Quick Summary
तुलसीदास का जीवन परिचय भारतीय साहित्य के उज्जवल सितारे की कहानी है। जब भी भक्ति आंदोलन की चर्चा की जाती है, तब तुलसीदास का नाम और उनकी साहित्यिक रचनाओं की चर्चा लोग बहुत रुचि से करते हैं। उनके द्वारा लिखे गए हजारों लेख आज भी भारत के कई हिस्सों में दिल खोलकर गए जाते।
तुलसी ने रामचरितमानस के ज़रिए भगवान राम की भक्ति को घर-घर तक पहुँचाया है। तुलसीदास का जीवन परिचय भारत साहित्य के उज्जवल सितारे की कहानी के बारे में चलिए कुछ बातें जानते हैं।
तुलसीदास का नाम | गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulasidas) |
बचपन का नाम (Childhood’s Name) | रामबोला |
उपनाम (Nick Name) | गोस्वामी, अभिनववाल्मीकि, इत्यादि |
जन्मतिथि (Date of birth) | 11 August 1511 |
माता का नाम (Mother’s Name) | हुलसी देवी |
पिता का नाम (Father’s Name) | आत्माराम दुबे |
तुलसीदास की पत्नी का नाम (Wife’s Name) | रत्नावली |
उम्र (Age) | मृत्यु के समय 111 वर्ष |
जन्म स्थान (Place of birth) | सोरों शूकरक्षेत्र, कासगंज, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु (Death) | 30 July 1623 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
गुरु / शिक्षक (Teacher) | नरसिंहदास |
धर्म (Relegion) | हिन्दू |
तुलसीदास जी प्रसिद्ध कथन (Quotes) | सीयराममय सब जग जानी।करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी॥(रामचरितमानस १.८.२) |
प्रसिद्ध साहित्यिक रचनायें | रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि |
Tulsidas ka jivan parichay – तुलसीदास जी के जन्म स्थान और उनकी जन्म तारीख को लेकर कई सारे मत देखे जा सकते हैं। जैसे राम मुक्तावली के मुताबिक उनका जन्म 1560 माना गया है तो वही मूल गोसाईं चरित में उनका जन्म 1554 लिखा है वहीँ Wikipedia के मुताबिक उनका जनम 1511 में हुआ था। इन सभी बातों के बावजूद हम यह मान सकते हैं कि तुलसीदास का जन्म सन 1511 – 1560 के आसपास ही हुआ था।
अगर जन्म स्थान की बात करे तो उसे लेकर भी बहुत सारी बातें सामने आती है। लोग कहते हैं कि उनका जन्म काशी में हुआ था। यहां तक कि राजपुर और हाजीपुर को भी तुलसी का जन्म स्थान माना जाता है।
इतनी दिक्कतों के बावजूद भी, Researchers tulsidas ka jivan parichay देते हुए कुछ बातों को एक एकदम सही मानते हैं। तुलसीदास जी जन्मते ही रोये ही नहीं उन्होंने ‘राम’ शब्द का उच्चारण किया। इसलिए उनका बचपन का नाम तुलसी नहीं बल्कि रामबोला था। रामबोला और उसका परिवार जाति से ब्राह्मण थे। उनकी माता का नाम हुलसी था और पिता का आत्माराम दुबे।
तुलसीदास के दोहे को पढ़ते हुए ये तो साफ हो जाता है कि उन्हें बचपन में मां-बाप का प्यार नहीं मिला था। ऐसा माना जाता है की जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता की मृत्यु हो गई थी और उनके पिता ने उनका त्याग कर दिया था।
अलग-अलग लोगों ने तुलसीदास के गुरु का नाम अलग अलग बताया है। कुछ लोगों को लगता है कि तुलसीदास के गुरु का नाम राघवनंद, जगन्नाथदास, नरसिंह, आदि रहे।
लेकिन तुलसी प्रकाश के मुताबिक तुलसीदास के गुरु का नाम नरसिंह दास है जो उनके मंदिर के गुरु थे जिन्होंने उसे व्याकरण, काव्य, इतिहास, दर्शन का ज्ञान दिया। इसके बाद स्वामी नरहरि ने उन्हें अपने साथ काशी ले जाकर वहां उन्हें राम नाम से परिचित करवाया।
शिक्षा के बाद का जीवन तुलसीदास के लिए बहुत कष्ट भरा रहा। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही गृहस्थी और संसार की मोह माया त्याग दी थी।
ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास को अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा प्रेम था। एक बार जब उनकी पत्नी उनसे बिना बोले अपने मायके चली गई, तब तुलसीदास इतना ज्यादा बेचैन हो गए कि उन्होंने अंधेरी रात को ही, उनसे मिलने का फैसला किया और घर से निकल पड़े। ऐसा माना जाता है कि बाढ़ से भरी रात में भी उन्होंने लाश के ऊपर चढ़कर अपनी यात्रा पूरी की और जब उनकी पत्नी ने देखा कि वे उनसे मिलने के लिए इतनी ज्यादा बेचैन हो गए हैं, तो उन्होंने तुलसी जी को बहुत भला बुरा सुनाया। अपनी पत्नी के मुंह से ऐसी बातें सुनकर तुलसी जी का दिल ऐसा टूटा कि उन्होंने अपनी गृहस्थी छोड़ दी।
गृहस्थी छोड़ने के तुरंत बाद उन्होंने अपनी बाकी की जिंदगी काशी, अयोध्या, चित्रकूट, सीतामढ़ी, मिथिला, ब्रिज आदि जगहों की यात्रा की। इतनी जगह घूमने के बाद आखिरकार उन्होंने काशी में अपना स्थान ग्रहण किया और वहीं से उन्होंने गोसाई की उपाधि भी पाई। इसके बाद से ही पूरा संसार उन्हें गोसाई तुलसीदास के नाम से जाने लगा।
तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं इतनी ज्यादा और इतनी पुरानी है कि उनसे जुड़े कई सारे सबूतों का मिलना मुश्किल है। लेकिन इसके बावजूद उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ बातों से सभी एकमत रहते हैं। कहते हैं तुलसी जी ने अपनी जिंदगी में साठ से ज्यादा ग्रंथ लिखे हैं।
लेकिन इनमें से कई सारे ग्रंथ या तो नष्ट हो गए हैं या उनका अर्थ समझना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। इसके बावजूद उन्होंने ऐसी बहुत सारी महान कृतियां लिखी है जिनको पढ़ते जाए तो पूरी जिंदगी कम पड़ जाएगी।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं हैं – तुलसीदास की भक्ति भावना से लिखी गई प्रमुख रचनाएं कृतियाँ – इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-
तुलसीदास की भक्ति भावना से लिखी गई रचनाएं संस्कृत में न लिखकर ब्रज और अवधि में लिखी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि संस्कृत आम जनता उस समय नहीं जानती थी और वह अपना राम नाम का महत्व जनता तक पहुंचाना चाहते थे। तुलसीदास के दोहे लगभग 750 से ज्यादा मिलते हैं। जिन्हें साथ सर्गो में बांटा गया है। तुलसीदास ने अपनी जिंदगी में जितनी भी रचनाएं की है वो सभी राम जी को और उनके जीवन मूल्य को लोगों तक पहुंचाने के मकसद से ही की है।
तुलसीदास जी के 5 चुनिंदा दोहे जो उनकी सफलता की कुंजी है:
Tulsidas ka jivan parichay- तुलसीदास भक्तिकाल के प्रमुख कवि होने के साथ-साथ भक्तिकाल के शगुन धारा के भी चुनिंदा महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने गए हैं। वैसे तो भक्ति काल की समय सीमा 1375 से 1700 तक मानी गई है लेकिन तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं आज के लोगों में भी भक्ति भावना जगाने के लिए काफी है।
रामचरितमानस, एक महान कृति – वैसे तो तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं कई सारी मानी गई है लेकिन रामचरितमानस उन सभी रचनाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं रामचरितमानस को लिखने में तुलसीदास जी को 2 साल 7 महीने और 23 दिन का समय लगा था।
इसमें तुलसीदास के दोहे के अलावा चौपाई सोरठा और छंद भी देखने को मिलते हैं। रामचरितमानस में कुल 1073 दोहे मौजूद है जिनमें तुलसीदास ने पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन, उनकी मर्यादा, सामाजिक मूल्य, गुरु के प्रति श्रद्धा, भक्ति भावना और ऐसे ही कई सामाजिक प्रसंग पर बात की है।
तुलसीदास का जीवन परिचय में रामचरितमानस को महाकाव्य की गिनती में रखा जाता है और इसका महत्व इतना ज्यादा है की उत्तर भारत में कई लोग इसे रामायण के दर्जे का मानते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं शरद नवरात्रि के दिन रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ 9 दिन तक लगातार किया जाता है। वैसे तो रामचरितमानस में कुल सात कांड मिलते हैं जिनके नाम है बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड। लेकिन इनमें से सबसे ज्यादा मशहूर सुंदरकांड और बालकांड को माना जाता है।
अन्य रचनाएं- रामचरितमानस के अलावा अगर तुलसीदास की प्रमुख रचना की बात करे तो ध्यान में रखने वाली हैं हनुमान चालीसा, पार्वती-मंगल, बरवै रामायण, रामललानहछू, जानकी-मंगल, रामाज्ञाप्रश्न, कवितावली, दोहावली, गीतावली, श्रीकृष्ण-गीतावली, वैराग्य-संदीपनी, सतसई,छंदावली रामायण, विनयपत्रिका, कुंडलिया रामायण, संकट मोचन, करखा रामायण, रोला रामायण, झूलना, छप्पय रामाय, कवित्त रामायण, कलिधर्माधर्म निरुपण। इनमें से कुछ रचनाओं को छात्रों के सिलेबस में भी शामिल किया जाता है जैसे कवितावली गीतावली विनय पत्रिका आदि।
अगर इन सभी रचनाओं में समानता देखी जाए तो इनमें तुलसीदास की भक्ति भावना काफी सीधे तौर पर लोगों के सामने आई है।
तुलसी की जितनी भी रचनाएं आज के समय में मिलती है उनकी मदद से ही तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं हम और गहरी तरीके से समझ पा रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि तुलसीदास की भक्ति भावना सबसे ज्यादा श्री राम के प्रति थी इसीलिए उन्हें शगुन भक्ति के राममार्गी कवियों में से एक माना जाता है।
Tulsidas ka jivan parichay के अनुसार तुलसीदास जिस समय अपनी रचनाएं लिख रहे थे, वह पूरा का पूरा समय काल ही भक्ति से जुड़े सिद्धांतों और लेखकों से भरा हुआ था।
जहां एक तरफ दूसरे लेखक जैसे कबीरदास या मीराबाई संसार की मोह माया त्यागने की बात करते हैं, वही तुलसीदास ऐसे ब्राह्मण और लोगों को बुरा भला करते हैं जो अपने सामाजिक और मानवीय दायित्वों को छोड़कर, भगवान की भक्ति करना चाहते हो। तुलसीदास का मानना है कि श्री राम के चरणों तक भी पहुंचने के लिए इंसान को पहले सच्चे प्रेम को पहचाना सीखना होगा। क्योंकि जब तक आपको इंसान से प्यार नहीं होगा, तब तक आप भगवान से कैसे प्यार कर कैसे करेंगे?
तुलसीदास के समय समाज में लोगों के बीच अशांति का माहौल बना हुआ था। कुछ लोग अपने धर्म और जाति की जटिलताओं को लेकर परेशान थे, तो कुछ लोग अपने जीने का मतलब तलाश रहे थे। इनमें भी कुछ लोग ऐसे थे जो लोग जिंदगी से पूरी तरह निराश हो गए थे। ऐसे माहौल में तुलसीदास जी ने लोगों के अंदर अपने आध्यात्मिक संदेश का प्रचार करके उनके अंदर एक उत्साह पैदा करने का काम किया। उनके आध्यात्मिक संदेश के मुताबिक हर इंसान को अपने आत्मा की शुद्धि के लिए काम करना चाहिए।
तुलसीदास के मुताबिक आत्मा की शुद्धि तभी होगी जब इंसान दूसरों के दुख का साथी बनेगा और भगवान का नाम जपेगा। तुलसीदास के मुताबिक अगर इस कलयुग में आकर किसी को राम के दर्शन हो जाते हैं तो उसके सारे पाप धुल जाएंगे। जो भी इंसान अपनी जिंदगी में शांति और धैर्य से काम लगा उसे आत्मसिद्धि की प्राप्ति जरूर होगी।
तुलसी जी का यह मानना था कि अगर किसी इंसान को अपने अंदर आध्यात्मिक चेतना जगानी है तो उसे अपने इंद्रियों पर काम करना सीखना होगा और लोक कल्याण के लिए काम करना होगा। तुलसी का यह भी मानना है कि अगर आपको अपने जीवन में मरते दम तक प्रभु के दर्शन नहीं होते हैं, तो इसका मतलब अपने जीवन में वह सिद्धि प्राप्त नहीं की है जो आपको भगवान के करीब लेकर जा सकती हो। तुलसी का यह मानना था कि अगर कोई इंसान सच्चे दिल से और सच्ची भक्ति से अपने भगवान को पुकारे तो भगवान उससे मिलने जरूर आएंगे।
अपने काम से काम रखने वाले दुनिया में शांति का प्रचार करने वाले और दूसरों से सहानुभूति रखने वाले तुलसीदास के जीवन में भी कम दिक्कतें नहीं थी। समाज की नियम है पाखंडी साधु संत उनके सिद्धांतों को पसंद नहीं करते थे और कई बार उन्हें जान से मारने की भी कोशिश की गई थी।
तुलसीदास के प्रसिद्ध इतनी ज्यादा थी कि एक बार खुद दिल्ली के बादशाह ने उन्हें अपने दरबार में बुलाया था उनके चमत्कार देखने के लिए। लेकिन जब तुलसीदास ने उनसे कहा कि उन्हें कोई चमत्कार नहीं आता है तब उन्हें जेल में डाल दिया गया था। हालांकि इस कहानी का कोई सबूत इतिहास में नहीं मिलता है लेकिन इस तरह की कहानी लोगों की मुझे अक्सर सुनने को मिल जाए।
अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में तुलसीदास को कई तरह की बीमारियों से जूझना पड़ा। उन्हें सबसे ज्यादा कष्ट जरजीरता, बाहुपीड़ा और बालतोड़ जैसी बीमारियों ने पहुंचाया। कहते हैं कि वह बालतोड़ की समस्या से इतनी ज्यादा परेशान हो गए थे कि उन्होंने हनुमान से सहायता मांगने के लिए हनुमान बहुक की रचना की। इन रोगों को झेलते झेलते तुलसीदास की जीवन की इच्छा खत्म हो गई थी। अंत में 1623 में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और मरने से पहले भी उन्होंने अपनी लिखी एक रचना पड़ी थी जो इस प्रकार है:
रामचंद्र जस वरनी के भयो चाहत अब मौन।
तुलसी के मुख दीजिए अब ही तुलसी सोन।।
माना जाता है कि तुलसीदास की मृत्यु बनारस के अस्सी घाट के आसपास हुई थी। लेकिन उनकी मौत के बाद भी उनका नाम साहित्य के पन्नों पर अमर हो गया। उनकी याद में आज भी हर साल देश के हर एक स्कूल और कॉलेज में तुलसी जयंती बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। उनकी रचनाएं सिर्फ मानव धर्म और समाज के मूल्यों को समझने के लिए ही नहीं बल्कि हिंदी भाषा के विकास और हिंदी साहित्य की लेखन परंपरा को समझने के लिए भी एक बहुत अच्छा माध्यम है। यही कारण है कि तुलसी जी को स्कूल के बच्चों से लेकर के कॉलेज के बच्चों तक को पढ़ाया जाता है।
इस पूरे लेख के माध्यम से हमने तुलसीदास का जीवन परिचय और जरूरी अंगों तथा उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में जाना। हमने ये जाना कि कैसे उनकी रचनाएं उन्हें बाकी भक्त कवियों से अलग बनाती है साथ ही उनका दृष्टिकोण किसी भी इंसान को और एक समाज को सही मार्ग पर लाने के लिए कितना जरूरी है हमेंने यह भी जाना। अगर सही मायने में किसी को राम राज्य अर्थात एक अच्छे राज्य की कामना करनी है, तो उसके लिए उन्हें तुलसी के आदर्शों को अपनाना होगा।
तुलसीदास के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं में उनके गुरु नरहरिदास से भेंट, रामचरितमानस की रचना, हनुमानजी से मिलने की कथा, और काशी में उनके भक्तिमय जीवन का उल्लेख किया जा सकता है।
तुलसीदास का विवाह रत्नावली नाम की महिला से हुआ था। रत्नावली ने तुलसीदास को भगवान राम की भक्ति की ओर प्रेरित किया।
तुलसीदास का रामचरितमानस इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि इसमें रामायण की कथा को अवधी भाषा में सुंदर काव्य शैली में प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ भगवान राम की महिमा और उनके आदर्श जीवन को सरल और प्रभावी ढंग से व्यक्त करता है।
तुलसीदास का जन्म हिंदू कैलेंडर माह श्रावण (जुलाई-अगस्त) के उज्ज्वल पक्ष के सातवें दिन सप्तमी (11 अगस्त 1511) को उत्तर प्रदेश के सोरों गांव में हुआ था।
तुलसीदास जी की सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस है। तुलसीदास जी की अन्य प्रमुख रचनाएं:
-विनय पत्रिका
-गीतावली
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