वर्ली आर्ट : भारतीय आदिवासी कला की अनूठी धरोहर

November 28, 2024
वर्ली आर्ट
Quick Summary

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  • वर्ली आर्ट महाराष्ट्र के वर्ली गांव से उत्पन्न एक पारंपरिक भारतीय कला रूप है।
  • यह कला दीवारों पर चित्रकला के रूप में प्रचलित है, जिसमें ज्यामितीय आकार और प्राकृतिक तत्व होते हैं।
  • वर्ली आर्ट में प्राकृतिक दृश्य, मानव आकृतियाँ, और सांस्कृतिक प्रतीक दर्शाए जाते हैं।
  • यह कला रूप आज भी लोकप्रिय है और आधुनिक डिज़ाइन में भी प्रभाव डालता है।

Table of Contents

वारली आर्ट, महाराष्ट्र की आदिवासी जनजातियों द्वारा विकसित एक प्राचीन और समृद्ध कला है। यह अपनी सादगी और गहन भावनाओं के लिए जानी जाती है। यह कला मुख्य रूप से सफेद रंग का उपयोग करती है, जिसे लाल या भूरे रंग की मिट्टी की पृष्ठभूमि पर उकेरा जाता है। वारली चित्रकला में त्रिकोण, वृत्त और चौकोर आकृतियों का उपयोग होता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे खेती, नृत्य, शिकार और धार्मिक अनुष्ठानों को दर्शाते हैं। यह कला न केवल ग्रामीण जीवन की झलक प्रस्तुत करती है, बल्कि प्रकृति और मानवता के बीच के संबंधों को भी उजागर करती है। वारली आर्ट की सरल रेखाएं और प्राकृतिक सामग्री इसे एक अनूठी और पर्यावरण के अनुकूल कला बनाती हैं।

वर्ली आर्ट क्या है?

वर्ली आर्ट जिसे आदिवासी वारली पेंटिंग या वारली चित्रकला भी कहा जाता है, महाराष्ट्र के आदिवासी समुदायों द्वारा बनाई जाने वाली पारंपरिक कला है। यह कला विशेष रूप से वर्ली जनजाति के लोगों द्वारा रची जाती है। इस कला में मुख्य रूप से सफेद रंग का उपयोग होता है, जिसे लाल या भूरे रंग की मिट्टी की पृष्ठभूमि पर बनाया जाता है। वर्ली पेंटिंग्स में ज्यादातर आकृतियों में त्रिकोण, गोलाकार और चौकोर आकार होते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं जैसे कि खेती, नृत्य, शिकार और धार्मिक अनुष्ठान।

वारली चित्रकला और चित्रों की विशेषताएँ 

  1. ग्रामीण जीवन का चित्रण: वारली चित्रकला में चित्रों के माध्यम से वारली जनजाति की संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रूप में दिखाया जाता है।
  2. सरल रेखाएं: वर्ली कला में सरल रेखाओं का उपयोग किया जाता है, जो वृक्षों, पशुओं और मानव आकृतियों को दर्शाती हैं।
  3. त्रिभुज और वृत्त: त्रिभुज और वृत्त वर्ली कला के मूल आकार हैं। त्रिभुज पहाड़ों और पेड़ों को दर्शाता है, जबकि वृत्त सूर्य, चंद्रमा और अन्य गोलाकार वस्तुओं को दर्शाता है।
  4. धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषता: वारली चित्रकला का उपयोग मुख्यतः धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों के दौरान किया जाता है। जो उनकी धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  5. कहानी कहने की शैली: वारली चित्रकला में अक्सर चित्रों के माध्यम से कहानियाँ बताई जाती हैं। ये कहानियाँ साधारण और स्पष्ट होती हैं, जो किसी घटना या अनुष्ठान का वर्णन करती हैं।
  6. प्राकृतिक सामग्री: चित्र बनाने के लिए बांस की टहनियों, चावल के पेस्ट और प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो इस कला को पर्यावरण के अनुकूल बनाती है।
  7. कलात्मक अभिव्यक्ति: यह कलाकारों को अपनी रचनात्मकता और कल्पनाशीलता व्यक्त करने का माध्यम प्रदान करती है।

वर्ली कला का इतिहास क्या है?

वर्ली कला का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है। इसका इसिहास करीब 2500 से 3000 साल पहले का महाराष्ट्र के वर्ली जनजाति से जुड़ा हुआ बताया जाता है। इस कला का उपयोग मुख्य रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों के दौरान किया जाता था।

प्रारंभ में, वर्ली कला को दीवारों और मिट्टी की सतहों पर चित्रित किया जाता था। आजकल, वर्ली आर्ट का उपयोग केवल दीवारों तक सीमित नहीं है; यह कपड़े, पेपर, और विभिन्न प्रकार के सजावटी वस्तुओं पर भी किया जाने लगा है। यह एक लोकप्रिय आर्ट फॉर्म के रूप में भी उभरी है, जिसे लोग घरों की सजावट के लिए भी अपनाते हैं। समय के साथ, वर्ली कला ने अपनी पहचान को बनाए रखा और आज भी इसे पूरे विश्व में सराहा जाता है।

वर्ली आर्ट की शुरुआत कब और कैसे हुई?

वर्ली आर्ट की शुरुआत कब हुई, इसके बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन विशेषज्ञ और खोजकर्ताओं द्वारा अनुमान लगाया जाता है कि यह कला 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व से भी पहले की है।

वारली कला, आदिवासी जीवन, प्रकृति, देवी-देवताओं और आत्माओं के प्रति उनके गहरे संबंध को दर्शाने के लिए शुरू की गई थी। शुरुआत में, उत्तरी महाराष्ट्र के इलाकों के लोग वारली कला को मिट्टी की दीवारों और घरों पर सफेद रंग से बनाया करते थें। धीरे धीरे लोगों के बीच वर्ली आर्ट की लोकप्रियता बढ़ने लगी और यह पूरे भारत में प्रचलित होने लगी। 

वारली चित्रकला जनक

वारली चित्रकला में अपना योगदान देने वालें, जिव्या सोमा माशे और उनके बेटे बालू माशे को “वारली चित्रकला जनक” माना जाता है। ठाणे जिले में रहने वाले जिव्या सोमा माशे (वारली चित्रकला जनक) ने 1970 के दशक में, इस कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने वारली कला की सुंदरता और उसके सांस्कृतिक महत्व को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। उनकी मेहनत और समर्पण के कारण ही वारली चित्रकला आज एक विश्व प्रसिद्ध कला रूप बन गई है।

यह कला आदिवासी समुदाय की सामूहिक परंपरा का हिस्सा है, जिसे पीढ़ियों से सिखाया और आगे बढ़ाया गया है। हालांकि, इस कला को लोकप्रिय बनाने में कई और भी कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

वर्ली कला से जुड़ी जनजाति, क्षेत्र और राज्य (कौन सा भारतीय राज्य अपनी अनूठी वारली चित्रकला के लिए जाना जाता है?)

वर्ली कला मुख्य रूप से वार्ली जनजाति से जुड़ी हुई है, जो महाराष्ट्र के उत्तरी भाग में बसी हुई है। यह जनजाति मुख्यतः ठाणे और पालघर जिलों में निवास करती है। 

महाराष्ट्र राज्य के अलावा, वर्ली जनजाति के लोग गुजरात एवं दादरा और नगर हवेली (भारत का केंद्र शासित प्रदेश) के कुछ हिस्सों में भी पाए जाते हैं और वहां भी इस वारली चित्रकला का काफी प्रचलन है। 

ठाणे और पालघर जिलों के दीवारों पर, मंदिरों पर, स्कूलों पर, रेलवे और बस स्टैंड पर आपको वारली चित्रकला देखने को मिलेगी। यह ठाणे और पालघर जिलों को एक पर्यटन स्थल भी बनाती हैं। हालांकि, इस कला का अनोखा दृश्य आपको ठाणे और पालघर जिलों के अलावा विश्व भर के अन्य जगहों पर भी देखने को मिलेगा। वर्ली कला की पहचान उनके अनोखे और सरल चित्रण से होती है, जो उनके सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का हिस्सा है।

वारली चित्रकला के प्रकार 

वारली चित्रकला में मुख्य रूप से चार प्रकार के चित्रण शामिल होते हैं, जो उनकी विविधता और विशेषता को दर्शाते हैं:

  1. मानव आकृतियाँ (Human Figures): इसमें विभिन्न दैनिक गतिविधियों, नृत्य, खेती और त्यौहारों को दिखाने वाले मानव आकृतियों का चित्रण किया जाता है। ये आकृतियाँ ज्यामितीय रूपों, जैसे त्रिकोण और वृत्त, से बनती हैं, जिससे ये अनोखी दिखती हैं।
  2. प्रकृति और जानवर (Nature and Animals): वारली चित्रकला में पेड़-पौधे, जानवर और पक्षियों का चित्रण भी प्रमुखता से किया जाता है। ये चित्रण प्रकृति के साथ जनजातियों के गहरे संबंध को दर्शाते हैं।
  3. जीवन चक्र (Life Cycle): इसमें मानव जीवन के विभिन्न चरणों, जैसे जन्म, विवाह और मृत्यु के दृश्य शामिल होते हैं। ये चित्रण वारली जनजाति की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं।
  4. अनुष्ठानिक चित्र (Ritual Paintings): ये चित्रण धार्मिक और अनुष्ठानिक गतिविधियों से जुड़े होते हैं। इनमें देवी-देवताओं, पूजा और त्यौहारों से जुड़े चित्रण शामिल होते हैं, जो वारली जनजाति की धार्मिक मान्यताओं को दर्शाते हैं।

वर्ली आर्ट किस तरह बनता है?

वर्ली आर्ट बनाना एक बहुत ही दिलचस्प प्रक्रिया है, जिसमें प्राकृतिक सामग्री और कुछ तकनीकों का उपयोग होता है।

वर्ली आर्ट में इस्तेमाल होने वाली सामग्री

वर्ली आर्ट में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों में मुख्य रूप से गेरू (लाल मिट्टी) या गोबर, चावल का पेस्ट या पिसे हुए चावल से बनाया गया सफेद रंग एवं प्राकृतिक रंग जैसे पीला, हरा और लाल सामिल होते हैं। जिनका इस्तेमाल करके आदिवासी वारली पेंटिंग का निर्माण होता है।

वर्ली आर्ट की तकनीक और शैली

आदिवासी वारली पेंटिंग की तकनीक और शैली इसे एक अनोखा और आकर्षक आर्ट फॉर्म बनाती है। इसमें सरल ज्यामितीय आकृतियों और प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है, जो इसे विशेष बनाता है। 

आदिवासी वारली पेंटिंग पूरी तरह से कलाकार के रचनात्मकता अनुभव पर निर्भर करती है। वारली पेंटिंग में अत्यधिक आधुनिक पेंटिंग तकनीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ज्यादातर कलाकार अपने रचनात्मकता अनुभव और पहले से इस्तेमाल हो रही तकनीकों का ही इस्तेमाल करते हैं। 

वारली पेंटिंग को समझने के लिए इसके आर्ट शैली को भी जानना काफी जरूरी है। आदिवासी वारली पेंटिंग में इस्तेमाल किए जाने वाली तकनीक और शैलियां निम्नलिखित हैं।

तकनीक:

  • ब्रश: पहले के समय में, ब्रश के लिए बांस की लकड़ी या टहनियों का उपयोग होता था। आजकल, पारंपरिक ब्रश के अलावा, आधुनिक ब्रश और उपकरणों का भी उपयोग किया जाता है।
  • सतह: पारंपरिक रूप से वर्ली पेंटिंग्स मिट्टी की दीवारों पर बनाई जाती थीं। अब इन्हें कागज, कपड़े और कैनवास पर भी बनाया जाने लगा है।

शैली:

  • ज्यामितीय आकृतियाँ: वर्ली कला में त्रिकोण, वृत्त, और वर्ग जैसी ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग कर चित्र बनाए जाते हैं। ये आकृतियाँ मानव और पशु आकृतियों के निर्माण के लिए आधार होती हैं।
  • प्राकृतिक और ग्रामीण जीवन: वारली पेंटिंग में मुख्य रूप से ग्रामीण जीवन के दृश्य, जैसे खेती, शिकार, नृत्य, और त्यौहारों को दर्शाया जाता है। इसमें पेड़, पहाड़, सूर्य, चंद्रमा, और जानवरों को भी चित्रित किया जाता है।
  • सादगी और स्पष्टता: वर्ली कला की खासियत इसकी सादगी और स्पष्टता में है। इसमें बहुत अधिक विवरण या सजावट नहीं होती, जिससे चित्र आसानी से समझ में आते हैं और उनका सौंदर्य बढ़ जाता है।
  • समानता और संतुलन: चित्रों में समानता और संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है, जिससे पेंटिंग में एक विशेष प्रकार का सामंजस्य और सुंदरता उत्पन्न होती है।

वर्ली आर्ट बनाने से जुड़ी अन्य बातें

  • बारीकियों का ध्यान: चित्रण के दौरान बारीकियों का ध्यान रखा जाता है। हर विवरण को सटीकता से चित्रित किया जाता है।
  • कहानी का चित्रण: वर्ली कला में एक कहानी या दृश्य को चित्रित किया जाता है।
  • अंतिम स्पर्श: चित्रण के बाद अंतिम स्पर्श दिया जाता है, जिससे चित्र और भी जीवंत और आकर्षक बन जाता है।

इस प्रकार, वर्ली कला की सादगी और प्राकृतिक सुंदरता इसे विशेष बनाती है। इसे बनाते समय वर्ली जनजाति के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं को चित्रित करते हैं, जिससे यह कला और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष में, वारली आर्ट न केवल एक कला है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर है जो महाराष्ट्र की आदिवासी जनजातियों की जीवनशैली और परंपराओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है। इसकी सरल रेखाएं और प्राकृतिक सामग्री इसे एक अनूठी और पर्यावरण के अनुकूल कला बनाती हैं।

वारली चित्रकला में निहित गहन भावनाएं और जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण इसे विशेष बनाता है। यह कला हमें प्रकृति और मानवता के बीच के संबंधों को समझने में मदद करती है, और इसके माध्यम से हम आदिवासी समाज की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को भी जान सकते हैं। वारली आर्ट की यह यात्रा हमें न केवल भारतीय कला की गहराईयों में ले जाती है, बल्कि हमें एक नई दृष्टि से जीवन को देखने का अवसर भी प्रदान करती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

वर्ली कला क्या होती है?

वर्ली कला महाराष्ट्र की आदिवासी जनजातियों द्वारा बनाई जाने वाली पारंपरिक चित्रकला है। इसमें सफेद रंग का उपयोग लाल या भूरे रंग की मिट्टी की पृष्ठभूमि पर किया जाता है, और यह जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है।

वारली पेंटिंग कौन सा राज्य?

वारली पेंटिंग महाराष्ट्र राज्य की पारंपरिक आदिवासी कला है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र के उत्तरी सह्याद्री रेंज में रहने वाली वारली जनजाति द्वारा बनाई जाती है।

वारली चित्रकला में कौन से रंग होते है?

वारली चित्रकला में मुख्य रूप से सफेद रंग का उपयोग होता है, जिसे चावल के पेस्ट और पानी के मिश्रण से बनाया जाता है। यह सफेद रंग लाल या भूरे रंग की मिट्टी की पृष्ठभूमि पर उकेरा जाता है।

वरली चित्रकारी कहाँ उत्पन्न हुई थी?

वारली चित्रकारी महाराष्ट्र राज्य में उत्पन्न हुई थी। यह कला मुख्य रूप से महाराष्ट्र के उत्तरी सह्याद्री रेंज में रहने वाली वारली जनजाति द्वारा विकसित की गई है।

Kaun sa bhartiya rajya apni anuthi varli chitrkla ke liye jana jata hai?

वारली चित्रकला एक प्राचीन भारतीय कला है जो की महाराष्ट्र की एक जनजाति वारली द्वारा बनाई जाती है। अपनी पुस्तक द पेंटेड वर्ल्ड ऑफ़ द वार्लीस में यशोधरा डालमिया ने दावा किया है कि वर्ली की परंपरा 2500 या 3000 समान युग पूर्व से है।

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