शिक्षा का अधिकार: अधिनियम 2009, महत्व और प्रभाव

November 8, 2024
शिक्षा का अधिकार
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संविधान (चौरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 ने भारत के संविधान में अनुच्छेद 21-ख को जोड़ते हुए यह सुनिश्चित किया कि 6-14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करना उनका मौलिक अधिकार है, जिसे राज्य द्वारा निर्धारित विधियों से लागू किया जाएगा।

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शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (Right to Education Act, 2009) भारत में एक महत्वपूर्ण अधिनियम है, जिसका उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है। यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

इस ब्लॉग में हम शिक्षा का अधिकार क्या है, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, शिक्षा का अधिकार कब लागू हुआ, शिक्षा का अधिकार पर निबंध , शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम कब लागू हुआ के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।

शिक्षा का अधिकार क्या है?

सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम क्या है? दरअसल शिक्षा का अधिकार (RTE) 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे का मूलभूत अधिकार है, जिसके तहत उन्हें अपनी जाति, धर्म, लिंग, या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव के बिना शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता है।

इस अधिकार का उद्देश्य बच्चों को एक समान और निष्पक्ष वातावरण में शिक्षा प्रदान करना है, जिससे वे एक स्वाभिमानी और सक्षम नागरिक बन सकें। शिक्षा का अधिकार बच्चों को उनके जीवन में आत्मनिर्भरता, सोचने की क्षमता, और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक बनाता है।

शिक्षा के अधिकार का इतिहास

भारत में शिक्षा का अधिकार एक महत्वपूर्ण सामाजिक और कानूनी विकास है। भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना में शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था, लेकिन इसे कानूनी रूप से लागू करने का विचार पहली बार 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उठाया गया। इसके बाद, 2002 में 86वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित हुआ, जिसने अनुच्छेद 21A के रूप में शिक्षा का अधिकार स्थापित किया।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (Right to Education Act, 2009) एक ऐसा अधिनियम है जो 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है। यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 21A में शामिल है जो कहता है कि “राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उस तरीके से प्रदान करेगा जैसा राज्य कानून द्वारा निर्धारित कर सकता है।”

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के उद्देश्य

  • अनिवार्य शिक्षा – 6 से 14 साल तक के बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा।
  • शिक्षा में समानता: सभी बच्चों के लिए समान शिक्षा के अवसर प्रदान करना।
  • शिक्षा का प्रसार: शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना और इसे समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाना।
  • शिक्षा के अवसरों का विस्तार: बच्चों की योग्यता और क्षमता को पूर्ण रूप से विकसित करने के लिए अवसर प्रदान करना।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम कब लागू हुआ?

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की विशेषताए समझने से हमें ये जानना बहुत है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम कब लागू हुआ था? दरअसल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 4 अगस्त 2009 को भारत की संसद द्वारा पारित किया गया और 1 अप्रैल 2010 को लागू हुआ था। इस दिन से इसे सभी स्कूलों और शिक्षा संस्थानों में लागू किया गया, जिससे हर बच्चे को गुणवत्ता युक्त और अनिवार्य शिक्षा का लाभ मिल सके।

इस अधिनियम में अनुच्छेद 21A के तहत, 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया गया था।

शिक्षा का अधिकार का महत्व | Importance of Right to Education

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम प्राथमिक विद्यालयों के लिए आवश्यक मानकों को स्थापित करता है और इसे 6 से 14 वर्ष के बीच के सभी बच्चों का मौलिक अधिकार मानता है।
  • यह अनिवार्य करता है कि सभी निजी विद्यालयों में 25% सीटें विशेष रूप से छात्रों के लिए आरक्षित की जाएं। बच्चों को जाति या आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण के साथ निजी विद्यालयों में प्रवेश दिया जाता है।
  • इसके अलावा, यह अधिनियम किसी भी गैर-मान्यता प्राप्त विद्यालयों के संचालन पर रोक लगाता है, और यह स्पष्ट करता है कि कोई भी दान या कैपिटेशन शुल्क नहीं लिया जाएगा, साथ ही प्रवेश के लिए माता-पिता या बच्चों का साक्षात्कार भी नहीं होगा।
  • बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 यह भी सुनिश्चित करता है कि प्राथमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी होने तक किसी भी बच्चे को रोका नहीं जा सकता, न ही उसे निष्कासित किया जा सकता है, और न ही उसे बोर्ड परीक्षा में उत्तीर्ण होने से रोका जा सकता है।
  • पूर्व छात्र अपनी उम्र के अन्य छात्रों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए पूरक शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। यह अधिनियम शिक्षा के क्षेत्र में समानता और अवसरों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
  • इस प्रकार, शिक्षा का अधिकार अधिनियम न केवल बच्चों के लिए शिक्षा के दरवाजे खोलता है, बल्कि यह समाज में समावेशिता और समानता को भी बढ़ावा देता है। यह सुनिश्चित करता है कि हर बच्चे को उनके अधिकारों के अनुसार शिक्षा मिले, जिससे वे अपने भविष्य को बेहतर बना सकें।

शिक्षा का अधिकार(RTE) अधिनियम, 2009 की विशेषताएँ

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की विशेषताए निम्न हैं-

  • नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा
    • अधिनियम के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाती है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी बच्चे शिक्षा प्राप्त करें, चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
  • निजी स्कूलों में आरक्षण
    • अधिनियम के तहत, निजी स्कूलों में 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और वंचित समूहों के बच्चों के लिए आरक्षित की गई हैं। इस प्रावधान का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है, जिससे वे समाज में समान अवसर प्राप्त कर सकें।
  • शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता
    • अधिनियम में प्रत्येक स्कूल में शिक्षकों की संख्या और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं। इसका उद्देश्य यह है कि सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके और उन्हें सही मार्गदर्शन प्राप्त हो।
  • भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ जीरो टॉलरेंस
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम बच्चों के प्रति किसी भी प्रकार के भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाता है। इसके अंतर्गत बच्चों को सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
  • बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करना
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम बच्चों के शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता है। इसमें सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों, खेल, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को शामिल किया गया है।
  • बच्चों का अधिकार संरक्षण
    • इस अधिनियम के तहत बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसमें बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (SCPCR) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनकी समस्याओं का समाधान करती है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की उपलब्धियां

  • आरटीई की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत को नामांकन दर के लगभग 100% तक पहुँचने में सक्षम बनाना था। 2010 में आरटीई के लागू होने के बाद से, भारत ने अपने बुनियादी ढांचे को सुधारने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। एसर सेंटर द्वारा जारी वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट (एएसईआर) के अनुसार, यह देश में बच्चों के सीखने के परिणामों पर डेटा का एकमात्र विश्वसनीय स्रोत है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि स्कूलों में प्रयोग करने योग्य लड़कियों के शौचालयों का प्रतिशत दोगुना होकर 2018 में 66.4 प्रतिशत तक पहुँच गया।
  • 2018 में, चारदीवारी वाले स्कूलों की संख्या 64.4 प्रतिशत थी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13.4 प्रतिशत अंक अधिक है। इसके अलावा, 82.1 से बढ़कर 91 प्रतिशत स्कूलों में अब कुकिंग शेड उपलब्ध हैं। इसी समयावधि में, पाठ्यपुस्तकों के अलावा अन्य प्रकार की किताबें प्राप्त करने वाले स्कूलों का प्रतिशत 62.6 से बढ़कर 74.2 प्रतिशत हो गया।
  • ये आंकड़े दर्शाते हैं कि आरटीई के कार्यान्वयन के बाद से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ है, जिससे बच्चों की शिक्षा और उनके सीखने के अनुभव में सकारात्मक बदलाव आया है।

शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 की चुनौतियां

पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में कई बुनियादी मुद्दे और कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ उभरी हैं। हम इस ब्लॉग में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की चुनोतियों को समझने की कोशिश करेंगे –

  • उच्च शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये आरक्षण
    प्राथमिक शिक्षा के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था है, लेकिन उच्च शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षण और वित्तीय सहायता की कमी एक बड़ी चुनौती है। इस वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी शिक्षा अधूरी रह जाती है।
  • विशेष जरूरतमंद बच्चे (CWSN) आरटीई बिल से बाहर
    विशेष जरूरतमंद बच्चों (Children with Special Needs) के लिए इस अधिनियम में पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं। इन बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा के अवसर और विशेष सहायता की कमी है, जिससे वे मुख्यधारा की शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
  • निजी स्कूलों में गरीब बच्चों की स्थिति
    निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित हैं, लेकिन इसका सही ढंग से क्रियान्वयन सुनिश्चित करना आवश्यक है। निजी स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया, शुल्क संरचना, और सामाजिक विभेद के कारण इन बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल पाती है।
  • समाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं
    भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं भी एक बड़ी चुनौती हैं। कुछ समुदायों में लड़कियों की शिक्षा को लेकर अभी भी पिछड़े विचार हैं, जिससे उन्हें शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में जातीय भेदभाव और सामाजिक असमानता के कारण बच्चों को स्कूल जाने में बाधा होती है।

आरटीई अधिनियम 2009 की आलोचना

  • गुणवत्ता में कमी: शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है, क्योंकि केवल शिक्षा का सुलभ होना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए योग्य और प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता है।
  • वित्तीय बोझ: इस अधिनियम के तहत राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ गया है। नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने के लिए अधिक बजट की आवश्यकता होती है, जिससे राज्यों पर वित्तीय दबाव बढ़ता है। कई राज्यों में बजट की कमी के कारण स्कूलों में आवश्यक सुविधाओं की कमी होती है, जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  • शिक्षकों की कमी: शिक्षकों की संख्या में कमी और उनकी गुणवत्ता में सुधार एक बड़ी चुनौती है। शिक्षकों का उचित प्रशिक्षण और उनकी संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • निजी स्कूलों में भेदभाव: हालांकि अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में 25% सीटें आरक्षित हैं, लेकिन कई बार इन स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया में भेदभाव देखा जाता है। इसके अलावा, कई निजी स्कूल अतिरिक्त शुल्क और अन्य खर्चों के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को बाहर रखने की कोशिश करते हैं।

शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 समाधान

  • शिक्षकों का प्रशिक्षण: शिक्षकों को नियमित रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकें। इसके लिए शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
  • निजी और सरकारी स्कूलों का समन्वय: निजी और सरकारी स्कूलों के बीच समन्वय स्थापित करना चाहिए ताकि सभी बच्चों को समान शिक्षा मिल सके। इसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
  • समावेशी शिक्षा: विशेष जरूरतमंद बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करना चाहिए। इसके तहत विशेष शिक्षकों की नियुक्ति, विशेष शैक्षिक सामग्री, और शारीरिक सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • समाज में जागरूकता बढ़ाना: शिक्षा के प्रति समाज की मानसिकता में सुधार की आवश्यकता है। इसके लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, जिससे लोग शिक्षा के महत्व को समझ सकें और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित हो सकें।
  • भविष्य की दिशा: शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 भारत के शिक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई सुधारों की आवश्यकता है। सरकार और समाज दोनों की भागीदारी से ही यह अधिनियम अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है।

आरटीई अधिनियम के असफल होने के कारण

  • अधिनियम का सही क्रियान्वयन नहीं होना: कई स्थानों पर अधिनियम का सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। इसके कारण कई बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।
  • संसाधनों की कमी: शिक्षण संसाधनों और बुनियादी सुविधाओं की कमी भी एक प्रमुख कारण है। इसके लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा।
  • समाज की मानसिकता: शिक्षा के प्रति समाज की मानसिकता और जागरूकता की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। इसे दूर करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।

शिक्षा का अधिकार पर निबंध | Essay on Right to Education

स्कूल की परीक्षाओं में अक्सर शिक्षा का अधिकार पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है। हम आपके लिए शिक्षा का अधिकार के महत्व पर संक्षिप्त निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं:

शिक्षा का अधिकार के महत्व पर संक्षिप्त निबंध

शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 भारत में हर बच्चे को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना है, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता का विकास कर सकें। शिक्षा समाज में समानता, समावेशिता और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल बच्चों को ज्ञान और कौशल प्रदान करती है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और समाज का जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करती है।

समाज में शिक्षा का महत्व

शिक्षा व्यक्ति की मानसिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। यह व्यक्ति को न केवल व्यावसायिक कौशल प्रदान करती है, बल्कि उन्हें आलोचनात्मक सोच, निर्णय लेने की क्षमता और नैतिक मूल्यों से भी समृद्ध करती है। एक शिक्षित समाज न केवल आर्थिक दृष्टि से अधिक समृद्ध होता है, बल्कि वह सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों की रक्षा करने में भी सक्षम होता है।

शिक्षा का अधिकार: सामाजिक समानता की दिशा में एक कदम

RTE अधिनियम विशेष रूप से उन बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है जो आर्थिक या सामाजिक रूप से वंचित हैं। यह अधिनियम उन्हें समान अवसर प्रदान करता है, जिससे वे अपनी पूरी क्षमता का विकास कर सकते हैं। इस प्रकार, यह समाज में असमानताओं को कम करने और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शिक्षा के माध्यम से समाजिक परिवर्तन

शिक्षा समाज में परिवर्तन का एक शक्तिशाली साधन है। यह न केवल व्यक्तियों को सक्षम बनाती है, बल्कि उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी करती है। शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव लाना संभव है, जो एक प्रगतिशील, न्यायपूर्ण और समावेशी समाज की स्थापना में सहायक हो सकता है।

भारतीय समाज में इसके प्रभाव की चर्चा

भारतीय समाज में शिक्षा का अधिकार एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया है। इससे समाज के सभी वर्गों के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर मिला है। इसके अलावा, यह अधिनियम सामाजिक और आर्थिक भेदभाव को समाप्त करने में भी सहायक सिद्ध हुआ है। इसके माध्यम से बच्चों के जीवन में सुधार और समाज में समानता स्थापित हो रही है। हालांकि, इसे पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। शिक्षा का अधिकार केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है, जिसे हमें मिलकर निभाना होगा।

निष्कर्ष

इस ब्लॉग में हमने शिक्षा का अधिकार क्या है, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, शिक्षा का अधिकार कब लागू हुआ, शिक्षा का अधिकार पर निबंध , शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम कब लागू हुआ के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश की।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 भारत में शिक्षा को सुलभ और समान बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके माध्यम से समाज के सभी वर्गों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला है। हालांकि, इस अधिनियम के क्रियान्वयन में अभी भी कई चुनौतियां हैं, जिन्हें दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

शिक्षा के अधिकार क्या हैं?

बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम या शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 4 अगस्त 2009 को पारित भारतीय संसद का एक अधिनियम है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21a के तहत भारत में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के महत्व के तौर-तरीकों का वर्णन करता है।

RTE Act 2009 में कुल कितने अध्याय हैं?

RTE Act 2009 में 7 अध्याय हैं।
1. Preliminary
2. Right to Education
3. Duties of the State
4. Local Authorities
5. School Management Committees
6. Admission and Reservation
7. Miscellaneous

शिक्षा का अधिकार कब लागू किया गया था?

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 को 1 अप्रैल, 2010 से लागू किया गया था।

आर्टिकल 21 A क्या है?

आर्टिकल 21 A सुनिश्चित करता है कि 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार हो।

RTE धारा 28 क्या है?

धारा 28, आरटीई अधिनियम 2009 में कहा गया है कि “कोई भी शिक्षक खुद को निजी ट्यूशन या निजी शिक्षण गतिविधि में संलग्न नहीं करेगा”, सभी शिक्षकों पर प्रतिबंध लगाता है। यह अधिनियम केवल सरकारी शिक्षकों पर लागू होता है।

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