कारगिल युद्ध

कारगिल युद्ध के हीरो: इतिहास, कारण और प्रभाव

Published on February 13, 2025
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Quick Summary

  • कारगिल युद्ध 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था।
  • यह युद्ध कारगिल जिले (जम्मू-कश्मीर) में हुआ, जहां पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी।
  • भारत ने ऑपरेशन विजय के तहत पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकेला।
  • युद्ध में भारत ने सैन्य विजय प्राप्त की, और कई सैनिक शहीद हुए।
  • कारगिल युद्ध भारतीय सैन्य इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

Table of Contents

Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.

कारगिल युद्ध, जो 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ, भारतीय सेना की वीरता, साहस और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस युद्ध में पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र के कश्मीर के कारगिल जिले में घुसपैठ की, जिसका मुकाबला करने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। यह संघर्ष सिर्फ एक सैन्य अभियान नहीं था, बल्कि देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक लड़ाई थी।

इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने कठिन और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में अपनी जान की परवाह किए बिना अपने दुश्मनों का सामना किया। कारगिल युद्ध ने भारतीय सेना की ताकत और रणनीतिक कौशल को दुनिया के सामने लाया, और आज भी यह युद्ध भारतीय इतिहास में शौर्य और बलिदान का प्रतीक बनकर जीवित है।

कारगिल युद्ध कब हुआ?

कारगिल युद्ध 3 मई 1999 को भारत के जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में शुरू हुआ था। याक की खोज में निकले बालटिक के ताशी ने ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान के सैनिकों को बंकर बनाते देखा और इसकी सूचना भारतीय सेना को दी।

5 मई 1999 को भारतीय सेना के जवान गश्त के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पकड़े गए और मारे गए। भारतीय सीमा में कब्जा की गई जगहों को वापस पाने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया गया। 26 मई 1999 को भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर शुरू किया, लेकिन बंकरों के कारण यह सफल नहीं हो पाया।भारतीय सेना ने तालोलेंग और प्वॉइंट 5140 पर कब्जा किया। 11 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने युद्ध रोकने की घोषणा की और 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हो गया।

कारगिल युद्ध क्यों हुआ?

  • पाकिस्तान की घुसपैठ: पाकिस्तान ने भारत के जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में घुसपैठ की थी, जिसमें पाकिस्तानी सैनिक और कश्मीरी उग्रवादी शामिल थे।
  • लाहौर समझौते का उल्लंघन: फरवरी 1999 में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ के बीच लाहौर समझौता हुआ था। इसके बाद, पाकिस्तान ने समझौते के बावजूद कारगिल में घुसपैठ कर दी।
  • सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा: पाकिस्तान का उद्देश्य सियाचिन ग्लेशियर पर भारत के कब्जे को कमजोर करना था, क्योंकि वहां से महत्वपूर्ण आपूर्ति लाइनें जाती थीं।
  • उच्च सैन्य रणनीति: पाकिस्तान ने भारत को रणनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए कश्मीर में ऊंची चोटियों पर कब्जा किया था, ताकि भारतीय सेना की सप्लाई लम्बी और कठिन हो जाए।
  • भारत की जवाबी कार्रवाई: भारत ने पाकिस्तान की इस घुसपैठ का प्रतिकार करते हुए ऑपरेशन विजय चलाया और धीरे-धीरे पाकिस्तानी सैनिकों को बाहर खदेड़ा।

कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि

इस लड़ाई की शुरुआत 3 मई 1999 को ही हो गई थी जब पाकिस्तान ने कारगिल की ऊंची पहाडि़यों पर 5 हजार से भी ज्यादा सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। भारत सरकार को जब घुसपैठ की जानकारी मिली तब पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया गया। पाकिस्तान ने दावा किया था कि इस लड़ाई में लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेजों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी।

पाकिस्तान क्यों करना चाहता था कारगिल पर कब्ज़ा?

पाकिस्तान का मकसद यही था कि भारत की सुदूर उत्तर की टिप पर सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ लाइन NH 1 D को किसी तरह काट कर उस पर नियंत्रण किया जाए। पाकिस्तानी सैनिक उन पहाड़ियों पर आना चाहते थे जहां से वे लद्दाख की ओर जाने वाली रसद के जाने वाले काफिलों की आवाजाही को रोक दें और भारत को मजबूर हो कर सियाचिन छोड़ना पड़े। दरअसल, मुशर्रफ को यह बात बहुत बुरी लगी थी कि भारत ने 1984 में सियाचिन पर कब्जा कर लिया था। उस समय वह पाकिस्तान की कमांडो फोर्स में मेजर हुआ करते थे। उन्होंने कई बार उस जगह को खाली करवाने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाए।

कारगिल युद्ध के हीरो

कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को हराया था, और इस संघर्ष में कई भारतीय सैनिक शहीद हुए। भारतीय जवानों ने अपने खून का आखिरी कतरा देश के लिए अर्पित कर दिया। इस युद्ध के कई हीरो थे, जिनकी बहादुरी के कारण भारत ने अपने दुश्मनों को भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ दिया।

1. कैप्टन विक्रम बत्रा

कैप्टन विक्रम बत्रा को प्वाइंट 5140 और प्वाइंट 4875 पर दुश्मन की स्थिति पर हमला करने का कार्य सौंपा गया था। उन्होंने पहले प्वाइंट 5140 पर कब्जा किया और फिर प्वाइंट 4875 पर दुश्मन से भयंकर संघर्ष के बाद कब्जा किया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और संघर्ष जारी रखा, जिसके कारण उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनका “शेर शाह” का नाम से प्रसिद्ध होने का कारण उनका अदम्य साहस था।

2. ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव

योगेन्द्र सिंह यादव ने टाइगर हिल पर हमले के दौरान अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन किया। वह युद्ध के मैदान पर अकेले दुश्मन के बंकरों की तरफ बढ़े, और कई दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। उन्हें 15 गोलियां लगीं, फिर भी वह अपनी मुहिम में लगे रहे। उनकी वीरता ने उन्हें सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र प्राप्त करने वाला सैनिक बना दिया।

3. लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे ने 3 जुलाई 1999 को खालूबार रिज पर हमले का नेतृत्व किया। अपनी कंपनी पर दुश्मन की गोलाबारी को झेलते हुए, उन्होंने अकेले ही चार दुश्मन सैनिकों को मारा और दो बंकरों को नष्ट किया। घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने सैनिकों के साथ बंकर को खाली किया और चौकी पर कब्जा किया। उनके अद्वितीय साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया।

4. लेफ्टिनेंट बलवान सिंह

लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को 3 जुलाई 1999 को टाइगर हिल पर हमला करने की जिम्मेदारी दी गई थी। यह इलाका 16,500 फीट की ऊंचाई पर बर्फ से ढका हुआ था और दुश्मन की गोलीबारी से भरा हुआ था। उन्होंने अपने सैनिकों के साथ 12 घंटे से ज्यादा समय तक कड़ी लड़ाई लड़ी और अंत में टाइगर हिल की चोटी पर विजय प्राप्त की। उनकी वीरता और साहस को देखते हुए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

5. मेजर राजेश सिंह अधिकारी

मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने 30 मई 1999 को टोलोलिंग की चोटी पर कब्जा करने के लिए साहसिक कदम उठाया। दुश्मन की मजबूत स्थिति के बावजूद, उन्होंने अपनी टीम का नेतृत्व किया और कड़ी संघर्ष के बाद दुश्मन के बंकरों को नष्ट किया। हालांकि बाद में वह अपनी गंभीर चोटों के कारण शहीद हो गए, लेकिन उनकी वीरता और नेतृत्व के लिए उन्हें महावीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।

6. राइफलमैन संजय कुमार

राइफलमैन संजय कुमार ने 4 जुलाई 1999 को मुश्कोह घाटी के प्वाइंट 4875 पर हमला करने वाले स्तंभ का नेतृत्व किया। दुश्मन के बंकर से होते हुए, उन्होंने न सिर्फ दुश्मन को हराया, बल्कि गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाया और उन्हें जीत दिलाई। उनका साहस और समर्पण उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया।

इन वीरों ने अपनी अदम्य साहस, नेतृत्व और बलिदान से भारत को गौरवान्वित किया और उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

परमवीर चक्र और अन्य वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाले सैनिक

इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। कारगिल युद्ध के हीरो की बहादुरी, साहस और जुनून की कहानियां जीवन से भी बड़ी हैं। कारगिल युद्ध के वीर सैनिकों को परमवीर चक्र और अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

  • कारगिल युद्ध के हीरो और जाबांज सैनिक कैप्टन विक्रम बत्रा और लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
  • वहीं राइफल मैन संजय कुमार और नायाब सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
  • इसके अलावा कारगिल युद्ध के हीरो में शुमार सुल्तान सिंह नरवरिया, लायंस नायक दिनेश सिंह भदौरिया और लायंस नायक करन सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

कारगिल युद्ध की रणनीति और संचालन

कारगिल युद्ध भारत की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई में से एक है। पाकिस्तान का मानना था कि जम्मू और कश्मीर में पकड़ बनाने से दिल्ली कमजोर होगा। पाकिस्तान ने रणनीति बनाकर इस युद्ध को अंजाम दिया था लेकिन भारत ने अपनी बेहतर रणनीति और शानदार संचालन से पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया।

हवाई संचालन

कारगिल की लड़ाई शुरू में भारत के लिए काफी मुश्किल साबित हो रही थी। बोफोर्स और एयर फोर्स ने कारगिल युद्ध की कहानी पूरी तरह से बदलकर रख दी। बोफोर्स तोपों के हमले ने ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तान की चौकियों को पूरी तरह से तबाह कर दिया।

तोलोलिंग पर कब्जा

कारगिल युद्ध में भारत की रणनीति का सबसे अहम पड़ाव तोलोलिंग पर कब्जा करना रहा। तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने के लिए भारत और पाकिस्तानी सैनिक बेहद पास से लड़ रहे थे। दोनों तरफ गोलियों के साथ-साथ एक-दूसरे को गालियां भी दे रहे थे। तोलोलिंग के लिए लड़ाई लगभग 6 दिन तक चली।

टाइगर हिल पर कब्जा

कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी बटालियन ने 29 जून को टाइगर हिल के नजदीक दो महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा जमा लिया था। 2 जुलाई को कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ टाइगर हिल पर चढ़ाई शुरू कर दी। 4 जुलाई को भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया। टाइगर हिल पर भारत का कब्जा इस युद्ध में एक बड़ी जीत थी।

दुश्मन की योजनाएं और उनकी विफलता

पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए शानदार प्लानिंग की थी और शुरू में वे अपनी योजनाओं में सफल भी रहे। शुरूआत में भारत को उनकी घुसपैठ के बारे में अंदाजा भी नहीं लगा। उन्होंने कारगिल और लेह के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया।

  • पाकिस्तान इस युद्ध के ज़रिये भारत को सियाचिन से अलग-थलग करना चाहता था। इस वजह से पाकिस्तानी सैनिक छिपकर कारगिल इलाके में छिपकर घुसे थे लेकिन भारतीय सेना ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।
  • पाकिस्तान ने कारगिल की कई चोटियों पर कब्जा कर रखा था जिसमें तोलोलिंग, प्वॉइंट 5140, प्वॉइंट 4875 और टाइगर हिल भी शामिल थी। भारतीय सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना इन चोटियों पर दोबारा कब्जा कर लिया।

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कारगिल युद्ध का परिणाम क्या रहा?

भारत और पाकिस्तान के बीच यह युद्ध 3 मई 1999 से लेकर 26 जुलाई 1999 तक चला। इसके परिणाम भारत के हक में जरूर रहा लेकिन दोनों देशों को बड़ा नुकसान हुआ।

युद्ध के तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणाम

कारगिल युद्ध का परिणाम भारत के वीर जवानों की पाकिस्तान पर जीत के तौर पर याद किया जाता है। यह युद्ध 68 दिनों तक चला। इस जंग के तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणाम भी हुए, जिनके बारे में बताते हैं।

  • कारगिल युद्ध में भारत के 530 सैनिक शहीद हुए और पाकिस्तान के 453 सैनिक कारगिल में मारे गए। वहीं पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के मुताबिक, पाकिस्तान के 3000-4000 सैनिक मारे गए।

कारगिल विजय दिवस

कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है, जो 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की विजय का प्रतीक है। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए दुश्मन को पराजित किया था। कारगिल विजय दिवस उन वीर जवानों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की। इस दिन पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है और शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।

कारगिल युद्ध का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

कारगिल युद्ध भारत-पाकिस्तान की वो लड़ाई है जिसमें पलटी हुई बाजी को अपने नाम कर लिया था।इसके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव भी हुए, जिसके बारे में नीचे बताते हैं।

भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव

  • कारगिल युद्ध से पहले भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने बस से लाहौर गए। दोनों के बीच शांति समझौता हुआ।
  • यह युद्ध करके पाकिस्तान ने भारत से धोखा किया। इससे दोनों देशों के बीच शांति की डोर टूट गई।
  • दोनों देश के बीच हुऔ शांति समझौता खत्म हो गया और दोनों देशों के बीच होने वाला व्यापार भी बंद कर दिया गया।

अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

  • इस युद्ध का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव ये रहा कि दुनिया भर में भारत की साख बढ़ गई और पाकिस्तान को एक अलग नजरिए से देखा जाने लगा।
  • इस से पहले भारत-अमेरिका के संबंध अच्छे नहीं चल रहे थे लेकिने इस युद्ध ने दोनों देशों के संबंधों को फिर से परिभाषित कर दिया।
  • कारगिल युद्ध के बाद अमेरिका के अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत की यात्रा की और इस युद्ध लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया गया।

कारगिल युद्ध पर साहित्य और फिल्में

यह युद्ध भारत-पाकिस्तान के बीच एक संघर्ष था। कारगिल युद्ध के बारे में दुनिया भर में चर्चा हुई। इस जंग के बारे में कई किताबें लिखी गईं और कई फिल्में भी बनीं।

कारगिल युद्ध पर किताबें

Book TitleAuthor(s)
कारगिल: युद्ध की अनकही कहानियांरचना बिष्ट रावत
विजयंत एट कारगिल: द बायोग्राफी ऑफ ए वॉर हीरोकर्नल वीएन थापर और नेहा द्विवेदी़
कारगिल युद्ध: आश्चर्य से विजय तकजनरल वी.पी. मलिक
कारगिल से संदेशश्रींजय चौधरी
कारगिल युद्धप्रवीण स्वामी
कारगिल गर्ल: एन ऑटोबायोग्राफीफ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना (सेवानिवृत्त) और किरण निर्वाण
कारगिल युद्ध पर किताबें

कारगिल युद्ध पर फिल्में

  • धूप (2003)
  • एलओसी कारगिल (2003)
  • लक्ष्य (2004)
  • मौसम (2011)
  • गुंजन सक्सेना(2020)
  • शेरशाह (2021)
  • टैंगो चार्ली (2005)

निष्कर्ष

इस लेख में कारगिल युद्ध कब हुआ और क्यों हुआ इस बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा कारगिल युद्ध, इसके परिणाम और स्मारक में बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। अब कारगिल युद्ध के निष्कर्ष की बात करें तो कारगिल युद्ध को पाकिस्तान ने अपने बुरे मंसूबों के साथ शुरू किया था। शुरूआत में पाकिस्तान को अपने मंसूबों में सफलता में मिली लेकिन लेकिन धीरे-धीरे भारतीय सैनिकों ने रणनीति और बहादुरी से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। कारगिल युद्ध को भारतीय सैनिकों के साहस, बलिदान और शौर्य के लिए जाना जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

कारगिल विजय दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा की गई घुसपैठ को पूरी तरह से खत्म कर कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की थी। यह दिन भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है।

कारगिल युद्ध में भारत की प्रमुख सैन्य कमान कौन थी?

कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना की कमान जनरल वी.पी. मलिक के नेतृत्व में थी। उन्होंने भारतीय सेना की रणनीतिक योजना और ऑपरेशन विजय की योजना को सफलतापूर्वक लागू किया।

कारगिल युद्ध के दौरान किस भारतीय सैन्य डिवीजन ने प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ीं?

कारगिल युद्ध के दौरान 8वीं गोरखा राइफल्स, 11वीं गोरखा राइफल्स, और 14वीं गोरखा राइफल्स जैसी डिवीजन ने प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ीं। ये डिवीजन ऊंचाई वाले इलाकों में विशेष युद्ध की तैयारी और अनुभव के लिए जानी जाती हैं।

कारगिल युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कौन-कौन सी वार्ताएं और शांति प्रयास किए गए?

कारगिल युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कई शांति प्रयास और वार्ताएं की गईं। इनमें 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन और 2004 में दिल्ली-लाहौर शांति प्रक्रिया शामिल हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तनाव को कम करना और द्विपक्षीय संबंधों को सुधारना था।

कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने किस प्रकार के सशस्त्र वाहनों का उपयोग किया?

कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने विभिन्न प्रकार के सशस्त्र वाहनों का उपयोग किया, जिनमें मुख्य रूप से टैंक (जैसे कि टी-72 और टी-55), बख्तरबंद वाहनों (जैसे कि बीएमपी-1), और आर्टिलरी गन (जैसे कि होवित्जर) शामिल थे।

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