Quick Summary
भारत का प्रायद्वीपीय पठार एक विशाल और विविधतापूर्ण भूभाग है जो भारत के दक्षिणी और मध्य भाग में फैला हुआ है। यह भूभाग न केवल अपनी भौगोलिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसमें पाई जाने वाली जैव विविधता और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण लगभग 2.5 बिलियन वर्ष पहले हुआ था और यह भूभाग भूगर्भीय गतिविधियों का परिणाम है।
इस आर्टिकल में हम, प्रायद्वीपीय पठार किसे कहते हैं, प्रायद्वीपीय पठार का मानचित्र, प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं, प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है और प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन करेंगे।
सबसे पहले हम समझते हैं कि प्रायद्वीपीय पठार किसे कहते हैं। दरअसल प्रायद्वीपीय पठार एक ऐसा क्षेत्र है जो एक उन्नत और ऊँचा भूभाग होता है, जिसके चारों ओर निम्न भूमि होती है। यह पठार मुख्य रूप से पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय और कायांतरित चट्टानों से बना होता है। भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण भूगर्भीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप हुआ है और यह भूभाग भारत के भूगोल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उदाहरण के लिए: भारत में दक्कन का पठार सबसे पुराने पठारों में से एक माना जाता है। जब नदी का पानी पठार की सतह से कटता है तो वे एक घाटी का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए, कोलंबिया पठार, जो उत्तर-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में कैस्केड और रॉकी पहाड़ों के बीच बना है, कोलंबिया नदी द्वारा काटा जाता है।
पठार का नाम | स्थान | मुख्य विशेषताएँ |
दक्कन का पठार | दक्षिण भारत | सबसे बड़ा पठार, पश्चिमी और पूर्वी घाट से घिरा |
छोटा नागपुर पठार | झारखंड, पश्चिम बंगाल | खनिज संसाधनों से भरपूर, कोयला खदानें |
मालवा पठार | मध्य प्रदेश, राजस्थान | लावा प्रवाह से बना, काली मिट्टी |
बघेलखंड | मध्य प्रदेश | चूना पत्थर और बलुआ पत्थर, नदी घाटी |
मेघालय पठार | मेघालय | खासी, गारो, और जैंतिया पहाड़ियाँ |
प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) को पृथ्वी की सबसे पुरानी भू-आकृतियों में से एक माना जाता है। ये अत्यधिक स्थिर ब्लॉकों से बने त्रिभुजाकार के होते हैं। इनका आधार उत्तर भारत के विशाल मैदान के दक्षिणी किनारे से मेल खाता है। कन्याकुमारी को त्रिभुजाकार पठार के शीर्ष के रूप में जाना जाता है। इस पठार के अंतर्गत आने वाला कुल क्षेत्रफल 16 लाख वर्ग किमी है।
भूगर्भीय संरचना | प्रायद्वीपीय पठार मुख्य रूप से पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय और कायांतरित चट्टानों से बना है। यह भूभाग लगभग 2.5 बिलियन वर्ष पुराना है। |
ऊँचाई | प्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊँचाई 600-900 मीटर है, जिसमें कई पहाड़ियाँ और चोटियाँ स्थित हैं। |
विशाल क्षेत्र | यह पठार लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 43% है। |
नदी तंत्र | इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, और ताप्ती हैं। ये नदियाँ कृषि और जल संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। |
भू-आकृतिक विभाजन | प्रायद्वीपीय पठार को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: दक्कन का पठार, सेंट्रल हाइलैंड्स, और पूर्वोत्तर पठार। |
ज्वालामुखीय चट्टानें | दक्कन के पठार में बेसाल्ट की ज्वालामुखीय चट्टानें पाई जाती हैं, जो ज्वालामुखीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनी हैं। |
खनिज संसाधन | प्रायद्वीपीय पठार खनिज संसाधनों से भरपूर है, जिसमें कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, चूना पत्थर, और यूरेनियम प्रमुख हैं। |
कृषि भूमि | प्रायद्वीपीय पठार की काली मिट्टी और लाल मिट्टी कृषि के लिए उपयुक्त है। यहाँ मुख्य फसलें गन्ना, कपास, चावल, और गेहूं हैं। |
पर्यावरणीय चुनौतियाँ | प्रायद्वीपीय पठार के सामने वनों की कटाई, जल संसाधनों की कमी, और भूमि अपरदन जैसी पर्यावरणीय चुनौतियाँ हैं। |
जैव विविधता | यह क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध है, जिसमें विभिन्न प्रकार के वनस्पति और जीव-जंतु पाए जाते हैं। |
प्रायद्वीपीय पठार को उनकी विशेषताओं के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है-
दक्कन का पठार भारत का सबसे बड़ा और सबसे प्रमुख पठार है। यह पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के बीच स्थित है और इसकी औसत ऊँचाई 600-900 मीटर है। यह क्षेत्र कृषि और खनिज संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण है। इस पठार में बेसाल्ट की चट्टानें पाई जाती हैं, जो ज्वालामुखीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनी हैं। दक्कन का पठार तीन प्रमुख नदियों – गोदावरी, कृष्णा, और कावेरी – का जलग्रहण क्षेत्र भी है।
सेंट्रल हाइलैंड्स में विन्ध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ शामिल हैं। यह क्षेत्र नर्मदा और ताप्ती नदियों द्वारा विभाजित है और इसमें समृद्ध जैव विविधता पाई जाती है। सेंट्रल हाइलैंड्स का क्षेत्र मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में फैला हुआ है और इसमें कई महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थित हैं।
पूर्वोत्तर पठार मेघालय, असम और नागालैंड के कुछ हिस्सों को कवर करता है। यह क्षेत्र खासी, गारो और जैंतिया पहाड़ियों से घिरा हुआ है और इसकी भूगर्भीय संरचना अन्य क्षेत्रों से अलग है। इस पठार में कोयला, चूना पत्थर और यूरेनियम जैसे महत्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं।
प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार मुख्य रूप से दक्षिण भारत, मध्य भारत और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में होता है। यह पठार पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ है। इसके उत्तर में सतपुड़ा और विन्ध्य की पहाड़ियाँ और दक्षिण में नीलगिरी की पहाड़ियाँ स्थित हैं।
प्रायद्वीपीय पठार की प्रमुख नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, और ताप्ती शामिल हैं। ये नदियाँ इस क्षेत्र की कृषि और जल संसाधनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गोदावरी और कृष्णा नदियाँ पूर्वी घाट की ओर बहती हैं, जबकि नर्मदा और ताप्ती पश्चिमी घाट की ओर बहती हैं।
इस पठार की जलवायु विविधतापूर्ण है। यहाँ की जलवायु गर्मी के मौसम में गर्म और शुष्क होती है, जबकि मानसून के मौसम में भारी बारिश होती है। सर्दियों के मौसम में तापमान थोड़ा कम होता है। इस क्षेत्र की औसत वर्षा 500 से 1500 मिमी के बीच होती है।
प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी अन्नामलाई पहाड़ियों में स्थित अन्नामुडी है, जिसकी ऊँचाई लगभग 2,695 मीटर है। यह चोटी पश्चिमी घाट में स्थित है और इसे दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी माना जाता है। अन्नामुडी की पहाड़ियाँ ट्रेकिंग और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध हैं।
इस पठार का निर्माण मुख्य रूप से भूगर्भीय गतिविधियों और टेक्टोनिक प्लेट्स के आंदोलनों के कारण हुआ है। यह पठार पुराने गोंडवाना भूमि के विभाजन और ध्रुवों की गति के परिणामस्वरूप बना है। इस क्षेत्र की चट्टानें मुख्य रूप से आग्नेय, कायांतरित और अवसादी प्रकार की हैं।
प्रायद्वीपीय पठार की वनस्पति में उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, और घास के मैदान शामिल हैं। इस क्षेत्र में टीक, सागौन, और अन्य महत्वपूर्ण वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ की वनस्पति जलवायु और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है।
प्रायद्वीपीय पठार में विविध जीव-जंतु पाए जाते हैं जिनमें बाघ, तेंदुआ, हाथी, और विभिन्न प्रकार के पक्षी शामिल हैं। यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है और यहाँ कई वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान स्थित हैं। इन क्षेत्रों में संरक्षित वन्यजीवों की अनेक प्रजातियाँ निवास करती हैं।
प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ कृषि के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं। ये नदियाँ सिंचाई, जलप्रबंधन, और कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियाँ इस क्षेत्र की कृषि के लिए जीवनदायिनी हैं।
प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ बिजली उत्पादन, जल परिवहन, और मछली पालन में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। ये नदियाँ उद्योगों को जल आपूर्ति भी करती हैं। जलविद्युत परियोजनाओं के माध्यम से इस क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति की जाती है।
प्रायद्वीपीय पठार के वनों की कटाई एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती है। वनों की कटाई से जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है। इसके परिणामस्वरूप भूमि अपरदन, जलवायु परिवर्तन और वन्यजीवों के आवास का नुकसान होता है।
जल संसाधनों की कमी और सूखा इस क्षेत्र की प्रमुख समस्याएँ हैं। जलवायु परिवर्तन और असंतुलित जल उपयोग से यह समस्या और गंभीर हो रही है। जल संरक्षण और पुनर्चक्रण के प्रयास इस समस्या को हल करने में सहायक हो सकते हैं।
भारतीय प्रायद्वीपीय पठार एक महत्वपूर्ण भूभाग है जो अपनी भौगोलिक, जैविक और आर्थिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र न केवल भारत के प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है, बल्कि इसकी जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहर भी इसे विशेष बनाती है। प्रायद्वीपीय पठार की सुरक्षा और इसके संसाधनों का सतत उपयोग हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके संरक्षण के प्रयासों से हम इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को बनाए रख सकते हैं। इस आर्टिकल में हमने, प्रायद्वीपीय पठार किसे कहते हैं, प्रायद्वीपीय पठार का मानचित्र, प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताएं, प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है और प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन किया है।
प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) एक भौगोलिक क्षेत्र होता है, जो भूमि के उच्च और समतल हिस्से के रूप में होता है, जो समुंदर से तीन तरफ से घिरा होता है। यह क्षेत्र आमतौर पर पुरानी चट्टानों से बना होता है और उसमें कोई प्रमुख पहाड़ी श्रृंखला नहीं होती।
उदाहरण:
भारत का प्रायद्वीपीय पठार दक्षिण भारत में स्थित है, जिसे दक्कन पठार के नाम से भी जाना जाता है। यह पठार महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु के क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसका प्रमुख हिस्सा पूर्व और पश्चिम में समुद्र द्वारा घिरा हुआ है और यह भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य में स्थित है।
प्रायद्वीपीय पठार का दूसरा नाम दक्कन पठार (Deccan Plateau) है। यह भारत के दक्षिणी हिस्से में स्थित है और पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, और पश्चिमी तट से घिरा हुआ है।
प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुडी (Anai Mudi) है। यह चोटी नीलगिरि पहाड़ियों में स्थित है और इसकी ऊंचाई लगभग 2,695 मीटर (8,842 फीट) है। अनाईमुडी, भारत के दक्षिणी क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी मानी जाती है।
विश्व का सबसे बड़ा प्रायद्वीपीय पठार दक्कन पठार (Deccan Plateau) है। यह दक्षिण भारत में स्थित है और भारत के विशाल प्रायद्वीपीय पठार के रूप में प्रसिद्ध है। यह पठार लगभग 1,000,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
भारत में सात प्रमुख पठारों को “भारत के प्रमुख पठार” के रूप में जाना जाता है। ये निम्नलिखित हैं:
दक्कन पठार (Deccan Plateau)
राजस्थान पठार (Rajasthan Plateau)
मध्य भारत पठार (Madhya Bharat Plateau)
बंगाल का चम्बल पठार (Bengal Chambal Plateau)
उत्तर भारत पठार (North Indian Plateau)
सिंधु – पंजाब पठार (Indus-Punjab Plateau)
कर्नाटक पठार (Karnataka Plateau)
ये पठार भारतीय उपमहाद्वीप के भौगोलिक विभाजन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
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