Quick Summary
ध्रुव तारा, जिसे पोलारिस या उत्तर तारा भी कहा जाता है, आकाश में एक महत्वपूर्ण तारा है। यह तारा उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और सदैव उत्तर दिशा में इंगित करता है, जिससे यह नेविगेशन के लिए अत्यंत उपयोगी है। ध्रुव तारा लगभग 434 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है और यह वास्तव में एक बहु तारा मंडल है, जिसमें मुख्य तारा एक रोशन दानव तारा है।
इसकी स्थिरता और चमक के कारण इसे प्राचीन समय से ही समुद्री यात्रियों और खोजकर्ताओं द्वारा दिशा निर्धारण के लिए उपयोग किया जाता रहा है। ध्रुव तारा न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी इसका विशेष महत्व है। यह तारा आकाश में स्थिर रहता है, जबकि अन्य तारे अपनी स्थिति बदलते रहते हैं, जिससे यह एक प्राकृतिक कंपास के रूप में कार्य करता है।
सबसे पहले जानते हैं कि ध्रुव तारा किसे कहते हैं? ध्रुव तारे को अंग्रेजी में पोलारिस भी कहा जाता है। ये तारा, आसमान के उत्तरी गोलार्ध में स्थित एक ऐसा तारा है जो दूसरे सभी तारो में सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि ध्रुव तारे की चमक सभी तारो में सबसे ज़्यादा होती है। ध्रुव तारे की चमक दूसरे तारो की तुलना में ज्यादा स्थिर होती है। ये तारा हमेशा उत्तर दिशा में ही रहता है, इसलिए इसको पहचानना आसान हो जाता है।
ध्रुव तारा, हमेशा उत्तरी दिशा में ही स्थिर रहता है, इसलिए इस तारे का, दूसरे तारों की तुलना में विशेष महत्व है। दरअसल ध्रुव तारा हमेशा उत्तर दिशा में ही स्थिर रहता है इसलिए ये प्राचीन समय से ही समुद्री यात्रा, नेविगेशन और प्राचीन खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है, इसलिए इस तारे का प्राचीन समय से विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म में, ध्रुव तारे को लेकर कई पौराणिक कहानियां प्रचलित है, जो इस तारे के महत्व को दर्शाते है।
आकाश में लाखों-करोड़ो तारे झिलमिलाते रहते हैं लेकिन इन सबके बीच ध्रुव तारा अपनी तेज़ चमक के साथ उत्तर दिशा में रहता है और इस तरह से आसमान में ध्रुव तारा की पहचान, आसानी से की जा सकती है। ध्रुव तारा की पहचान करने का एक तरीका ये भी है कि जहां दूसरे तारों की चमक कम ज़्यादा होती रहती है, लेकिन ध्रुव तारे की चमक हर वक्त एक जैसी ही बनी रहती है।
ध्रुव तारा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के सीध में स्थित है, इसलिए इसे हमेशा उत्तर दिशा में देखा जा सकता है। यह तारा आकाश में स्थिर रहता है, जबकि अन्य तारे अपनी स्थिति बदलते रहते हैं। इसकी स्थिरता के कारण इसे नेविगेशन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
ध्रुव तारा की दिशा का पता लगाना बहुत आसान है। ध्रुव तारा, आसमान में हमेशा उत्तर दिशा में स्थित रहता है। इसके कारण इसका दिशा निर्धारण के लिए भी उपयोग किया जाता है। इसकी स्थिरता के कारण इसे प्राकृतिक कंपास कहा जाता है।
दिशाओं को 4 भागों में डिवाइड किया गया है, पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा। इसमें से उत्तर दिशा ही ध्रुव तारा की दिशा है। प्राचीन समय में इसका उपयोग समुद्र यात्रा के दौरान, दिशा निर्धारण में किया जाता था। इसे नेविगेशन में भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसके बिना दिशा का निर्धारण कठिन हो सकता है, खासकर रात के समय जब अन्य संकेत कम होते हैं।
ध्रुव तारे को अपनी विशेषताओं के वजह से प्रकृति का कंपास भी कहा जाता है। इस प्राकृतिक कम्पास ने अनगिनत यात्रियों, नाविकों और खोजकर्ताओं को सही दिशा दिखाने में मदद की है। इसकी स्थिरता और चमक इसे दिशा निर्धारण के लिए आदर्श बनाती है। इस तारे को प्राकृतिक कंपास इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये बिना किसी आधुनिक उपकरण के दिशा की सटीक जानकारी प्रदान करता है।
अब हम समझेंगे कि ध्रुव तारा कितना बड़ा है? दरअसल ध्रुव तारा का आकार और चमक इसे विशेष बनाते हैं। ध्रुव तारा, पृथ्वी से देखने पर बहुत छोटा दिखाई देता है, लेकिन ये सूर्य से भी लगभग 30 गुना बड़ा है और इसकी चमक सूर्य से भी 2200 गुना ज़्यादा होती है। पृथ्वी से इसकी दूरी लगभग 390 प्रकाश वर्ष है।
ध्रुव तारा का आकार सूर्य से लगभग 50 गुना बड़ा है, और इसकी चमक भी बहुत तेज है। यह तारा सुपरजाइंट श्रेणी का तारा है। इसकी चमक के कारण इसे आकाश में अन्य तारों में आसानी से पहचाना जा सकता है।
ध्रुव तारा पृथ्वी से लगभग 390 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। इसकी दूरी के बावजूद, यह आकाश में सबसे चमकीले तारों में से एक है। इतनी दूरी पर होने के बावजूद इसकी चमक और स्थिरता इसे विशेष बनाती है।
पृथ्वी से देखने पर ध्रुव तारा एक अकेला तारा दिखाई देता है लेकिन वास्तविकता में, ध्रुव तारा, तारों के एक ग्रुप का मुख्य तारा है। इस ग्रुप में मुख्यतः 3 तारे होते हैं। इनमें से ध्रुव तारे को Polaris A कहा जाता है, जबकि Polaris B और Polaris Ab इसके साथी तारे हैं। यही दोनों साथी तारे, ध्रुव तारे की चमक और उसको स्थिर रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ध्रुव तारे से किस दिशा का ज्ञान होता है? ध्रुव तारा, जिसे पोलारिस भी कहा जाता है, सदैव उत्तर दिशा में इंगित करता है। यह तारा उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और इसकी स्थिरता के कारण इसे नेविगेशन के लिए उपयोग किया जाता है। ध्रुव तारे से किस दिशा का ज्ञान होता है, यह जानना समुद्री यात्रियों और खोजकर्ताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ध्रुव तारा की खगोलीय स्थिरता और दिशा निर्धारण की क्षमता इसे खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण बनाती है। यह तारा खगोलशास्त्रियों के लिए समय और स्थान का निर्धारण करने में सहायक होता है।
ध्रुव तारा की स्थिति आकाश में स्थिर रहती है, जिससे यह खगोलीय अध्ययन और नेविगेशन के लिए आदर्श बनता है। इसकी स्थिरता का कारण पृथ्वी की धुरी के सीध में होना है। इस स्थिरता के कारण खगोलशास्त्री इसे अपनी मापों और अध्ययनों के लिए एक स्थिर बिंदु के रूप में उपयोग करते हैं।
खगोलशास्त्र में ध्रुव तारा का उपयोग तारों की स्थिति और गति का अध्ययन करने में किया जाता है। यह तारा विभिन्न खगोलीय उपकरणों के लिए एक स्थिर संदर्भ बिंदु के रूप में कार्य करता है। इसके अलावा, ध्रुव तारा का उपयोग खगोलीय गणनाओं और अनुसंधानों में भी महत्वपूर्ण होता है।
ध्रुव तारा का उपयोग समय और स्थान का निर्धारण करने के लिए भी किया जाता है। इसका स्थिर स्थान नेविगेशन और खगोलशास्त्र में सटीक मापन करने में मदद करता है। इसके स्थिरता के कारण इसे समय और स्थान के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण बिंदु माना जाता है।
भारतीय संस्कृति में ध्रुव तारा का का वर्णन पौराणिक कथाओ में भी देखने को मिलता है और ये बात इस तारे का भारतीय संस्कृति, खगोल और ज्योतिष में इसके महत्त्व को दर्शाती है। भारत में प्राचीन काल में ध्रुव तारे को एक ऐसे बालक की तरह दिखाया गया है जो ईस्वर की खोज में कई सालों तक तपस्या करता है साथ ही इसका उपयोग गणना, ज्योतिषी और यात्रा में दिशा सूचक की तरह उपयोग किया जाता रहा है। ध्रुव तारे का वर्णन भारत में पूजा-पाठ में भी किया जाता रहा है।
अन्य संस्कृतियों में भी ध्रुव तारा को दिशा-निर्देशक और महत्वपूर्ण तारे के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह तारा विभिन्न मिथकों और कहानियों में प्रमुख भूमिका निभाता है। मिस्र, ग्रीस, और नॉर्स जैसी प्राचीन सभ्यताओं में भी ध्रुव तारा महत्वपूर्ण वर्णन देखने को मिलता है।
दुनिया भर की अनेक पौराणिक कथाओं में ध्रुव तारें की किवदंतिया मिलती है। एक भारतीय पौराणिक कथा में ध्रुव तारें को महान तपस्वी दिखाया गया है। इसके अलावा नॉर्स, ग्रीक, चीनी और मिस्र की पौराणिक कथाओं में भी ध्रुव तारें की कहानियां देखने को मिलती है।
भारत में ध्रुव तारे की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। प्राचीन समय में, राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं – सुनीति और सुरुचि। सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र थे। एक दिन ध्रुव ने अपने पिता को उत्तम को गोद में बिठाते देखा और वह भी बैठना चाहता था। लेकिन सुरुचि ने उसे रोका और कहा कि उसे भगवान विष्णु की आराधना करनी होगी। ध्रुव बहुत दुखी हुआ और माँ सुनीति के पास गया। माँ ने उसे विष्णु भगवान की आराधना की सलाह दी। ध्रुव ने कठोर तपस्या की और भगवान विष्णु ने उसे आकाश में चमकता तारा बनने का वरदान दिया।
नॉर्स पौराणिक कथाओं में ध्रुव तारे को “ह्राइड्रश-जोत” कहा जाता था, जिसका मतलब होता है “दिशा बताने वाला तारा”। नॉर्स के समुद्री यात्री इस तारे का उपयोग अपनी लंबी समुद्री यात्राओं में दिशा जानने के लिए करते थे। उन्होंने देखा कि यह तारा रात के आकाश में हमेशा एक ही स्थान पर रहता है, जिससे यह उनका भरोसेमंद मार्गदर्शक बन गया। उनके लिए यह तारा सिर्फ दिशा दिखाने वाला नहीं बल्कि एक पवित्र तारा भी था जो उन्हें सुरक्षित रखता था।
ग्रीक कहानियों में ध्रुव तारे की कहानी कलिस्टो और उनके पुत्र आर्कस से जुड़ी है। कलिस्टो ज़्यूस की प्रेमिका थी, लेकिन ज़्यूस की पत्नी हेरा ने ईर्ष्या में आकर उसे भालू बना दिया। कई साल बाद, कलिस्टो का पुत्र आर्कस बड़ा होकर शिकारी बन गया। एक दिन, उसने अपनी माँ को भालू के रूप में देखा और उसे मारने की कोशिश की। ज़्यूस ने इस घटना को रोकने के लिए दोनों को आकाश में बदल दिया। कलिस्टो उरसा मेजर और आर्कस उरसा माइनर बन गए। उरसा माइनर का सबसे चमकीला तारा पोलारिस है, जो हमेशा एक ही स्थान पर रहता है और दिशा दिखाने में मदद करता है।
मिस्र की प्राचीन सभ्यता में ध्रुव तारे को देवताओं का संदेशवाहक माना जाता था। इसे “दिशा बताने वाला तारा” और सिरियस तारे के साथ जोड़ा जाता था, जो एक महत्वपूर्ण तारा था। मिस्र के पिरामिडों का निर्माण इस प्रकार से किया गया था कि वे ध्रुव तारे की दिशा में संकेत करें। यह पिरामिड देवताओं के साथ संबंध का प्रतीक था। ध्रुव तारे की स्थिरता मिस्रवासियों के लिए आकाशीय अनंतता और दिव्यता का प्रतीक थी।
चीनी कहानियों में ध्रुव तारे को बियाडो (Beidou) कहा जाता है, जिसका मतलब है “बड़ा खच्चर”। यह तारा दिशा बताने वाला माना जाता था। प्राचीन चीनी खगोलशास्त्रियों ने ध्रुव तारे का उपयोग दिशा जानने और आकाशीय मानचित्र बनाने में किया। इसे आठ अमर देवी-देवताओं के साथ जोड़ा जाता था, जो आकाशीय बादलों के स्वामी माने जाते थे। बियाडो तारे की स्थिरता चीनी लोगों के लिए आकाशीय सत्ता और स्थिरता का प्रतीक थी, जो उन्हें जीवन में संतुलन और दिशा प्रदान करती थी।
इनुइट समुदाय के लिए ध्रुव तारा एक महत्वपूर्ण दिशा बताने वाला साधन था। आर्कटिक की बर्फीली जमीन में, यह तारा उनके लिए भरोसेमंद मार्गदर्शक था। इसे वे “ननुक” कहते थे, जो आकाशीय भालू का प्रतीक है। इस तारे का उपयोग वे अपनी यात्रा और शिकार के दौरान दिशा जानने के लिए करते थे। ननुक उनके लिए सुरक्षा और दिशा का प्रतीक था, जो उनके जीवन को आसान बनाता था।
ध्रुव तारा न केवल खगोलीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी अत्यधिक है। यह तारा सदियों से नेविगेशन और दिशा निर्धारण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। इसकी स्थिरता और चमक ने इसे एक प्राकृतिक कंपास के रूप में स्थापित किया है, जो आज भी वैज्ञानिक और आम जनता दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। ध्रुव तारा हमें यह भी याद दिलाता है कि आकाश में स्थिरता और परिवर्तन दोनों का संतुलन कितना महत्वपूर्ण है।
ध्रुव तारा, जिसे पोलारिस भी कहा जाता है, उत्तरी गोलार्ध में पूरे साल रात के समय देखा जा सकता है। यह तारा सदैव उत्तर दिशा में स्थिर रहता है और रात के किसी भी समय इसे देखा जा सकता है। इसकी स्थिरता के कारण इसे नेविगेशन के लिए उपयोग किया जाता है, खासकर समुद्री यात्राओं और रेगिस्तानी यात्राओं में।
ध्रुव तारा, जिसे पोलारिस भी कहा जाता है, उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और हमेशा उत्तर दिशा में स्थिर रहता है। इसे उरसा माइनर तारामंडल के अंतिम तारे के रूप में पहचाना जा सकता है।
ध्रुव तारा, जिसे पोलारिस भी कहा जाता है, का नाम ध्रुव नामक बालक के नाम पर रखा गया है। ध्रुव राजा उत्तानपाद और रानी सुनीति का पुत्र था। ध्रुव ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उसे आकाश में एक स्थायी स्थान प्राप्त हुआ और वह ध्रुव तारा के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
ध्रुव तारा, जिसे पोलारिस भी कहा जाता है, उत्तरी गोलार्ध में स्थित है और हमेशा उत्तर दिशा में दिखाई देता है। यह तारा उत्तरी ध्रुव के सीध में होता है और रात के समय इसे आसानी से देखा जा सकता है। इसकी स्थिरता के कारण इसे नेविगेशन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
ध्रुव तारा, जिसे पोलारिस भी कहा जाता है, को सप्तऋषि मंडल की मदद से पहचाना जा सकता है। सप्तऋषि मंडल के अंतिम दो तारों को जोड़कर सीधी रेखा बनाएं, जो ध्रुव तारे की ओर इशारा करेगी। यह तारा स्थिर रहता है।
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