Quick Summary
बिलकिस बानो केस भारत के इतिहास में सबसे भयानक मामलों में से एक था। उसकी लड़ाई ने कानूनी व्यवस्था, पुलिस की लापरवाही, सांप्रदायिक दंगों का ऐसा चेहरा दिखाया की पूरा देश कांप गया। ये महत्वपूर्ण कानूनी लड़ाइयों में से एक है। 2002 के गुजरात दंगों की हिंसा ने कइयों की जान लेली लेकिन बिलकिस बानो की ज़िंदगी नरक से भी बदतर कर दि। इस अपराध ने भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय को जोड़ दिया, जिसमें सामाजिक हिंसा और मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ। बिलकिस बानो केस सिर्फ एक रेप केस नहीं है, ये न्याय और जवाबदेही के संघर्ष का प्रतीक बन गया।
यह ब्लॉग में बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी से जुड़ी जानकारी है जो इसके ऐतिहासिक संदर्भ, अलग अलग घटनाएं और इसके बाद की कानूनी लड़ाई पर रोशनी डालता है।
बिलकिस बानो केस क्या है जानने के लिए इस पूरे घटनाक्रम को इस तरह से संक्षेप में समझे की,
28 फरवरी को, बिलकिस बानो और उनका परिवार दंगों के चलते गुजरात के रांधीकपुर गांव से भाग निकला। 3 मार्च 2002 को, बिलकिस बानो, जो उस समय पाँच महीने की गर्भवती थीं, उनका सामूहिक बलात्कार हुआ और उनके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी गई। बिलकिस को लिमखेडा पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उसने FIR दर्ज की। लेकिन आरोपियों का जिक्र FIR में नहीं हुआ। केशरपुर के जंगल में उनके परिवार के सात शव मिले।
इस मामले में पुलिस की प्रारंभिक जांच में लापरवाही और पक्षपातपूर्ण रवैया देखा गया। बिलकिस बानो सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामले को गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित किया गया, CBI जांच के साथ 11 लोगों को दोषी ठहराया गया। उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। लेकिन दंड परिहार के इस्तेमाल से वो रिहा हुए, जिस वजह से गुजरात सरकार पर उँगलियाँ उठाई गई। आइए जानते है ये पूरा मामला।
विस्तार से जानिए क्या हुआ था 2002 गुजरात में। बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी नीचे दि गई है।
बिलकिस बानो केस क्या है जानने के लिए उसकी कुछ दिन पहले की घटना को समझिए।
अयोध्या से आने वाले राम भक्त या करसेवक जो साबरमती ट्रेन से आ रहे थे, गोधरा स्टेशन, गुजरात के पास पहुँचते ही उनकी ट्रेन में आग लग गई, जिसमे करीब 90 हिन्दू मारे गए। मान्यता ये है की ये आग मुस्लिम समुदाय ने लगाई थी। नतीजा ये निकला की गुजरात में दंगे शुरू हो गए।
इन्हीं दंगों से बचने के लिए बिलकिस बानो , जो रांधीकपुर गाँव में रहती थी, अपने परिवार के साथ अगले ही दिन वहाँ से भाग निकली। लेकिन 3 मार्च को वे सभी पकड़े गए। कुछ 20-30 लोगों ने उसके और उसके परिवार पर हमले किया। उनमें से 11 ने बिलकिस का सामूहिक बलात्कार किया। उस वक्त वो 5 महीने की गर्भवती थी। इतना ही नहीं उसके परिवार वालों की बेरहमी से हत्या की गई। बानो 3 घंटे तक बेहोश पड़ी थी।
अगले दिन बिलकिस को लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन में लाया गया और उसने FIR दर्ज कराई। लेकिन पुलिस ने उसका मामला संजीदगी से नहीं लिया। बिलिकिस ने पुलिस को पूरी घटना बताइए और साथ ही 12 लोगों की पहचान कि जो उसी के गाँव रांधीकपुर से थे, जिन्होंने उसके साथ यह घिनौनी हरकत की । लेकिन पुलिस ने ना तो रेप की बात FIR में दर्ज की और ना ही उन 12 लोगों का जिक्र किया।
बिलकिस को जब न्याय मिलने की उम्मीद नजर नहीं आई तो उसने नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) और सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। NHRC ने बिकलिस का साथ दिया, उसके लिए वकील के तौर पर पूर्व सॉलिसिटर जनरल को नियुक्त किया। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जगदीश शरण वर्मा बिकलीस से मिलने आए जो मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित रिलीफ कैंप में रुकी थी।
जांच शुरू होने के 1 महीने के अंदर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और गुजरात हाई कोर्ट में पेश किया गया। इस दौरान बिलकीस को कई बार मारने की धमकियां मिल चुकी थी। बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को गुजरात से मुंबई, महाराष्ट्र में स्थानांतरित किया जिससे पूरी जांच निष्पक्ष हो और कोई भी बिलकिस को डरा धमका ना सके।
पहले की जांच में पुलिस ने सही से जांच पड़ताल नहीं की थी। उस वक्त पुलिस ने सबूत के साथ छेड़छाड़ की और कई दिनों के बाद मेडिकल टेस्ट कराया जिसकी वजह से सही एविडेंस मिलना मुश्किल था। यह बात अदालत में साबित हुई और पुलिस अधिकारियों और डॉक्टर पर सबूत के साथ छेड़खानी का आरोप लग गया।
यह केस अब CBI के हाथ में था। उसके इंचार्ज थे डीएसपी के.एन. सिन्हा। CBI ने मामले की पूरी तरह से जांच की और एक चार्ज शीट दाखिल की जिसमें 19 आरोपियों के नाम सामने आए इनमें पुलिस अधिकारी और डॉक्टर भी शामिल थे। इसी जांच में बिलकिस बानो के परिवार वालों के कुछ शव मिले। उनमें खोपड़ियां नहीं थी।
कुछ 20 – 30 लोग उस अपराध में शामिल थे जिनमें से 11 ने रेप किया और बाकियों ने हमला। 2008 में मुंबई न्यायालय में 11 व्यक्तियों को सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी करार दिया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 376 (2) (बलात्कार) के अंतर्गत दोषी ठहराया गया। धारा 149 के तहत दूसरे सदस्यों को 7 साल की सजा और 50 लाख का जुर्माना भरने की सजा मिली।
कोर्ट ने बिलकिस को मुआवजे के तौर पर 50 लाख रुपए, सरकारी नौकरी और अपनी इच्छा अनुसार जगह पर घर लेने की अनुमति दि। एक पुलिस अधिकारी को भी आजीवन कारावास हुआ। ये सजा 2017 तक चलती रही। उसके बाद दंड परिहार का इस्तेमाल किया गया।
परिहार का गलत इस्तेमाल हुआ, इसके चलते 15 अगस्त, 2022 में उन्हें रिहा किया गया। इसकी वजह से गुजरात सरकार को बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि गुजरात सरकार के पास दंड परिहार के आदेश जारी करने का अधिकार नहीं था। इसलिए 8 जनवरी, 2024 को उन दोषियों को फिर से कैद करने का आदेश जारी किया।
ये है बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी।
दंड परिहार की प्रक्रिया में बहुत सी खामियां थी। कुछ आरोपियों ने कानूनी पैंतरेबाज़ी का इस्तेमाल करके अपनी सजा से बचने की कोशिश की थी और इस बात को न्यायालय ने स्वीकार किया था। पूरी तरह से छानबीन ना करके उन्होंने दंड परिहार को मान्यता दी और बलात्कार और हत्या जैसे घिनौने गुनाहों के अपराधियों को रिहा करने का आदेश दिया। इससे पूरे समाज में निराश पैदा हुई।
क्योंकि इन अपराधियों को दंड देने के लिए बिल्किस बानो और उसके पति ने बहुत मेहनत की थी। साथ ही दंड परिहार देने की अनुमति वही राज्य दे सकता है, जहां पर दोषियों को सजा सुनाई गई थी। चूंकि सारा मामला महाराष्ट्र में सुलझाया गया और दोषियों को महाराष्ट्र में सजा सुनाई गई इसलिए यह महाराष्ट्र सरकार का निर्णय होना चाहिए था, लेकिन इसका पालन नहीं किया गया। इसी कारण गुजरात न्यायालय की और गुजरात सरकार की बहुत आलोचना हुई।
दंड परिहार एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे किसी भी व्यक्ति की सजा को या तो खत्म किया जा सकता है या उसकी अवधि कम की जा सकती है। यह फर्लो और पैरोल से अलग है। दंड परिहार में व्यक्ति अपनी पूरी सजा नहीं भुगत्ता और उसे एक नई तारीख दी जाती है रिहा करने के लिए। फर्लो का मतलब है, की कुछ समय के लिए जेल से बाहर जाने की इजाजत दी जाती है जबकि पैरोल का मतलब है, की जेल से बाहर समय बिताने की अनुमति दी जाती है पर उसकी सजा खत्म नहीं होती।
दंड परिहार में कुछ समय अपनी सजा काटने के बाद अपराधी को रिहा कर दिया जाता है। वह कानून की नजरों में एक स्वतंत्र व्यक्ति हो जाता है।
शर्तें: दंड परिहार पर छूटे व्यक्ति को निगरानी में रखा जाता है और यदि वह किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है तो उसकी यह सुविधा रद्द की जाती है और उसे अपनी बची हुई सजा पूरी करने के लिए वापस जेल भेज दिया जाता है।
बिलकिस बानो केस की पूरी कहानी ने सामाजिक स्तर पर गहरा प्रभाव डाला। इसका प्रभाव न्याय प्रणाली पर भी हुआ।
जनता को हमेशा से ही पुलिस पर भरोसा होता है लेकिन इस अपराध के बाद में पुलिस की लापरवाही और सबूत के साथ छेड़खानी देखते हुए लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठने लगा था। सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो केस सीबीआई को सौंप दिया और सीबीआई में बखूबी जांच पड़ताल की। उन्होंने पूरी पारदर्शिता के साथ इस मामले की निष्पक्ष जांच की। सीबीआई की वजह से ही बिल्किस के परिवार के सदस्यों के शव मिले थे।
बिलकिस बानो केस सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के तौर पर बिल्किस को 50 लख रुपए अलग से दिए, उसे सरकारी नौकरी देने का आदेश दिया और साथ ही अपने इच्छा अनुसार किसी भी स्थान पर घर देने के भी निर्देश दिए।
बिलकिस बानो केस क्या है, ये एक बहुत ही संवेदनशील मामला है जिसने पूरे देश को हिला दिया। पीडोतों को न्याय दिलाना कानून का काम है। पुलिस और डॉक्टर की लापरवाही और सबूत की छेड़खानी ने कानूनी प्रणाली पर कई सवाल खड़े किए। बिलकिस बानो केस से हमें यह सीखना चाहिए की अपनी कोशिशें को कभी बंद ना करें। दृढ़ संकल्प के साथ न्याय का दरवाजा खटखटाते रहे। सीबीआई, बिलकिस बानो सुप्रीम कोर्ट, मानवाधिकार संगठन इन सभी ने कानून की रक्षा की और जरूरी कार्रवाई करके बिलकिस बानो को न्याय दिलाया।
बिलकिस बानो केस भारत के इतिहास का एक काला पन्ना है। इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि भारत जैसे देश में भी जहां स्त्रियों को इतना सम्मान दिया जाता है, वहां धर्म के नाम पर ऐसी घिनौनी हरकत की जाती है। भारत सरकार को अपनी न्याय प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है साथ ही अपने कानून को पक्का करने की जरूरत है। सरकारी अधिकारियों को उनके जिम्मेदारी याद दिलाने चाहिए ताकि लोग उनके पास अपनी परेशानी लेकर आए और उनका सम्मान बना रहे।
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बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा दंगों में बिलकिस के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार की हत्या के दोषियों को उम्रभर की सजा सुनाई थी। 2022 में गुजरात सरकार द्वारा दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की थी, और इस मामले पर पुनः विचार करने का निर्देश दिया था, ताकि न्याय सुनिश्चित हो सके।
बिलकिस बानो केस 2002 में हुआ था, जब गोधरा दंगे के दौरान गुजरात के रंधवाड़ा गांव में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनके परिवार के सात सदस्य मारे गए थे। यह घटना तब हुई थी जब बिलकिस बानो 5 महीने की गर्भवती थी। इस मामले में दोषियों को 2004 में सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में कुछ दोषियों की जल्दी रिहाई पर विवाद उत्पन्न हुआ।
सुप्रीम कोर्ट का पुराना नाम “प्राइवि काउंसिल” (Privy Council) था। भारत में जब ब्रिटिश शासन था, तब प्रिवी काउंसिल ब्रिटिश सरकार के सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण के रूप में काम करता था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, 15 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान के तहत भारत में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई थी। भारतीय सुप्रीम कोर्ट का पहला दिन 28 जनवरी 1950 को था।
शाहबानो केस 1985 में हुआ था, जब सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला शाहबानो को तलाक के बाद भरण-पोषण का हक दिया। कोर्ट ने इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 125 के तहत माना। इसके बाद, सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार को सीमित करने के लिए 1986 में एक कानून बनाया।
भारत में सुप्रीम कोर्ट 28 जनवरी 1950 को लागू हुआ था। यह भारतीय संविधान के तहत स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य देश में सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करना था। इससे पहले, ब्रिटिश शासन के दौरान प्रिवी काउंसिल सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण था।
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