिनियम के धारा 22 और 27 के तहत किसी भी आदेश की आज्ञा को ना मानने के लिए दंड का प्रावधान किया गया था, जो छह महीने की कैद या 500 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते थें।

रॉलेट एक्ट का ऐतिहासिक संदर्भ

रॉलेट एक्ट के ऐतिहासिक संदर्भ में कुछ बातों का जानना बेहद जरूरी है, जिसमें रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ और रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ सामिल हैं।

रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ?

“रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ” ये अक्सर पूछे जाने वाला सवाल है। न्यायमूर्ति रौलट की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर, 6 फरवरी 1919 को केंद्रीय विधानमंडल में दो बिल पेश किए गए और इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा रॉलेट एक्ट को पारित किया गया। इन बिलों को “ब्लैक बिल” के रूप में भी जाना जाता है।

रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ? 

“रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ” यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी कानून ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ लाया। रॉलेट एक्ट जो एक विधान परिषद अधिनियम था 18 मार्च 1919 को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा लागू किया गया था। इस कानून के मुख्य उद्देश में से एक भारत में बढ़ते स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था।

रॉलेट एक्ट का उद्देश्य

रॉलेट एक्ट लाने के पीछे ब्रिटिश सरकार के कुछ नकारात्मक उद्देश थें। जो कुछ इस प्रकार हैं:

  1. स्वतंत्रता संग्राम को दबाना: भारत में बढ़ते स्वतंत्रता संग्राम को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने यह कठोर कानून बनाया था।
  2. भारतीयों को डराना: इस कानून के जरिए ब्रिटिश सरकार भारतीयों को डराना चाहती थी और उन्हें अपने खिलाफ बोलने से रोकना चाहती थी।
  3. शासन को मजबूत करना: ब्रिटिश सरकार भारत में अपना शासन मजबूत करना चाहती थी और इसीलिए उन्होंने यह कानून बनाया था।
  4. मौलिक अधिकारों का हनन: इस कानून का उद्देश भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन करना और इसमें जनता की स्वतंत्रता को सीमित करना था।
  5. स्थायी कानून में बदलना: उनका उद्देश्य युद्धकालीन “भारत रक्षा अधिनियम (1915)” के अत्याचारी प्रावधानों को स्थायी कानून द्वारा बदलना था। 

रॉलेट एक्ट का प्रभाव

रॉलेट एक्ट को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अहम भूमिका रही। इस कानून को लेकर जनता में असंतोष था और इसने अंग्रेजी शासन के खिलाफ बढ़ते आंदोलन को और बढ़ावा दिया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भूमिका

रौलेट एक्ट के लागू होने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका कड़ा विरोध किया। कांग्रेस ने इसे भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन माना और इसे रद्द करने की मांग की। महात्मा गांधी ने कांग्रेस के साथ मिलकर इसके खिलाफ व्यापक स्तर पर आंदोलन और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए।

कांग्रेस ने देशभर में असहयोग आंदोलन और हड़तालों का आह्वान किया, जिससे जनता ने बड़े पैमाने पर ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार किया और सरकारी संस्थानों से दूरी बनाई। कांग्रेस की भूमिका इस एक्ट के खिलाफ जनजागृति फैलाने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ मजबूत आवाज उठाने में महत्वपूर्ण रही।

जनता का असंतोष और अंग्रेजी शासन के खिलाफ बढ़ता आंदोलन

रौलेट एक्ट को लेकर जनता का असंतोष और अंग्रेजी शासन के खिलाफ बढ़ता आंदोलन बहुत ही महत्वपूर्ण था। जब रॉलेट एक्ट लागू हुआ, तो भारतीय जनता में भारी आक्रोश और असंतोष फैल गया। लोग इस कानून को अपने मौलिक अधिकारों पर हमला मानते थे।

महात्मा गांधी ने इस एक्ट के खिलाफ व्यापक स्तर पर विरोध और सत्याग्रह का आयोजन किया। जनता ने हड़तालें कीं, रैलियाँ निकालीं, और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खुलकर अपनी नाराजगी जताई। इस विरोध ने पूरे देश में एकजुटता का माहौल पैदा किया और स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड, जो इसी आंदोलन के दौरान हुआ, ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया। इस घटना ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को सबके सामने ला दिया और स्वतंत्रता की मांग को और मजबूती से उठाया। रौलेट एक्ट के कारण जनता और भी अधिक संगठित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ी हो गई।

जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास का एक ऐसा काला अध्याय है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चला दी थीं। उस दिन जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा चल रही थी साथ ही बैसाखी का पर्व होने के कारण भीड़ अधिक थी। लोग रौलेट एक्ट और 10 अप्रैल को कांग्रेस के दो नेताओं, डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू के गिरफ्तारी के विरोध में इकट्ठा हुए थें।

ब्रिटिश जनरल डायर ने इस सभा को अवैध घोषित कर दिया और बिना किसी चेतावनी के अपने सैनिकों को भीड़ पर गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। ब्रिटिश सेना ने बाग को चारों तरफ से घेर लिया और एक संकरी गली से ही बाग में प्रवेश का रास्ता छोड़ रखा था। फिर अचानक से उन्होंने भीड़ पर गोलियां चला दीं। इस बर्बर गोलीबारी में 379 से अधिक लोग मारे गए और 1200 लोग घायल हुए।

इस हत्याकांड ने भारतीय जनता को गहरे सदमे में डाल दिया और ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर कर दिया। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ बनी, जिसने जनता के मन में ब्रिटिश शासन के प्रति और भी अधिक आक्रोश और स्वतंत्रता की भावना को भड़का दिया।

रौलेट एक्ट के खिलाफ जलियांवाला बाग हत्याकांड प्रतिक्रिया ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया और जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ और भी अधिक संगठित और एकजुट कर दिया। 

रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रतिक्रिया: रॉलेट सत्याग्रह

रौलेट एक्ट के विरुद्ध लोगों ने कई तरह की प्रतिक्रियाएं दीं जिनमें शामिल हैं:

  1. सत्याग्रह: महात्मा गांधी जी ने रौलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह का रास्ता चुना। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस कानून का पालन न करें और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करें।
  2. हड़तालें: कई जगहों पर लोगों ने हड़तालें कीं। दुकानें बंद रहीं, गाड़ियां नहीं चलीं। इससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की गई।
  3. विरोध प्रदर्शन: लोगों ने सभाएं कीं और जुलूस निकाले। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगाए और इस कानून को वापस लेने की मांग की।
  4. असहयोग: लोगों ने ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करना बंद कर दिया। उन्होंने सरकारी नौकरियां छोड़ दीं और सुनवाई के वक्त अदालतों में नहीं गए।

रॉलेट एक्ट के बारे में जानने योग्य बातें

रौलेट एक्ट के बारे में जानने योग्य बातें संक्षेप में रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखिए के माध्यम से जाना जा सकता है।

रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखिए

रॉलेट एक्ट भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। यह कानून भारतीयों के मौलिक अधिकारों का हनन था और इसने भारतीयों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गुस्सा पैदा किया। इस कानून के कारण इतिहास के पन्नों पर जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 जैसी दर्दनाक घटना दर्ज हुई। जिसमें सैकड़ों लोगों को ब्रिटिश सरकार द्वारा गोलियों से झल्ली कर दिया गया था। 

रौलेट एक्ट ब्रिटिश साम्राज्यवाद का एक कड़वा उदाहरण था। इस कानून ने दिखाया कि कैसे एक शक्तिशाली सरकार अपने नागरिकों के अधिकारों का हनन कर सकती है। यह कानून भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और इसने भारतीयों को एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित भी किया।

निष्कर्ष

“रॉलेट एक्ट” न केवल एक दमनकारी कानून था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित हुआ। इस एक्ट ने भारतीय जनता के बीच एकता और संघर्ष की भावना को और मजबूत किया। रॉलेट एक्ट के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों और जलियांवाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर किया और स्वतंत्रता की लड़ाई को और तेज कर दिया। यह घटना भारतीय इतिहास में एक काला अध्याय है, लेकिन इसने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा और ऊर्जा भी प्रदान की। 

इस ब्लॉग में आपने रॉलेट एक्ट क्या था, रॉलेट एक्ट कब पारित हुआ, रॉलेट एक्ट कब लागू हुआ, इसका उद्देश, इसके प्रभाव, जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 और जानने योग्य “रॉलेट एक्ट पर टिप्पणी लिखिए” के बारे में जाना। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

रॉलेट एक्ट भारत में कब लागू हुआ?

रौलट एक्ट 18 मार्च 1919 को पारित किया गया था।

रॉलेट एक्ट को काला कानून क्यों कहा गया है?

रॉलेट एक्ट को “काला कानून” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस कानून के तहत:

• किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार करके अनिश्चित काल के लिए जेल में रखा जा सकता था।
• गिरफ्तारी के खिलाफ कोई न्यायिक अपील नहीं की जा सकती थी।
• गिरफ्तारी के कारणों को भी नहीं बताया जाता था।

इन कठोर प्रावधानों के कारण भारतीयों ने इस कानून का विरोध किया और इसे “काला कानून” कहा।

रौलट एक्ट क्या था और गांधीजी ने इसका विरोध क्यों किया?

इस एक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए अनिश्चित समय के लिए बंद कर सकती थी और उसे अपील, दलील या वकील करने का कोई अधिकार नहीं था।
गांधीजी ने इस कानून के विरोध में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया क्योंकि यह कानून बिना किसी अपराध के लोगों को सजा देता था।

रौलेट एक्ट पारित होने के समय भारत का वायसराय कौन था?

रौलट एक्ट पारित होने के समय भारत का वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड(1916-21) था।

महात्मा गांधी ने रौलट सत्याग्रह क्यों बंद किया?

गांधीजी ने रौलट सत्याग्रह अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद बंद कर दिया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड में ब्रिटिश सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई थीं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश फैला दिया था और गांधीजी ने महसूस किया कि सत्याग्रह का तरीका अब प्रभावी नहीं रहेगा।

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