Quick Summary
धर्मनिरपेक्षता किसी भी लोकतंत्र की नींव होती है। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिक, चाहे उनका धर्म कोई भी हो, समान अधिकार और न्याय प्राप्त करें। धर्मनिरपेक्षता के बिना, समाज में भेदभाव और असमानता बढ़ सकती है, जिससे लोकतंत्र कमजोर हो जाता है। यह केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक आवश्यकता है जो समाज में शांति और समरसता बनाए रखती है। इसलिए, धर्मनिरपेक्षता को समझना और अपनाना हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है, ताकि हम एक मजबूत और न्यायपूर्ण लोकतंत्र का निर्माण कर सकें।
धर्म को राज्य या सरकार से अलग रखने की अवधारणा यह सुनिश्चित करती है कि राज्य किसी भी स्थिति में अपने नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न करे। यह सिद्धांत सभी धर्मों को खुलकर जीने की आजादी देता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी सरकार धार्मिक आधारों पर अपने नागरिकों को अलग नजरिये से न देखे।
इसका मूल विचार यह है कि किसी भी राष्ट्र के संचालन और नीति निर्धारण में धर्म का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। सभी धर्म के लोगों के लिए कानून, न्याय और संविधान एक समान होने चाहिए।
राजनीतिक तटस्थता :
भारत में धर्मनिरपेक्षता का इतिहास
भारत या फिर किसी अन्य देश में भी धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक सहिष्णुता को बनाये रखने में बेहद कारगर है। दरअसल किसी भी समाज को धार्मिक रूप से सहिष्णु बनाने के लिए यह जरूरी है कि उसके सभी नागरिकों के मन में एक दूसरे धर्म के प्रति समान की भावना हो और वो दूसरे धर्म को अपने धर्म से कम ना आकें।
भारत जैसे देश जहाँ पर अलग अलग धर्मो की इतनी बड़ी आबादी रहती है, वहाँ राज्य के धर्मनिरपेक्ष ना होने पर एक दूसरे धर्म के प्रति लोगों में हीनता की भावना उत्पन्न होती और यह बहुत बड़े धार्मिक विवाद की जड़ भी हो सकती है।
लेकिन, इसके कारण ये सारे विवाद टाले जा सकते हैं। भारत में धर्मनिपेक्षता के कारण ही कई विवादित मुद्दे शांत हैं और धर्मनिरपेक्षता के कारण देश में शांति भी बनी हुई है।
धर्मनिरपेक्षता के अगर दो सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों की बात की जाए तो वे समानता और समरसता ही होंगे। दरअसल भारत के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने की वजह से ही यहाँ पर सभी धर्म के लोगों को आगे बढ़ने का समान मौका मिलता है और कानून भी सबके लिए बराबर हैं। इससे समाज में समरसता भी बढ़ती है।
सामाजिक समरसता के ऊपर देश के कई महापुरुष जैसे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने विस्तृत रूप से लिखा और बोला है। इसको जमीन पर उतारने हेतु उन्होंने कई प्रयास किएं और इसका प्रतिबिंब हमें भारतीय संविधान में साफ-साफ दिखाई पड़ता है।
भारतीय संविधान में ऐसे कई प्रावधान हैं, जो भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाते हैं तथा धार्मिक विवादों को रोकते हैं और समाज में समरसता तथा समानता लाते हैं :-
अनुच्छेद | विवरण |
---|---|
अनुच्छेद 14 | इसके तहत देश के सभी नागरिक कानून की नज़र में एक समान हैं। |
अनुच्छेद 15 | इसके तहत धर्म, जाति, नस्ल, लिंग और जन्म स्थल के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। |
अनुच्छेद 25 | इसके तहत सबको अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार है। |
अनुच्छेद 26 | ये धार्मिक संस्थाओं की स्थापना का अधिकार देता है। |
अनुच्छेद 27 | इसके तहत नागरिकों को किसी खास धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या उसे चलाने के बदले में टैक्स देने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है। |
अनुच्छेद 28 | इसके तहत राज्य की आर्थिक सहायता द्वारा चलाए जा रहे शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नही दी जा सकती है। |
अनुच्छेद 29 | इसके तहत अल्पसंख्यक समुदायों को स्वयं के शैक्षणिक संस्थान खोलने एवं उन्हें चलाने का अधिकार दिया गया है। |
धर्मनिरपेक्षता किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अति महत्वपूर्ण है। भारत में इसका महत्व हमें इन बातों से पता चलता है।
भारत जैसे देश जहां दो बड़ी आबादी वाले धर्म हिन्दू तथा इस्लाम समेत अन्य कई धर्मों को मानने वाले लोग बहुत ही बड़ी संख्या में एक दूसरे के साथ रहते हैं, वहाँ सामाजिक शांति कायम रखने में धर्मनिरपेक्षता का काफी महत्व है।
दरअसल समाज में जब विभिन्न धर्म के लोग एक साथ रह रहे हों, वैसी स्थिति में किसी के साथ भी भेदभाव या दुर्व्यवहार समाज के अंदर कटुता और अशांति फैला सकता है।
ऐसी स्थिति में धर्मनिरपेक्षता इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी भी धर्म को मानने वाले व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार या भेदभाव ना हो, जिससे समाज में शांति बनी रहती है तथा समाज आधुनिकता और प्रगति के राह पर चलते रहता है।
राजनीतिक स्थिरता किसी भी देश के विकास और प्रगति के लिए अत्यंत जरूरी है और धर्मनिरपेक्षता का महत्व इसमें भी बहुत है।
●समाज के अंदर धर्मनिरपेक्षता इस बात को सुनिश्चित करता है की दो वर्गों में विभाजन कम से कम हो और उस आधार पर राजनीति भी कम हो। जिससे देश में राजनैतिक स्थिरता आये और देश आधुनिकता तथा प्रगति के राह पर बढ़े।
●इससे अलग अलग विचारधाराओं के राजनीतिक दलों के बीच समन्वय बनाने में भी सहायता मिलती है, जिससे देश में राजनीतिक स्थिरता बेहतर होती है।
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत समानता पर ही आधारित है, इसलिए इसका समाज के अंदर सभी वर्गों के लिए समान अवसर को भी सुनिश्चित करता है।
नौकरी, व्यवसाय या अन्य किसी भी क्षेत्र में धर्मनिरपेक्षता का मतलब है राज्य का किसी भी धर्म से जुड़ा न होना। इसका उद्देश्य सभी धर्मों के प्रति समानता, तटस्थता और धार्मिक स्वतंत्रता बनाए रखना है।और धर्म के आधार पर समानता, सभी धर्म के लोगों के लिए समान अवसर पैदा करता है, इससे समाज में समरसता की भावना भी बनी रहती है और समाज आधुनिकता तथा प्रगति के राह पर आगे बढ़ता है। इस बात से भी हमें धर्मनिरपेक्षता का महत्व पता चलता है।
विशेषता | भारतीय धर्मनिरपेक्षता | पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता |
---|---|---|
परिभाषा | सभी धर्मों का समान आदर और सम्मान | राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव |
धार्मिक स्वतंत्रता | सभी धर्मों को समान अधिकार और संरक्षण | धर्म को निजी मामला माना जाता है |
राज्य का दृष्टिकोण | राज्य सभी धर्मों के प्रति निष्पक्ष रहता है | राज्य किसी भी धर्म को प्रोत्साहित नहीं करता |
धार्मिक शिक्षा | सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती | धार्मिक शिक्षा पूरी तरह से अलग |
धार्मिक हस्तक्षेप | राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है यदि यह सार्वजनिक हित में हो | राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता |
उदाहरण | भारत | फ्रांस, अमेरिका |
हम कह सकते हैं कि बिना धर्मनिरपेक्षता (Secularism) के किसी भी राष्ट्र का ज्यादा समय तक प्रगति के राह पर चलना मुश्किल है, क्यूँकि बिना धर्मनिरपेक्षता के वो राष्ट्र आपस में ही लड़ता रह जायेगा। साथ ही मानवीय आधार पर भी लोगों के बीच बराबर न्याय तथा सबको समान अधिकार देने के लिए राष्ट्र का धर्मनिरपेक्ष होना और वहाँ के नागरिकों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ना बेहद आवश्यक है।
यह एक ऐसी विचारधारा है जिसमें धर्म और धार्मिक विचारों को जानबूझकर सांसारिक मामलों से अलग रखा जाता है, यानी तटस्थ रखा जाता है। धर्मनिरपेक्षता राज्य को किसी विशेष धर्म को संरक्षण देने से रोकती है।
भारत एक बहुलवादी देश है जहाँ विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों और भाषाओं के लोग रहते हैं। इसलिए, धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि राज्य किसी एक धर्म का पक्ष नहीं लेगा, बल्कि सभी धार्मिक विचारों के प्रति सहिष्णुता अपनाएगा। इस कारण भारत में इसकी आवश्यकता है।
धर्मनिरपेक्षता (सेक्यूलरिज़्म) शब्द का पहली बार उपयोग बर्मिंघम के जॉर्ज जेकब हॉलीयाक ने 1846 में किया था, ताकि अनुभवों के माध्यम से मानव जीवन को बेहतर बनाने के तरीकों को दर्शाया जा सके।
भारत की संविधान सभा ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया। इसका मतलब है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है और हर नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता है। राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों में भेदभाव नहीं कर सकता।
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