Quick Summary
तीस्ता नदी उत्तर-पूर्वी भारत और बांग्लादेश के बीच बहने वाली एक ऐसी नदी है जो इन दोनों ही देशों के लिए बहुत महत्त्व रखती है। अगर हम बात करे उद्गम स्थल की तो ये नदी हिमालय की बर्फ़ीली पहाड़ियों से निकलकर ब्रह्मपुत्र नदी में जाकर समा जाती है। यह नदी भारत और बांग्लादेश, दोनों ही देशों की आर्थिक गतिविधियों, कृषि और उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण रही है, इसलिए इसके पानी के बटवारे को लेकर दोनों देशो में विवाद रहा है। इस आर्टिकल में इस नदी के इतिहास, जल समझौता, आर्थिक महत्व, विवाद और समाधान के बारे में विस्तार से जानेंगे।
तीस्ता नदी का उद्गम स्थल भारत के सिक्किम में “त्सो ल्हामो” झील है। कुल 315 किलोमीटर लंबाई की ये नदी भारत के सिक्किम और पश्चिम बंगाल से चलकर बांग्लादेश तक जाती है और ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। यह नदी, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले से होते हुए, बांग्लादेश के रंगपुर पहुँचती है और वहां से आगे बढ़ती हुई, ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।
इस नदी का इतिहास बहुत पुराना है क्योंकि इसका वर्णन हिन्दू पुराणों में भी मिलता है। इस नदी का उद्गम स्थल सिक्किम की पहाड़ियों में स्थित त्सोमगो झील है। यह नदी सिक्किम, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से होकर बहती है और ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है। इस आर्टिकल में हम तीस्ता नदी का प्राचीन, मध्य और आधुनिक इतिहास को समझने की कोशिश करेंगे।
तीस्ता नदी का इतिहास बहुत पुराना है। हिन्दू पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस नदी का उद्गम स्थल, देवी पार्वती के स्तन है, ऐसी मान्यता है। अगर हम ‘तिस्ता’ का अर्थ देखे तो तीस्ता का मतलब ‘त्रि-स्रोता’ या ‘तीन-प्रवाह’ होता है। प्राचीन काल में ये नदी जनजाति समाज के लिए जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है।
मध्य-कालीन समय में तीस्ता नदी का महत्व और भी ज़्यादा हो गया था क्योंकि ब्रिटिश शासन में इस नदी का उपयोग व्यापार और यातायात के लिए किया जाता था। अंग्रेजों ने इसपर कई पुल, बांध और बंदरगाह बनाए थे, जो सामान इधर से उधर लाने ले जाने में यूस आते थे। इसी समय में इस नदी के आसपास कई छोटे-बड़े बाज़ार भी विकसित हुए थे।
भारत को आजादी मिलने के बाद से इस नदी का हमारे देश के लिए महत्व और भी बढ़ गया है। भारत सरकार की कई महत्वपूर्ण बिजली योजनाये इसी नदी के किनारो पर चल रही है और स्थानीय लोगों को बिजली और रोजगार उपलब्ध करा रही है। दरअसल तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश, दोनों के लिए ही बहुत मह्त्वपूर्ण है और इसीलिए दोनों देशों के बीच इस नदी के पानी के बटवारें को लेकर अक्सर विवाद होता रहता है।
तीस्ता नदी का पहला जल समझौता भारत और बांग्लादेश के बीच एक महत्वपूर्ण और विवादित मुद्दा रहा है। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच जल वितरण को सही और तरीके से निर्धारित करना है, ताकि दोनों देशों के किसानों और जनता को पर्याप्त पानी मिल सके।
घटना | विवरण |
पहला तीस्ता नदी जल समझौता (1815) | नेपाल के राजा ने नदी का बड़ा हिस्सा अंग्रेजों को सौंपा। |
1947 की मांग | ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग की। |
कांग्रेस और हिंदू महासभा का विरोध | कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इस मांग का विरोध किया, जिससे तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत को मिला। |
1971 में मामला उभरा | बांग्लादेश के गठन के बाद पानी के बंटवारे का मामला फिर से उभरा। |
संयुक्त नदी आयोग (1972) | भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग का गठन। |
अस्थाई सहमति (1983) | इस नदी का 36% पानी बांग्लादेश और 39% पानी भारत को मिला, बाकी अन-डिवाइडेड रहा। |
तीस्ता नदी भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह नदी न केवल दोनों देशों के लिए जल का एक बड़ा सोर्स है, बल्कि तीस्ता दोनों देशों में खेती, बिजली, मछलीपालन, व्यापार और रोजगार की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नीचे दी गई जानकारी में हम खेती और सिंचाई, बिजली परियोजनाएँ, मछली पालन, पर्यटन उद्योग, और नदी परिवहन और व्यापार में इस नदी की भूमिका पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
विषय | विवरण |
विवाद का परिचय | 1. भारत और बांग्लादेश के बीच इस नदी के पानी के बटवारे का विवाद कई दशकों पुराना है। 2.1983 में एक अस्थाई समझौता हुआ था जिसमें बांग्लादेश को 36% और भारत को 39% पानी दिया जाना था, जबकि 25% पानी मानसून के दौरान छोड़ा जाना था। 3. यह समझौता स्थायी समाधान नहीं बन सका और विवाद जारी है। |
विवाद के प्रमुख मुद्दे | 1. जल वितरण की असमानता: बांग्लादेश का कहना है कि भारत द्वारा बनाए गए बैराज और नहर के कारण उन्हें पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता, जिससे उनकी कृषि और सिंचाई प्रभावित होती है। 2. पानी की कमी: सूखे मौसम में तीस्ता नदी का पानी बहुत कम हो जाता है, जिससे दोनों देशों में जल संकट उत्पन्न हो जाता है। 3. बैराज और नहरें: गजोलडोबा बैराज (भारत) और तीस्ता बैराज (बांग्लादेश) दोनों ही देशों में सिंचाई के लिए बनाए गए हैं, जिससे पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। |
विवाद का प्रभाव | 1. कृषि पर प्रभाव: तीस्ता नदी का पानी न मिलने से बांग्लादेश में कृषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ा है। 2. आर्थिक प्रभाव: जल विवाद के कारण दोनों देशों की आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ता है।3. राजनीतिक तनाव: तीस्ता जल विवाद दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव का कारण बना हुआ है। |
समाधान के प्रयास | 1. वार्ता और समझौते: कई बार वार्ता और समझौतों के प्रयास किए गए हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। 2. संयुक्त जल प्रबंधन: विशेषज्ञों का मानना है कि तीस्ता नदी के पानी का प्रबंधन ठीक ढंग से किया जाना चाहिए। 3. वैकल्पिक फसलों की खेती: कम जल-उपयोग वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देना चाहिए। |
तीस्ता नदी केवल एक जलधारा नहीं है, बल्कि यह लाखों लोगों की जीवन रेखा है। इसका ऐतिहासिक, आर्थिक और सामाजिक महत्व है। इस नदी के पानी पर भारत और बांग्लादेश, दोनों ही देशों के हजारों लोग निर्भर है इसलिए तीस्ता नदी जल विवाद का समाधान दोनों देशों के हित में होगा और इससे क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा। हमें इस प्राकृतिक धरोहर को सहेज कर रखना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसका लाभ उठा सकें।
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यह नदी भारत के सिक्किम और पश्चिम बंगाल राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश से होकर बहती है।
यह नदी का उद्गम सिक्किम में स्थित त्सो ल्हामो झील से होता है.
तीस्ता ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदी है। दिबांग, लोहित, धनसिरी, सुबानसिरी और मानस भी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ हैं। यह नदी मानसरोवर झील के पास चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है। इसे तिब्बत में त्सांगपो, अरुणाचल प्रदेश में दिहांग या सियांग, असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में जमुना के नाम से जाना जाता है।
हिमालय से निकलने वाली यह नदी, जो सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होकर असम में ब्रह्मपुत्र (बांग्लादेश में जमुना) में मिलती है, के जल का बंटवारा भारत और बांग्लादेश के बीच संभवतः सबसे बड़ा विवाद है।
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