भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Indian Constitution

February 18, 2025
संविधान की प्रस्तावना
Quick Summary

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  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह संविधान के निर्माण के पीछे के विचारों और उद्देश्यों को दर्शाती है।
  • यह भारत के लोगों द्वारा स्वयं को दिए गए एक वचन के समान है।

“हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:  …व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

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भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था। यह भारत का सर्वोच्च कानून है और इसमें 25 भागों में 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां शामिल हैं। संविधान की प्रस्तावना(Samvidhan Prastavana) संविधान का एक प्रारंभिक भाग है जो इसके मूल्यों, उद्देश्यों और लक्ष्यों को निर्धारित करता है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो भारत की संवैधानिक व्यवस्था को समझने के लिए आवश्यक है। यहां हम संविधान की प्रस्तावना, samvidhan kisne likha tha और Samvidhan kab lagu hua इसके बारे में विस्तार से जानेंगे।

संविधान की प्रस्तावना क्या है? | Samvidhan Prastavana

भारत के संविधान की प्रस्तावना संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संविधान के उद्देश्यों, मूल्यों और दिशा-निर्देशों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। प्रस्तावना संविधान की आत्मा मानी जाती है और यह भारतीय राज्य के उद्देश्य, लक्ष्य और आदर्शों का परिचय देती है।

संविधान की प्रस्तावना
संविधान की प्रस्तावना

संविधान की प्रस्तावना का पाठ | Text of the Preamble to the Constitution

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में तथ्य

  1. भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble of Indian Constitution in Hindi) भारत की संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था।
  2. प्रस्तावना से तात्पर्य संविधान के सार या सार से युक्त संविधान से है।
  3. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को सबसे पहले अमेरिकी संविधान में पेश किया गया था।
  4. भारत सरकार अधिनियम 1919 में एक अलग प्रस्तावना मौजूद थी।
  5. संविधान की प्रस्तावना पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा तैयार किए गए उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है, जिसे 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था।
  6. इसे “भारतीय संविधान की आत्मा” भी कहा जाता है।
  7. प्रस्तावना संविधान का एक अभिन्न अंग है और इसलिए इसमें संशोधन किया जा सकता है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में मुख्य शब्द | Keywords in the Preamble

मुख्य शब्दावलीअर्थ
संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्नइसका मतलब है कि भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राज्य बनाना।
समाजवादीसमाजवाद का मतलब है, समाज में धन और संसाधनों का समान वितरण और सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना।
पंथनिरपेक्षइसका मतलब है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, यानी राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाएगा।
लोकतांत्रिकयह भारत के लोकतांत्रिक स्वरूप को इंगीत करता है, जहां जनमत के द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन चलता है।
गणतंत्रगणतंत्र का अर्थ है एक ऐसा शासन व्यवस्था, जिसमें देश का प्रमुख (राष्ट्रपति या अन्य कोई) जनता द्वारा चुना जाता है और उसका कार्यकाल सीमित होता है। इसमें सर्वोच्च सत्ता जनता के हाथों में होती है, और सरकार को उनकी इच्छा और संविधान के अनुरूप काम करना होता है।
न्यायसामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ व्यवहार में निष्पक्षता
स्वतंत्रताविचार, विश्वास, आस्था और पूजा की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध की अनुपस्थिति
समानतास्थिति और अवसर के संदर्भ में किसी विशेष हेतु प्रावधानों की अनुपस्थिति
बन्धुत्वदेश की एकता और अखंडता के साथ भाईचारा
संविधान की प्रस्तावना

संविधान की प्रस्तावना का इतिहास

Samvidhan kab lagu hua यह लगभग सभी को पता होता है, लेकिन भारतीय संविधान की प्रस्तावना का इतिहास संविधान सभा के विचार-विमर्श के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। प्रस्तावना सहित संविधान का मसौदा तैयार करने का कार्य डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति द्वारा किया गया था। प्रस्तावना को अंतिम रूप से अपनाने से पहले कई संशोधनों से गुजरना पड़ा।

प्रस्तावना विभिन्न स्रोतों से प्रेरित है, जिसमें 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किया गया उद्देश्य प्रस्ताव भी शामिल है। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए भारतीय लोगों की आकांक्षाओं को दर्शाता है। प्रस्तावना को 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था और यह 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के साथ लागू हुई थी।

संविधान कब लागू हुआ?

संविधान कब लागू हुआ
संविधान कब लागू हुआ?

अगर आप सोचते हैं कि Samvidhan kab lagu hua तो बता दे कि भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था। इस दिन को भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो ब्रिटिश शासन से भारत के एक लोकतांत्रिक गणराज्य में परिवर्तन का प्रतीक है। इस दिन, संविधान ने भारत सरकार अधिनियम (1935) को देश के सर्वोच्च कानून के रूप में प्रतिस्थापित किया और भारत औपचारिक रूप से अपनी स्वयं की निर्वाचित सरकार तथा राज्य प्रमुख के साथ एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया।

संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है?| Importance of the Preamble

संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? यह संविधान के मूल विचार और भावना को दर्शाती है। इसका महत्व कई पहलुओं में है, जो मार्गदर्शन और उद्देश्यों को बताती है। यह भारत को एक स्वतंत्र, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश घोषित करती है, जो सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

Samvidhan ki prastavana नागरिकों और संस्थाओं को संविधान के मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। यह उन्हें लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और समानता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की याद दिलाती है, जो भारतीय राज्य की नींव हैं। इसके अलावा, यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की पुष्टि करके, भारत की विविध जनसंख्या के बीच अपनेपन और राष्ट्रीय पहचान की भावना को बढ़ावा देती है।

ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले (1973) में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि संसद को संविधान के विभिन्न भागों में संशोधन करने का अधिकार है।लेकिन वह प्रस्तावना में परिलक्षित मूल संरचना या आवश्यक विशेषताओं को नहीं बदल सकती है।

संविधान सभा की कार्यप्रणाली

संविधान सभा का प्राथमिक कार्य भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना और उसे लागू करना था। संविधान सभा ने संविधान के प्रत्येक प्रावधान पर गहन वाद-विवाद और चर्चाएँ की। विचारधारा, भाषा, धर्म और क्षेत्र में मतभेदों के बावजूद, संविधान सभा के सदस्यों ने आम सहमति बनाने और परस्पर विरोधी हितों के समाधान की दिशा में काम किया।

संविधान सभा के कामकाज ने एक स्थायी विरासत छोड़ी, जिसने भारत के लोकतांत्रिक शासन और संवैधानिक सिद्धांतों की नींव रखी। इसका समावेशी और सहभागी दृष्टिकोण भविष्य की लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए एक मिसाल कायम करता है, जिसमें संवाद, आम सहमति बनाने और लोकतांत्रिक विचार-विमर्श के महत्व पर बल दिया गया है।

प्रस्तावना के घटक | Components of the Samvidhan Prastavana

  • संविधान के अधिकार का स्रोत – प्रस्तावना में कहा गया है कि संविधान भारत के लोगों से अपना अधिकार प्राप्त करता है।
  • भारतीय राज्य की प्रकृति – यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक और गणतंत्रात्मक राजनीति घोषित करता है।
  • संविधान के उद्देश्य – यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को उद्देश्यों के रूप में निर्दिष्ट करता है।
  • संविधान को अपनाने की तिथि – यह 26 नवंबर, 1949 को इसके अपनाने की तिथि निर्धारित करता है।

संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य और महत्व

भारत के संविधान की प्रस्तावना(Samvidhan Prastavana) कई उद्देश्यों को पूरा करती है और महत्वपूर्ण महत्व रखती है। यह उन उद्देश्यों और लक्ष्यों को रेखांकित करती है जिन्हें संविधान प्राप्त करना चाहता है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है, जो उन मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों पर प्रकाश डालता है जिन पर भारतीय राज्य आधारित है।

संविधान की प्रस्तावना का उद्देश्य

भारत के संविधान की प्रस्तावना(Samvidhan Prastavana) कई प्रमुख उद्देश्यों को पूरा करता है।

  1. प्रस्तावना भारत को एक “प्रभुसत्ता संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” घोषित करती है। यह उन मूल्यों और सिद्धांतों को भी निर्धारित करता है जिन पर संविधान आधारित है, जैसे कि स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता।
  2. प्रस्तावना में उन लक्ष्यों और उद्देश्यों का उल्लेख है जिनके लिए संविधान बनाया गया था। इनमें “सभी नागरिकों को न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और गरिमा सुरक्षित करना” शामिल है।
  3. प्रस्तावना में उन मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है जो सभी नागरिकों के लिए लागू होते हैं। यह इन अधिकारों और कर्तव्यों की मूल प्रकृति को समझने में मदद करता है।
  4. प्रस्तावना नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करने और एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र बनाने में योगदान करने के लिए प्रेरित करती है।

संविधान की प्रस्तावना महत्व | Objectives of the Preamble

अगर आप जानना चाहते हैं कि संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है, तो बता दे कि यह कई कारणों से सर्वोपरि महत्व रखता है। यह एक आधारभूत कानूनी दस्तावेज के रूप में कार्य करता है जो सरकार की संरचना, शक्तियों और कार्यों को स्थापित करता है। यह शासन के लिए रूपरेखा तैयार करता है, राज्य के विभिन्न अंगों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है।

  • यह भारत के संविधान की आत्मा है: प्रस्तावना उन मूल्यों और सिद्धांतों को दर्शाती है जिन पर संविधान आधारित है। यह संविधान की व्याख्या करने और लागू करने के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करता है।
  • यह नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा करता है: प्रस्तावना में मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है जो सभी नागरिकों के लिए लागू होते हैं। यह इन अधिकारों और कर्तव्यों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि उनका उल्लंघन न हो।
  • यह एक राष्ट्रीय पहचान प्रदान करता है: प्रस्तावना भारत के लोगों को एकजुट करती है और उन्हें एक राष्ट्रीय पहचान प्रदान करती है। यह साझा मूल्यों और लक्ष्यों की भावना को बढ़ावा देता है।
  • यह प्रेरणा का स्रोत है: प्रस्तावना नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करने और एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र बनाने में योगदान करने के लिए प्रेरित करती है।

संविधान की प्रस्तावना: मौलिक विशेषताएं

संविधान की प्रस्तावना का अर्थ भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषताओं और लक्ष्यों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। इसमें लिखा है हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और उसके सभी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।

प्रमुख मौलिक विशेषताएं

1. भारत को एक “प्रभुसत्ता संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” घोषित करना:

यह घोषणा भारत की राजनीतिक व्यवस्था की मूल प्रकृति को स्पष्ट करती है।

  • प्रभुसत्ता संपन्न: इसका अर्थ है कि भारत किसी भी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है और यह अपनी स्वतंत्र इच्छा से अपना शासन चलाता है।
  • समाजवादी: इसका अर्थ है कि भारत एक ऐसा समाज चाहता है जिसमें सामाजिक और आर्थिक समानता पर जोर दिया जाए।
  • धर्मनिरपेक्ष: इसका अर्थ है कि भारत सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता है और किसी भी धर्म को राज्य धर्म का दर्जा नहीं देता है।
  • लोकतांत्रिक: इसका अर्थ है कि भारत में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और जनता के प्रति जवाबदेह होती है।
  • गणराज्य: इसका अर्थ है कि भारत में कोई राजा या रानी नहीं है, और राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है।

2. मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख:

प्रस्तावना में उन मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है जो सभी नागरिकों के लिए लागू होते हैं।

  • मौलिक अधिकार: ये वे अधिकार हैं जो नागरिकों को सरकार द्वारा हनन किए जाने से सुरक्षित करते हैं। इनमें स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के अधिकार शामिल हैं।
  • मौलिक कर्तव्य: ये वे कर्तव्य हैं जो सभी नागरिकों को देश के प्रति निभाने होते हैं। इनमें राष्ट्र के प्रति निष्ठा, संविधान का सम्मान, राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा, और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना शामिल है।

3. संघीय व्यवस्था की स्थापना:

प्रस्तावना भारत को एक संघीय गणराज्य घोषित करती है, जिसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है।

  • केंद्र सरकार: केंद्र सरकार कानून बनाने और उन लागू करने के लिए जिम्मेदार होती है जो पूरे देश पर लागू होते हैं।
  • राज्य सरकारें: राज्य सरकारें उन मामलों पर कानून बनाने और उन लागू करने के लिए जिम्मेदार होती हैं जो उनके राज्यों के लिए विशिष्ट हैं।

4. न्यायपालिका की स्वतंत्रता:

प्रस्तावना न्यायपालिका की स्वतंत्रता की गारंटी देती है, जिसका अर्थ है कि न्यायाधीशों को बिना किसी डर या पक्षपात के अपने फैसले सुनाने की स्वतंत्रता है।

5. संविधान की सर्वोच्चता:

प्रस्तावना स्थापित करती है कि भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है, और कोई भी कानून या नियम संविधान के विपरीत नहीं हो सकता है।

संविधान की प्रस्तावना के चार हिस्से

भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय संविधान के सिद्धांतों और उद्देश्यों के लिए मार्गदर्शक ढांचे के रूप में कार्य करती है। इसमें चार मुख्य घटक शामिल हैं।

प्रस्तावना के चार घटक

  1. न्याय: प्रस्तावना सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की खोज पर जोर देती है, सभी नागरिकों के लिए अवसर और स्थिति की समानता सुनिश्चित करती है।
  2. स्वतंत्रता: यह सभी नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता की गारंटी देती है, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बढ़ावा देती है।
  3. समानता: प्रस्तावना एक ऐसे समाज की कल्पना करती है जहाँ जाति, पंथ, धर्म, नस्ल या लिंग के बावजूद स्थिति और अवसर की समानता हो।
  4. भाईचारा: भाईचारा सभी नागरिकों के बीच भाईचारे और एकता की भावना को दर्शाता है, जो विविधताओं से परे है और एकता और एकीकरण की भावना को बढ़ावा देता है।

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भारतीय संविधान के प्रस्तावना में संशोधन

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करना इसकी आधारभूत प्रकृति और प्रतीकात्मक महत्व के कारण एक जटिल और संवेदनशील मामला है।

हालाँकि प्रस्तावना को इसके अपनाए जाने के बाद से पूरी तरह से संशोधित नहीं किया गया है, लेकिन बदलते सामाजिक मूल्यों या राजनीतिक विचारधाराओं को प्रतिबिंबित करने के लिए संभावित संशोधनों या परिवर्धन के बारे में महत्वपूर्ण बहस और चर्चाएँ हुई हैं।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधन

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख है। इस अनुच्छेद के अनुसार, संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) द्वारा दो-तिहाई बहुमत से पारित किए गए प्रस्ताव द्वारा संविधान में संशोधन किया जा सकता है।कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना ​​है कि प्रस्तावना, संविधान का एक हिस्सा होने के नाते, इस प्रक्रिया के अधीन संशोधन के लिए खुला है।

हालांकि, इस मुद्दे पर कोई सर्वसम्मति नहीं है, और कई अन्य विशेषज्ञों का तर्क है कि प्रस्तावना संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और इसे संशोधित नहीं किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत के संविधान की प्रस्तावना राष्ट्र का मार्गदर्शन करने वाली आकांक्षाओं और आदर्शों की एक गंभीर घोषणा है। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूलभूत सिद्धांतों को समाहित करती है, जो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की आधारशिला हैं। संविधान के परिचयात्मक कथन के रूप में, प्रस्तावना एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करती है, जो न्यायपूर्ण, समतापूर्ण और समावेशी समाज की ओर मार्ग को रोशन करती है। अब आपको पूरी तरह ज्ञात हो गया होगा कि संविधान की प्रस्तावना क्या है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

भारत के संविधान की प्रस्तावना क्या है?

भारत के संविधान की प्रस्तावना संविधान का वह भाग है जो संविधान के निर्माण के उद्देश्यों और मूल्यों को स्पष्ट करता है। इसे संविधान का आत्मा भी कहा जाता है।

संविधान की प्रस्तावना का जनक कौन है?

संविधान की प्रस्तावना का कोई एक जनक नहीं है। यह संविधान सभा के सदस्यों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है। हालांकि, प्रस्तावना में निहित कुछ विचारों को डॉ. बी.आर. अंबेडकर और जे.बी. कृपलानी जैसे प्रमुख संविधान सभा के सदस्यों से प्रेरित माना जाता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर को “भारतीय संविधान के जनक” भी जाना जाता है।

संविधान का मूल उद्देश्य क्या है?

संविधान का मूल उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां सभी नागरिकों को समानता, न्याय और स्वतंत्रता प्राप्त हो। यह एक ऐसा दस्तावेज है जो एक देश के शासन के नियमों और सिद्धांतों को निर्धारित करता है।

प्रस्तावना में कुल कितने शब्द हैं?

भारत के संविधान की प्रस्तावना में कुल 97 शब्द है।

संविधान की पहली लाइन क्या है?

भारत के संविधान की पहली लाइन है:
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए…”

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