संधि किसे कहते हैं

संधि किसे कहते हैं: जानें परिभाषा, प्रकार और उदाहरण!

Published on February 6, 2025
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Quick Summary

  • संधि शब्द का अर्थ है ‘जोड़’, जिसमें दो वर्णों के मिलन से एक नया वर्ण उत्पन्न होता है।
  • संधि का अध्ययन भाषा की गहराई और सौंदर्य को समझने में सहायक होता है।
  • संधि के विभिन्न प्रकार हैं:
    • स्वर संधि
    • व्यंजन संधि
    • विसर्ग संधि
  • संधि के माध्यम से भाषा की सुंदरता, शब्दों का निर्माण, व्याकरण की सरलता और विशेषताओं में वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया भाषा को और भी आकर्षक और प्रभावी बनाती है।

Table of Contents

Authored by, Amay Mathur | Senior Editor

Amay Mathur is a business news reporter at Chegg.com. He previously worked for PCMag, Business Insider, The Messenger, and ZDNET as a reporter and copyeditor. His areas of coverage encompass tech, business, strategy, finance, and even space. He is a Columbia University graduate.

संधि शब्द का अर्थ होता है ‘मेल’। यह दो वर्णों के मेल से एक नया वर्ण बनाने की प्रक्रिया है। संधि का अध्ययन करने से न केवल भाषा की समझ बढ़ती है बल्कि इसे सुंदर और प्रभावी बनाने में भी मदद मिलती है। इस ब्लॉग में हम संधि किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए, संधि के प्रकार, संधि की परिभाषा, संधि के उदाहरण और संधि किसे कहते हैं इसके प्रकार के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और संधि की परिभाषा समझेंगे।

संधि की परिभाषा | Definition of Sandhi

अक्सर प्रतियोगी परीक्षा में पूछा जाता है कि संधि किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए। इसलिए सबसे पहले हम समझेंगे कि संधि किसे कहते हैं इसके प्रकार कितने होते हैं? संधि शब्द संस्कृत के “सम्” और “धा” से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “मिलना” या “जोड़ना”। संधि दो या दो से अधिक वर्णों (स्वर या व्यंजन) के मिलने से उत्पन्न परिवर्तन) को कहते हैं।

जब दो वर्ण पास-पास आते हैं, तो उनके उच्चारण में कुछ बदलाव हो सकता है। यह बदलाव स्वरों और व्यंजनों के आधार पर भिन्न होता है।

संधि के उदाहरण | Examples of Sandhi

संधि के उदाहरण हमें यह समझने में मदद करते हैं कि किस प्रकार से दो या दो से अधिक वर्ण मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं। यहां कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं:

  • राम + इन्द्र = रामेन्द्र
  • विद्या + आलय = विद्यालय
  • लोक + उन्नति = लोकोन्नति
  • जल + अंश = जलांश
  • दिव + आलोक = दिवालोक

संधि के प्रकार | Types of Sandhi

संधि के प्रकार
संधि के प्रकार

संधि के प्रकार मुख्य रूप से तीन होतें है:

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

स्वर संधि किसे कहते हैं?

जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। जब दो स्वर मिलते हैं जब उससे जो तीसरा स्वर बनता है उसे स्वर संधि कहते हैं।

स्वर संधि के उदाहरण

  • वसुर+अरि = सुरारि (अ+अ = आ)
  • विद्या+आलय = विद्यालय (आ+आ = आ)
  • मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र (इ+इ = ई)
  • श्री+ईश = श्रीश ( ई+ई+ = ई)
  • गुरु+उपदेश = गुरुपदेश (उ+उ = ऊ)

स्वर संधि के पांच भेद | Five Types of Swar Sandhi

स्वर संधि के पाँच भेद हैं:

  • दीर्घ संधि
  • गुण संधि
  • वृद्धि संधि
  • यण संधि
  • अयादि संधि

1. दीर्घ संधि किसे कहते हैं:

जब दो समान स्वरों के मिलन से दीर्घ स्वर बनता है। इस संधि को हस्व संधि भी कहा जाता है। इसमें हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’, के पश्चात क्रमशः हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’ स्वर आएं तो दोनों को मिलाकर दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते है। जैसे-

उदाहरण –

मूल रूपसन्धिमूल रूपसन्धि
अ + अ =आधर्म + अर्थ = धर्मार्थ
मत + अनुसार = मतानुसार
वीर + अगंना = विरांगना
ई + ई = ईरजनी + ईश = रजनीश
योगी + इन्द्र = योगीन्द्र
जानकी + ईश = जानकीश
नारी + र्दश्वर = नारीश्वर
आ + आ = आविद्या + आलय = विद्यालय
महा + आत्मा = महात्मा
महा + आनन्द =महानन्द
उ + उ = ऊभानु + उदय = भानूदय
आ + अ =आपरीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
रेखा + अंश = रेखांश
सीमा + अन्त = सीमान्त
उ + ऊ = ऊघातु + ऊष्मा = धातूष्मा
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
सिंघु + ऊर्मि = सिंघूर्मि
लघु + उत्तर = लघूत्तर
इ + इ = ईअति + इव = अतीव
कवि + इन्द्र = कवीन्द्र
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
कपि + इन्द्र = कपिन्द्र
ऊ + उ = ऊवधू + उत्सव = वधूत्सव
इ + ई = ईगिरि + ईश = गिरीश
परि + ईक्षा = परीक्षा
हरि + ईश = हरीश
ऊ + ऊ = ऊभू + ऊर्जा = भूर्जा
भू + उद्धार = भूद्वार
भू + ऊष्मा = भूष्मा
ई + इ = ईमही + इन्द्र = महीन्द्र
दीर्घ संधि के उदाहरण

2. गुण संधि किसे कहते हैं:

जब अ, आ और ए के मेल से अन्य स्वर बनते हैं, तब गन संधि बनती है। दूसरे शब्दों में यदि अ और आ के बाद इ या ई, उ या ऊ तथा ऋ स्वर आए तो दोनों के मिलने के क्रमशः ए, ओ और अर हो जाते है, जैसे या, ऊ, तथा, ऋ।

उदाहरण –

मूल रूपसन्धि
आ + इ = एनर + इन्द्र = नरेन्द्र
अ + ई = एनर + ईश = नरेश
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
सोम + ईश्वर = सोमेश्वर
आ + इ = एरमा + इन्द्र = रमेन्द्र
आ + ई + एमहा + ईश = महेश
महा + इन्द्र = महेन्द्र
राका + ईका = राकेश
राजा + इन्द्र = राजेन्द्र
रमा + ईश = रमेश
अ + उ = ओवीर + उचित = वीरोचित
अ + ऊ = ओपर + उपकार = परोपकार
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
हित + उपदेश = हितोपदेश
आ + उ = ओमहा + उदय = महोदय
आ + ऊ = ओमहा + ऊष्मा = महोष्मा
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + ऊर्जा = महोर्जा
अ + ऋ = अरदेव + ऋषि = देवर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
राज + ऋषि = राजर्षि
गुण संधि के उदाहरण

3. वृद्धि संधि किसे कहते हैं:

जब ( अ, आ ) के साथ ( ए, ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ, आ ) के साथ ( ओ, औ )हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।

उदाहरण –

मूल रूपसन्धि
अ + ए = ऐएक + एक = एकैक
लोक + एषणा = लोकैषणा
वित + एषणा = वितैषणा
अ + ऐ = ऐनव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य
भाव + ऐक्य = भवैक्य
मत + ऐक्य = मतैक्य
आ + ए = ऐतथा + एव = तथैव
सदा + एव = सदैव
अ + ओ = औजल + ओघ = जलौघ
दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
परम + ओज = परमौज
वन + ओषधि = वनौषधि
अ + औ = औदेव + औदार्य = देवौदार्य
परम + औदार्य = परमौदार्य
परम + औषध = परमौषध
आ + ओ = औमहा + ओज = महौज
महा + ओजस्वी = महौजस्वी
वृद्धि संधि के उदाहरण

4. यण संधि किसे कहते हैं:

जब ( इ, ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है, जब ( उ, ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है, जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।

उदाहरण 

मूल रूपसन्धि
इ + अ = यअति + अधिक = अत्यधिक
अति + अन्त = अत्यन्त
अति + अल्प = अत्यल्प
यदि + अपि = यद्यपि
ई + अ = यनदी + अम्बु = नद्यम्बु
इ + आ = याअति + आचार = अत्याचार
अति + आनंद = अत्यानंद
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
अभि + आगत = अभ्यागत
इति + आदि = इत्यादि
परि + आवरण = पर्यावरण
वि + आप्त = व्याप्त
ई + आ = यासखी + आगमन = सख्यागमन
देवी + आगम = देव्यागमन
नदी + आगम = नद्यागमन
नदी + आमुख = नद्यामुख
इ + उ = युअति + उत्तम = अत्युत्तम
उपरि + युक्त = उपर्युक्त
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
इ + ऊ = यूअति + ऊष्ण = अत्यूष्ण
अति + ऊर्ध्व = अत्यूर्ध्व
नि + ऊन = न्यून
वि + ऊह = व्यूह
यण संधि के उदाहरण

5. अयादि संधि किसे कहते हैं:

जब ( ए, ऐ, ओ, औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ ए – अय ‘ में, ‘ ऐ – आय ‘ में, ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव ‘ ण जाता है। य, व् से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।

उदहरण –

मूल रूपसन्धि
ए + अ = अयशे + अन = शयन
ने + अन = नयन
चे + अन = चयन
ऐ + अ = आयगै + अक = गायक
नै + अक = नायक
ओ + अ = अव्भो + अन = भवन
पो + अन = पवन
श्रो + अन = श्रवण
औ + अ = आव्
श्रौ + अन = श्रावण
पौ + अन = पावन
पौ + अक = पावक
औ + इ = आविपौ + इत्र = पवित्र
नौ + इक = नाविक
अयादि संधि के उदाहरण

व्यंजन संधि किसे कहते हैं?

व्यंजन संधि तब होती है जब दो व्यंजनों के मिलने से एक नई ध्वनि का निर्माण होता है। इसमें स्वर का परिवर्तन नहीं होता, केवल व्यंजन बदलते हैं। व्यंजन संधि के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  1. जस संधि: जब स और श का मेल होता है।
    • उदाहरण: दस + शतम = दशशतम
  2. सवर्ण व्यंजन संधि: जब समान व्यंजनों का मेल होता है।
    • उदाहरण: लोक + क = लोको
  3. व्यंजन संधि: जब विभिन्न व्यंजनों का मेल होता है।
    • उदाहरण: मनस + क = मनस्क

अन्य उदाहरण

  • जगत्+नाथ = जगन्नाथ (त्+न = न्न)
  • सत्+जन = सज्जन (त्+ज = ज्ज)
  • उत्+हार = उद्धार (त्+ह =द्ध)
  • सत्+धर्म = सद्धर्म (त्+ध =द्ध)
  • आ+छादन = आच्छादन (आ+छा = च्छा)

व्यंजन संधि के नियम

1. क् के ग् में बदलने के उदाहरण

  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • वाक् +ईश = वागीश

2. च् के ज् में बदलने के उदाहरण

  • अच् +अन्त = अजन्त
  • अच् + आदि =अजादी

3. ट् के ड् में बदलन के उदाहरण

  • षट् + आनन = षडानन
  • षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
  • षड्दर्शन = षट् + दर्शन
  • षड्विकार = षट् + विकार
  • षडंग = षट् + अंग

यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है। उदाहरण-

4. क् के ङ् में बदलने के उदाहरण:

  • वाक् + मय = वाङ्मय
  • दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
  • प्राङ्मुख = प्राक् + मुख

5. ट् के ण् में बदलने के उदाहरण:

  • षट् + मास = षण्मास
  • षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
  • षण्मुख = षट् + मुख

जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा। उदाहरण:

6. म् + क ख ग घ ङ के उदाहरण:

  • सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
  • सम् + ख्या = संख्या
  • सम् + गम = संगम
  • शंकर = शम् + कर

7. म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदाहरण:

  • सम् + चय = संचय
  • किम् + चित् = किंचित
  • सम् + जीवन = संजीवन

8. म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के उदाहरण:

  • दम् + ड = दण्ड/दंड
  • खम् + ड = खण्ड/खंड

विसर्ग संधि किसे कहते हैं?

विसर्ग संधि तब होती है जब विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आता है और इससे एक नई ध्वनि का निर्माण होता है। विसर्ग संधि के उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  1. विसर्ग + क:
    • उदाहरण: आः + क = आक
  2. विसर्ग + प:
    • उदाहरण: आः + प = आप
  3. विसर्ग + त:
    • उदाहरण: आः + त = आत

विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’ बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ‘ओ‘ हो जाता है। उदाहरण:

  • मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
  • अधः + गति = अधोगति
  • मनः + बल = मनोबल
  • निः + चय = निश्चय
  • दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
  • ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
  • निः + छल = निश्छल
  • तपः + चर्या = तपश्चर्या
  • अन्तः + चेतना = अन्तश्चेतना
  • हरिः + चन्द्र = हरिश्चन्द्र
  • अन्तः + चक्षु = अन्तश्चक्षु

विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता ह। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।

  • दुः + शासन = दुश्शासन
  • यशः + शरीर = यशश्शरीर
  • निः + शुल्क = निश्शुल्क
  • निः + आहार = निराहार
  • निः + आशा = निराशा
  • निः + धन = निर्धन
  • निः + श्वास = निश्श्वास
  • चतुः + श्लोकी = चतुश्श्लोकी
  • निः + शंक = निश्शंक

विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।

  • धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
  • चतुः + टीका = चतुष्टीका
  • चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
  • निः + चल = निश्चल
  • निः + छल = निश्छल
  • दुः + शासन = दुश्शासन

विसर्ग संधि के भेद

  1. उत्व विसर्ग संधि
  2. रुत्व विसर्ग संधि
  3. सत्व विसर्ग संधि

संधि विच्छेद के उदाहरण

संधि विच्छेद का मतलब होता है, किसी शब्द को उसके मूल स्वरूप में तोड़ना। यानी संधि वाले शब्द को दो या दो से अधिक शब्दों में विभाजित करना।

  • उद्धत – उत् + हत (व्यंजन सन्धि)
  • कंठोष्ठ्य – कंठ + ओष्ठ्य (गुण सन्धि)
  • अन्वय – अनु + अय (यण् सन्धि)
  • किंचित् – किम् + चित् (व्यंजन सन्धि)
  • घनानंद – घन + आनन्द (दीर्घ सन्धि)
  • एकैक – एक + एक (वृद्धि सन्धि)
  • अधीश्वर – अधि + ईश्वर (दीर्घ सन्धि)
  • अभ्यागत – अभि + आगत (यण् सन्धि)
  • उच्छ्वास – उत् + श्वास (व्यंजन सन्धि)
  • जगद्बन्धु – जगत् + बन्धु (व्यंजन सन्धि)
  • तपोवन – तपः + वन (विसर्ग सन्धि)
  • अब्ज – अप् + ज (व्यंजन सन्धि)
  • दृष्टान्त – दृष्ट + अंत (दीर्घ सन्धि)
  • दुर्बल – दुः + बल (विसर्ग सन्धि)
  • तल्लय – तत् + लय (व्यंजन सन्धि)

संधि का महत्व

भाषा की सुंदरता

संधि का प्रयोग भाषा को सुंदर और प्रभावी बनाता है। यह शब्दों के मेल से नए शब्द और ध्वनियों का निर्माण करता है, जो भाषा को समृद्ध बनाते हैं। संधि के माध्यम से भाषा की ध्वन्यात्मकता बढ़ती है और यह सुनने में मधुर लगती है।

शब्द निर्माण

संधि के माध्यम से नए शब्दों का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया भाषा में नए शब्द जोड़ती है, जिससे भाषा की शब्दावली बढ़ती है। संधि के द्वारा बने शब्द अधिक प्रभावी और अर्थपूर्ण होते हैं।

व्याकरण की सरलता

संधि का सही प्रयोग व्याकरण को सरल और समझने योग्य बनाता है। यह शब्दों के मेल से बने नए शब्दों के प्रयोग को आसान बनाता है। संधि के माध्यम से शब्दों का मेल और उनके प्रयोग का सही तरीका समझ में आता है।

संधि की विशेषताएं

संधि की विशेषताएं निम्न है-

ध्वनि परिवर्तन: संधि में शब्दों के जोड़ने के दौरान ध्वनि का परिवर्तन होता है, जिससे नए शब्द का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, ‘राम’ और ‘आलय’ के संधि से ‘रामालय’ बनता है।

स्वरों का मेल: संधि में अक्सर स्वर ध्वनियों का मेल होता है। जैसे ‘अ’ और ‘अ’ के मेल से ‘आ’ बनता है। यह प्रक्रिया विभिन्न स्वर संधियों में देखी जाती है।

व्यंजन संधि: संधि में केवल स्वर ही नहीं, बल्कि व्यंजन भी परिवर्तन करते हैं। जैसे ‘तत्’ और ‘एव’ के संधि से ‘तदेव’ बनता है।

शब्दों की अर्थवत्ता: संधि के कारण बने नए शब्द का अर्थ मूल शब्दों से संबंधित होता है। यह शब्द को अधिक संक्षिप्त और प्रभावी बनाता है।

यह भी पढ़ें:

संज्ञा के 10 उदाहरण

निष्कर्ष

इस ब्लॉग में हमने संधि किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए, संधि के प्रकार, संधि की परिभाषा, संधि के उदाहरण और संधि किसे कहते हैं इसके प्रकार के बारे में विस्तार से चर्चा की।

संधि हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है। इसके माध्यम से भाषा को सुंदर, प्रभावी और समझने योग्य बनाया जा सकता है। संधि के विभिन्न प्रकार और उनके उदाहरण हमें यह समझने में मदद करते हैं कि किस प्रकार से शब्दों का मेल और उनका सही प्रयोग किया जा सकता है। संधि के माध्यम से भाषा की ध्वन्यात्मकता और शब्दावली बढ़ती है, जो भाषा को अधिक प्रभावी और अर्थपूर्ण बनाती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

संधि किसे कहते हैं, कितने प्रकार की होती है?

संधि दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से होने वाले विकार को कहते हैं। जब दो शब्दों को जोड़ा जाता है, तो उनके अंतिम वर्ण और शुरुआती वर्ण में परिवर्तन हो सकता है। इस परिवर्तन को ही संधि कहते हैं। संधि ‘तीन’ प्रकार की होती हैं – स्वर संधि, व्यंजन संधि तथा विसर्ग संधि।

स्वर संधि किसे कहते हैं, इसके कितने भेद होते हैं?

स्वर संधि में स्वर वर्णों के मेल से होने वाले परिवर्तन को देखा जाता है। इसके मुख्य भेद निम्न हैं:
दीर्घ संधि: जब दो समान स्वर मिलते हैं, तो एक दीर्घ स्वर बनता है।
गुण संधि: अ + इ = ए, अ + उ = ओ
वृद्धि संधि: अ + ऐ = ऐ, अ + औ = औ
यण संधि: इ, उ, ऋ के बाद कोई अन्य स्वर आने पर य, व, र बनते हैं।
अयादि संधि: ऋ, ऋ, लृ के बाद कोई अन्य स्वर आने पर अय, अव, अर बनते हैं।

व्यंजन संधि के भेद कितने होते हैं?

व्यंजन संधि के दो भेद होते हैं: सरल व्यंजन संधि, विसर्ग संधि।

स्वर संधि की पहचान कैसे करें?

स्वर संधि की पहचान करने के लिए आप शब्दों के अंतिम और शुरुआती वर्णों पर ध्यान दें। यदि इन वर्णों में कोई परिवर्तन हुआ है और वह परिवर्तन स्वर वर्णों में हुआ है, तो यह स्वर संधि है। उदाहरण के लिए, “देव + ऋषि” = “देवर्षि” में ‘अ’ और ‘ऋ’ के मेल से ‘ऋ’ बना है, यह स्वर संधि का उदाहरण है।

संधि के कितने अंग होते हैं?

संधि के दो अंग होते हैं:
पूर्व पद: जो शब्द पहले आता है।
उत्तर पद: जो शब्द बाद में आता है।

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