नर्मदा बचाओ आंदोलन क्या है?

February 17, 2025
नर्मदा बचाओ आंदोलन

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नर्मदा बचाओ आंदोलन

नर्मदा बचाओ आंदोलन क्या है?

Published on February 17, 2025
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Quick Summary

  • नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) एक सामाजिक आंदोलन है जिसका उद्देश्य नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का विरोध करना है।
  • यह आंदोलन 1985 में शुरू हुआ था।
  • इसका नेतृत्व मेधा पाटकर और बाबा आमटे जैसे कार्यकर्ताओं ने किया था।
  • इस आंदोलन में स्थानीय जनजातियाँ, किसान, पर्यावरणविद और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल थे।

Table of Contents

Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.

नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत में एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो 1985 से 2017 तक चला। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था नर्मदा नदी पर बन रहे बांध (सरदार सरोवर बांध) के विरोध में लोगों को जोड़ना और नदी के आसपास के स्थानों पर रहने वाले लोगों के हक की रक्षा करना।

इस आंदोलन के चलते बहुत से लोगों को उनके गाँवों से बाहर निकाला गया। जिनके घर सरदार सरोवर बांध बनने के चलते डूब गए। नर्मदा बचाओ आंदोलन मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, और महाराष्ट्र के क्षेत्रों में नर्मदा नदी के ऊपर बनने वाले नर्मदा सागर डैम के खिलाफ हुआ। आज यहां आप जानेंगे की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ और नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है।

नर्मदा नदी का परिचय

  • नर्मदा नदी, भारतीय सब-कोटी के मध्यभाग में स्थित एक महत्वपूर्ण नदी है।
  • हिन्दू धर्म में इसे माँ नर्मदा की पूजा का विषय माना जाता है।
  • नर्मदा नदी भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान राज्यों से होकर बहती है।
  • इसकी जल धारा स्वच्छ और पवित्र मानी जाती है।
  • नर्मदा नदी की मुख्य सहायक नदियां है तावा, बानस, केन, और शिप्रा।
  • इसका स्रोत अमरकंटक पहाड़ी है, जो मध्य प्रदेश के अंबिकापुर के पास स्थित है।

नर्मदा नदी का भूगोल

नर्मदा नदी को भारत की माता भी माना जाता है। नर्मदा नदी कहां है? तो नर्मदा नदी भारत में मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों से बहती है।नर्मदा नदी के भूगोल के बारे में:

  • इसे ‘पुरानी नदी’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसका पुरातन काल में प्रवाह था।
  • नर्मदा नदी की लंबाई करीब 1312 किलोमीटर है।
  • नर्मदा नदी के किनारे कई प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं, जैसे महेश्वर और ओंम्कारेश्वर। जो हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित है।
  • नर्मदा नदी के आस-पास बहुत से जलजीवन है, जिसमें समुद्री जीवन शामिल हैं। यहां पर प्रमुख प्रजातियों में मगरमच्छ और गैंडा शामिल हैं।

नर्मदा नदी का इतिहास क्या है?

नर्मदा नदी, भारतीय प्राचीनतम नदियों में से एक है और नर्मदा नदी का इतिहास बहुत पुराना है। इसे ‘रेवा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी हजारों सालों से मानव जाती का एक हिस्सा रही है। यहां नर्मदा नदी का इतिहास कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं में बताया गया है:

  • नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर स्थित अमरकंटक में नर्मदा कुंड से हुआ है।
  • नदी पश्चिम की ओर सोनमुद से बहती हुई, एक चट्टान से नीचे गिरती हुई कपिलधारा नाम की एक जलप्रपात बनाती है। इसके बाद यह मध्य प्रदेश और गुजरात से होकर गुजरती हुई अरब सागर में जा मिलती है।
  • नर्मदा का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में मिलता है। इसे भगवान शिव की जटा से निकली हुई माना जाता है।
  • नर्मदा नदी के ऐसे बहुत से स्थल है जहां ऐतिहासिक लड़ाइयां, शासकीय और सामरिक घटनाएं हुई हैं।
  • नदी के तट पर बहुत से पुराने सांस्कृतिक स्थल भी हैं, जैसे की केदारिकूण्ड, भेडाघाट, महेश्वर, ऑंचलेश्वर, अमरावती, चौबीसी, आदि। आपको इन स्थलों पर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी देखने को मिलेंगे।

नर्मदा नदी से जुड़े प्रमुख स्थल और घटनाएं

नर्मदा नदी अनेक धार्मिक और पर्यटनीय गतिविधियों का केंद्र है। जो कई महत्वपूर्ण स्थलों से गुजरती है। जैसा की सब लोग जानते हैं की नर्मदा नदी कहां है लेकिन इसके कुछ प्रमुख स्थल और घटनाएं भी हैं जो नर्मदा नदी से जुड़ी हुई हैं:

  1. अमरकंटक पर्वत: नर्मदा नदी का स्रोत अमरकंटक पर्वत है। नर्मदा का प्रारंभिक प्रवाह यहां से शुरू होता है। यह मध्य प्रदेश के अनुपपुर जिले में स्थित है।
  2. ओंकारेश्वर मंदिर: मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल है। जहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यहां महाशिवरात्रि के मौके पर बड़ा धार्मिक महोत्सव मनाया जाता है।
  3. महेश्वर घाट: महेश्वर नगर मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित है, यहां पर नर्मदा नदी के पानी में स्नान करने का काफी महत्व है। इस जगह पर नर्मदा नदी के कई प्रसिद्ध घाट हैं जहां लोग धार्मिक कार्यों के लिए आते हैं।
  4. भेड़ाघाट: यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो मध्य प्रदेश में स्थित है। यहां के नर्मदा नदी का जल मधुमय (मधु और जल का मिश्रण) माना जाता है। भेड़ाघाट नर्मदा नदी पर धार्मिक स्नान की परंपरा है।

आंदोलन का महत्व

नर्मदा नदी पर निर्मित हो रहे सर्वोच्च डैम (सरदार सरोवर डैम) के विरोध में यह आंदोलन किया जा रहा था। इस आंदोलन का महत्व विभिन्न पहलुओं में समझे:

  • पर्यावरणीय पहलू: नर्मदा नदी के प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखना इस आंदोलन का पहलू था। सरदार सरोवर डैम के निर्माण से प्राकृतिक संसाधनों, वन्य जीवन और प्राकृतिक वातावरण पर असर जरूर पड़ता।
  • न्यायिक पहलू: विभिन्न उच्चतम न्यायालयों में इस डैम को बनाने के खिलाफ याचिकाएं दायर की गईं। यह आंदोलन भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में भी प्रभावी रहा।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू: यह आंदोलन वहां रहने वाले आदिवासी समुदायों के हित में भी था क्योंकि उनकी जीवनधारा और संस्कृति नर्मदा नदी के आधार पर निर्भर करती थी।
  • राजनीतिक पहलू: इस आंदोलन ने राजनीतिक दलों और सरकारी प्रशासन पर भी दबाव डाला। इसका उन पर प्रभाव पड़ता जिसके कारण उन्होंने इसके विरोध में अपनी आवाज उठाई।

सरदार सरोवर बांध की जानकारी

सरदार सरोवर बांध, नर्मदा नदी पर निर्मित एक विशाल बहुउद्देशीय परियोजना है। यह भारत के सबसे बड़े बांधों में से एक है।

विशेषताएंविवरण
स्थाननर्मदा नदी, केवड़िया, गुजरात
उद्देश्यसिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति
ऊंचाई163 मीटर (नींव से)
लंबाई1210 मीटर
निर्माण सामग्रीकंक्रीट
शुरुआत1961
पूरा हुआ2017
लाभलाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति
विवादविस्थापन, पर्यावरणीय प्रभाव, सामाजिक विरोध
महत्वभारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान, लाखों लोगों के जीवन में सुधार
सरदार सरोवर बांध की जानकारी

बांध के विरोध का कारण 

  • नर्मदा बचाओ आंदोलन 1985 से ही भारत के चार राज्यों के लिए महत्वपूर्ण सरदार सरोवर परियोजना का विरोध कर रहा है। आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों के अलावा इस मुद्दे की कई परतें हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के गरीबों और आदिवासियों के पुनर्वास और वन भूमि का मुद्दा है।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा इस बांध के विरोध का प्रमुख कारण इसकी ऊँचाई है, जिससे इस क्षेत्र के हज़ारों हेक्टेयर वन भूमि के जलमग्न होने का खतरा है।
  • बताया जाता है कि जब भी इस बांध की ऊँचाई बढ़ाई गई है, तब हज़ारों लोगों को इसके आस-पास से विस्थापित होना पड़ा है तथा उनकी भूमि और आजीविका भी छिनी है।
  • इस बांध की ऊँचाई बढ़ाए जाने से मध्य प्रदेश के 192 गाँव और एक नगर डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके चलते 40 हज़ार परिवारों को अपने घर, गाँव छोड़ने पड़ेंगे। 
  • इस आंदोलन की नेता मेधा पाटकर का आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद बांध प्रभावित लोगों को न तो मुआवजा दिया गया है और न ही उनका उचित पुनर्वास किया गया है। इसके बावजूद बांध का जलस्तर बढ़ा दिया गया।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं की मांग है कि जलस्तर को बढ़ने से रोका जाए और पहले पुनर्वास किया जाए और फिर विस्थापन किया जाए।
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस बांध के निर्माण से मध्य प्रदेश के चार जिलों के 23,614 परिवार प्रभावित हुए हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ?

जो लोग नहीं जानते की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ तो उनकी जानकारी के लिए यह आंदोलन 1985 में शुरू हुआ और इसके अंतर्गत बड़े और छोटे बांधों के विरोध में लोगों ने आंदोलन किया। इसके दौरान लोगों ने अपने हक की रक्षा करने के लिए न्यायालयों के भी चक्कर लगाए।

आंदोलन की शुरुआत और समयरेखा

नर्मदा बचाओ आंदोलन की शुरुआत भारत में जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण के लिए हुई थी। यह आंदोलन मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के बीच बसी नर्मदा नदी के लिए था। नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ एवं इसकी मुख्य घटनाएँ और समयरेखा निम्न हैं:

  • नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ? (1985-1989): आंदोलन नर्मदा सरदार सरोवर बांध के विरोध में शुरू हुआ। इस बांध के निर्माण के परिणामस्वरूप स्थानीय लोगों के अधिकारों पर प्रभाव पड़ा।
  • 1990s: इस समय आंदोलन को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में एक बड़े रूप में लिया गया। जिसमें स्थानीय लोग, आदिवासियों , नागरिक समाज संगठनों और पर्यावरण संरक्षण गैर सरकारी संगठन शामिल थे।
  • 2000s: भारतीय सरकार ने आंदोलन की शिकायतों पर नजर डाली, लेकिन बांध के निर्माण को आगे बढ़ाया गया। इसके बाद आंदोलन ने संगठन, न्यायिक लड़ाई और सामाजिक चेतना में सफलता प्राप्त की।
  • वर्तमान समय: आज भी यह आंदोलन अनेक संगठनों और समर्थक विभिन्न राज्यों में सक्रिय हैं, जो नर्मदा नदी के निहित समस्याओं के विरुद्ध संघर्ष जारी रख रहे हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में शामिल लोग

मेधा पाटकर इस आंदोलन की प्रमुख नेता हैं। उन्होंने भूख हड़ताल और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं और इस मुद्दे के लिए कई बार जेल भी गई हैं।

प्रमुख लोग:

  1. मेधा पाटकर: मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख और सबसे पहचान जाने वाली नेता हैं। वे इस आंदोलन की शुरुआत से ही शामिल थीं और उन्होंने इसके नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भारतीय समाज की सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं पर जोर देती रहीं, विशेष रूप से विस्थापन और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर। मेधा पाटकर ने आंदोलन के माध्यम से आदिवासियों, किसानों और स्थानीय समुदायों की आवाज को देश और दुनिया के सामने लाया।
  2. मनबौरी बाई और अन्य आदिवासी नेता: नर्मदा बचाओ आंदोलन में आदिवासी समुदायों की विशेष भूमिका रही है। इस आंदोलन में शामिल कई आदिवासी नेताओं ने अपने गांवों और समुदायों को बचाने के लिए संघर्ष किया। मनबौरी बाई जैसे आदिवासी नेता जिन्होंने अपने गांव और परिवार के हितों के लिए संघर्ष किया, वे आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत बने।
  3. सिंहगाड़ा और रामनाथ ठाकुर: सिंघगढ़ और रामनाथ ठाकुर जैसे नेता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए। उन्होंने नर्मदा नदी के किनारे बसे गांवों के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया और बांध निर्माण के विरोध में अभियान चलाया। उनके संघर्ष ने लोगों को यह समझने में मदद की कि बड़े बांधों से होने वाला विस्थापन न केवल पारंपरिक जीवनशैली को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी विनाशकारी हो सकता है।
  4. विकास परमार: विकास परमार जैसे नेता भी इस आंदोलन में शामिल थे और उन्होंने नर्मदा नदी के किनारे बसे लोगों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने न केवल जल संकट के मुद्दे को उठाया, बल्कि नदी के आसपास के पारिस्थितिकीय नुकसान और स्थानीय समुदायों के जीवन पर इसके प्रभाव को भी उजागर किया।
  5. संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का योगदान: नर्मदा बचाओ आंदोलन में विभिन्न सामाजिक संगठनों, जैसे ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन संगठन’, और कार्यकर्ताओं का भी योगदान रहा। इनके माध्यम से आंदोलन को जन स्तर पर फैलाया गया और विभिन्न शहरों और राज्यों में समर्थन प्राप्त हुआ। इस आंदोलन में स्थानीय लोग, पर्यावरणवादी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और सांस्कृतिक नेता भी शामिल हुए, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के मुद्दों को प्रमुख रूप से उठाया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख घटनाएं और तिथियां

इस आंदोलन के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण तिथियां और घटनाएं हैं:

तिथियांघटनाएं
1985जल-जंगल-जमीन सभा की स्थापना
1989बाबा अम्बेडकर नगर
1991-1993नर्मदा बचाओ आंदोलन
1993आंदोलन का राष्ट्रीय स्तर पर उदघाटन
2000नर्मदा बचाओ आंदोलन का सर्वेक्षण
2000आंदोलन का समापन
नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख घटनाएं और तिथियां

प्रमुख नेताओं और संगठनों की भूमिका

आंदोलन के मुख्य नेताओं में मेधा पाटकर, बाबा अम्बेडकर, अच्युत पटवर्धन, नरेंद्र पटेल और अनिल गुप्ता शामिल थे। इन नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और सामाजिक, राजनीतिक, और कानूनी प्रयासों के माध्यम से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की चुनौतियाँ

नर्मदा बचाओ आंदोलन को राज्य द्वारा दमन का सामना करना पड़ा है, जिसमें गिरफ्तारी, पुलिस की क्रूरता और कानूनी उत्पीड़न शामिल हैं। 1991 में, मेधा पाटकर को बांध के खिलाफ विरोध करने के कारण गिरफ्तार किया गया और उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया। उन्हें कई महीनों बाद जमानत पर रिहा किया गया, लेकिन उनके खिलाफ लगाए गए आरोप कभी भी वापस नहीं लिए गए। इस आंदोलन ने न केवल स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि कैसे राज्य की शक्ति का दुरुपयोग किया जा सकता है।

  • NBA पिछले कुछ सालों में विभाजित रहा है। कुछ सदस्य ज़्यादा कट्टरपंथी रणनीति के पक्षधर हैं, जबकि अन्य ज़्यादा उदारवादी दृष्टिकोण के पक्षधर हैं। इस विभाजन ने आंदोलन को कमज़ोर कर दिया है और इसके लक्ष्यों को हासिल करना ज़्यादा मुश्किल बना दिया है।
  • एनबीए का मुकाबला राज्य की सत्ता से है, जो बांधों के निर्माण का समर्थन कर रही है। सरकार के पास आंदोलन को कुचलने के लिए संसाधन हैं, अगर वह ऐसा करना चाहे।
  • बांधों का मुद्दा जटिल है और इस पर कई अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। एनबीए को बांधों का समर्थन करने वालों के तर्कों से जूझना पड़ता है।
  • एनबीए की चिंताओं को दूर करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। आंदोलन के कड़े विरोध के बावजूद भी सरकार बांध परियोजना में कोई भी बदलाव करने में अनिच्छुक रही है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के नारे

नर्मदा बचाओ आंदोलन के नारे निम्नलिखित हैं:

  1. विकास चाहिए, विनाश नहीं
  2. कोई नहीं हटेगा, बंद नहीं बनेगा
  3. नर्मदा बचाओ, मानव बचाओ

नर्मदा बचाओ आंदोलन की सफलता और उपलब्धियां

नर्मदा बचाओ आंदोलन (Narmada Bachao Andolan in Hindi) (एनबीए) ने सरदार सरोवर और अन्य नर्मदा परियोजनाओं के पर्यावरण, पुनर्वास और राहत पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाकर देश की बहुत सेवा की है।

  • एनबीए अपनी विभिन्न कार्यकारी, विधायी और न्यायिक रणनीतियों में प्रभावी रहा है, बड़े बांधों के कारण होने वाले विनाश और विस्थापन के खिलाफ अभियान चलाया है और प्रभावित लोगों – किसानों, मजदूरों, आदिवासियों, मछुआरों और अन्य के अधिकारों की वकालत की है।
  • इसे दुनिया भर से समर्थन मिला है।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन का संघर्ष और गौरव सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय के लिए वैश्विक संघर्ष का प्रतीक है।
  • 1993 में, विश्व बैंक ने सरदार सरोवर से हाथ खींच लिया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलन के पक्ष में फैसला सुनाया और संबंधित राज्यों को पुनर्वास और प्रतिस्थापन प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।
  • 1999 और 2001 के बीच, विदेशी निवेशकों ने महेश्वर बांध से हाथ खींच लिया।
  • कुछ हद तक, यह लोगों के पुनर्वास में सफल रहा है।

निष्कर्ष

अब आपको जानकारी मिल गई होगी की नर्मदा बचाओ आंदोलन कब शुरू हुआ और नर्मदा बचाओ आंदोलन किससे संबंधित है। जैसा की नर्मदा बचाओ आंदोलन एक लंबे समय तक चलने वाला और सशक्त आंदोलन रहा है। यह आंदोलन जल और पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण था। आज के इस ब्लॉग में आपने नर्मदा बचाओ आंदोलन की पूरी जानकारी प्राप्त की जैसे: नर्मदा नदी कहां है, नर्मदा बचाओ आंदोलन कब हुआ आदि।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

नर्मदा बचाओ आंदोलन के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रिपोर्टें प्रकाशित हुईं?

आंदोलन के दौरान और बाद में कई रिपोर्टें प्रकाशित की गईं, जैसे कि “नर्मदा बागायती रिपोर्ट” और “सर्वे रिपोर्ट्स,” जिन्होंने बांधों के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में भूख हड़ताल का क्या महत्व था?

भूख हड़ताल ने आंदोलन को प्रमुखता प्रदान की और नियोक्ता और सरकार पर दबाव बनाया। यह आंदोलन के प्रमुख रणनीतिक औजारों में से एक था, जिससे आंदोलक अपनी मांगों को सार्वजनिक रूप से पेश कर सके।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के दौरान कौन से प्रमुख कानूनी निर्णय दिए गए?

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों में 1994 में सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई सीमित करने और 2000 में पुनर्वास योजनाओं को लागू करने के निर्देश शामिल हैं। इन निर्णयों ने आंदोलन की प्रमुख मांगों को मान्यता दी।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में महिलाओं के योगदान से संबंधित कौन-कौन सी डॉक्यूमेंट्रीज़ बनीं?

महिलाओं के योगदान पर आधारित डॉक्यूमेंट्रीज़ में “रिवर एंड द वॉर: द स्टोरी ऑफ़ द नर्मदा” और “नर्मदा: द साउंड ऑफ़ साइलेंस” जैसी फिल्में शामिल हैं, जो आंदोलन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन में महिलाओं की भूमिका पर आधारित प्रमुख पुस्तकें और लेख कौन-कौन से हैं?

प्रमुख पुस्तकें और लेखों में “सिस्टम ऑफ़ असेंबली: द रिवर ऑफ़ वॉर” और “मेडा पाटकर: द एंडल्स ऑफ़ नर्मदा” शामिल हैं, जो महिलाओं की भूमिका और उनके योगदान का विश्लेषण करते हैं।

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