जलियांवाला बाग हत्याकांड

जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919: Jallianwala Bagh Hatyakand

Published on February 12, 2025
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Quick Summary

  • 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार।
  • ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेज़ी फौज ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाईं।
  • इस हत्याकांड में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
  • यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।

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Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.

जलियांवाला बाग हत्याकांड(Jallianwala Bagh Hatyakand), 1919 की एक दर्दनाक घटना थी जो भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में घटी। इस घटना में ब्रिटिश सैनिकों ने अमनवादी भारतीयों को जलियांवाला बाग में एकत्रित किया और उनपर बेरहमी से गोलियाँ चलाई। कई सैकड़ों लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और हजारों को घायल किया गया। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित करती है और अन्याय के खिलाफ लोगों में एक चेतना जागी।

जलियांवाला बाग कहां स्थित है?

अगर आपको नहीं पता कि जलियांवाला बाग कहां स्थित है, तो बता दें जलियांवाला बाग अमृतसर शहर में स्थित है, जो भारत के पंजाब राज्य में है। यह अमृतसर शहर के मध्य में सिख तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर परिसर के पास स्थित है। इसका सटीक पता जलियाँवाला बाग, स्वर्ण मंदिर रोड, अमृतसर, पंजाब, भारत है।

जलियांवाला बाग का भूगोल

जलियांवाला बाग कहां स्थित है इसका भूगोल के बारे में बात करें तो यह एक सार्वजनिक उद्यान है जो लगभग 6.5 एकड़ (लगभग 2.63 हेक्टेयर) क्षेत्र में फैला हुआ है। यह अमृतसर के मध्य में प्रतिष्ठित सिख तीर्थ स्थल स्वर्ण मंदिर परिसर के पास स्थित है। यह उद्यान चारों ओर से ऊँची दीवारों से घिरा हुआ है, जिसमें केवल कुछ छोटे प्रवेश द्वार हैं, जिनकी वहाँ घटित दुखद घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ | When did the Jallianwala Bagh Hatyakand take place?

  • घटना की तिथि 13 अप्रैल 1919 थी।
  • स्थान जलियांवाला बाग, अमृतसर, पंजाब था, जहाँ यह घटना घटी।
  • इस दिन ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर के आदेश पर ब्रिटिश सैनिकों ने शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित भारतीय नागरिकों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं।
  • यह सभा रॉलेट एक्ट के विरोध में थी, लेकिन गोलीबारी से पहले किसी भी प्रकार की चेतावनी नहीं दी गई।
  • इस नरसंहार में 1,000 से अधिक लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए।
  • यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसने पूरे देश को झकझोर दिया और ब्रिटिश शासन की क्रूरता का प्रतीक बन गई।

जलियांवाला बाग हत्याकांड का घटनाक्रम

तिथिघटना
13 अप्रैल, 1919जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ। ब्रिटिश सैनिकों ने रौलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए एकत्रित निहत्थे नागरिकों पर गोलियां चलाईं। सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए।
1919 (अप्रैल-मई)पूरे भारत और विदेशों में जन आक्रोश फैल गया।
जुलाई 1919हत्याकांड की जांच के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा हंटर आयोग नियुक्त किया गया।
1920गांधी ने नरसंहार के जवाब में आंशिक रूप से असहयोग आंदोलन शुरू किया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का घटनाक्रम

जलियांवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ था?

कई लोगों को नहीं पता होगा कि जलियांवाला बाग हत्याकांड(Jallianwala Bagh Hatyakand) क्यों हुआ था, तो बता दे कि इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार माना जाता है। इन कारणों के बारे में आगे विस्तार से जानेंगे।

पृष्ठभूमि:

  • महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ।
  • 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लिया।
  • इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिये निकले थे।
  • भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू किया और पंजाब में कानून-व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई।

घटना का दिन:

  • 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में जमा हो गई।
  • ब्रिगेडियर- जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा।
  • सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चला दीं, जिसमें 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।

प्रमुख बिंदु:

  • जलियांवाला बाग हत्याकांड(Jallianwala Bagh Hatyakand) 13 अप्रैल 1919 को हुआ, जब जनरल डायर ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हो रहे विरोध को कुचलने के लिए गोलीबारी का आदेश दिया।
  • इस घटना का कारण रॉलेट एक्ट था, जिसे ब्रिटिश शासन ने 1919 में भारतीयों के खिलाफ लागू किया था। यह एक्ट भारतीयों को बिना मुकदमे के गिरफ्तार करने और किसी भी प्रकार के विरोध को दबाने का अधिकार ब्रिटिश अधिकारियों को देता था।
  • जब अमृतसर में विरोध प्रदर्शन हुआ, तो हजारों लोग जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए।
  • जनरल डायर ने सभा में मौजूद लोगों से कोई चेतावनी दिए बिना गोलियां चलवायीं, जिससे सैकड़ों लोग मारे गए और अनेक घायल हुए।
  • इस हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूत किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गुस्से की लहर दौड़ा दी।

राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ:

जलियांवाला बाग हत्याकांड(Jallianwala Bagh Hatyakand) को समझने के लिए राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ को समझना जरूरी है कि यह दुखद घटना क्यों हुई।

  1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन:
    • भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था, जिसे पिछली शताब्दियों में विजय और कूटनीति के संयोजन के माध्यम से स्थापित किया गया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक, भारत ब्रिटिश साम्राज्य का “मुकुट का रत्न” था, जिसने इसके धन और संसाधनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  2. भारतीय राष्ट्रवाद का उदय:
    • 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, भारतीय राष्ट्रवाद ने गति पकड़नी शुरू कर दी। शिक्षा, लोकतंत्र और स्वशासन के पश्चिमी विचारों के संपर्क और बढ़ते मध्यम वर्ग सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होकर, भारतीयों ने शासन और आत्मनिर्णय में अधिक भागीदारी की मांग की।
  3. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव:
    • प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में भारत की भागीदारी के महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक परिणाम थे। भारतीयों ने युद्ध के प्रयास में सैनिकों, संसाधनों और धन का योगदान दिया था, बदले में अधिक राजनीतिक रियायतों की उम्मीद में। हालांकि, युद्ध के बाद की अवधि में निराशा देखी गई क्योंकि अंग्रेजों ने इन उम्मीदों को पूरा नहीं किया।
  4. सविनय अवज्ञा और विरोध:
    • रॉलेट एक्ट के जवाब में, पूरे भारत में व्यापक विरोध और हड़तालें भड़क उठीं। विरोध का केंद्र अमृतसर, असंतोष का केंद्र बन गया। विरोध केवल रॉलेट एक्ट के बारे में नहीं था, बल्कि आर्थिक शोषण, नस्लीय भेदभाव और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी सहित ब्रिटिश शासन के खिलाफ था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड किसने किया था?

जलियांवाला बाग हत्याकांड को ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने अंजाम दिया था। 13 अप्रैल 1919 को, जब अमृतसर में हजारों भारतीय शांतिपूर्वक जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे, तो डायर ने बिना किसी चेतावनी के ब्रिटिश सैनिकों को आदेश दिया कि वे बाग में गोलियां चलाएं। इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए। डायर का उद्देश्य भारतीयों को डराना और ब्रिटिश शासन के खिलाफ किसी भी विरोध को दबाना था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के परिणाम एवं प्रतिक्रिया

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पूरा देश आक्रोश में आ गया, जिसे शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार कई तरह के समझौते करने के लिए तैयार हो गए। जलियांवाला बाग हत्याकांड के अनेक परिणाम हुए, जो कुछ इस तरह से हैं।

हत्याकांड के तात्कालिक परिणाम

  1. जीवन की हानि और चोटें:
    • नरसंहार का तत्काल परिणाम जीवन की दुखद हानि थी। सैकड़ों निहत्थे पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए, और कई अन्य घायल हुए। इससे स्थानीय आबादी और प्रभावित परिवारों में सदमा और शोक का माहौल फैल गया।
  2. गुस्सा और आक्रोश:
    • इस नरसंहार ने न केवल पंजाब में बल्कि पूरे भारत में गुस्सा और आक्रोश पैदा किया। ब्रिटिश प्रतिक्रिया की क्रूरता और निहत्थे नागरिकों पर अंधाधुंध गोलीबारी ने भारतीय लोगों और दुनिया की अंतरात्मा को झकझोर दिया।
  3. मार्शल लॉ लागू करना:
    • नरसंहार के बाद, अमृतसर और पंजाब के अन्य हिस्सों में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। इससे तनाव और बढ़ गया और भारतीयों में अन्याय की भावना और बढ़ गई।
  4. राष्ट्रवादी आंदोलन को गति:
    • नरसंहार ने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन को गति दी। इसने पूरे भारत में व्यापक विरोध, हड़ताल और सविनय अवज्ञा को जन्म दिया।
  5. त्यागपत्र और आलोचना:
    • ब्रिटिश कार्रवाइयों की अंतरराष्ट्रीय आलोचना हुई। ब्रिटेन में ही, जनरल डायर के कार्यों का समर्थन करने वालों और उनकी निंदा करने वालों के बीच मतभेद था।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव एवं प्रतिक्रिया

  1. तीव्र राष्ट्रवाद:
    • इसने विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके संघर्ष में एकजुट किया। यह घटना स्वतंत्रता के लिए एक रैली का नारा बन गई और राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा दिया।
  2. ब्रिटिश शासन से विश्वास उठना:
    • इस हत्याकांड ने ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों के जो भी बचे-खुचे विश्वास को खत्म कर दिया।
  3. राजनीतिक रणनीतियों में बदलाव:
    • भारतीय नेता और संगठन, जैसे कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, विरोध और प्रतिरोध के अधिक कट्टरपंथी रूपों की ओर बढ़ गए। असहयोग आंदोलनों ने गति पकड़ी, जिससे याचिकाओं और अपीलों से हटकर अधिक टकरावपूर्ण रणनीति अपनाई गई।
  4. विधायी परिवर्तन:
    • प्रारंभिक प्रतिरोध के बावजूद, नरसंहार ने अंततः कुछ विधायी परिवर्तनों को जन्म दिया। 1919 के भारत सरकार अधिनियम, जिसे मांटेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार के रूप में भी जाना जाता है, ने सीमित प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत की और विधायी निकायों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद क्या परिवर्तन हुआ?

जलियांवाला बाग हत्याकांड के पश्चात् कई बदलाव हुए। इन बदलाव के बारे में आगे विस्तार से बता रहे हैं।

राष्ट्रीय आंदोलन पर प्रभाव

  1. एकीकृत प्रतिरोध:
    • जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के लिए उत्प्रेरक का काम किया। इसने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की मांग में विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों और सामाजिक स्तरों के भारतीयों को एकजुट किया।
  2. नेतृत्व और रणनीति में बदलाव:
    • इस हत्याकांड के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राष्ट्रवादी संगठनों के नेतृत्व में बदलाव आया। महात्मा गांधी, जिन्होंने पहले अंग्रेजों के साथ सहयोग की वकालत की थी, ने अब असहयोग और सविनय अवज्ञा जैसी अधिक मुखर रणनीति अपनाई। जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे अन्य नेता भी पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।
  3. विरोध और आंदोलन:
    • नरसंहार के तुरंत बाद, पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। हड़तालें, ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थानों का बहिष्कार किया गया। इस हत्याकांड ने 1920 में गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन को बढ़ावा दिया।
  4. अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और समर्थन:
    • इस हत्याकांड ने अंतर्राष्ट्रीय निंदा को आकर्षित किया और वैश्विक मंच पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ओर ध्यान आकर्षित किया।

ब्रिटिश शासन की नीतियों में परिवर्तन

  1. भारत सरकार अधिनियम (जिसे मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के रूप में भी जाना जाता है) पारित किया गया, जिसने कुछ सीमित सुधार पेश किए। इनमें विधान परिषदों में भारतीयों का बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व और प्रांतीय स्वायत्तता की एक हद शामिल थी।
  2. कुछ सुधारों के बावजूद, बढ़ती राष्ट्रवादी भावना के जवाब में ब्रिटिश प्रशासन ने दमन को भी तेज कर दिया। निगरानी बढ़ा दी गई, राष्ट्रवादी नेताओं की गिरफ्तारी की गई और राष्ट्रवादी प्रकाशनों पर सेंसरशिप लगा दी गई।
  3. इस विवाद ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नैतिकता और स्थिरता के बारे में बहस को बढ़ावा दिया।
  4. जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश सरकार को भारत पर शासन करने के अपने दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर किया। इसने भारतीय जनमत को अलग-थलग करने के खतरों को उजागर किया और स्वशासन के लिए भारतीय आकांक्षाओं के प्रति अधिक सूक्ष्म और उत्तरदायी नीति की आवश्यकता को रेखांकित किया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच

  1. जलियांवाला बाग हत्याकांड की जाँच:
    • 1919 में, ब्रिटिश भारत सरकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए एडविन मांटेग्यू के नेतृत्व में विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। इस आयोग को सामान्यतः ‘हंटर कमीशन’ के नाम से जाना जाता है।
  2. आयोग का आधिकारिक नाम और उद्देश्य:
    • 14 अक्टूबर, 1919 को गठित आयोग का आधिकारिक नाम ‘डिस्ऑर्डर इंक्वायरी कमेटी’ था। इसका मुख्य उद्देश्य बॉम्बे, दिल्ली और पंजाब में हुई हिंसात्मक घटनाओं के कारणों की जांच करना और उनके समाधान के उपाय सुझाना था।
  3. भारतीय सदस्यों की नियुक्ति:
    • हंटर आयोग में तीन भारतीय सदस्य भी शामिल थे:
      • बॉम्बे विश्वविद्यालय के उप कुलपति और बॉम्बे उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सर चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड़।
      • संयुक्त प्रांत की विधायी परिषद के सदस्य और अधिवक्ता पंडित जगत नारायण।
      • ग्वालियर राज्य के अधिवक्ता सरदार साहिबजादा सुल्तान अहमद खान।
  4. आयोग की रिपोर्ट और सिफारिशें:
    • हंटर आयोग ने ब्रिटिश सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें जनरल डायर के कृत्यों की निंदा की गई थी, लेकिन उसकी खिलाफ किसी भी दंडात्मक या अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश नहीं की गई थी।
  5. क्षतिपूर्ति अधिनियम और आलोचना:
    • ब्रिटिश सरकार ने अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ‘क्षतिपूर्ति अधिनियम’ (इंडेमनिटी एक्ट) पारित किया, जिसे ‘वाइट वाशिंग बिल’ के नाम से भी जाना गया। मोतीलाल नेहरू और अन्य नेताओं ने इस अधिनियम की कड़ी आलोचना की थी।

जलियांवाला बाग एक्सप्रेस

जलियांवाला बाग हत्याकांड की शहादत को लोगों में जीवित रखने के लिए इस नाम से एक्सप्रेस ट्रेन भी शुरू किया, जिससे कि आजादी की लड़ाई में कुर्बानी देने वाले शहीदों को याद रखा जा सकता है।

ट्रेन का परिचय:

जलियांवाला बाग एक्सप्रेस भारत की एक महत्वपूर्ण ट्रेन है, जिसका नाम ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान 1919 में अमृतसर में हुए कुख्यात जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम पर रखा गया है।

इसकी शुरूआत और उद्घाटन की सटीक तारीख अलग-अलग हो सकती है, लेकिन आम तौर पर ऐसी ट्रेनें ऐतिहासिक घटना से संबंधित महत्वपूर्ण वर्षगांठ या घटनाओं पर शुरू की जाती हैं।

इसका महत्व और विशेषताएं:

  1. प्रतीकात्मकता: जलियांवाला बाग एक्सप्रेस भारतीयों के लिए बहुत प्रतीकात्मक महत्व रखती है। यह नरसंहार में मारे गए शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में और औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों की याद दिलाती है।
  2. मार्ग: यह ट्रेन संभवतः ऐसे मार्ग पर चलती है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित महत्वपूर्ण स्थानों को जोड़ती है। यह अमृतसर से शुरू होती है या वहां से गुजरती है।
  3. शैक्षिक और स्मारकीय मूल्य: जलियांवाला बाग एक्सप्रेस में ट्रेन के अंदर शैक्षिक प्रदर्शन, कलाकृतियाँ या प्रदर्शनियां हैं जो यात्रियों को जलियांवाला बाग हत्याकांड के इतिहास और महत्व के बारे में बताती हैं।
  4. सांस्कृतिक प्रभाव: परिवहन के साधन के रूप में अपने व्यावहारिक कार्य से परे, यह ट्रेन यात्रियों के बीच सांस्कृतिक जागरूकता और राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देती है।

जलियांवाला बाग हत्याकांड का ऐतिहासिक महत्व

जलियांवाला बाग हत्याकांड, एक सदी से भी पहले हुआ था, लेकिन इसका भारतीय इतिहास और इसकी राष्ट्रीय चेतना पर गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा है।

हत्याकांड का दीर्घकालिक प्रभाव

इस हत्याकांड ने पूरे भारत में व्यापक आक्रोश और आक्रोश को जन्म दिया। इसने विभिन्न पृष्ठभूमियों के भारतीयों को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में एकजुट किया। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेताओं ने इस हत्याकांड की कड़ी निंदा की और इसका इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने के लिए किया।

निष्कर्ष

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के स्वतंत्रता संग्राम और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अन्याय का प्रतीक है। 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब के अमृतसर में हुई इस दुखद घटना के दूरगामी परिणाम हुए, जिसने भारतीय इतिहास और उसके लोगों की सामूहिक चेतना की दिशा को आकार दिया।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

जलियांवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में “डायर” का पूरा नाम क्या था?

“डायर” का पूरा नाम कर्नल रेजिनाल्ड डायर था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय कितने गोलियों की बरसात हुई थी?

कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने बौद्ध आचार्यों से संपर्क किया जैसे महाकश्यप और अन्य प्रमुख बौद्ध विद्वान, जो धर्म की शिक्षाओं को फैलाने में मददगार साबित हुए।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों की स्मृति में कौन सी भारतीय ऐतिहासिक फिल्म बनाई गई?

जलियांवाला बाग हत्याकांड के शहीदों की स्मृति में भारतीय फिल्म “Jagriti” बनाई गई, जो इस घटना को लेकर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रस्तुति थी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद किस भारतीय नेता ने “The Indian Struggle” नामक किताब लिखी, जिसमें इस घटना का उल्लेख किया गया?

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय नेता सुभाष चंद्र बोस ने “The Indian Struggle” नामक किताब लिखी, जिसमें इस घटना का उल्लेख किया गया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद किस भारतीय नेता ने ‘नेशनलिस्ट’ की भूमिका निभाई?

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद लाला लाजपत राय ने ‘नेशनलिस्ट’ की भूमिका निभाई और ब्रिटिश शासन की आलोचना की।

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