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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor
Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.
हरित क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा की गई थी, जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण उन्हें “हरित क्रांति के जनक” के रूप में जाना जाता है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, क्योंकि उन्होंने गेहूं की उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) को विकसित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया था। भारतीय हरित क्रांति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन हैं। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप, विशेष रूप से गेहूं और चावल की फसलों में, खाद्यान्न उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है।
हरित क्रांति एक खेती-बाड़ी का नया तरीका था। इसमें नए किस्म के बीज, रासायनिक खाद और नए तरह की सिंचाई की गई। इससे फसलों की पैदावार बहुत बढ़ गई और भारत जैसे देशों में भुखमरी कम हुई। नए बीजों से फसल ज्यादा होने लगी, खाद से मिट्टी की ताकत बढ़ी और नहरों-नलकुओं से ज्यादा जमीन पानी पाने लगी। ट्रैक्टर-कटाई की मशीनों ने भी काम आसान किया। इस तरह हमने समझा कि हरित क्रांति क्या है।
Harit kranti kya hai? हरित क्रांति एक ऐसा शब्द है जिसने खेती-बाड़ी के पुराने तरीकों को बदल दिया। इससे पहले लोगों को काफी कम खाना मिलता था और भुखमरी की समस्या थी। लेकिन हरित क्रांति के दौरान नए किस्म के बीज लाए गए जिनसे फसलों की पैदावार बहुत बढ़ गई। इन्हें द्विसंकर बीज भी कहा जाता था क्योंकि ये उपज को दोगुना कर देते थे। साथ ही रासायनिक खादों से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ी। नहरें और नलकूप बनाकर ज्यादा खेतों को पानी पहुंचाया गया। ट्रैक्टर और हार्वेस्टर जैसी मशीनों ने भी काम को आसान बना दिया।
हरित क्रांति का आरंभ लगभग 1960 के दशक में हुआ था।
इस प्रकार हरित क्रांति हुई थी, इसकी शुरुआत 1960 के दशक में हुई और इसके प्रभाव 1970 के दशक में भी देखा गया।
प्रभाव | 1960 का दशक | 1970 का दशक |
नए बीज | नए बीज आए | और अधिक इस्तेमाल |
खाद | खादों का उपयोग शुरू | और ज्यादा खादें |
पानी | नहरें-नलकूप बने | और ज्यादा जमीन पर पानी |
मशीनें | ट्रैक्टर-हार्वेस्टर आए | और भी मशीनें आईं |
अनाज | अनाज की पैदावार बढ़ी | और भी ज्यादा अनाज हुआ |
भुखमरी | भुखमरी कम होनी शुरू | भुखमरी और कम हुई |
हरित क्रांति, जिसका नाम 1968 में विलियम गॉडन ने दिया था, 1960 के दशक में भारत में शुरू हुई एक महत्वपूर्ण कृषि क्रांति थी। इसकी आवश्यकता स्वतंत्रता के बाद की गंभीर परिस्थितियों से उपजी थी – बढ़ती जनसंख्या, बार-बार पड़ने वाले अकाल, और खाद्य आयात पर बढ़ती निर्भरता। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए, अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग ने मैक्सिको में उच्च उपज वाली गेहूं की किस्में विकसित कीं। भारतीय कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने इन किस्मों को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल बनाया।
सरकार के समर्थन से, इन बीजों का व्यापक प्रयोग किया गया, साथ ही रासायनिक उर्वरकों का उपयोग, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा दिया गया। परिणामस्वरूप, भारत का खाद्यान्न उत्पादन कई गुना बढ़ गया – उदाहरण के लिए, गेहूं का उत्पादन 1967-68 में 1.2 करोड़ टन से बढ़कर 1971-72 में 2.4 करोड़ टन हो गया। इस क्रांति ने भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता प्रदान की और कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण किया। हरित क्रांति ने भारत के कृषि इतिहास में एक नया अध्याय लिखा और देश को खाद्य सुरक्षा प्रदान की।
विश्व में हरित क्रांति के जनक के रूप में अमेरिकी विशेषज्ञ नॉर्मन बोरलॉग को जाना जाता है।
हरित क्रांति के जनक के रूप में भारत के वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामिनाथन को जाना जाता है।
अगर हम आज की बात करें तो कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हरित क्रांति की अच्छे से जानकारी नहीं है, आइए जानते हैं आखिर हरित क्रांति किसे कहते हैं? आसान भाषा में समझें तो हरित क्रांति एक ऐसे तरीके को कहा जाता है जिससे खेती में पैदावार बहुत बढ़ गई।
हरित क्रांति एक ऐसा नया तरीका था जिससे खेती की पुरानी परंपराओं में बदलाव आया और फसलों की उपज बहुत बढ़ गई। अगर हम हरित क्रांति की विशेषताएं की बात करे तो इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं थीं।
हरित क्रांति में एक बहुत बड़ा बदलाव नए किस्म के बीज लाए जाना था।
अगर हम हरित क्रांति के उद्देश्य की बात करे तो, हरित क्रांति का उद्देश्य था लोगों को भरपेट खाना मुहैया कराना। उस समय देश में भुखमरी की समस्या बहुत गंभीर थी। लोगों को पर्याप्त अनाज नहीं मिल पा रहा था। इसलिए हरित क्रांति के जरिए खेती में नए तरीके अपनाए गए ताकि अनाज की पैदावार बढ़े। नए बीज लाए गए जिनसे फसल अधिक होती थी। खादों का इस्तेमाल किया गया ताकि मिट्टी अच्छी बने और फसल अच्छी हो। सिंचाई के नए तरीके अपनाए गए ताकि ज्यादा जमीन पर पानी पहुंच सके। मशीनें भी आईं जिनसे खेती का काम आसान हो गया। साथी हरित क्रांति का उद्देश्य पूरा हुआ
हरित क्रांति में खेती से होने वाले उत्पादन में वृद्धि करना हरित क्रांति के उद्देश्य का एक प्रमुख कारण था।
हरित क्रांति के उद्देश्य में से एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना भी था।
लाभ | हानि |
---|---|
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि | पर्यावरण प्रदूषण |
किसानों की आय में वृद्धि | मिट्टी की उर्वरता में कमी |
रोजगार के अवसर बढ़े | जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग |
कृषि में तकनीकी विकास | छोटे किसानों को नुकसान |
भुखमरी में कमी | जैव विविधता में कमी |
हरित क्रांति ने भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया, जिससे खाद्यान्न उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई। हालांकि, इसके साथ ही पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियाँ भी सामने आईं, जैसे मिट्टी की उर्वरता में कमी और छोटे किसानों को नुकसान। इसलिए, हरित क्रांति के लाभों को बनाए रखते हुए, इन चुनौतियों का समाधान ढूंढना आवश्यक है ताकि कृषि क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि बनी रहे।
हरित क्रांति 1960 के दशक में कृषि उत्पादकता बढ़ाने की प्रक्रिया थी, जिसमें उच्च उपज वाली फसलें, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, और बेहतर सिंचाई तकनीकें शामिल थीं। इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और भारत को खाद्य आत्मनिर्भर बनाना था।
भारत में प्रथम हरित क्रांति 1960 के दशक में शुरू हुई थी, जब सरकारी पहल पर उन्नत कृषि तकनीकों, उच्च उपज वाली फसलों, रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई प्रणाली के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश की गई।
भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ. एम.एस. स्वामिनाथन को माना जाता है। उन्होंने उन्नत कृषि तकनीकों और उच्च उपज वाली फसलों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत में खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
हरित क्रांति के दो प्रमुख चरण हैं: पहला चरण (1960-1980) में उच्च उपज वाली फसलों और उर्वरकों का उपयोग बढ़ा, जबकि दूसरा चरण (1980 के बाद) में अन्य फसलों पर ध्यान दिया गया और जलवायु अनुकूल कृषि विधियों को अपनाया गया।
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