सांप्रदायिकता क्या है?: Communalism in India

September 16, 2024
सांप्रदायिकता क्या है
Quick Summary

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सांप्रदायिकता एक सामाजिक समस्या है जो विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विभाजन और तनाव को बढ़ावा देती है। यह मानसिकता समाज की एकता और भाईचारे को कमजोर करती है और हिंसा और दंगों का कारण बनती है। सांप्रदायिकता का उदय राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों से होता है और इसे समाप्त करने के लिए एकजुट प्रयासों की आवश्यकता है।

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सांप्रदायिकता एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच विभाजन और तनाव को बढ़ावा देती है। यह मानसिकता लोगों को अपने धर्म को सर्वोपरि मानने और अन्य धर्मों के प्रति शत्रुता रखने के लिए प्रेरित करती है। सांप्रदायिकता का उदय अक्सर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों से होता है। भारत में, इसका इतिहास ब्रिटिश शासन के समय से ही देखा जा सकता है, जब “फूट डालो और राज करो” की नीति अपनाई गई थी। स्वतंत्रता संग्राम और विभाजन के समय भी सांप्रदायिकता ने समाज में गहरे घाव छोड़े। आज भी, सांप्रदायिकता समाज में एकता और भाईचारे को कमजोर करती है और समय-समय पर हिंसा और दंगों का कारण बनती है।

इस ब्लॉग में, हम सांप्रदायिकता क्या है, साम्प्रदायिक का अर्थ, साम्प्रदायिकता का उदय और विकास, सांप्रदायिक सौहार्द का अर्थ, भारत में साम्प्रदायिकता के कारण, भारत में सांप्रदायिकता का विकास और सांप्रदायिकता को रोकने के उपाय के बारें में चर्चा करेंगे। 

सांप्रदायिकता क्या है?

सबसे पहले हम समझेंगे कि सांप्रदायिकता क्या है? यह एक ऐसी मानसिकता है जिसमें लोग अपने धर्म को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं और दूसरों के धर्मों के प्रति गलत सोच और शत्रुता रखते हैं। इससे समाज में एकता और भाईचारा कमजोर होता है और लोग एक-दूसरे के प्रति द्वेष करने लगते हैं।

साम्प्रदायिक का अर्थ

सांप्रदायिकता का अर्थ है एक ऐसी विचारधारा या मानसिकता जिसमें लोग अपने धर्म को सबसे अच्छा मानते हैं और अन्य धर्मों के लोगों को गलत और छोटा समझते हैं। यह सोच समाज में अलग-अलग धर्मों के बीच झगड़ा और दुश्मनी बढ़ाती है। जब लोग धार्मिक पहचान के आधार पर दूसरों से भेदभाव करते हैं या उनके प्रति नफरत रखते हैं, तो इसे सांप्रदायिकता कहते हैं।

भारत में सांप्रदायिकता का इतिहास

भारत में सांप्रदायिकता का इतिहास बहुत पुराना है और यह अलग-अलग समय में सामने आता रहता है। सांप्रदायिकता क्या है ब्लॉग में हम भारत में साम्प्रदायिकता का उदय और विकास पर चर्चा करेंगे –

ब्रिटिश काल

ब्रिटिश शासन के समय, अंग्रेजों ने भारतीय समाज को बांटने के लिए “फूट डालो और राज करो” की नीति अपनाई। उन्होंने हिंदू और मुस्लिमों के बीच झगड़े को बढ़ावा दिया ताकि वे भारत पर आसानी से शासन कर सकें। अंग्रेजों की इस नीति से भारतीय समाज में सांप्रदायिकता की जड़ें मजबूत हुईं।

स्वतंत्रता संग्राम

जब भारत आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब भी सांप्रदायिकता का असर था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेदों ने हिंदू-मुस्लिम विभाजन को गहरा किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिन्दू-मुस्लिम दंगे जैसी घटनाएं इसका उदाहरण हैं। इन घटनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम को प्रभावित किया और समाज में तनाव बढ़ाया।

विभाजन और इसके बाद

1947 में भारत के विभाजन के समय, हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच भारी हिंसा हुई। लाखों लोग मारे गए और बहुत से लोग अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए। विभाजन के बाद भी सांप्रदायिकता की समस्या बनी रही और समय-समय पर दंगे और हिंसा होती रही। विभाजन की त्रासदी ने भारतीय समाज में इसकी गहरी जड़ें छोड़ी, जो आज भी महसूस की जा सकती हैं।

समकालीन भारत 

आज भी भारत में सांप्रदायिकता एक बड़ी समस्या है और राजनीतिक और सामाजिक कारण इसे बढ़ावा देते हैं। हाल की घटनाओं जैसे 2002 के गुजरात दंगे, 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे, और 2020 के दिल्ली दंगे से पता चलता है कि सांप्रदायिकता का जहर अभी भी समाज में है।

भारत में साम्प्रदायिकता के कारण

भारत में सांप्रदायिकता के कई कारण हैं, जो समाज में तनाव और विभाजन बढ़ाते हैं। इनमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मीडिया से जुड़े कारण शामिल हैं।

1. राजनीतिक कारण

भारत में सांप्रदायिकता का विकास करने में राजनीतिक दलों की भी बड़ी भूमिका रही है। चुनाव के समय, वे धार्मिक भावनाओं को भड़का कर वोट बैंक की राजनीति करते हैं। इससे समाज में तनाव और बंटवारा बढ़ता है। कुछ नेता अपने स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक मुद्दों का उपयोग करते हैं, जिससे लोगों में आपसी नफरत बढ़ती है।

2. आर्थिक कारण

आर्थिक असमानता और संसाधनों की कमी भी सांप्रदायिकता को बढ़ावा देती है। जब एक समुदाय को लगता है कि उसे दूसरे समुदाय के मुकाबले कम अवसर मिल रहे हैं, तो असंतोष बढ़ता है और सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होता है। बेरोजगारी और गरीबी जैसी समस्याएं सांप्रदायिकता को बढ़ावा देती हैं, क्योंकि लोग अपने दुखों का दोष दूसरे समुदाय पर मढ़ देते हैं।

3. सामाजिक कारण

सामाजिक विभाजन, जाति प्रथा, और धार्मिक रूढ़िवादिता भी भारत में साम्प्रदायिकता का एक प्रमुख कारण  हैं। समाज में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव और पूर्वाग्रह सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। इससे समाज में विभाजन और तनाव बढ़ता है, और लोग एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक सोच रखने लगते हैं।

3. सांस्कृतिक कारण

धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के बावजूद, सांस्कृतिक असहिष्णुता और पूर्वाग्रह सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों और मान्यताओं में भिन्नता से विवाद उत्पन्न होते हैं। कुछ लोग अपने रीति-रिवाजों को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ता है।

4. मीडिया का प्रभाव

मीडिया भी भारत में सांप्रदायिकता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब मीडिया किसी एक धर्म के ख़िलाफ़ भ्रामक और उत्तेजक खबरें प्रसारित करता है, तो समाज में गलतफहमियां बढ़ती हैं और सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होता है। मीडिया द्वारा प्रसारित की गई खबरें लोगों की सोच को प्रभावित करती हैं, जिससे समाज में आपसी मतभेद और नफरत बढ़ती है।

सांप्रदायिकता के प्रकार

सांप्रदायिकता कभी भी एक तरह की नहीं होती| सांप्रदायिकता के भी अलग-अलग रूप होते हैं, जो समाज के अलग-अलग पहलुओं को प्रभावित करते हैं।

1. सांस्कृतिक साम्प्रदायिकता

यह तब होती है जब एक समुदाय अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं और प्रथाओं को श्रेष्ठ मानता है और अन्य समुदायों की सांस्कृतिक विविधता को नकारता है। इससे समाज में विभाजन और तनाव बढ़ता है। सांस्कृतिक साम्प्रदायिकता से सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर विभाजन और तनाव उत्पन्न होता है।

2. राजनीतिक साम्प्रदायिकता

राजनीतिक साम्प्रदायिकता का उपयोग राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए करते हैं। वे धार्मिक भावनाओं को भड़का कर वोट बैंक की राजनीति करते हैं और समाज में विभाजन पैदा करते हैं। राजनीतिक साम्प्रदायिकता से समाज में राजनीतिक विभाजन और तनाव बढ़ता है।

3. आर्थिक साम्प्रदायिकता

आर्थिक साम्प्रदायिकता तब होती है जब एक समुदाय आर्थिक संसाधनों और अवसरों में असमानता महसूस करता है। यह असंतोष सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देता है। आर्थिक साम्प्रदायिकता से समाज में आर्थिक असमानता और तनाव बढ़ता है।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा की प्रमुख घटनाएँ

भारत के इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं जो सांप्रदायिक हिंसा की क्रूरता और विभाजनकारी प्रभाव को दर्शाती हैं। ये घटनाएँ समाज के विभिन्न वर्गों के बीच अविश्वास और दुश्मनी का कारण बनी हैं। आइए, कुछ प्रमुख घटनाओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं:

1. 1947 का विभाजन दंगा

1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय देशभर में भयानक दंगे हुए। इस विभाजन के कारण हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तीव्र संघर्ष हुआ। लाखों लोग मारे गए और करोड़ों लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। यह सांप्रदायिक हिंसा भारतीय इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक मानी जाती है।

  • कारण: विभाजन की योजना और प्रक्रिया में जल्दबाजी, राजनीतिक नेताओं का सत्ता की लड़ाई में उलझना, और दोनों समुदायों के बीच गहरे बैठा अविश्वास।
  • परिणाम: भारत और पाकिस्तान में बड़ी संख्या में शरणार्थियों का आगमन, दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास, और सांप्रदायिकता की गहरी जड़ें।

2. 1969 का अहमदाबाद दंगा

1969 में गुजरात के अहमदाबाद में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे भड़के। इन दंगों में करीब 1000 लोग मारे गए और कई घायल हुए। यह दंगा धार्मिक रैलियों के दौरान छोटी-छोटी बातों पर शुरू हुआ और जल्द ही बड़े पैमाने पर फैल गया।

  • कारण: धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले बयान, राजनीतिक उकसावे, और पुलिस प्रशासन की लापरवाही।
  • परिणाम: बड़ी संख्या में जान-माल का नुकसान, समाज में अविश्वास और असुरक्षा का माहौल।

3. 1984 का सिख विरोधी दंगा

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़की। दिल्ली और अन्य शहरों में सिखों के घरों और दुकानों को निशाना बनाया गया। इस दंगे में हजारों सिख मारे गए और बड़ी संख्या में लोग बेघर हो गए।

  • कारण: इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बदला लेने की भावना, राजनीतिक नेताओं का उकसावा, और प्रशासन की निष्क्रियता।
  • परिणाम: सिख समुदाय में भय और असुरक्षा की भावना, देशभर में सांप्रदायिक तनाव का बढ़ना।

4. 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को हिंदू कारसेवकों द्वारा गिराया गया, जिसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। इन दंगों में हजारों लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए।

  • कारण: बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण की मांग, राजनीतिक दलों का धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग, और पुलिस प्रशासन की विफलता।
  • परिणाम: सांप्रदायिक दंगों में बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान, धार्मिक विभाजन का गहरा होना, और राजनीतिक तनाव का बढ़ना।

5. 2002 का गुजरात दंगा

गुजरात में 2002 में हुए दंगे गोधरा ट्रेन हादसे के बाद भड़के। इन दंगों में हजारों लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोग बेघर हो गए। इस घटना ने देश और दुनिया में काफी आलोचना बटोरी।

  • कारण: गोधरा ट्रेन कांड में हिंदू कारसेवकों की मौत, प्रशासन की निष्क्रियता, और सांप्रदायिक भावनाओं का भड़कना।
  • परिणाम: बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान, धार्मिक समुदायों के बीच अविश्वास और तनाव का बढ़ना, और मानवाधिकारों का उल्लंघन।

6.  2013 का मुज़फ्फरनगर दंगा:

उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों में 60 से अधिक लोग मारे गए और हजारों लोग विस्थापित हुए।

7. 2020 का दिल्ली दंगा:

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में भड़के दंगों में 50 से अधिक लोग मारे गए और कई घायल हुए।

सांप्रदायिकता के नुकसान 

सांप्रदायिकता, समाज और देश को अलग-अलग तरह से प्रभावित करती है। इसकी वजह से देश में हमेशा संघर्ष की स्थिति और अशांति बनी रहती है। सांप्रदायिकता की वजह से कई तरह के दुष्परिणाम सामने आते हैं, जैसे –

1. सामाजिक दुष्परिणाम

सांप्रदायिकता से समाज में विभाजन और अस्थिरता उत्पन्न होती है। इससे सामाजिक ताना-बाना कमजोर होता है और लोग एक-दूसरे के प्रति अविश्वास करने लगते हैं। सामाजिक सौहार्द्रता और सामंजस्य की भावना को नुकसान पहुंचता है।

2. आर्थिक दुष्परिणाम

सांप्रदायिकता के कारण आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आती है। व्यापार और उद्योग प्रभावित होते हैं, जिससे बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती है। सांप्रदायिक दंगों से व्यापारिक प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचता है, जिससे आर्थिक नुकसान होता है।

3. राजनीतिक दुष्परिणाम

सांप्रदायिकता से राजनीतिक स्थिरता प्रभावित होती है। इससे सरकारें कमजोर होती हैं और राजनीतिक दलों के बीच मतभेद बढ़ते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ सांप्रदायिकता का फायदा उठाकर सत्ता हासिल करने की कोशिश करती हैं।

4. मनोवैज्ञानिक दुष्परिणाम

सांप्रदायिकता से लोगों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लोग तनाव, अवसाद, और भय का शिकार होते हैं। इससे समाज में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की वृद्धि होती है।

सांप्रदायिकता को रोकने के उपाय

सांप्रदायिकता को रोकने के लिए समाज में जागरूकता फैलाने, शिक्षा, मीडिया, सरकार, और  सामाजिक संगठनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। सबसे जरुरी कदम है कि सरकारी को ऐसी घटनाएं रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए। सांप्रदायिकता रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं-

  • सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ
    • सरकार सांप्रदायिकता रोकने के लिए अनेक नीतियाँ और योजनाएँ लागू करती है, जिनमें शिक्षा और संवाद को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है।
    • सामुदायिक सद्भावना को बढ़ाने के लिए संवेदनशीलता प्रशिक्षण, सामाजिक समरसता कार्यक्रम, और विविधता को अपनाने वाले अभियानों का आयोजन किया जाता है।
  • कानूनी प्रावधान
    • कानून के अनुसार, सांप्रदायिक हिंसा को अपराध घोषित किया गया है, और ऐसे अपराधों में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है।
    • इसके अलावा, सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाले भाषणों पर सख्त कानून लागू हैं, जो समाज में भाईचारा बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • शिक्षा
    • शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों और युवाओं में सांप्रदायिक सौहार्द का अर्थ और उन्हें एक-दूसरे के धर्म और संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना सिखाना चाहिए।
    • स्कूल और कॉलेजों में धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे पर आधारित पाठ्यक्रम शामिल किए जाने चाहिए।
    • सांप्रदायिकता के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यशालाएँ और सेमिनार आयोजित किए जाने चाहिए।
  • मीडिया की भूमिका
    • मीडिया को जिम्मेदाराना तरीके से खबरें प्रसारित करनी चाहिए और भड़काने वाली खबरों से बचना चाहिए। मीडिया को सकारात्मक खबरों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा दें।
    • समाचार चैनलों और अखबारों को अपनी सामग्री में संतुलन बनाए रखना चाहिए और सांप्रदायिकता के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए।
  • सामुदायिक पहल
    • सामुदायिक स्तर पर भी सांप्रदायिकता रोकने के प्रयास किए जाने चाहिए। सभी समुदायों के बीच संवाद और समझ बढ़ाने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।
    • धार्मिक और सामाजिक संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए और समाज में शांति और भाईचारे का संदेश फैलाना चाहिए। 

निष्कर्ष

निष्कर्षतः, सांप्रदायिकता एक ऐसी मानसिकता है जो समाज में विभाजन और तनाव को बढ़ावा देती है। यह न केवल विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच शत्रुता को जन्म देती है, बल्कि समाज की एकता और भाईचारे को भी कमजोर करती है। ऐतिहासिक रूप से, सांप्रदायिकता का उदय राजनीतिक और सामाजिक कारणों से हुआ है, और आज भी यह समस्या समाज में विद्यमान है। सांप्रदायिकता के कारण होने वाली हिंसा और दंगे समाज के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करते हैं। अतः, सांप्रदायिकता को समाप्त करने के लिए हमें एकजुट होकर प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि हम एक समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

सांप्रदायिकता का मतलब क्या होता है?

सांप्रदायिकता का मतलब है किसी विशेष धर्म या संप्रदाय के प्रति अत्यधिक लगाव और अन्य धर्मों के प्रति शत्रुता रखना। यह मानसिकता समाज में विभाजन और तनाव को बढ़ावा देती है, जिससे एकता और भाईचारा कमजोर होता है। सांप्रदायिकता के कारण समाज में हिंसा और दंगे भी हो सकते हैं।

सांप्रदायिकता क्या है?

सांप्रदायिकता एक मानसिकता है जिसमें लोग अपने धर्म को सर्वोपरि मानते हैं और अन्य धर्मों के प्रति शत्रुता रखते हैं। यह समाज में विभाजन और तनाव को बढ़ावा देती है, जिससे एकता और भाईचारा कमजोर होता है।

सांप्रदायिकता राजनीति का क्या अर्थ है?

सांप्रदायिकता राजनीति का अर्थ है जब राजनीतिक दल या नेता अपने राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक विभाजन और तनाव का उपयोग करते हैं। यह रणनीति समाज में धार्मिक आधार पर विभाजन और शत्रुता को बढ़ावा देती है। जिससे वोट बैंक की राजनीति की जाती है। इस प्रकार की राजनीति समाज की एकता और शांति को कमजोर करती है और अक्सर हिंसा और दंगों का कारण बनती है।

संप्रदाय का अर्थ क्या है?

संप्रदाय का अर्थ है एक विशेष धार्मिक या आध्यात्मिक मत या सिद्धांत, जो परंपरा से चला आ रहा हो। यह किसी धर्म के अनुयायियों का समूह होता है जो एक ही विचारधारा या परंपरा का पालन करते हैं। उदाहरण के लिए, वैष्णव और शैव संप्रदाय। संप्रदायों में गुरु-शिष्य परंपरा भी महत्वपूर्ण होती है, जो ज्ञान और उपदेश को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाती है।

सांप्रदायिकता की विशेषताएं क्या हैं?

सांप्रदायिकता की विशेषताएं हैं: धार्मिक श्रेष्ठता, विभाजनकारी मानसिकता, शत्रुता और द्वेष, राजनीतिक और सामाजिक कारण, और हिंसा व दंगे। यह समाज में विभाजन और तनाव को बढ़ावा देती है, जिससे एकता और भाईचारा कमजोर होता है।

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