दिल्ली सल्तनत: इतिहास,शासक

October 14, 2024
दिल्ली सल्तनत
Quick Summary

Quick Summary

दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा की गई थी। इस सल्तनत पर पांच राजवंशों ने शासन किया: गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोदी वंश। यह सल्तनत मोहम्मद गौरी द्वारा जीते गए प्रदेशों पर आधारित थी।

Table of Contents

1206 से 1526 तक भारत पर शासन करने वाले पाँच वंश के सुल्तानों के शासनकाल को दिल्ली सल्तनत या सल्तनत-ए-हिन्द/सल्तनत-ए-दिल्ली कहा जाता है। यह सल्तनत 1206 से 1526 तक अस्तित्व में रही और इसने उत्तरी भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया।  क़ुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली सल्तनत के पहले वंश, गुलाम वंश का संस्थापक माना जाता है| 

इस ब्लॉग में हम दिल्ली सल्तनत का इतिहास, स्थापना, शासक, प्रशासनिक व्यवस्था, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव, पतन और विरासत पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

दिल्ली सल्तनत का इतिहास

दिल्ली सल्तनत का इतिहास, क़ुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1206 में गुलाम वंश की स्थापना के साथ शुरू हो गया था| दिल्ली सल्तनत का इतिहास पांच प्रमुख वंशों में विभाजित है:  

वंश समय 
गुलाम वंश1206 – 1290
ख़िलजी वंश1290- 1320
तुग़लक़ वंश1320 – 1414
सैयद वंश1414 – 1451
लोदी वंश1451 – 1526
दिल्ली सल्तनत

कालखंड

दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 में हुई थी और ये 1526 तक रहा। इस समय के दौरान, कई महत्वपूर्ण घटनाएं और परिवर्तन हुए, जिनका प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। इस काल में अलग-अलग शासकों ने अपने-अपने तरीके से शासन किया और सल्तनत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।

महत्व

दिल्ली सल्तनत ने भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। इसने प्रशासनिक प्रणाली, कला, संस्कृति, और समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए। इसने मध्यकालीन भारतीय समाज को एक नई दिशा दी और कई स्थायी विरासतें छोड़ीं।

दिल्ली सल्तनत की स्थापना

दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 में हुई जब कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की नींव रखी। कुतुबुद्दीन ऐबक,  मुहम्मद गौरी का प्रमुख सेनापति था| वो अपने सैन्य कौशल और बुद्धिमत्ता के कारण मुहम्मद गौरी का विश्वासपात्र बन गया था और मुहम्मद गौरी की मौत के बाद उसने दिल्ली पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया| ऐबक ने दिल्ली में अपनी राजधानी स्थापित की और शासन चलाया| दिल्ली में स्थित प्रसिद्द कुतुब मीनार का निर्माण उसी ने करवाया था| 

दिल्ली सल्तनत के शासक

दिल्ली सल्तनत के 5 अलग-अलग वंशों ने इस राज्य पर शासन किया। इनमें से प्रत्येक वंश ने अपने शासनकाल में महत्वपूर्ण योगदान दिए। दिल्ली सल्तनत के शासक और दिल्ली सल्तनत के 5 वंश इस प्रकार है-

गुलाम वंश (1206-1290)

    नामशासन काल
कुतुबुद्दीन ऐबक1206-1210
इल्तुतमिश1211-1236
रज़िया सुल्तान1236-1240
बलबन1266-1290
गुलाम वंश

दिल्ली सल्तनत के वंश में सबसे पहला नाम गुलाम वंश का आता है| गुलाम वंश का शासन 1206 से 1290 तक रहा। इस वंश के प्रमुख शासकों में कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, और रजिया सुल्तान शामिल थे। कुतुबुद्दीन ऐबक ही दिल्ली सल्तनत का संस्थापक और इस सल्तनत का पहला शासक था| ऐबक की मृत्यु के बाद, इल्तुतमिश ने सत्ता संभाली और अपने शासनकाल में दिल्ली सल्तनत को स्थिरता और समृद्धि की ओर अग्रसर किया। रजिया सुल्तान, इल्तुतमिश की बेटी, दिल्ली की पहली महिला शासक बनीं| उनके अपने शासन में कई महत्वपूर्ण सुधार किए थे।

खिलजी वंश (1290-1320)

नामशासन काल
जलालुद्दीन खिलजी1290-1296
अलाउद्दीन खिलजी1296-1316
कुतुबुद्दीन मुबारक शाह1316-1320
खिलजी वंश

दिल्ली सल्तनत के वंश में खिलजी वंश का नाम दूसरे नंबर पर आता है| खिलजी का शासन 1290 से 1320 तक रहा। इस वंश के प्रमुख शासक अलाउद्दीन खिलजी था| अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासन में भारी कर लगाकर अपने खजाने भर लिए थे| अलाउद्दीन खिलजी को इतिहासकार, भारत के इतिहास का एक क्रूर शासक मानते हैं| 

तुगलक वंश (1320-1414)

नामशासन काल
गयासुद्दीन तुगलक1320-1325
मुहम्मद बिन तुगलक1325-1351
फिरोज शाह तुगलक1351-1388
तुगलक वंश

तुगलक वंश की स्थापना गयासुद्दीन तुगलक ने की थी। तुगलक वंश का शासन 1320 से 1414 तक रहा। इस वंश के प्रमुख शासकों में गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक, और फिरोज शाह तुगलक शामिल था। इसमें से मुहम्मद बिन तुगलक अपने विवादास्पद निर्णयों और असफल नीतियों के लिए जाने जाता है, जैसे राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद ले जाना। फिरोज शाह तुगलक ने अपने शासन सल्तनत की आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया।

सैयद वंश (1414-1451)

नामशासन काल
खिज्र खान1414-1421
मुबारक शाह1421-1434
मुहम्मद शाह1434-1445
आलम शाह1445-1451
सैयद वंश

सैयद वंश का शासन 1414 से 1451 तक रहा। इस वंश के प्रमुख शासकों में खिज्र खान और मुबारक शाह शामिल थे। सैयद वंश का शासनकाल अपेक्षाकृत कमजोर रहा और इस दौरान सल्तनत का क्षेत्रीय विस्तार कम हो गया। सैयद शासकों ने अपने शासनकाल में दिल्ली सल्तनत की स्थिति को सुधारने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली।

लोदी वंश (1451-1526)

नामशासन काल
बहलुल लोदी1451-1489
सिकंदर लोदी1489-1517
इब्राहिम लोदी1517-1526
लोदी वंश

लोदी वंश का शासन 1451 से 1526 तक रहा। इस वंश के प्रमुख शासकों में बहलुल लोदी, सिकंदर लोदी, और इब्राहिम लोदी शामिल थे। लोदी वंश का शासनकाल दिल्ली सल्तनत का अंतिम काल था। बहलुल लोदी ने अफगान मूल के शासक के रूप में सत्ता संभाली और इस सल्तनत को स्थिरता प्रदान की। इब्राहिम लोदी का शासनकाल संघर्षों से भरा रहा और अंततः 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर के हाथों उनकी हार के साथ दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया।

दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था

दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था, शरीयत या इस्लाम के कानूनों के अनुसार चलती थी। राजनीतिक, कानूनी और सैन्य अधिकार सुल्तान के पास थे। इस प्रकार सैन्य शक्ति सिंहासन के उत्तराधिकार में मुख्य कारक थी। प्रशासनिक इकाइयाँ इक्ता, शिक, परगना और ग्राम थीं।

केंद्रीय प्रशासन

केंद्रीय प्रशासन, दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था  का मुख्य प्रशासनिक ढांचा था, जिसमें सुल्तान सबसे प्रमुख पद था। सुल्तान के नीचे अलग-अलग पदाधिकारी होते थे, जो राज्य के विभागों का संचालन करते थे। सुल्तान का दरबार महत्वपूर्ण निर्णयों और नीतियों का केंद्र होता था।

वजीर

दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था में वजीर सुल्तान का मुख्य सलाहकार और प्रधानमंत्री होता था। वजीर का काम राज्य के वित्त, प्रशासन, और अन्य महत्वपूर्ण मामलों को देखना था। वजीर का पद अत्यधिक महत्वपूर्ण था और वह सुल्तान के भरोसेमंद व्यक्तियों में से एक होता था।

मुख्य न्यायाधीश

मुख्य न्यायाधीश न्यायिक प्रणाली का प्रमुख होता था। वह न्यायिक मामलों का निपटारा करता था और न्याय की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का कार्य करता था। न्यायालयों का संगठन और न्यायिक प्रक्रिया का संचालन मुख्य न्यायाधीश की जिम्मेदारी होती थी।

प्रांतीय प्रशासन

प्रांतीय प्रशासन राज्य के विभिन्न प्रांतों का संचालन करता था। प्रत्येक प्रांत में एक गर्वनर नियुक्त होता था, जो प्रांतीय मामलों का संचालन करता था। प्रांतीय गर्वनर सुल्तान के प्रतिनिधि होते थे और उन्हें प्रांतों की शांति और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी होती थी।

राजस्व और कर व्यवस्था

दिल्ली सल्तनत की राजस्व और कर व्यवस्था बहुत संगठित थी। किसानों और व्यापारियों से कर वसूला जाता था, जो राज्य के वित्त का मुख्य स्रोत था। भूमि राजस्व, व्यापार कर, और अन्य करों के माध्यम से राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जाता था। इक्ता प्रणाली, जिसमें अधिकारियों को उनके सेवाओं के बदले भूमि का अनुदान दिया जाता था, भी राजस्व व्यवस्था का हिस्सा थी।

सैन्य व्यवस्था

सैन्य व्यवस्था सल्तनत की सुरक्षा और विस्तार के लिए महत्वपूर्ण थी। इसमें एक संगठित सेना होती थी, जो विभिन्न अभियानों और युद्धों में शामिल होती थी। सेना का संचालन सुल्तान और उसके सेनापतियों द्वारा किया जाता था। सैनिकों की भर्ती और प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता था।

इक्ता प्रणाली

इक्ता प्रणाली सल्तनत की विशेष भूमि राजस्व प्रणाली थी। इसमें अधिकारियों को उनके सेवाओं के बदले भूमि का अनुदान दिया जाता था, जिससे राज्य की वित्तीय स्थिति मजबूत होती थी। इक्ता प्रणाली के तहत, अधिकारियों को इक्ता के रूप में भूमि दी जाती थी और उनसे भूमि से प्राप्त होने वाले राजस्व का एक हिस्सा राज्य को देना होता था।

दिल्ली सल्तनत के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

दिल्ली सल्तनत पर मुख्य रूप से तुर्क मुस्लिम शासकों का कब्जा रहा था| मुस्लिम शासन काल के दौरान, भारतीय समाज और संस्कृति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था क्योंकि सल्तनत के शासक, अपने धर्म को ज़्यादा वरीयता देते थे| 

धार्मिक प्रभाव

इस सल्तनत ने भारतीय समाज में इस्लाम धर्म का प्रसार किया। अलाउद्दीन खिलजी के डर से कई लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था| इसके अलावा दिल्ली सल्तनत में कई महत्वपूर्ण पद और सरकारी जगहों पर मुस्लिमों को ही वरीयता दी जाती थी|

वास्तुकला

दिल्ली सल्तनत की वास्तुकला अद्वितीय थी। इसने भारतीय और इस्लामिक वास्तुकला के मिश्रण से कई महत्वपूर्ण इमारतें और मस्जिदें बनाईं, जो आज भी प्रसिद्ध हैं। कुतुब मीनार, अलाइ दरवाजा, और तुगलकाबाद किला कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। सल्तनत काल की वास्तुकला में गुंबद, मेहराब, और मीनारों का विशेष स्थान था।

शिक्षा और साहित्य

मदरसे और पुस्तकालयों की स्थापना हुई। फारसी और अरबी साहित्य के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में भी कई महत्वपूर्ण रचनाएँ हुईं। अमीर खुसरो जैसे महान कवि और विद्वान इस काल के महत्वपूर्ण साहित्यकारों में से थे और उनकी एक रचना  “छाप तिलक सब छीनी रे” आज भी बहुत प्रसिद्द है| 

दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था और उपलब्धियां

शासककार्य और उपलब्धि 
कुतुबुद्दीन ऐबकदिल्ली सल्तनत का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था| उसने कुतुब मीनार की नींव रखी और अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियान किए। अपने शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता और न्याय को बढ़ावा दिया।
इल्तुतमिशइल्तुतमिश ने इस सल्तनत को स्थिरता प्रदान की और अपनी सैन्य और प्रशासनिक नीतियों के माध्यम से राज्य को मजबूत किया। उन्होंने चलिसा (चालीस उच्च अधिकारियों की समिति) की स्थापना की, जो राज्य के महत्वपूर्ण निर्णयों में शामिल थी।
रजिया सुल्तानरजिया सुल्तान दिल्ली की पहली महिला शासक थीं। उन्होंने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण सुधार किए और अपने नेतृत्व कौशल से राज्य को स्थिरता प्रदान की।
अलाउद्दीन खिलजीअलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैन्य अभियानों और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से दिल्ली सल्तनत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। मंगोल आक्रमणों को रोकने के लिए अपनी सेना को मजबूत किया और भूमि सुधारों के माध्यम से राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया।
मुहम्मद बिन तुगलकमुहम्मद बिन तुगलक अपने विवादास्पद निर्णयों और असफल नीतियों के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, उन्होंने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य सुधार किए।
फिरोज शाह तुगलकफिरोज शाह तुगलक ने अपने शासनकाल में कई कल्याणकारी कार्य किए और सल्तनत की आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया। उन्होंने कई नई नगरों की स्थापना की और जल आपूर्ति और सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण कराया।
दिल्ली सल्तनत शासकों के कार्य और उपलब्धियां

दिल्ली सल्तनत की सामाजिक संरचना और व्यापार 

सामाजिक संरचना और व्यापारविवरण
जाति और वर्गदिल्ली सल्तनत के समय में भारतीय समाज जाति और वर्ग संरचना पर आधारित था। उच्च वर्ग में शासक, अधिकारी, और धनवान लोग शामिल थे, जबकि निम्न वर्ग में किसान, मजदूर, और गुलाम शामिल थे।
महिलाओं की स्थितिइस सल्तनत के समय में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर थी। हालांकि, रजिया सुल्तान जैसी महिलाएं, जिन्होंने महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होकर नेतृत्व किया, भी थीं। महिलाओं को शिक्षा और सामाजिक गतिविधियों में सीमित अधिकार प्राप्त थे।
व्यापार और वाणिज्यदिल्ली सल्तनत के समय में व्यापार और वाणिज्य का विकास हुआ। सल्तनत की राजधानी दिल्ली एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गई। व्यापारिक मार्गों का विस्तार हुआ और विदेशी व्यापारियों का आगमन हुआ।
कृषिकृषि सल्तनत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी। किसानों से भूमि राजस्व वसूला जाता था। नई सिंचाई प्रणालियों और नहरों का निर्माण किया गया, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
उद्योग और शिल्पउद्योग और शिल्प का भी विकास हुआ। वस्त्र, आभूषण, और हथियार निर्माण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। हस्तशिल्प और कारीगरों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान था।
दिल्ली- सल्तनत की सामाजिक संरचना और व्यापार 

दिल्ली सल्तनत का पतन

दिल्ली सल्तनत का पतन कई कारणों से हुआ। आंतरिक संघर्ष, कमजोर शासक, और बाहरी आक्रमणों ने सल्तनत की नींव को कमजोर कर दिया।

अंतिम शासक

दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक इब्राहिम लोदी था, जो पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर के हाथों हार गया और इसी के साथ 1526 में दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया। इब्राहिम लोदी का शासनकाल संघर्षों से भरा रहा और उन्हें अपने राज्य को स्थिर रखने में कठिनाइयाँ आईं।

मुख्य कारण

सल्तनत के पतन के मुख्य कारणों में आंतरिक संघर्ष, आर्थिक समस्याएं, और बाहरी आक्रमण शामिल थे। आंतरिक संघर्षों ने सल्तनत की राजनीतिक स्थिरता को कमजोर कर दिया। आर्थिक समस्याओं और कर व्यवस्था की खराबी ने राज्य की वित्तीय स्थिति को कमजोर कर दिया। बाहरी आक्रमणों, विशेष रूप से मंगोलों और बाबर के आक्रमणों ने सल्तनत की सैन्य शक्ति को चुनौती दी।

दिल्ली सल्तनत की विरासत

दिल्ली सल्तनत की विरासत आज भी भारतीय समाज और संस्कृति में देखी जा सकती है। इसके योगदान और प्रभाव स्थायी हैं।

आधुनिक भारत पर प्रभाव

दिल्ली सल्तनत का प्रभाव आधुनिक भारत के प्रशासनिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक ढांचे में देखा जा सकता है। इसने कई स्थायी परिवर्तन लाए। सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्थाएँ और न्यायिक प्रणाली आज भी भारतीय प्रशासनिक प्रणाली का हिस्सा हैं।

विरासत की स्थिरता

दिल्ली सल्तनत की विरासत स्थायी है। इसके द्वारा स्थापित किए गए संस्थान और परंपराएं आज भी जीवित हैं और भारतीय समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सल्तनत काल की वास्तुकला, साहित्य, और सांस्कृतिक योगदान भारतीय विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं।

निष्कर्ष

कुतुबद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत और गुलाम वंश की नीव रखी थी| दिल्ली सल्तनत की स्थापना सन 1206 में हुई थी और ये सल्तनत सन 1526 तक दिल्ली की गद्दी पर काबिज़ रही| यह सल्तनत का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि इस सल्तनत ने रज़िया सुल्तान के रूप में भारत की पहली महिला भी दी और अलाउद्दीन जैसा क्रूर और तानाशाह शासक भी| इस आर्टिकल में हमने दिल्ली सल्तनत का संस्थापक, दिल्ली सल्तनत का इतिहास, दिल्ली सल्तनत के शासक, इसका भारतीय संस्कृति पर और प्रशासनिक प्रभाव और इसके पतन के कारण समझने की कोशिश की है|  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

दिल्ली सल्तनत का पहला गुलाम राजा कौन था?

दिल्ली सल्तनत का पहला गुलाम राजा कुतुबुद्दीन ऐबक था। वह मोहम्मद गोरी का गुलाम था और बाद में उसने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी। कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना की और खुद को पहला सुलतान घोषित किया। वह दिल्ली का सुलतान बनने से पहले गोरी के तहत एक सेनापति था। उसकी मृत्यु के बाद, उसके उत्तराधिकारी मुईज़ुद्दीन महमूद बने, और इस तरह दिल्ली सल्तनत का गुलाम वंश (गुलाम वंश) शुरू हुआ।

दिल्ली सल्तनत की स्थापना कब और किसने की थी?

दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। वह मोहम्मद गोरी का गुलाम था और गोरी की मृत्यु के बाद उसने दिल्ली में स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरू किया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी और पहले सुलतान के रूप में शासन किया।
इस सल्तनत के प्रारंभ में गुलाम वंश की सत्ता थी, जिसे बाद में तुर्क और अफगान शासकों ने भी बनाए रखा। दिल्ली सल्तनत का शासन 1526 तक चला, जब बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराकर इसका अंत किया और मुघल साम्राज्य की स्थापना की।

1206 और 1526 ई के बीच दिल्ली सल्तनत पर कितने राजवंशों ने शासन किया था?

गुलाम वंश
कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्ल्तुतमिश, रज़िया सुलतान, बलबन
खिलजी वंश
जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी
तुगलक वंश
गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक, फ़िरोज़ शाह तुगलक
सैयद वंश
मुहम्मद सैयद, अलावलुद्दीन सैयद
लोधी वंश
बहलुल लोधी, सिकंदर लोधी, इब्राहीम लोधी

दिल्ली सल्तनत काल की तीन प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?

दिल्ली सल्तनत काल की तीन प्रमुख विशेषताएं:
तुर्की शासन और सैन्य विस्तार: तुर्की शासकों ने भारत में सैन्य विस्तार किया और अधिकांश क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया।
धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक मिश्रण: हिंदू-मुस्लिम संस्कृति का मिश्रण हुआ, जिससे कला, वास्तुकला और साहित्य में विकास हुआ।
प्रशासनिक सुधार और कर व्यवस्था: भूमि कर व्यवस्था और प्रशासनिक सुधार किए गए, जैसे फ़िरोज़ शाह तुगलक के सुधार।

गुलाम वंश का प्रथम और अंतिम शासक कौन था?

गुलाम वंश का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था (1206-1210)।
अंतिम शासक शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के बाद रज़िया सुलतान थी (1236-1240)।

ऐसे और आर्टिकल्स पड़ने के लिए, यहाँ क्लिक करे

adhik sambandhit lekh padhane ke lie

यह भी पढ़े