Quick Summary
पानीपत, भारत का एक ऐतिहासिक शहर है, जो तीन प्रमुख पानीपत की लड़ाई का साक्षी रहा है। पानीपत में कुल तीन प्रमुख युद्ध हुए थे:
भारत के इतिहास में कई महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी गई है, जो कई बारी देश में आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट का कारण बना है। इन सभी लड़ाइयों में पानीपत की लड़ाई काफी अहम स्थान रखता है। ऐसे में मन में पानीपत की लड़ाई के बारे में जानने की इच्छा है, तो हम पानीपत की लड़ाई कब हुई थी, पानीपत की लड़ाई क्यों हुई थी और पानीपत की लड़ाई किसके बीच हुई, इस बारे में आगे विस्तार से बता रहे हैं।
पानीपत की लड़ाई कहां हुई थी , सोच रहे हैं, तो बता दें यह भारत के हरियाणा राज्य में स्थित पानीपत नामक स्थान में हुआ है।
पानीपत की लड़ाई कहां हुई थी, इसका भूगोल और महत्व जानना जरूरी है। पानीपत भारत के उत्तरी भाग में स्थित है, जो दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर उत्तर में है। पानीपत ने भारतीय इतिहास में तीन महत्वपूर्ण लड़ाइयों को देखा है, जिन्हें पानीपत की लड़ाई के रूप में जाना जाता है। इन लड़ाइयों का भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इन ऐतिहासिक लड़ाइयों और मुगल व मराठा साम्राज्यों के साथ अपने जुड़ाव के कारण यह शहर सांस्कृतिक महत्व रखता है।
पानीपत की लड़ाई भारत के इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक रही है, जो तीन बार पानीपत के मैदान में लड़ी गई—1526, 1556 और 1761 में। इन युद्धों का भारत की राजनीतिक और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ा। पहली लड़ाई ने मुगल साम्राज्य की नींव रखी, दूसरी ने दिल्ली में मुगलों की सत्ता को मजबूत किया, जबकि तीसरी लड़ाई ने मराठा साम्राज्य के विस्तार पर विराम लगा दिया।
पानीपत की लड़ाई का स्थल उत्तरी भारत के फैले हुए मैदानों में हुआ था।
दिल्ली को तबाही से बचाने और उसे सुरक्षित रखने के लिए ही दिल्ली के राजाओं द्वारा दिल्ली से पानीपत युद्ध किया जाता था। क्योंकि उस समय दिल्ली पर हमला कर उसकी गद्दी पर राज करने के लिए हमलावर पंजाब की तरफ से आते थे, जिन्हें दिल्ली जाने के लिए पानीपत से गुजरना पड़ता था।
जैसे ही दिल्ली के राजा को पता चलता था कि हमलावर दिल्ली पर हमला करने के लिए आ रहे हैं, दिल्ली के राजा द्वारा पहले ही पानीपत में अपना डेरा जमा लिया जाता था। हमलावरों को पानीपत में ही रोक लिया जाता था। जिसकी वजह से दिल्ली सुरक्षित रहती और जो भी राजा इस लड़ाई को जीत जाता था वह दिल्ली की गद्दी पर जाकर काबिज हो जाता। उस समय पानीपत एक ऐसा स्थान था जिसके दोनों तरह नहरे थी एक तरफ यमुना नहर, जबकि दूसरी तरफ दिल्ली पैरलर नहर थी। दोनों तरफ नहर नजदीक होने की वजह से दोनों सेनाओं को पानी आराम से मिल जाता था।
पानीपत की लड़ाई क्यों हुई थी, इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार माना जाता है। इसके कुछ मुख्य कारणों के बारे में आगे विस्तार से जानेंगे।
पानीपत में कई युद्ध हुए हैं, जिनका भारत के इतिहास पर गहरा असर पड़ा है। पहला युद्ध 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच हुआ था।
जब पानीपत की लड़ाई की बात होती है, तो यह जानना जरूरी है कि किस युद्ध की बात हो रही है, क्योंकि तीन बार लड़ाई हुई थी।
पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच हुई। इस लड़ाई में बाबर ने मुख्य रूप से मध्य एशियाई तुर्क-मंगोल सैनिकों और अफगान सहयोगियों से बनी सेना का नेतृत्व किया। वहीं इब्राहिम लोदी ने दिल्ली सल्तनत की सेना का नेतृत्व किया, जिसमें मुख्य रूप से अफगान और भारतीय सैनिक शामिल थे।
बाबर | इब्राहिम लोदी |
मध्य एशियाई तुर्क-मंगोल सैनिकों और अफगान सहयोग | दिल्ली सल्तनत की सेना(अफगान और भारतीय सैनिक) |
लगभग 15,000 सैनिक और 20 से 24 तोपें | लगभग 30,000 से 40,000 सैनिक और कम-से-कम 1000 हाथी |
बाबर द्वारा शुरू की गई नई युद्ध रणनीति तुलुगमा और अराबा थी। तुलुगमा में पूरी सेना को लेफ्ट, राईट और केंद्र जैसी तीन इकाइयों में विभाजित किया गया। लेफ्ट और राइट डिवीजनों को आगे फॉरवर्ड और रियर डिवीजनों में विभाजित किया गया था। इसके कारण, एक छोटी सेना चारों ओर से दुश्मन को घेरने में सक्षम हो पाई। केंद्र फॉरवर्ड डिवीजन को carts(अराबा) प्रदान किये गए थे, जो दुश्मन का सामना करने वाली पंक्तियों में रखे गए थे और एक दूसरे से रस्सियों से बांधे गए थे।
इब्राहिम लोधी के पास एक विशाल सेना थी, फिर भी वह बाबर से हार गया। ऐसा कहा जा सकता है कि यह तोपखाने, तोप के कारण संभव हुआ। तोप की आवाज इतनी तेज थी कि उसने इब्राहिम लोधी के हाथियों को डरा दिया और लोधी के ही आदमियों को रौंद डाला। यह भी कहा जाता है कि बंदूकों और सभी के अलावा, यह एक बाबर की रणनीति थी जिसने उसे जीत हासिल कराई।
पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर और मुगल साम्राज्य को जीत मिली। युद्ध के दौरान इब्राहिम लोदी मारा गया और बाबर की जीत ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। इस युद्ध ने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर मुगल शासन की शुरुआत की और इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन शुरू हुए।
पानीपत की पहली लड़ाई जैसी ही जबरदस्त थी, वैसी ही दूसरी लड़ाई भी थी। यह युद्ध 5 नवंबर 1556 को हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर के बीच हुआ था।
पानीपत की लड़ाई कब हुई थी? अगर पानीपत के द्वितीय युद्ध के बारे में बात करें तो, पानीपत का द्वितीय युद्ध 5 नवंबर, 1556 को हुआ था। पानीपत की दूसरी लड़ाई दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक हुमायूं के मृत्यु के बाद हुआ। दरअसल, हुमायूं की मृत्यु के बाद, दिल्ली सल्तनत कमजोर हो गई। इसके चलते हेमू, जिन्हें चंद्रगुप्त के वंशज माना जाता है, ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और खुद को सम्राट घोषित कर दिया। युवा अकबर, अपने संरक्षक बैरम खान के साथ, हेमू से दिल्ली का सिंहासन वापस लेना चाहते थे, जिसके परिणाम स्वरुप दिल्ली के नजदीक पानीपत में लड़ाई को अंजाम दिया गया।
पानीपत का द्वितीय युद्ध अकबर के मुगल साम्राज्य और हेमू के नेतृत्व में अफगान और भारतीय शासकों के गठबंधन के बीच हुआ था। अकबर की सेना में फारसी, भारतीय और मध्य एशियाई सैनिकों शामिल थी। उन्होंने तोपखाने और घुड़सवार सेना की रणनीति का इस्तेमाल किया, जिसमें गतिशीलता और समन्वय पर ध्यान दिया गया। हेमू, एक प्रमुख अफगान रईस और दिल्ली के प्रशासन में मंत्री, ने अफगानों, राजपूतों और अन्य भारतीय सहयोगियों से मिलकर एक गठबंधन सेना तैयार की। उनकी रणनीति मुगल सेनाओं को परास्त करने के लिए हाथियों और पारंपरिक भारतीय युद्ध रणनीति का उपयोग करना था।
पानीपत की दूसरी लड़ाई के परिणामस्वरूप अकबर के अधीन मुगल साम्राज्य को जीत मिली। इस जीत ने उत्तरी भारत पर मुगल नियंत्रण को मजबूत किया और इस क्षेत्र में अफगान रईसों की शक्ति को एक बड़ा झटका मिला। यह अकबर की शक्ति के वृद्धि और मुगल साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इस लड़ाई ने पारंपरिक भारतीय और अफगान रणनीति के खिलाफ मुगल तोपखाने और सैन्य संगठन की प्रभावशीलता को भी उजागर किया, जिसने क्षेत्र में बाद की सैन्य रणनीतियों को प्रभावित किया।
पानीपत की धरती पर पहले दो युद्धों का खून अभी सूखा भी नहीं था कि उसे तीसरी बड़ी लड़ाई भी देखनी पड़ी। यह युद्ध 14 जनवरी 1761 को मराठा साम्राज्य और अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी के बीच हुआ, जिसमें उसके साथ दो भारतीय मुस्लिम सहयोगी – रोहिला अफगान और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला भी शामिल थे।
पानीपत की लड़ाई किसके बीच हुई? यह लड़ाई मराठा सेना कमांडर सदाशिव राव भाऊ और अहमद शाह अब्दाली के बीच में हुआ।
पानीपत का तृतीय युद्ध में अहमद शाह दुर्रानी और दुर्रानी साम्राज्य की जीत हुई। मराठों को भारी क्षति हुई और उन्हें कई इलाकों का नुकसान उठाना पड़ा। इस युद्ध ने उत्तरी भारत में मराठा विस्तार को समाप्त कर दिया और इस क्षेत्र में उनकी शक्ति और प्रभाव को काफी कमजोर कर दिया। इस युद्ध ने उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों पर अहमद शाह दुर्रानी के नियंत्रण को मजबूत किया।
पानीपत की पहली, दूसरी और तीसरी लड़ाई के तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव हुए है।
पानीपत की लड़ाई में कई नायक शामिल थे। इन योद्धाओं के बारे में आगे विस्तार से जानेंगे।
पानीपत की लड़ाई संघर्षों की एक स्मारकीय श्रृंखला है जिसने सदियों से भारतीय इतिहास की दिशा को आकार दिया है। बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की स्थापना से लेकर अकबर द्वारा सत्ता को मजबूत करने और अहमद शाह दुर्रानी के निर्णायक प्रभाव तक, प्रत्येक लड़ाई ने राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैन्य गतिशीलता को महत्वपूर्ण मोड़ दिए।
बाबर ने एक विशेष रणनीति अपनाई, जिसे “तुलगुमा” कहा जाता है, जिसमें उसने अपनी सेना को इब्राहीम लोदी की सेना को घेरने के लिए उकसाया। बाबर ने एक किलेबंदी की रणनीति का उपयोग किया और घातक युद्ध विधियों का इस्तेमाल किया।
बाबर ने भारत में प्रवेश करने के लिए उत्तरी-पश्चिमी मार्ग का उपयोग किया, जिसे Khyber Pass (खैबर दर्रा) कहा जाता है। यह मार्ग अफगानिस्तान से भारत के उत्तरी हिस्से में प्रवेश का एक महत्वपूर्ण रास्ता था।
तीसरी पानीपत की लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य के पुनर्निर्माण में प्रमुख व्यक्तियों में माधव राव I और नाना फड़नवीस शामिल थे। माधव राव ने मराठा साम्राज्य को पुनर्जीवित करने के लिए कड़ी मेहनत की, जबकि नाना फड़नवीस ने प्रशासनिक सुधारों और राजनैतिक सुधारों को लागू किया।
बाबर की सेना में “कुल्हारी” (तोप) का व्यापक उपयोग किया गया था। ये तोपें दुश्मन की सेना पर दूर से ही आक्रमण करने में सक्षम थीं और उन्होंने लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभाई। इन तोपों के प्रभावी उपयोग ने इब्राहीम लोदी की सेना की रक्षा को भंग कर दिया।
पानीपत की तीनों लड़ाइयाँ निम्न तिथियों को लड़ी गई थीं:
प्रथम युद्ध: 21 अप्रैल 1526
द्वितीय युद्ध: 5 नवंबर 1556
तृतीय युद्ध: 14 जनवरी 1761
पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच लड़ी गई थी।
पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को अकबर और हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू) के बीच लड़ी गई थी, जो मुगलों की सत्ता को दिल्ली में मजबूत करने वाली थी।
इन लड़ाइयों ने भारतीय राजनीति, साम्राज्य की संरचना और सामाजिक बदलावों पर गहरा प्रभाव डाला। पहली लड़ाई ने मुगलों को भारत में स्थापित किया, दूसरी ने अकबर के शासन को मजबूत किया, और तीसरी ने मराठों की बढ़ती ताकत को रोक दिया।
तराइन की तीसरी लड़ाई 13 मार्च 1361 को सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ और आमिर तैमूर के बीच लड़ी गई थी।
हरियाणा का पहला शासक कुरु वंश का राजा कृष्ण माने जाते हैं। हालांकि, ऐतिहासिक दृष्टि से हरियाणा क्षेत्र का प्रमुख शासक महाभारत काल में कुरु साम्राज्य के तहत था।
मराठों को पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) में हार का मुख्य कारण उनके कमजोर संगठन, आपूर्ति की कमी, और अहमद शाह दुर्रानी के मजबूत अफगान गठबंधन का सामना करना था। मराठों के पास पर्याप्त सैनिक नहीं थे, और उनके नेतृत्व में भी कुछ महत्वपूर्ण रणनीतिक गलतियाँ हुईं। इसके अलावा, मराठों के साथ एकजुट नहीं होने वाले उनके सहयोगी और दुर्रानी के साथ शामिल अन्य मुस्लिम सशस्त्र बलों ने भी निर्णायक भूमिका निभाई।
हरियाणा का प्राचीन नाम “हैरियाणा” था, जिसे कुछ इतिहासकार “हर्षवर्धन” के शासनकाल में “हर्षायण” भी कहते हैं। इसके अलावा, इसे “कुरु देश” भी कहा जाता था, क्योंकि यह महाभारत के समय कुरु वंश का क्षेत्र था।
Authored by, Aakriti Jain
Content Curator
Aakriti is a writer who finds joy in shaping ideas into words—whether it’s crafting engaging content or weaving stories that resonate. Writing has always been her way of expressing herself to the world. She loves exploring new topics, diving into research, and turning thoughts into something meaningful. For her, there’s something special about the right words coming together—and that’s what keeps her inspired.
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