भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार | Fundamental Rights In Hindi

October 10, 2024
मौलिक अधिकार
Quick Summary

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मौलिक अधिकार भारत के संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) वर्णित भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए वे अधिकार हैं जो सामान्य स्थिति में सरकार द्वारा सीमित नहीं किए जा सकते हैं और जिनकी सुरक्षा का प्रहरी सर्वोच्च न्यायालय हैं। ये अधिकार व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से सोचने, बोलने, लिखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देते हैं। ये अधिकार सभी नागरिकों को समानता प्रदान करते हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।

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मौलिक अधिकार क्या हैं? अक्सर आपने देखा होगा कि लोग छोटी-छोटी बातों पर अपने अधिकारों का बखान करने लगते हैं। हालांकि, उन्हें भी अपने अधिकारों के बारे में पूरी तरह पता नहीं होता है। दरअसल, भारत सरकार ने सभी को कई तरह के अधिकार दिए है, जिसे मौलिक अधिकार कहा जाता है। 

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार देश के लोकतांत्रिक ढांचे का आधार हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को कुछ स्वतंत्रता और सुरक्षा प्राप्त हो। भारतीय संविधान के भाग III में निहित, ये अधिकार सभी नागरिकों की गरिमा, स्वतंत्रता और समानता की रक्षा के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, चाहे उनकी पृष्ठभूमि या स्थिति कुछ भी हो।

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार
भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार

भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकार क्या है?

मौलिक अधिकार वह अधिकार होते हैं, जो हर व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त होते हैं। ये अधिकार संविधान, कानून या आम संगठनित नियमों द्वारा प्राप्त नहीं किए जाते हैं। ये अधिकार स्वाभाविक रूप से हर व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। इनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्याय, स्वतंत्र विचार, धार्मिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचार और धार्मिक धारणा, संघ की स्वतंत्रता, और संघ करने की स्वतंत्रता शामिल होते हैं। ये अधिकार भारतीय संविधान, अंतर्राष्ट्रीय संधियों, नैतिकता, और मानव अधिकारों के सिद्धांतों के अनुसार संरक्षित होते हैं।

मौलिक अधिकारों का महत्व 

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार निम्नलिखित दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं:

  • लोकतांत्रिक आधारशिला: ये अधिकार लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला को मजबूत करते हैं और लोगों को राजनीतिक-प्रशासनिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा: ये राज्य की तानाशाही पर नियंत्रण रखते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन की रक्षा करते हैं।
  • सामाजिक न्याय: मौलिक अधिकार सामाजिक न्याय की नींव रखते हैं और व्यक्तियों की गरिमा को सुनिश्चित करते हैं।
  • अल्पसंख्यकों की रक्षा: ये अधिकार अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करते हैं और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
  • धर्मनिरपेक्षता की पुष्टि: ये अधिकार राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को सुदृढ़ करते हैं।

मौलिक अधिकारों की आवश्यकता 

मौलिक अधिकार लोकतांत्रिक समाज में कई महत्वपूर्ण विचारों की पूर्ति करते हैं, जैसे:

  • सरकारी अत्याचार के विरुद्ध सुरक्षा: ये अधिकार सरकार द्वारा उत्पीड़न और अत्याचार से बचाते हैं।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय: ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करना: ये अधिकार लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करते हैं और भेदभाव और अन्याय को रोकते हैं।
  • कानून का शासन सुनिश्चित करना: ये अधिकार कानून का शासन सुनिश्चित करते हैं और सामाजिक प्रगति को सुगम बनाते हैं।

भारतीय संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार

भाग III (अनुच्छेद 14 से 32) में निहित मौलिक अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वतंत्रता की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए आवश्यक माने जाते हैं। संविधान के भाग III को ‘भारत का मैग्नाकार्टा’ की संज्ञा दी गई है।

‘मैग्नाकार्टा’ अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था।

भारतीय संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार की सूची में इस प्रकार है:

मौलिक अधिकारअनुच्छेद
समानता का अधिकारअनुच्छेद 14-18
स्वतंत्रता का अधिकारअनुच्छेद 19-22
शोषण के विरुद्ध अधिकारअनुच्छेद 23-24
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकारअनुच्छेद 25-28
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारअनुच्छेद 29-30
संवैधानिक उपचारों का अधिकारअनुच्छेद 32
मौलिक अधिकार की सूची

मूलतः संविधान में संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31) भी शामिल था। हालाँकि इसे 44वें संविधान अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था। इसे संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300 (A) के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया है।

भारतीय नागरिक पर मौलिक अधिकारों का प्रभाव

मौलिक अधिकारों का समाज पर गहरा और दूरगामी प्रभाव है। ये अधिकार किसी राष्ट्र के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे और समग्र कल्याण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

समाज पर मौलिक अधिकारों का प्रभाव

  • मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि लोगों को खुद को अभिव्यक्त करने, अपने धर्म का पालन करने, शांतिपूर्वक इकट्ठा होने और डर के बिना राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने की स्वतंत्रता है।
  • इन अधिकारों में जाति, लिंग, धर्म, या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना, कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करने का उद्देश्य भी शामिल होता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा की रक्षा करके, मौलिक अधिकार एक ऐसे समाज के निर्माण में योगदान करते हैं, जो हर व्यक्ति के मूल्य का सम्मान करता है।
  • इसके अलावा, मौलिक अधिकार न्याय प्रशासन और उचित प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं, जिसमें निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, कानूनी प्रतिनिधित्व तक पहुंच और मनमानी हिरासत या सजा के खिलाफ सुरक्षा शामिल है।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विकास में मौलिक अधिकारों की भूमिका

मौलिक अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने और कई मायनों में विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अधिकार सुनिश्चित करते हैं कि व्यक्तियों को खुद को अभिव्यक्त करने, अपनी मान्यताओं को आगे बढ़ाने, दूसरों के साथ जुड़ने, और व्यक्तिगत पूर्ति एवं विकास के लिए आवश्यक गतिविधियों में संलग्न होने की स्वायत्तता प्राप्त है। 

भारतीय नागरिक के 6 मौलिक अधिकार

अगर आप उलझन में हैं कि 6 मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं, तो यह आम तौर पर अधिकारों और स्वतंत्रताओं की एक श्रृंखला है जिन्हें समाज के भीतर व्यक्तियों की भलाई और सम्मान के लिए आवश्यक माना जाता है। इनमें नागरिक अधिकार, राजनीतिक अधिकार, सामाजिक अधिकार, आर्थिक अधिकार, सांस्कृतिक अधिकार, और पर्यावरणीय अधिकार शामिल होते हैं।

maulik adhikar kya hai
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समानता का अधिकार (आर्टिकल 14-18)

6 मौलिक अधिकारों में सबसे पहला है समानता का अधिकार। यह मौलिक मानवाधिकार सभी व्यक्तियों के लिए निष्पक्षता, बिना भेदभाव और समान व्यवहार सुनिश्चित करता है, चाहे उनकी जाति, जातीयता, लिंग, धर्म या जन्मस्थान कुछ भी हो। यह लोकतांत्रिक समाजों की आधारशिला के रूप में कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार उपकरणों और राष्ट्रीय संविधानों में निहित है। 

समानता की परिभाषा

भारत के संविधान में समानता का अधिकार एक प्रमुख मौलिक अधिकार है, जिसे अनुच्छेद 14 से 18 तक विस्तृत रूप में परिभाषित किया गया है।

  • अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता

यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि राज्य भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों से समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह राज्य द्वारा मनमाने भेदभाव को प्रतिबंधित करता है और समान परिस्थितियों में समान व्यवहार की गारंटी प्रदान करता है।

  • आर्टिकल 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध

भेदभाव का निषेध: यह प्रावधान केवल धर्म, मूलवंश , जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक को केवल इन आधारों पर किसी अयोग्यता, दायित्व या प्रतिबंध के अधीन नहीं किया जाएगा।

  • अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता

यह प्रावधान सार्वजनिक रोजगार या नियुक्ति के मामलों में अवसर की समानता की गारंटी प्रदान करता है। यह इन मामलों में केवल धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग, वंश, जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।

  • अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन

अस्पृश्यता का उन्मूलन: यह प्रावधान अस्पृश्यता को समाप्त करता है और किसी भी रूप में इसके अभ्यास को प्रतिबंधित करता है। यह अस्पृश्यता को एक सामाजिक बुराई के रूप में मान्यता देता है और भारतीय समाज में इस भेदभावपूर्ण प्रथा के उन्मूलन को सुनिश्चित करता है।

  • अनुच्छेद 18: उपाधियों का उन्मूलन

उपाधियों का उन्मूलन: यह प्रावधान राज्य को व्यक्तियों को सैन्य और शैक्षणिक विशिष्टताओं को छोड़कर उपाधियाँ प्रदान करने से प्रतिबंधित करता है। यह किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन कोई उपाधि, उपहार, परिलब्धियाँ या कार्यालय स्वीकार करने के संबंध में कुछ प्रावधान भी करता है।

संवैधानिक अधिकार

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रत्येक नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।

जाति, धर्म, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव समाप्त करें

समानता के अधिकार को पूर्ण अर्थों में साकार करने के लिए जाति, धर्म, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना आवश्यक है। भेदभाव को समाप्त करने के लिए सरकारों, संस्थानों द्वारा समाज में बड़े पैमाने पर सक्रिय कदम उठाए जा रहे हैं। 

स्वतंत्रता का अधिकार (आर्टिकल 19-22)

  • छह अधिकारों का संरक्षण (अनुच्छेद 19): बोलने, एकत्र होने, संघ बनाने, आवागमन, निवास, और पेशे की स्वतंत्रता से संबंधित कुछ अधिकारों का संरक्षण।
    • वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a))– नागरिकों को भाषण, लेखन, मुद्रण या किसी अन्य माध्यम से विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है। हालांकि, सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि, और अपराध के लिए उकसाने पर राज्य उचित प्रतिबंध लगा सकता है।
    • सभा करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(b))– शांतिपूर्वक और बिना हथियार के इकट्ठा होने का अधिकार है, जिसमें सार्वजनिक बैठकें और जुलूस शामिल हैं। हड़ताल करने का अधिकार इसमें शामिल नहीं है।
    • संघ बनाने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(c))– संघ, संघ या सहकारी समितियाँ बनाने का अधिकार है। हालांकि, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, या भारत की संप्रभुता के हित में उचित प्रतिबंध लग सकते हैं।
    • आवागमन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(d))– भारत के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार है। इस पर जनहित या अनुसूचित जनजाति के हित में उचित प्रतिबंध लग सकते हैं।
    • निवास करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(e))– भारत के किसी भी हिस्से में निवास और बसने की स्वतंत्रता है। यह भौगोलिक गतिशीलता और निवास स्थान के चयन की अनुमति देता है।
    • व्यापार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(g))– किसी भी पेशे या व्यवसाय को अपनाने का अधिकार है, बशर्ते कि जनता के सामान्य हित में कुछ प्रतिबंध लगाए जाएं।
  • अनुच्छेद 20: यह प्रावधान नागरिक, विदेशी या किसी व्यक्ति को मनमाने और अत्यधिक दंड के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
    • भूतलक्षी दांडिक विधियों से संरक्षण (अनुच्छेद 20(1))– व्यक्ति को केवल उसी कानून के तहत दोषी ठहराया जा सकता है जो उस समय लागू था। दंड भी उसी कानून के अनुसार होगा।
    • दोहरे दंड से संरक्षण (अनुच्छेद 20(2))-किसी व्यक्ति को पहले से दोषी ठहराए गए अपराध के लिए दोबारा दंडित नहीं किया जा सकता है।
    • अपने ही विरुद्ध गवाही देने से संरक्षण (अनुच्छेद 20(3))– आरोपी को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 21: यह अनुच्छेद प्रावधान करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है और व्यक्तिगत अधिकारों की आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
    • निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा (अनुच्छेद 21A)– 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करता है। इस प्रावधान को 2002 में जोड़ा गया।
  • अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित किया जाना, कानूनी सलाहकार से परामर्श और 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का अधिकार प्रदान करता है। यह मनमाने हिरासत को रोकता है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार (आर्टिकल 23-24)

  • अनुच्छेद 23: मानव तस्करी और जबरन श्रम का निषेध
    • मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी को प्रतिबंधित करता है और इसे दंडनीय अपराध घोषित करता है।
  • अनुच्छेद 24: बाल श्रम का निषेध।
    • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के किसी भी कारखाने या खतरनाक कार्यों में रोजगार को प्रतिबंधित करता है।

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (आर्टिकल 25-28)

  • अनुच्छेद 25: अंतरात्मा की स्वतंत्रता, धर्म मानने, पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है। इसमें किसी को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार शामिल नहीं है।
  • अनुच्छेद 26: धार्मिक संगठनों को धार्मिक कार्यों और संस्थानों की स्थापना, प्रबंधन और संपत्ति का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 27: किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय को बढ़ावा देने के लिए राज्य द्वारा कर लगाने से रोकता है।
  • अनुच्छेद 28: शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा के लिए प्रावधान करता है। राज्य द्वारा संचालित संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रतिबंधित है, जबकि मान्यता प्राप्त और आर्थिक सहायता प्राप्त संस्थानों में स्वैच्छिक है।

सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (आर्टिकल 29-30) 

  • अनुच्छेद 29: विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति वाले नागरिकों को संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है और धर्म, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा और संस्कृति के अनुसार शिक्षण संस्थान स्थापित और संचालित करने का अधिकार देता है।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (आर्टिकल 32)

  • अनुच्छेद 32: मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार प्रदान करता है। सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश और रिट जारी कर सकता है।

रिट क्षेत्राधिकार: यह न्यायालय द्वारा जारी किया जाने वाला एक कानूनी आदेश है। सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) एवं उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) रिट जारी कर सकते हैं। ये हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा।

सशस्त्र बलों के अधिकारों पर प्रतिबंध (अनुच्छेद 33)

  • अनुच्छेद 33: सशस्त्र बलों और समान बलों के सदस्यों के मौलिक अधिकारों को संशोधित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।

मार्शल लॉ (अनुच्छेद 34)

  • अनुच्छेद 34: मार्शल लॉ के संचालन के दौरान मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध की व्यवस्था करता है।

कानून बनाने का अधिकार (अनुच्छेद 33)

  • अनुच्छेद 35: मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को देता है, जिससे अधिकारों की एकरूपता सुनिश्चित होती है।

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर न्यायालय में जाने का अधिकार:

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर अदालत जाने का अधिकार व्यक्तियों को सरकार या किसी अन्य इकाई द्वारा उनके अधिकारों का उल्लंघन होने पर कानूनी सहारा लेने में सक्षम बनाता है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि नागरिकों को न्याय मिले और वे अपने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी कार्य के लिए अधिकारियों को जवाबदेह ठहरा सकें।

निष्कर्ष

संवैधानिक उपचारों और सामाजिक न्याय का अधिकार एक लोकतांत्रिक और अधिकारों का सम्मान करने वाले समाज का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को संविधान के तहत गारंटीकृत अपने मौलिक अधिकार की सुरक्षा और कार्यान्वयन के लिए न्यायपालिका का सहारा लेना होगा। जब नागरिक अपने अधिकारों का उल्लंघन देखते हैं, तो वे न्यायपालिका के समक्ष जाकर अपने अधिकारों की पुनर्स्थापना की मांग कर सकते हैं। इससे सरकार और अन्य संस्थाओं पर जवाबदेही बढ़ती है, और यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी व्यक्तियों की स्वतंत्रता और सम्मान का उल्लंघन नहीं कर सकता।

इसके अलावा, यह अधिकार न केवल मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है बल्कि समाज में समानता और न्याय को भी बढ़ावा देता है। इससे कानून के शासन की स्थापना होती है और समाज में एक समान, निष्पक्ष और समावेशी व्यवस्था की दिशा में योगदान होता है। यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सिद्धांतों की रक्षा करता है और नागरिकों को उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने की शक्ति प्रदान करता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

6 मौलिक अधिकार कौन कौन से हैं?

मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।
स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।
शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।
धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।
सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32.

संविधान में कुल कितने मौलिक अधिकार है?

संविधान द्वारा मूल रूप से 7 मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

मौलिक अधिकार क्या है समझाएं?

मौलिक अधिकार किसी भी देश के नागरिक को दिए गए ऐसे अधिकार होते हैं जो मुख्य रूप से व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाइयों से बचाते हैं। ये अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत होते हैं और सरकार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इनका हनन नहीं किया जा सकता।

भारत के 7 मौलिक अधिकार कौन कौन से हैं?

1. समानता का अधिकार
2. स्‍वतंत्रता का अधिकार
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
6. कुछ विधियों की व्यावृत्ति
7. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

कुल कितने मौलिक कर्तव्य है?

भारतीय संविधान में कुल 11 मौलिक कर्तव्य हैं।

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