देवदासी प्रथा

देवदासी प्रथा: इतिहास, इसे रोकने के कानून, बदलाव और प्रभाव

Published on January 14, 2025
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Quick Summary

  • देवदासी प्रथा एक ऐतिहासिक प्रथा थी जिसमें युवा लड़कियों को देवी-देवताओं को समर्पित किया जाता था।
  • देवदासी प्रथा के तहत समर्पित लड़कियों को मंदिरों में नृत्य, गायन और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना पड़ता था।
  • इस प्रथा के तहत देवदासियों का शारीरिक और यौन शोषण भी किया जाता था।
  • यह प्रथा भारत के दक्षिणी राज्यों में विशेष रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में प्रचलित थी।
  • देवदासी प्रथा को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए, जैसे बॉम्बे देवदासी संरक्षण अधिनियम 1934।

Table of Contents

Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.

‘देवदासी प्रथा’ संभवत: छठी सदी में शुरू हुई थी। मान्यता है कि अधिकांश पुराण भी इसी काल में लिखे गए। इस प्रथा का प्रचलन दक्षिण भारतीय मंदिरों में अधिक है। देवदासी का अर्थ होता है ‘सर्वेंट ऑफ गॉड’, यानी देव की दासी या पत्नी।

देवदासी प्रथा, में धर्म की आड़ में कुंवारी लड़कियों का विवाह देवता या मंदिर के साथ करवा दिया जाता था। इसके बाद उन्हें देवताओं और मंदिरों को समर्पित कर दिया जाता है। वैसे तो क़ानूनी रूप से इस प्रथा पर रोक लगा दी गई है। पर अब भी इसके कुछ -कुछ मामलें सामने आते रहते हैं।

देवदासी प्रथा क्या है? | Dev Dasi Pratha

देवदासी प्रथा का चालन आज भी कई जगहों पर है। बहुत कम ही लोगों को पता है कि Devdasi pratha kya hai? देवदासी प्रथा दक्षिण भारत, विशेष रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा में सदियों से चली आ रही एक कुप्रथा थी। इस प्रथा में, कम उम्र की लड़कियों को देवी-देवताओं को समर्पित कर दिया जाता था। इन लड़कियों को देवदासी कहा जाता था।

इस प्रथा में devadasi लड़कियों का बचा हुआ पूरा जीवन मंदिर या देवता की सेवा में समर्पित कर दिया जाता है। देवदासी का सीधा सा मतलब है भगवान की दासी। जबकि धर्म से तो इसका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। फ़िलहाल में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में देवदासी प्रथा अभी भी चल रही है। जहां पर ये “बेरिया” और “नट” समुदायों के बीच सामान्य है।

देवदासी प्रथा(Devdasi Pratha) की शुरुआत क्यों और कब हुई?

देवदासी प्रथा का इतिहास काफी पुराना रहा है। यह प्रथा छठी सदी से शुरू हुई थी। तीसरी शताब्‍दी में प्रारम्‍भ इस प्रथा का केवल धार्मिक था। कुछ विद्वानों का तर्क है कि चोल तथा पल्‍लव राजाओं के समय देवदासियां संगीत, नृत्‍य तथा धर्म की रक्षा करती थी। devadasi शुरू से ही मंदिरों में नृत्य और गायन जैसी सेवाएं देने वाली थीं। उन्हें सम्मानित कलाकार माना जाता था, जो के समय के साथ बदल गया।

देवदासी प्रथा का इतिहास | History of the Devdasi Pratha

इस प्रथा की शुरुआत छठी शताब्दी से हुई थी। देवदासी प्रथा क्या है(Prabhudasi Pratha Kya Hai) और इतिहास में ये प्रथा कैसी थी जान लेते है। जब परिवार की कोई मुराद पूरी हो जाती थी तो वह अपने घर की कुंवारी लड़की को देवदासी बनाते थे। उन्हें बहुत सम्मान मिलता था क्योंकि उनका विवाह देवताओं से होता था। समाज और परिवार के दबाव में आकर महिलाएं इस कुरीति का शिकार हुई। देवदासी का काम मंदिरों की देखरेख, नृत्य, संगीत, पूजा-पाठ करना था।

देवदासी प्रथा का इतिहास
देवदासी प्रथा का इतिहास

देवदासियों को उम्रभर ऐसे ही रहना पड़ता था और इसका काफी लोग फायदा उठाने लगे और माना जाता है कि धर्मस्थल के पुजारी उनके साथ शारीरिक शोषण करते थे। देवदासी प्रथा का इतिहास किताबों में भी दर्ज है। देवदासियों पर इतिहासकारों ने बहुत सी किताबें लिखी हैं।

  • बीडी सात्सोकर की ‘हिस्ट्री ऑफ देवदासी सिस्टम’
  • एनके. बसु की ‘हिस्ट्री ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन इन इंडिया’
  • मोतीचंद्रा की ‘स्टडीज इन द कल्ट ऑफ मदर गॉडेस इन एन्शियंट इंडिया’

इन किताबों में भी इस प्रथा के बारे में बताया गया है।

प्राचीन देवदासी प्रथा | Ancient Devdasi Pratha

देवदासी प्रथा क्या है(Prabhudasi Pratha Kya Hai) जानने के लिए प्राचीन भारत के इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा। देवदासी प्रथा का इतिहास आज की देवदासी प्रथा से बिलकुल अलग है। प्राचीन Dev Dasi Pratha में देवदासी शास्त्रीय नृत्यों जैसी कलाओं और मंदिर अनुष्ठानों को करके मंदिर से जुड़ी रहती थी। यह महिलाएं शिक्षित थीं, इनकी समाज में अच्छी पहुँच थी, शिक्षित देवदासियाँ ऊँचे साहित्यकार समूह का हिस्सा होती थीं। वे पूरी तरह से कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम करती थी। ज्ञान के बहुत से क्षेत्रों में वह निपुण थी साहित्य से लेकर नृत्य और गणित में भी।

देवदासी प्रथा का समाज पर प्रभाव 

  • Devadasi system के प्रभाव धर्म, समाज और राजनीती सभी में देखने को मिलते है। मंदिर में देवदासियों को धर्म के नाम पर वेश्यावृत्ति में धकेला गया।
  • धर्म के नाम पर स्त्रीयों का शारीरिक और मानसिक शोषण किया गया और काफी लम्बे समय तक उनकी मदद के लिए किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया।
  • जब यह बात लोगो में फैलने लगी तब बहुत से गैर-सरकारी संगठन ने Dev Dasi Pratha का विरोध किया।
  • जो लोग मंदिर में आते थे वह भक्त देवदासियों की तरफ भी आकर्षित हो जाते थे। इसलिए सामान्य परिवारों की महिलाओं के जीवन पर भी देवदासी प्रथा के प्रभाव पड़ा हैं।

देवदासी प्रथा में समय के साथ बदलाव

  • देवदासी प्रथा का इतिहास समय के साथ बदला। शुरुआत में, देवदासियों को कम उम्र में ही देवी-देवताओं को समर्पित कर दिया जाता था। वे मंदिरों में नृत्य और गायन के माध्यम से देवताओं की पूजा करती थीं। उन्हें समाज में सम्मानित कलाकार माना जाता था और उन्हें कई विशेषाधिकार प्राप्त थे।
  • लेकिन जैसे जैसे समय बीता लोग देवदासियों का यौन शोषण करने लगे। उन लोगों की नजर में Devadasi pratha kya hai? वह इसे धर्म के नाम पर कुकरम करने का एक जरिया समझते है और यह लोग इसके प्रभाव से भी बचे रहे क्युकि यह सारे काम धर्म और भगवान के नाम के पीछे होते थे।
  • देवदासियों को में निम्न दृष्टि से देखा जाने लगा और उन्हें कई सामाजिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया। इस काल में, दो प्रकार की देवदासियां सामने आईं – मंदिर देवदासियां और सेवा देवदासियां।
    • मंदिर देवदासियां: वे मंदिरों में नृत्य और गायन करती थीं और उनका जीवन मंदिर के नियमों द्वारा नियंत्रित होता था।
    • सेवा देवदासियां: वे धनी लोगों और राजाओं के घरों में नृत्य और गायन करती थीं और अक्सर उनका यौन शोषण होता था।
  • औपनिवेशिक काल (Colonial Period): ब्रिटिश सरकार ने Dev Dasi Pratha को “अनैतिक” और “असभ्य” माना और इसे खत्म करने की कोशिश की। कई भारतीय सुधारवादी भी इस प्रथा के खिलाफ थे और उन्होंने इसे खत्म करने के लिए आंदोलन चलाया।
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद, देवदासी प्रथा को 1947 में गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। हालांकि, देवदासी प्रथा कुछ ग्रामीण इलाकों में आज भी गुप्त रूप से जारी है।

देवदासी प्रथा के कारण | Causes of the Devadasi system

  • देवदासी प्रथा की समस्या एक राष्ट्रीय समस्या है और यह अभी भी भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है।
  • देवदासी प्रथा के प्रचलन पर विश्वसनीय आंकड़ों का अभाव यह समझने में मुख्य बाधाओं में से एक है कि यह कम क्यों नहीं हो रही है।
  • 2011 में राष्ट्रीय महिला आयोग के एक अनुमान के अनुसार, भारत में देवदासियों की संख्या 48,358 थी।
  • हालाँकि, 2015 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को प्रस्तुत की गई संपर्क रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में लगभग 4,50,000 देवदासियाँ रहती हैं।

भारत में अभी भी प्रचलित देवदासी प्रथा के कुछ मुख्य कारण नीचे दिए गए हैं:

  • बहुत समय से ऊंची जाति के लोग दूसरों पर राज करते आए हैं। इसी वजह से कुछ खास जातियों के लोग आज भी पुरानी रीति-रिवाजों को मानते हैं। इनमें से एक रीति है जिसमें लड़कियों को देवी-देवताओं को समर्पित कर दिया जाता है।
  • ऐसे परिवारों को लगता है कि यह उनकी जिम्मेदारी है। क्योंकि वे गरीब या कम पढ़े-लिखे होते हैं। पूरे समाज के लोग इस रीति को मानते हैं, इसलिए इसे बदलना बहुत मुश्किल है। छोटी उम्र में लड़कियों को देवी-देवताओं को समर्पित करना, यानी उनका विवाह कर देना भी इसी रीति का हिस्सा है।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि वे अपनी बेटी को किसी देवता को समर्पित करते हैं तो परिवार धन्य हो जाते हैं क्योंकि देवता प्रसन्न होते हैं। यह प्रमुख कारणों में से एक है कि लोग अभी भी इस परंपरा का पालन क्यों करते हैं।
  • देवदासी प्रथा को रोकने के लिए बने कानूनों को सरकारें पूरी तरह से लागू नहीं कर रही हैं। यानी ये कानून कागजों पर ही हैं, जमीन पर नहीं। इसके साथ ही, इन महिलाओं को नया जीवन देने के लिए जो पैसे रखे जाते हैं, उनका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
  • अधिकांश देवदासियां आज निचले सामाजिक स्तरों से हैं। कुछ परिवार अपनी बेटियों की पेशकश को कठोर जाति व्यवस्था में आगे बढ़ने के तरीके के रूप में देखते हैं और सोचते हैं कि इससे उनकी सामाजिक स्थिति बढ़ेगी।
  • अभी तक प्रचलित देवदासी प्रथा के पीछे यह भी एक प्रमुख कारण है जागरूकता की कमी: कुछ लड़कियों और यहां तक कि उनके परिवारों को भी इस परंपरा के बारे में उचित जानकारी नहीं होती है और इसके परिणामस्वरूप वे भी देवदासी प्रथा का हिस्सा बन जाती हैं।

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देवदासी प्रथा को ख़त्म करने के प्रयास

उन्‍नीसवीं सदी के धर्म सुधार आंदोलनों की बात करें तो कई कट्टरपंथियों और बुद्धिजीवियों ने devadasi system को समाप्त करने के बहुत से प्रयास किये तो वहीं इसके समर्थकों ने देवदासी प्रथा को बनाये रखने के प्रयास किये। समाज सुधारक चाहते थे कि यह प्रथा हटे जिसमें पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, चिकित्सक, ईसाई मिशनरी का समूह के लोग शामिल थे।

बीते 20 सालों से पूरे देश में देवदासी प्रथा बंद हो चुकी है। कर्नाटक सरकार द्वारा 1982 में और आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा 1988 में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से पता चला है की 2013 में अभी भी देश में लगभग 4,50,000 देवदासियां हैं। कुछ समय पहले ही देवदासी प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों के बावजूद इसके जारी रहने पर एनएचआरसी ने केंद्र और कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया।

देवदासी प्रथा को ख़त्म करने की चुनौतियाँ

समाज से इस परंपरा को पूरी तरह से खत्म करने के लिए कानून लागू करने वाले अधिकारियों के सामने कुछ चुनौतियाँ हैं। इनमें शामिल हैं:

  • धार्मिक प्रथा के नाम पर इस कुप्रथा के बारे में जागरूकता की कमी। लोगों को इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि यह प्रथा कैसे अवैध और दंडनीय अपराध है।
  • चूँकि इसे एक परंपरा माना जाता है, इसलिए लोग इस प्रथा के परिणामस्वरूप लड़की के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। अभी भी माना जाता है कि यह पूजा करने वाले परिवार के लिए आशीर्वाद लेकर आता है।
  • कानूनी कार्रवाई की कमी भी एक चुनौती है जिसका सामना किया गया है। लोग मामलों की रिपोर्ट नहीं करते हैं, जिससे अंततः ऐसे मुद्दों की अनदेखी होती है।
  • कानून लागू करने वाली संस्थाएँ बहुत सख्त नहीं हैं।
  • देवदासियाँ खुद अपने परिवारों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कराती हैं और सामाजिक दबाव को स्वीकार करती हैं।
  • समाज के निचले और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को शिक्षित करना पहली पहलों में से एक है जिस पर इस कुप्रथा को पूरी तरह से खत्म करने के लिए विचार किया जाना चाहिए।

देवदासी प्रथा के खिलाफ कानून | Laws Related to the Devdasi Pratha

बॉम्बे देवदासी संरक्षण अधिनियम1934
मद्रास देवदासी (समर्पण निवारण) अधिनियम1947
कर्नाटक देवदासी (समर्पण निषेध) अधिनियम1982
आंध्र प्रदेश देवदासी (समर्पण निषेध) अधिनियम1988
महाराष्ट्र देवदासी (समर्पण उन्मूलन) अधिनियम2006
किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट)2015
यौन शोषण और वेश्यावृत्ति के लिए परंपरा के नाम पर युवा लड़कियों को छोड़ने से रोकने के लिए, अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम1956
(आईटीपीए अधिनियम) और मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक2018
देवदासी प्रथा को रोकने के लिए कानून

समाज के धार्मिक और सामाजिक संगठनों के प्रयास

शैक्षिक पहल: स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया गया ताकि समाज को देवदासी प्रथा के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताया जा सके।

मीडिया का योगदान: मीडिया ने भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है, जिससे समाज में जागरूकता बढ़ी है।

देवदासी प्रथा को रोकने के पीछे प्रमुख व्यक्तित्व

इस प्रथा को खत्म करने के लिए बहुत से लोगों ने बहुत मेहनत की। इनमें से दो बहुत महत्वपूर्ण लोग थे जो के समय पर देवदासी प्रथा का शिकार थे:

डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी: इन्होंने एक ऐसा कानून बनवाया जिससे देवदासी प्रथा को खत्म किया जा सके। उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि लड़कियों की शादी की उम्र कम न हो। इन्हें 1927 में महिला भारत संघ द्वारा मद्रास विधान परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में पेश किया गया और उन्होंने 1930 में परिषद में देवदासी प्रथा को समाप्त करने के लिए विधेयक पेश किया।

मुवलुर रामामिरथम अम्मल: इन्होंने तमिलनाडु में इस प्रथा को खत्म करने के लिए बहुत काम किया। इनके प्रयासों से 1947 में अधिनियम द्वारा एक कानून बना और देवदासी प्रथा को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया।

देवदासी प्रथा की चुनौतियाँ: वर्तमान समय के देवदासियों की स्थिति 

वर्तमान समय में भी देवदासी प्रथा के प्रभाव कहीं न कहीं देखने को मिल ही जाते हैं। लेकिन आज बहुत सी स्‍वयंसेवी संस्थाएँ देवदासियों की स्थिति में सुधार करने के लिए आगे आई हैं। इनमें से कुछ संस्थाएँ उनके स्‍वास्‍थ्‍य की देखरेख में कार्य कर रही है। उन्‍हें स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। जिससे की वह सरवाइकल कैंसर एड्स और एचआईवी जैसे रोगों के प्रति जागरूक हो सके और दूसरों को भी जागरूक करें उनके पुनर्वास पर ध्यान दिया जा रहा है। कन्‍या-बालिका के लिए मुफ्त भोजन, स्कूली शिक्षा, परिवार नियोजन कार्यक्रम भी इसमें शामिल है।

देवदासी प्रथा से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • सामाजिक बहिष्कार: देवदासी समाज में अछूत समझी जाती हैं। उन्हें समाज में सम्मान नहीं मिलता और उन्हें कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
  • आर्थिक असुरक्षा: देवदासी के पास कोई स्थायी आजीविका का साधन नहीं होता है। उन्हें अक्सर गरीबी और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है।
  • शारीरिक शोषण: कई बार देवदासी का शारीरिक शोषण भी होता है। उन्हें मंदिरों में आने वाले लोगों द्वारा यौन शोषण का शिकार बनाया जाता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं: देवदासी को अक्सर मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • कानूनी चुनौतियाँ: हालांकि देवदासी प्रथा कानूनी रूप से प्रतिबंधित है, लेकिन कई बार कानून को लागू करने में मुश्किलें आती हैं।
  • सामाजिक जागरूकता की कमी: समाज में देवदासी प्रथा के खिलाफ जागरूकता की कमी है। लोग इस प्रथा को धार्मिक परंपरा मानते हैं और इसे बदलने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
देवदासी प्रथा का सच
देवदासी प्रथा का सच

देवदासी प्रथा का वर्तमान समय में अस्तित्व और स्थिति

देवदासी प्रथा के प्रभाव अभी भी देखने को मिलते हैं। देवदासी प्रथा भारत के कुछ हिस्सों में अभी भी है। 2011 में राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुमान द्वारा भारत में देवदासियों की संख्या 48,358 थी। 2015 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 4,50,000 देवदासियाँ हैं।

देवदासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति 

इस्लामिक और ब्रिटिश दोनों के द्वारा किये गए क्रूर आक्रमणों की वजह से देवदासियों की सामाजिक स्थिति खत्म होने लगी। हिंदू मंदिरों के नष्ट होने की वजह से देवदासियों ने अपना संरक्षण खो दिया उनके पास कमाई का कोई रास्ता नहीं बचा जिससे उनका शोषण होने लगा और उन्हें यौन व्यापार में घसीटा गया। वेश्यावृत्ति में जाना देवदासियों की मज़बूरी बन गई।

मुग़ल काल में देवदासियों की स्थिति

  • Devadasi system एक स्वस्थ प्रथा थी। लेकिन जब मुगल हमलावरों का समय आया तो मंदिरों का विनाश किया जाने लगा। मुगलो के शासन कल में देवदासियों को गुलाम बनाकर उनका शोषण किया जाने लगा। उनका अपमान किया जाने लगा।

ब्रिटिश काल में देवदासियो की स्थिति 

  • इसके बाद अंग्रेजों ने गुरुकुलों को नष्ट किया और मंदिरों की तरफ भी अपनी गंदी नजर डाली। देवदासियों के खिलाफ गंदा साहित्य लिखा गया उन्हें वैश्या जैसे गंदे नामों से प्रताड़ित किया जाने लगा। अंग्रेज देह व्यापार से अच्छा कमाने के लालच में देवदासियों में अवसर देखने लगे। इसलिए उनकी मदद करने के बजाय अंग्रेजों ने उन्हें “सेक्स वर्कर्स” बना दिया।

देवदासियों पर प्रभाव 

देवदासी प्रथा ने समय के साथ एक कुप्रथा का रूप ले लिया, जिससे देवदासियों की सामाजिक स्थिति में भी नकारात्मक बदलाव आया। वर्तमान में उनकी सामाजिक स्थिति के इन पहलुओं में देखी जा सकती है:

  • समाज में कलंक: देवदासियों को समाज में तिरस्कार और कलंक का सामना करना पड़ता है। उनके पेशे को अपमानजनक माना जाता है, जिसे वे समाज के तिरस्कार का सामना करना पड़ा।
  • स्वास्थ्य समस्याएँ: यौन शोषण के कारण वे यौन संक्रामक रोगों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हो सकती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य: समाज द्वारा तिरस्कार और आर्थिक असुरक्षा के कारण देवदासियों में अवसाद, चिंता और आत्मसम्मान की कमी।

निष्कर्ष

देवदासी प्रथा क्या है(Prabhudasi Pratha Kya Hai) इसके बारे में आपने यहां जाना।देवदासी प्रथा, जो प्राचीन समय में एक पवित्र और सम्मानित परंपरा मानी जाती थी, समय के साथ किस तरह से एक कुप्रथा में बदल गई, इसकी कहानी जटिल और दुखद है। मंदिर के पुजारियों और अन्य लोगों द्वारा देवदासियों के साथ छेड़छाड़ की जाने लगी और उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेला गया। इस प्रथा को रोकने के लिए बहुत से आंदोलन शुरू किये गए और कानून बनाये गए। अब देवदासी प्रथा खत्म होने जैसी ही रह गई है। और जहां थोड़ी बहुत बची है वहां के लोगों को शिक्षित कर, जागरूक कर और उनकी आर्थिक मदद करके इसे पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

क्या देवदासी प्रथा आज भी है?

आधिकारिक तौर पर, भारत में देवदासी प्रथा को 1947 में एक अधिनियम द्वारा गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है। हालांकि कानून में यह प्रथा खत्म हो चुकी है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में और कुछ समुदायों में यह प्रथा आज भी गुप्त रूप से जारी है। कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन न होने के कारण भी यह प्रथा पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाई है।

देवदासियों को मंदिरों में क्यों रखा जाता था?

देवदासियों को मंदिरों में रखने के पीछे मुख्य कारण यह था कि उन्हें देवी-देवताओं को समर्पित किया जाता था। उन्हें मंदिर में नृत्य और संगीत के माध्यम से देवताओं की पूजा करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। कुछ परिवारों के लिए अपनी बेटी को देवदासी बनाना एक आर्थिक बोझ से मुक्ति का रास्ता होता था।

भारत में देवदासी प्रथा कहाँ प्रचलित थी?

भारत में देवदासी प्रथा मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित थी। कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह प्रथा काफी व्यापक थी।

प्रभु दासी प्रथा क्या है?

इस प्रथा के तहत कुंवारी लड़कियों को धर्म के नाम पर ईश्वर के साथ ब्याह कराकर मंदिरों को दान कर दिया जाता था। माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे। परिवारों द्वारा कोई मुराद पूरी होने के बाद ऐसा किया जाता था।

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