Quick Summary
अगर किसी भी जगह का तापमान ज्यादा से ज्यादा 40°C से कुछ कम है या फिर 40°C के बराबर है। ऐसे में सामान्य तापमान में हुई 5 से 6°C हुए इजाफे को ही ग्रीष्म लहर माना जाता है।इतना ही नहीं अगर सामान्य तापमान से लगभग 7°C जितनी या उससे ज्यादा हुए इजाफे को भी ग्रीष्म लहर ही माना जाता है। कम शब्दों में कहा जाए तो अगर किसी जगह का तापमान 40°C या उसके आस पास है तो उसे ग्रीष्म लहर की श्रेणी में रखा जाएगा।मतलब जितनी ज्यादा गर्मी बढ़ती है ग्रीष्म लहर भी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है।
ग्रीष्म ऋतु भारत में आने वाली छह ऋतुओं में से एक है। ग्रीष्म ऋतु के दौरान मौसम बहुत ही ज्यादा गरम रहता है। ये ऋतु भारत में अप्रैल से लेकर जुलाई महीने में रहती है। इन महीनों के दौरान सूरज की किरणे इतनी ज्यादा तेज रहती हैं कि सुबह के वक्त भी गरम तापमान की वजह से लोगों का बाहर निकलना भी दूभर हो जाता है।
अप्रैल से लेकर जुलाई महीनों के बीच आम ऋतुओं की तुलना में भारत के ज्यादातर हिस्सों के तापमान गर्म रहने का सबसे बड़ा कारण है कि साल के इन महीनों में सूरज धरती के बहुत ही करीब आ जाता है, जिसके चलते धरती एक आग के गोले में तबदील हो जाती है।इसी दौरान गुजरात के साथ-साथ राजस्थान में गर्म हवाए चलती है जिसे लू भी कहा जाता है।
ऐसे में राजस्थान के मरुस्थल इलाके का तापमान काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जिसकी वजह से राजस्थान के लोगों को भारी गर्मी का सामना करना पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ग्रीष्म ऋतु की वजह से लोगों को भीषण गर्मी के साथ साथ अलग अलग तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
सच तो ये है कि जितनी ज्यादा गर्मी पड़ती है उतनी ही ज्यादा बारिश की संभावना भी बढ़ जाती है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि ग्रीष्म ऋतु से नुकसान के साथ साथ हमें कई तरह के फायदे भी मिलते हैं।
ग्रीष्म लहर असल में हमारे आस पास के तापमान की वो स्थिति है जिसमें तापमान आम दिनों की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जिससे चलते गर्मी काफी ज्यादा बढ़ जाती है।
बता दें कि ग्रीष्म लहर किसी आम वर्ष में मार्च से लेकर जून महीने तक चलती है। पर कई बार ग्रीष्म लहर जुलाई महीने तक भी चली जाती है जिसके चलते लोगों को भारी गर्मी का सामना करना पड़ता है।
ऐसा होने पर लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जैसे कि कई बार ग्रीष्म लहर के चलते हमारे आस पास के वातावरण में असामान्य बदलाव के चलते वातावरण में नमी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसा होने पर लोगों को कई सारी परेशानियों से गुजरना पड़ता है और कई बार मौसम में आए खराब बदलाव के चलते लोगों की जान भी चली जाती है।
अगर किसी खास जगह या फिर शहर और गांव का तापमान 45°C या उससे ज्यादा हो जाता है तो उस जगह को ग्रीष्म लहर से प्रभावित जगह या क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है। मतलब अगर किसी जगह का तापमान 45 degree से अधिक है तो उसे ग्रीष्म लहर से प्रभावित जगह घोषित कर दिया जाएगा।
45°C के बाद किसी भी जगह का तापमान कितना भी ज्यादा बढ़ जाए लेकिन उसे ग्रीष्म लहर की श्रेणी में ही रखा जाएगा। ये बात हो गई मैदानी इलाकों की। वहीं अगर पहाड़ी इलाकों की बात करें तो अगर किसी पहाड़ी इलाके या क्षेत्र का तापमान 30°C या इससे अधिक है तो उस पहाड़ी इलाके को ग्रीष्म लहर से प्रभावित माना जाएगा। कम शब्दों में पहाड़ी और मैदानी इलाकों में ग्रीष्म लहर घोषित करने के पैमाने और तापमान अलग अलग हैं।
कई ऐसे कारण है जिसके चलते पिछले कुछ सालों में ग्रीष्म लहर में इजाफा हुआ है और इसके दुष्परिणाम प्रकृति को भुगतने पड़ रहे हैं.
बता दें कि जलवायु में हुए परिवर्तन के चलते पिछले कुछ सालों से दुनियां भर में गर्मी के साथ साथ सूखा और कीड़े मकौड़ों का प्रकोप बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है।
इस वजह से पिछले कुछ सालों में जंगल में भारी मात्रा में आग लगने लगी हैं। मतलब साफ है कि गरम होती जलवायु की वजह से पानी की आपूर्ति में पहले की तुलना में काफी ज्यादा गिरावट आई है। ऐसे में पहले की तुलना में फसलों की उपज में भी भारी मात्रा में कमी देखने को मिल रही है।
इसी वजह से भारत के अलावा दुनियां के अलग अलग देशों में ग्रीष्म लहर बढ़ती जा रही है जिसके चलते हद से ज्यादा गर्मी के चलते लोगों को अलग अलग बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं ग्लोबल वार्मिंग की वजह से गर्म जलवायु की वजह से जमीनों पर वाष्पीकरण भी तेज़ी से बढ़ रहा है। और ग्रीष्म लहर पहले से ज्यादा गर्म हो रही है जिससे पर्यावरण में मौजूद जीव जंतुओं के साथ साथ हम इंसानों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
शहरीकरण के चलते भी ग्रीष्म लहर का कहर बढ़ता जा रहा है।असल में शहरों में बनी बड़ी बड़ी इमारतें और सड़क को बनाने में कुछ ऐसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है जो गर्मी को खुद में जमा करने के बाद उन्हें धीरे धीरे छोड़ती हैं। इसी वजह से शहरी हीट आइलैंड का असर शाम और रात के समय बहुत ज्यादा होता है। यानी कि शाम और रात के वक्त जब सूरज के ढलने के बाद शहरों की इमारतें और सड़क रात या शाम के अंधेरे में पूरे दिन भर में खुद के अन्दर अवशोषित यानी सोखी गई गर्मी को बाहर निकालती हैं।
ये बताने की जरूरत नहीं है कि पिछले कुछ दशकों में पूरे भारत में किस तरह से पेड़ो की कटाई करके शहरीकरण ने अपने पैर पसारे हैं, जिसके चलते ग्रीष्म लहर के सहना पहले की तुलना में अब काफी ज्यादा कठिन हो जा रहा है।
इस बारे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर इसी रफ्तार से शहरीकरण बढ़ता गया तो वो दिन दूर नहीं जब ग्रीष्म लहर के चलते आज की तुलना में कई सौ गुना लोग हर साल अपनी जान गवाएंगे।
इसीलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ो को लगाने के साथ साथ शहरीकरण को कम करने पर खास ध्यान देना होगा।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ग्रीष्म लहर में गर्म तपमान के चलते लोगों के शरीर में भी गर्मी प्रवेश कर जाती है जिसके चलते लोगों को अलग अलग तरह के लक्षणों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर किसी मरीज का समय से इलाज नहीं कराया गया तो उसको भारी नुकसान के साथ साथ अपनी जान भी गंवानी पड़ सकती है।
अगर बात करें ग्रीष्म लहर के प्रभाव की तो इस खतरनाक लहर का प्रभाव आम लोगों के साथ साथ पर्यावरण पर भी देखने को मिलता है:
ग्रीष्मावकाश कुछ ज्यादातर लोग समर वेकेशन यानी गर्मियों में होने वाली छुट्टी के रूप में भी जानते हैं।
मतलब साफ है कि जिस तरह सर्दियों के मौसम में ज्यादा ठंड चलने के चलते कुछ दिनों के लिए स्कूल और कॉलेज को बंद कर दिया जाता है। ठीक उसी तरह गर्मियों के मौसम में स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को लू के साथ-साथ दूसरी समस्याओं का सामना न करना पड़े इसी वजह से हर साल ग्रीष्मावकाश दिया जाता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दो कक्षाओं के बीच मिलने वाले अवकाश को ही ग्रीष्मावकाश के रूप में जाना जाता है। अगर ये अवकाश न दिया जाए तो हर साल कई सारे बच्चे ग्रीष्म लहर के चलते बीमार पड़ सकते हैं।
ग्रीष्म लहर के दौरान सरकार विभिन्न उपायों को अपनाती है ताकि नागरिकों को गर्मी के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके। ये उपाय स्वास्थ्य सेवाओं, सार्वजनिक जागरूकता, और आवश्यक सेवाओं की तैयारी में शामिल होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख उपाय दिए गए हैं:
अस्पतालों और क्लीनिकों की तैयारी:
एम्बुलेंस सेवाओं का सुदृढ़ीकरण:
सूचना प्रसार:
हीट हेल्पलाइन:
जल वितरण:
हाइड्रेशन सेंटर:
स्कूलों का समय बदलना:
कार्यस्थलों पर उपाय:
सार्वजनिक स्थानों पर शेड:
ग्रीन कवर बढ़ाना:
मौसम विभाग की चेतावनी:
निगरानी और प्रतिक्रिया टीम:
इस दौरान शहर और गांव का तापमान 40 डिग्री से भी ज्यादा हो जाता है। इसलिए अप्रैल से लेकर जुलाई के महीना में लोगों दोपहर के वक्त को ज्यादा से ज्यादा घर में ही रहना चाहिए। इस ब्लॉग में हमने जाना ग्रीष्म लहर क्या है और अगर कोई बाहर निकलता है तो उसे अपने सर को किसी छतरी या टोपी से ढकने के साथ-साथ अपनी त्वचा पर सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए। पेड़ पौधों को ज्यादा से ज्यादा लगाना और शहरीकरण को कम करने पर सरकार का जोर होना चाहिए। ग्रीष्म नहर के दौरान हर किसी को ज्यादा से ज्यादा पानी का सेवन करना चाहिए ताकि किसी को डिहाइड्रेशन जैसी समस्याएं ना हो।
भविष्यवाणी मौसम विभाग द्वारा तापमान के ट्रेंड, वायुमंडलीय स्थितियों, और मौसम पूर्वानुमान के आधार पर की जाती है।
तकनीकी उन्नतियों में स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा प्रबंधन सिस्टम, और जलवायु मॉडेलिंग सॉफ्टवेयर शामिल हैं।
प्रमुख संगठन में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अंतरराष्ट्रीय लाल क्रॉस, और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य संस्थान शामिल हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर ग्रीष्म लहर से तनाव, चिड़चिड़ापन, और मानसिक थकावट का असर पड़ सकता है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति की निगरानी तापमान रिकॉर्डिंग, सेंसर्स, और नियमित निरीक्षण के माध्यम से की जाती है।
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