मिल्खा सिंह: भारत के महान धावक

October 14, 2024
मिल्खा सिंह

Table of Contents

मिल्खा सिंह, जिन्हें “उड़न सिख” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय एथलेटिक्स के महानायक हैं। 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा, पंजाब (अब पाकिस्तान) में जन्मे मिल्खा सिंह ने विभाजन के दौरान अपने परिवार को खो दिया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। भारतीय सेना में शामिल होकर उन्होंने अपने एथलेटिक करियर की नींव रखी। 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में 440 यार्ड्स में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। रोम ओलंपिक 1960 में 400 मीटर की दौड़ में चौथे स्थान पर रहते हुए भी उन्होंने 400 मीटर वर्ल्ड रिकॉर्ड और भारतीय खेल प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बनाई । मिल्खा सिंह की कहानी संघर्ष, दृढ़ता और सफलता की प्रेरणादायक मिसाल है।

मिल्खा सिंह कौन थे?

मिल्खा सिंह एक प्रसिद्ध भारतीय एथलीट थे जो अपनी तेज रफ़्तार के लिए फ्लाईंग सिख के नाम से जाने जाते थे। वे भारतीय सेना में भर्ती हुए और यहीं से उनकी एथलेटिक यात्रा शुरू हुई थी। इंडियन आर्मी की तरफ से ही वे भारत के लिए रेसिंग ट्रेक पर दौड़ते थे और मैडल जीतकर लाते थे।

उन्होंने 1958 के ब्रिटिश कॉमनवेल्थ में 400 मीटर दौड़ में अपनी अद्भुत क्षमता दिखाने और भारत के लिए गोल्ड लाने वाले पहले एथलेटिक्स होने के लिए भी याद किये जाते हैं। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया और अपने अद्भुत प्रदर्शन से विश्वभर में प्रसिद्धि प्राप्त की।

प्रारंभिक जीवन

मिल्खा सिंह का शुरूआती जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उनका जन्म एक सिख-जाट परिवार में हुआ था। भारत -पाकिस्तान विभाजन के समय उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी गयी थी लेकिन मिल्खा सिंह किसी तरह बचकर भागने में कामयाब रहे और फिर उतने तेज़ भागे कि “फ्लाईंग सिख” के नाम से मशहूर हुए। 

उनके माँ-बाप की मौत ने उनको बूरी तरह झकझोर कर रख दिया था और उन्होंने डाकू बनने का फैसला कर लिया था लेकिन बाद में वे इंडियन आर्मी में सिलेक्ट हुए वही से उनका रेसिंग ट्रेक पर दौड़ने का सिलसिला शुरू हुआ।

जन्म एवं जन्म स्थान

मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। लेकिन भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद वे भारत आ गए थे। उनके जन्म स्थान और प्रारंभिक जीवन की कठिनाइयों ने उन्हें मजबूत और दृढ़ निश्चयी बनाया।

मिल्खा सिंह की उपलब्धियाँ

मिल्खा सिंह ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और देश का नाम रोशन किया।

ओलंपिक खेल

उन्होंने  1956, 1960 और 1964 के ओलंपिक खेलों में भाग लिया। 1960 के रोम ओलंपिक में उन्होंने 400 मीटर की दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया, जो भारतीय एथलेटिक्स में एक बड़ी उपलब्धि थी।

एशियाई खेल

अगर हम उनके 400 मीटर रिकॉर्ड की बात करे तो उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में गोल्ड मैडल जीते। 1958 में टोक्यो में हुए खेलों में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में गोल्ड मैडल हासिल किया।

राष्ट्रमंडल खेल

1958 में कार्डिफ़ में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मैडल जीता। यह किसी भारतीय धावक द्वारा जीता गया पहला राष्ट्रमंडल गोल्ड मैडल था।

अंतर्राष्ट्रीय पहचान

मिल्खा सिंह 400 मीटर वर्ल्ड रिकॉर्ड की उपलब्धियों ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलाई। उनके अद्वितीय प्रदर्शन और संघर्ष ने उन्हें विश्वभर में एक प्रेरणा स्रोत बना दिया। उन्होंने भारतीय एथलेटिक्स को एक नई पहचान दी और अपनी गति और दृढ़ संकल्प से लाखों लोगों को प्रेरित किया।

मिल्खा सिंह मूवी

मिल्खा सिंह के जीवन पर आधारित फिल्म “भाग मिल्खा भाग” 2013 में रिलीज़ हुई। इस मूवी में फरहान अख्तर ने मुख्य किरदार निभाया और उनकी जिंदगी के संघर्षों और उपलब्धियों को बड़े पर्दे पर बखूबी दिखाया। मिल्खा सिंह मूवी में मिल्खा सिंह के स्ट्रगल और उनकी लाइफ को जिस तरह से दिखाया गया, उस वजह से इस फिल्म को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में बहुत सराहा गया था।   

मिल्खा सिंह का 400 मीटर रिकॉर्ड

मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में 45। 73 सेकंड का रिकॉर्ड बनाया था, जो उनके समय में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। ये रिकॉर्ड कई सालों तक भारतीय एथलेटिक्स में बना रहा और उन्हें को ‘फ़्लाइंग सिख’ का खिताब दिलाया।

मिल्खा सिंह के रिकॉर्ड

प्रतियोगितावर्षपदकसमय
राष्ट्रमंडल खेल1958स्वर्ण45 .73 सेकंड
एशियाई खेल1958स्वर्ण46 .6 सेकंड
एशियाई खेल1962स्वर्ण46 .5 सेकंड
ओलंपिक खेल1960चौथा स्थान45 .73 सेकंड

मिल्खा सिंह का रिकॉर्ड किसने तोड़ा

मिल्खा सिंह 400 मीटर वर्ल्ड रिकॉर्ड कई सालों तक बना रहा। अंततः, यह रिकॉर्ड 1998 में परमजीत सिंह ने 45.70 सेकंड के साथ तोड़ा। हालांकि, उनका रिकॉर्ड आज भी भारतीय एथलेटिक्स में एक प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।

मिल्खा सिंह का संघर्ष

मिल्खा सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा है, जिसने उन्हें एक साधारण इंसान से असाधारण धावक बना दिया। आइए उनके जीवन के विभिन्न पड़ावों पर नजर डालें, जहां उन्होंने कठिनाइयों का सामना किया और अपने अदम्य साहस से उन्हें पार किया।

विभाजन का दर्द

1947 के विभाजन के दौरान, मिल्खा सिंह ने अपने परिवार के अधिकांश सदस्यों को साम्प्रदायिक हिंसा में खो दिया। यह उनके जीवन का सबसे कठिन समय था। उन्होंने अपने माता-पिता और तीन भाई-बहनों को खो दिया, जिससे उनका बचपन असहनीय दर्द और दुख में डूब गया।

शरणार्थी शिविरों में जीवन

पाकिस्तान से भारत आने के बाद, मिल्खा सिंह ने दिल्ली के पुनर्वास शिविरों में शरण ली। वहां की स्थिति बेहद दयनीय थी। उन्होंने कई दिनों तक बिना खाना खाए और बिना किसी स्थायी आश्रय के गुजारा किया। शरणार्थी शिविरों में जीवन ने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाया।

सेना में भर्ती

कई बार असफल प्रयासों के बाद, मिल्खा सिंह ने आखिरकार भारतीय सेना में भर्ती हो गए। सेना में भी शुरुआती दिनों में उन्हें कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। कड़ी ट्रेनिंग और अनुशासन के साथ तालमेल बिठाना उनके लिए एक बड़ा संघर्ष था।

खेल में शुरुआत

सेना में रहते हुए, मिल्खा सिंह ने दौड़ में हिस्सा लेना शुरू किया। शुरुआती दिनों में उनके पास सही ट्रेनिंग और संसाधनों की कमी थी। उनके कोच गुरुदेव सिंह ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन दिया। लेकिन इसके लिए मिल्खा को कड़ी मेहनत और समर्पण से गुजरना पड़ा।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर चुनौतियां

1956 के मेलबोर्न ओलंपिक में भाग लेने का अनुभव उनके लिए संघर्षपूर्ण रहा। वे वहां सफल नहीं हो सके, जिससे उन्हें बहुत निराशा हुई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने प्रदर्शन को सुधारने के लिए और भी कठिन परिश्रम किया।

आर्थिक तंगी

मिल्खा सिंह ने अपने एथलेटिक करियर की शुरुआत में आर्थिक तंगी का सामना किया। उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे, जिससे उनके प्रशिक्षण और प्रतियोगिताओं में भाग लेने में कठिनाई होती थी। उन्होंने कई बार व्यक्तिगत और आर्थिक संघर्षों का सामना करते हुए भी अपने सपनों को जिंदा रखा।

राष्ट्रमंडल खेल 1958

1958 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतना मिल्खा सिंह के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, लेकिन यहां तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं था। उन्होंने दिन-रात कठिन प्रशिक्षण किया, अपने शरीर की सीमाओं को पार किया और मानसिक बाधाओं को तोड़ा।

रोम ओलंपिक 1960

1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान हासिल करना उनके लिए एक बड़ा संघर्ष था। उन्होंने इस प्रतियोगिता के लिए अत्यधिक मेहनत और समर्पण से तैयारी की थी। इस दौड़ में मामूली अंतर से पदक से चूकना उनके लिए एक भावनात्मक और मानसिक संघर्ष था।

उनके “फ़्लाइंग सिख” नाम के पीछे की स्टोरी 

1960 में, पाकिस्तान के लाहौर में एक अंतर्राष्ट्रीय दौड़ आयोजित की गई थी। इस दौड़ में मिल्खा सिंह और पाकिस्तान के प्रसिद्ध धावक अब्दुल खालिक के बीच मुकाबला था। इस दौड़ को देखने के लिए हजारों लोग उपस्थित थे, जिनमें पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान भी शामिल थे। दौड़ शुरू हुई और उन्होंने अपनी अद्वितीय गति से अब्दुल खालिक को हराया। 

उनकी यह जीत बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह विभाजन के बाद के तनावपूर्ण समय में दो देशों के बीच की दौड़ थी। इस जीत के बाद, अयूब खान ने मिल्खा सिंह से कहाँ था- तुम दौड़े नहीं, तुम उड़े हो और इसके बाद उनको ‘फ़्लाइंग सिख’ का खिताब दिया था। इस खिताब ने उनकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान को और मजबूत किया और वे इस नाम से विश्वभर में प्रसिद्ध हो गए।

मिल्खा सिंह के बारे में  कुछ इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स 

  • उन्हें ‘फ़्लाइंग सिख’ का खिताब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दिया था।
  • उन्होंने ने चार बार एशियाई खेलों में गोल्ड मैडल जीता।
  • उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पहला गोल्ड मैडल जीता।
  • उनका 400 मीटर वर्ल्ड रिकॉर्ड 38 वर्षों तक अटूट रहा।
  • उनके जीवन पर आधारित फिल्म “भाग मिल्खा भाग” 2013 में रिलीज़ हुई।
  • मिल्खा सिंह ने भारतीय सेना में शामिल होकर अपनी एथलेटिक यात्रा शुरू की।
  • उन्होंने अपनी आत्मकथा “द रेस ऑफ़ माय लाइफ” लिखी।

उनके जीवन की प्रमुख घटनाएं

  1. आत्मकथा “द रेस ऑफ़ माय लाइफ”: मिल्खा सिंह ने अपनी आत्मकथा “द रेस ऑफ़ माय लाइफ” लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों, चुनौतियों और सफलताओं को विस्तार से बताया। उनकी आत्मकथा नई पीढ़ी के धावकों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
  2. 1958 कॉमनवेल्थ गेम में मिल्खा सिंह ने गोल्ड मेडल जीता था। 400 मीटर की रेस जीतने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा से कुछ इनाम मांगने को कहा था, मिल्खा ने सिर्फ एक दिन का ‘राष्ट्रीय अवकाश’ मांगा था।
  3. 1999 में मिल्खा सिंह ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए बिक्रम सिंह के सात साल के बेटे को गोद लिया था।
  4. फ्लाइंग सिख ने अपने सभी मेडल और स्पोर्टिंग ट्रेजर देश के नाम कर दिया था। ये सब आज पटियाला के स्पोर्ट्स म्यूजियम का हिस्सा है।
  5. मिल्खा अंत तक खेल जगत और भारत से पूरी तरह से जुड़े रहे। उन्होंने पंजाब सरकार के अंतर्गत डायरेक्टर ऑफ स्पोर्ट्स के रूप में काम करते हुए अनगिनत युवा एथलीटों का मार्गदर्शन किया।
  6. 2003 में स्थापित मिल्खा सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट उन युवा एथलीटों की मदद कर रहा है जिनके पास खेल के संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। अपनी आत्मकथा के राइट्स को तो मिल्खा सिंह ने फिल्म निर्माता को ₹1 में बेचा लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित किया कि फिल्म से हुई प्रॉफिट का एक हिस्सा फाउंडेशन के लिए भी जाये।
  7. एक बार एक वरिष्ठ खेल पत्रकार मिल्खा सिंह का इंटरव्यू लेने के लिए होटल गए थे। एक वाकया याद करते हैं। वहां नाश्ता सर्व हुआ तो पत्रकार को एहसास हुआ कि वह गर्म नहीं है। वो अपना आपा खो बैठा लेकिन मिल्खा नहीं। उन्होंने नाश्ता सर्व कर रहे लड़के को हल्का सुनाया और फिर पत्रकार की तरफ मुड़ कर बोले, “जो तुम्हारे पास है उसमें खुश रहो। तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि कितने लोग ऐसे हैं जिनके पास यह भी नहीं है”।
  8. मिल्खा सिंह को 1959 में भारत सरकार द्वारा “पद्म श्री” से सम्मानित किया गया था। भारत   के खेल जगत में उनके योगदान को देखते हुए, उनको 2001 में अर्जुन पुरष्कार की घोषणा की गयी थी लेकिन उन्होंने लेने से इंकार कर दिया था। 

मिल्खा सिंह के विचार

  • “कड़ी मेहनत और अनुशासन सफलता की कुंजी है।”
  • “अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कभी हार मत मानो।”
  • “संघर्ष से ही सफलता मिलती है।”
  • “सपनों को साकार करने के लिए मेहनत जरूरी है।”
  • “धैर्य और समर्पण से ही मंजिल मिलती है।”
  • “अपने दिल की सुनो और अपनी ताकत को पहचानो।”
  • “खुद पर विश्वास रखो और अपने सपनों का पीछा करो।”
  • “सफलता के लिए खुद को प्रेरित करो।”
  • “परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है।”
  • “सपनों की ऊँचाई पर पहुँचने के लिए मेहनत की जरूरत है।”

मिल्खा सिंह की मृत्यु कब हुई

दिनांक

मिल्खा सिंह का निधन 18 जून 2021 को हुआ।

कारण

उनका निधन COVID-19 संक्रमण के कारण हुआ था। उनकी मृत्यु से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई और सभी ने उनके योगदान को याद किया था।

मिल्खा सिंह की विरासत

प्रेरणा स्रोत

मिल्खा सिंह ने अपने जीवन और उपलब्धियों से कई लोगों को प्रेरित किया। उनकी कहानी आज भी लाखों युवाओं को मेहनत और समर्पण के लिए प्रेरित करती है।

सम्मान

मिल्खा सिंह को उनके योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें पद्म श्री से नवाजा गया और उनके नाम पर कई स्टेडियम और संस्थान बनाए गए।

निष्कर्ष

मिल्खा सिंह की जीवन यात्रा संघर्ष, साहस और अटूट संकल्प की मिसाल है। विभाजन की त्रासदी से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रोशन करने तक, उन्होंने हर चुनौती का सामना किया और सफलता की नई ऊंचाइयों को छुआ। उनकी कहानी न केवल एथलीटों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को साकार करने के लिए कठिनाइयों का सामना कर रहा है। मिल्खा सिंह ने यह साबित कर दिया कि दृढ़ निश्चय और मेहनत से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

मिल्खा सिंह ने कौन सा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था?

मिल्खा सिंह ने 1958 के कार्डिफ़ राष्ट्रमंडल खेलों में 440 गज की दौड़ में तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मैल्कम स्पेंस को हराकर स्वर्ण पदक जीता था। यह किसी भारतीय धावक द्वारा जीता गया पहला राष्ट्रमंडल स्वर्ण पदक था।

असली मिल्खा सिंह कौन था?

मिल्खा सिंह, “उड़न सिख,” एक भारतीय धावक थे जिन्होंने 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता और 1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया। उनकी कहानी प्रेरणादायक है।

मिल्खा सिंह की दौड़ने की स्पीड कितनी है?

मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में 45.73 सेकंड का समय निकाला था, जो उनके समय का एक बेहतरीन प्रदर्शन था। यह समय 1960 के रोम ओलंपिक में दर्ज किया गया था और यह चार दशकों तक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना रहा।

मिल्खा सिंह क्यों प्रसिद्ध है?

मिल्खा सिंह, “उड़न सिख,” भारतीय एथलेटिक्स के महानायक थे। उन्होंने 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता और 1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।

ऐसे और आर्टिकल्स पड़ने के लिए, यहाँ क्लिक करे

adhik sambandhit lekh padhane ke lie

यह भी पढ़े